सर्व दुखों से मुक्ति - 1 Disha Jain द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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सर्व दुखों से मुक्ति - 1

संपादकीय
सांसारिक दु:ख किसे नहीं है? हर कोई उससे छूटना चाहता है। लेकिन वह छूट नहीं पाता। उससे छूटने का मार्ग क्या है? ज्ञानी पुरूष के मिलते ही सर्व दु:खों से मुक्तिमिलती है। औरों को जो दु:ख देता है, वह स्वयं दु:खी हुए बिना नहीं रहता।

सर्व दु:खों से मुक्ति कैसे पायी जाये? सुख-दु:ख मिलने का यथार्थ कारण क्या है? औरों को सुख देने से सुख मिलता है और दु:ख देने से दु:ख मिलता है। यह सुख-दु:ख प्राप्ति का कुदरती सिद्धांत है! जिसे यह सिद्धांत संपूर्ण समझ में आ जाता है, वही किसी को बिलकुल दु:ख न देने की जागृति में रह सकता है। फिर मन से भी वह किसी को दु:ख नहीं पहुँचा सकता है। इसके लिए ज्ञानी पुरुष ही यथार्थ क्रियाकारी उपाय बता सकते हैं। परम पूज्य दादा भगवान, जो इस काल के ज्ञानी हुए, उन्होंने छोटा सा, सुंदर और संपूर्ण क्रियाकारी उपाय बताया है कि हररोज सुबह में हृदयपूर्वक पांच बार इतनी प्रार्थना करो कि ‘प्राप्त मन-वचन-काया से इस जगत् में किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दु:ख न हो, न हो, न हो।’ इसके बाद आपकी ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी। किसी भी जीव को मारने का हमारा अधिकार बिल्कुल ही नहीं है, क्योंकि हम उसे बना नहीं सकते!

संसार में दु:ख क्यों है? उसका रूट कॉज है अज्ञानता! मैं स्वयं कौन हूँ? मेरा असली स्वरूप क्या है? यह नहीं जानने से सारे दु:ख सर पर आ गये हैं। वास्तव में ‘आत्मज्ञानियों’ को इस संसार में एक भी दु:ख स्पर्श नहीं होता!

यदि आपकोसुखी होना हो तो सदा वर्तमान में ही रहना! भूतकाल गया, सो गया। वह वापस कभी नहीं लौटता और भविष्यकाल किसी के हाथ में नहीं है। उसे कोई जानता भी नहीं। तो ‘वर्तमान में रहे सो सदा ज्ञानी’!

गृहस्थ जीवन में बेटे-बेटियाँ, पत्नी, माँ-बाप, आदि की ओर से हमें जो दु:ख मिलते हैं, वे हमारे ही मोह के रीएक्शन से मिलते हैं। वीतराग को कुछ भोगना नहीं पड़ता, जीवन में। परम पूज्य दादा भगवान ने एक सुंदर बात बतायी है कि घर एक कंपनी है। इस कंपनी में घर के सारे मेम्बर्स शेयर होल्डर्स हैं। जिसका जितना शेयर, उतना उसके हिस्से में भुगतने का आयेगा। फिर सुख हो या दु:ख! मुनाफा हो या घाटा!

भगवान ने कहा है कि अंतर सुख और बाह्य सुख का बैलेन्स रखना चाहिये। बाह्य सुख बढ़ेगा तो अंतर सुख कम हो जायेगा और अंतर सुख बढ़ेगा तो बाह्य सुख कम हो जायेगा।

चिंता होने का कारण क्या है? अहंकार, कर्तापन! वह जाये तो चिंता जाये।

कुदरत का दरअसल न्याय क्या है? हम अपनी भूलों से किस तरह से छूटें? निजदोष क्षय किस तरह से किया जाये? इन सारे प्रश्रों को पूज्यश्री ने आसानी से हल करने का रास्ता प्रस्तुत पुस्तक में बताया है।

