सिर्फ एक बंदा काफी है - फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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सिर्फ एक बंदा काफी है - फिल्म रिव्यू

सिर्फ एक बंदा काफी है फिल्म रिव्यू

सिर्फ एक बंदा काफी है फिल्म जी 5 पर रिलीज़ हो चुकी है। इस फिल्म की तुलना आश्रम सीरीज से करना उचित नहीं है और ये ओह माई गॉड जैसी भी नहीं। इस फिल्म में एक सच्चे केस का जेजमेंट है जो आश्रम सीरीज में अभी तक नहीं आया। इस तरह से यह फिल्म एक साकारात्मक संदेश दे रही है । फिल्म के मूल में बाबा , भक्ति और अंधश्रद्धा है पर फिल्म का संदेश धर्म नहीं न्याय है। यह फिल्म न्यायालय में लड़े जा रहे उन अनेक मुकदमों में से एक मुकदमे पर केंद्रित है जिन पर हजारों लाखों भारत वासियों की न्याय की उम्मीदें टिकी हुई हैं।

कहानी में एक धर्मगुरु पर नाबालिग लडकी के बलात्कार और शारीरिक शोषण का मुकदमा दर्ज करवाया गया है। एक ईमानदार पुलिसकर्मी ने एफ आई आर दर्ज करने की हिम्मत की है। एक नाबालिग लड़की ने अपनी गवाही पर डटे रहने की ठानी है और एक मां बाप ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है। यह सब एक सत्य घटना पर आधारित है।

पहली बार जब इस केस को लड़ने के लिए जब मनोज वाजपई मतलब पी सी सोलंकी नाम के वकील से लड़की के माता पिता मिलते हैं तो उन्हें वे एक कहानी सुनाते हैं।

कहानी कुछ इस तरह थी। एक लड़का बहुत तेज़ बाइक चला रहा था, सिग्नल से कुछ मीटर दूर था और ग्रीन से येलो हुआ, फिर भी बाइक धीमी नहीं की गई। एक पिता अपने बच्चे के साथ उसी समय रास्ता क्रोस करता है। बाइक उस लड़के के पैर के ऊपर से जाती है। बच्चा चिल्लाता है। उसे डॉक्टर के पास ले जाते हैं। डॉक्टर कहता है कुछ नहीं, दर्द कुछ दिन में मिट जाएगा। लड़के को कुछ दिन बाद फिर दर्द होता है। अब एक दूसरे डॉक्टर को दिखाया जाता है, यह डॉक्टर उस दर्द की वजह फ्रेक्चर बताता है। ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती है और फिर इस बाइक वाले पर केस किया जाता है।

तब वकील साहब कहते हैं की मैं किसके खिलाफ मुकदमा लड़ूं,? तब लड़की का पिता जो यह कहानी सुन रहा था उसने कहा की बाइक वाले के खिलाफ। तब वकील कहते हैं की वह 3 लोगों के सामने लड़ा, एक बाइक वाला जिसने बाइक धीमी नहीं की, एक पहला डॉक्टर जिसने कहा कुछ नहीं, ठीक हो जाएगा और तीसरा लड़के का बाप, जिसे पता है की सिग्नल अभी रेड नहीं हुआ फिर भी बच्चे को रस्ता क्रॉस कराने निकल पड़ा।

तब लड़की का बाप समझ गया की गलती उसकी भी है। क्यों वह ढोंगी बाबाओं के पीछे अपने बच्चे भी समर्पित करते हैं?

इस फिल्म में कोर्ट रूम ड्रामा बहुत ही सटीक और सच्चाई के करीब दिखाया गया है, यहां ड्रामे बाजी नहीं दिखाई। फिल्म में वकीलों की ही भूमिका अधिक है, अन्य लोग इस फिल्म का स्क्रीन टाइम ३० प्रतिशत भी नहीं रोक पाए। किस तरह बाबा को बचाने में राजनीति और कूट नीति का प्रयोग हुआ इस पर बारीकी से काम किया गया है। सच को झूठ साबित करने के लिए डिफेंस के सभी दाव पेच जैसे निष्क्रिय होते गए।

बाबा का अधिक स्क्रीन टाइम नहीं, डायलॉग भी ज़्यादा नहीं हैं, बाबा के अन्य साथीदारों के कारनामे और बाबा के दूसरे धंधों की भी बात नहीं, मतलब आश्रम सिरीज़ से तुलना करना की आवश्यकता नहीं।

कुछ समय से मनोज वाजपाई को मुख्य भूमिका में लेकर बहुत अच्छी स्क्रिप्ट पे काम हो रहा है। OTT के चलते उन्हें उनके कद की भूमिकाएं मिल रहीं हैं और वे उन्हें बखूबी निभा भी रहे हैं। जब फेमिली मैन एक बड़े बजट और बड़े प्लॉट पर बनी सीरीज है तब इस फिल्म का बजट अधिक नहीं होगा क्योंकि फिल्म में न किरदार ज्यादा हैं और न लोकेशन। जोधपुर के एरियल व्यू अच्छे हैं । मनोज वाजपई का किरदार एक सामान्य वकील जैसा है जो स्कूटर पर घूमते हुए कोर्ट आते जाते हैं पर काम ईमानदारी से करते हैं।

अधरीजा सिन्हा को विक्टिम हैं उनका किरदार और स्क्रीन टाइम कम है पर अच्छा है। ये लड़की क्रिमिनल जस्टिस सीरीज में आ चुकी है। अमित शर्मा डिफेंस लॉयर के किरदार में हैं, जाने माने कलाकर हैं , उनका किरदार तारे ज़मीन पर दर्शील के पिता का था, तब से उनका चेहरा जाना माना बन गया है।

अंत में इतना कहना आवश्यक है की आस्था और विश्वास आपको हिम्मत देता है। वकील सोलंकी की ईश्वर में आस्था और लड़की का कानून पे विश्वास इस केस को एक ऐसे निर्णय तक ले गया जिसकी कल्पना कर पाना नामुमकिन था। ऐसे लाखों केस आज न्यायालय की तिजोरियों में बंध होंगे जिन पर तारीखें आतीं हैं पर निर्णय नहीं आते। मुजरिम खुले आम घूम रहे हैं और पीड़ित अपना मुंह छुपाते फिर रहे हैं की कोई उनपर लांछन न लगाए। अब समय बदलना चाहिए। पीड़ित अगर हर हाल में अडिग रहे तो निर्णय उनके पक्ष में होंगे।

अन्य एक बात जो समझ आई की बाबा और गुरु अपनी जगह हैं, उन्हें अगर जीवन समर्पित करना है तो आप समझदारी से चाहें तो खुद को समर्पित करें पर अपने परिवार को अपनी जागीर समझ कर उनका जीवन खतरे में न डालें।

फिल्म ज़ी 5 ऐप पर है, अवश्य देखें। कोर्ट रूम ड्रामा मेरा प्रिय विषय है तो मुझे तो यह फिल्म बहुत सारा ज्ञान और रोमांच दे गई। आप भी बहती गंगा में हाथ गीले करें।

–महेंद्र शर्मा 29.05.2023