- डॉ. नीरूबहन अमीन जय सच्चिदानंद

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संपादकीय
सांसारिक दु:ख किसे नहीं है? हर कोई उससे छूटना चाहता है। लेकिन वह छूट नहीं पाता। उससे छूटने का मार्ग क्या है? ज्ञानी पुरूष के मिलते ही सर्व दु:खों से मुक्तिमिलती है। औरों को जो दु:ख देता है, वह स्वयं दु:खी हुए बिना नहीं रहता।

सर्व दु:खों से मुक्ति कैसे पायी जाये? सुख-दु:ख मिलने का यथार्थ कारण क्या है? औरों को सुख देने से सुख मिलता है और दु:ख देने से दु:ख मिलता है। यह सुख-दु:ख प्राप्ति का कुदरती सिद्धांत है! जिसे यह सिद्धांत संपूर्ण समझ में आ जाता है, वही किसी को बिलकुल दु:ख न देने की जागृति में रह सकता है। फिर मन से भी वह किसी को दु:ख नहीं पहुँचा सकता है। इसके लिए ज्ञानी पुरुष ही यथार्थ क्रियाकारी उपाय बता सकते हैं। परम पूज्य दादा भगवान, जो इस काल के ज्ञानी हुए, उन्होंने छोटा सा, सुंदर और संपूर्ण क्रियाकारी उपाय बताया है कि हररोज सुबह में हृदयपूर्वक पांच बार इतनी प्रार्थना करो कि ‘प्राप्त मन-वचन-काया से इस जगत् में किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दु:ख न हो, न हो, न हो।’ इसके बाद आपकी ज़िम्मेदारी नहीं रहेगी। किसी भी जीव को मारने का हमारा अधिकार बिल्कुल ही नहीं है, क्योंकि हम उसे बना नहीं सकते!

संसार में दु:ख क्यों है? उसका रूट कॉज है अज्ञानता! मैं स्वयं कौन हूँ? मेरा असली स्वरूप क्या है? यह नहीं जानने से सारे दु:ख सर पर आ गये हैं। वास्तव में ‘आत्मज्ञानियों’ को इस संसार में एक भी दु:ख स्पर्श नहीं होता!

यदि आपकोसुखी होना हो तो सदा वर्तमान में ही रहना! भूतकाल गया, सो गया। वह वापस कभी नहीं लौटता और भविष्यकाल किसी के हाथ में नहीं है। उसे कोई जानता भी नहीं। तो ‘वर्तमान में रहे सो सदा ज्ञानी’!

गृहस्थ जीवन में बेटे-बेटियाँ, पत्नी, माँ-बाप, आदि की ओर से हमें जो दु:ख मिलते हैं, वे हमारे ही मोह के रीएक्शन से मिलते हैं। वीतराग को कुछ भोगना नहीं पड़ता, जीवन में। परम पूज्य दादा भगवान ने एक सुंदर बात बतायी है कि घर एक कंपनी है। इस कंपनी में घर के सारे मेम्बर्स शेयर होल्डर्स हैं। जिसका जितना शेयर, उतना उसके हिस्से में भुगतने का आयेगा। फिर सुख हो या दु:ख! मुनाफा हो या घाटा!

भगवान ने कहा है कि अंतर सुख और बाह्य सुख का बैलेन्स रखना चाहिये। बाह्य सुख बढ़ेगा तो अंतर सुख कम हो जायेगा और अंतर सुख बढ़ेगा तो बाह्य सुख कम हो जायेगा।

चिंता होने का कारण क्या है? अहंकार, कर्तापन! वह जाये तो चिंता जाये।

कुदरत का दरअसल न्याय क्या है? हम अपनी भूलों से किस तरह से छूटें? निजदोष क्षय किस तरह से किया जाये? इन सारे प्रश्रों को पूज्यश्री ने आसानी से हल करने का रास्ता प्रस्तुत पुस्तक में बताया है।

- डॉ. नीरूबहन अमीन जय सच्चिदानंद