कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२७) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग-(२७)

जब कर्बला और कुबेर को ये ज्ञात हो गया कि वो ही अचलराज है तो दुर्गा बनी भैरवी अचलराज से बोली...
"यही मेरे मित्र हैं,ये है कर्बला एवं ये इसका भ्राता कुबेर एवं मुझसे तो तुम परिचित ही हो कि मैं दुर्गा हूँ"
जब कुबेर बने कौत्रेय ने ये सुना तो वो बोला...
"दुर्गा...परन्तु तुम तो...."
तब कुबेर की बात मध्य में काटते हुए दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"हाँ...हाँ...मैं दुर्गा हूँ...और कितनी बार मेरा नाम पुकारोगे कुबेर"!
"हाँ...हाँ...दुर्गा!तुम ठीक तो हो ना!",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"हाँ!मैं ठीक हूँ,तुम कितनी अच्छी हो सखी जो मुझे लेने आ गई",भैरवी बोली...
तब कर्बला ने अचलराज के समक्ष निवेदन किया कि वो दुर्गा को मुक्त कर दे,तब अचलराज बोला...
"यदि तुम दोनों मेरे अश्व मुझे लौटा दो तो मैं तुम्हारी मित्र को मुक्त कर दूँगा"
तब कर्बला बनी कालवाची बोली....
" महाशय! हम आपके अश्व तो अभी लौटाएं देते हैं, किन्तु!हम सबने ये कार्य अत्यधिक विवश होकर किया था ,यदि आप हमें आपकी ही भाँति कोई कार्य दिलवा दे तो अत्यधिक कृपा होगी हम सभी पर,"
"तुम लोगों को कार्य चाहिए,वो भला क्यों?"अचलराज ने पूछा...
"जीवनयापन हेतु हमें कार्य चाहिए,यदि कोई कार्य मिल जाता तो हम ये घृणित कार्य छोड़ देते,इस कार्य के कारण हम सभी को सदैव अपमान उठाना पड़ता है,कोई भी सम्मानीय कार्य कर लेगें हम सभी",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"कुबेर को तो कार्य मिल सकता है क्योंकि ये पुरूष है किन्तु तुम दोनों तो युवतियाँ हो इसलिए मेरी अश्वशाला में दोनों के लिए कोई उचित कार्य नहीं है",अचलराज बोला...
"हम दोनों भोजन पकाने का कार्य कर सकते हैं,दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"हाँ!ये हो सकता है यदि मैं मेरे स्वामी तुम दोनों को अश्वशाला में उपस्थित व्यक्तियों के लिए भोजन पकाने हेतु अपनी अश्वशाला में रख लें तो "अचलराज बोला...
"यदि तुम अपने स्वामी से इस विषय पर बात करोगे तो वें अवश्य मान जाऐगें"दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"ना! मुझे तो भय लगता है,वें अत्यधिक क्रोध वाले हैं",अचलराज बोला....
"देखो!अब सहायता करने का वचन दिया है तो इतना तो करना ही होगा",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"मैनें ऐसा कोई वचन नहीं दिया तुम सभी को",अचलराज बोला...
"इसका तात्पर्य है कि तुम नहीं चाहते कि हम तीनों सही मार्ग पर चले,परिश्रम करके अपना जीवनयापन करें," कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"मैनें ऐसा तो नहीं कहा"अचलराज बोला...
"परन्तु तुम्हारा तात्पर्य तो यही था"कर्बला बनी कालवाची बोली...
"तुम सभी मुझे विवश कर रहे हो"अचलराज बोला....
"ऐसा ही कुछ समझ लो"दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"अच्छा!चलो मैं तत्पर हूँ,मैं अभी इस समय तो ये कार्य नहीं कर सकता,किन्तु प्रातःकाल होते ही मैं तुम सभी का परिचय अपने स्वामी से करवा दूँगा,यदि वें तत्पर हो गए तो तुम सभी मेरे संग कार्य करने लगना", अचलराज बोला...
"अत्यधिक आभार तुम्हारा,जो तुम हम सभी की सहायता हेतु तत्पर हो गए", कर्बला बनी कालवाची बोली....
"रहने दो,आभार प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं है,अब तुम लोग विश्राम करो,चलो मैं तुम सभी को अश्वशाला के विश्रामगृह में ले चलता हूँ,तुम सभी मेरे पीछे पीछे चले आओ" अचलराज बोला...
और इसके पश्चात सभी अचलराज के पीछे पीछे चले आए,कुछ समय के पश्चात सभी अश्वशाला के विश्रामगृह के समीप थे,अचलराज ने सभी को उनके स्थान बता दिए और वें सभी वहाँ अपने अपने बिछौनों पर विश्राम करने लगे,
प्रातःकाल हो चुकी थी,खग वृक्षों पर कलरव कर रहे थें,सूरज भी अपनी लालिमा चहुँ ओर बिखेर चुका था,सभी जाग चुके थे,तभी अचलराज विश्रामगृह में आया और उन सभी से बोला...
"चलो!तुम सभी स्नान करके कुछ खा लो,इसके पश्चात हम सभी मेरे स्वामी के पास चलेगें"
"किन्तु!यहाँ स्नानगृह कहाँ है"?,दुर्गा बनी भैरवी ने पूछा...
"स्नान हेतु तो तुम सभी को मेरे घर ही जाना होगा",अचलराज बोला...
"तुम्हारे घर....तुम्हारे घर क्यों"?,कर्बला बनी कालवाची ने पूछा...
"वो इसलिए कि तुम और दुर्गा युवती हो और अश्वशाला में युवतियों के योग्य स्नानगृह नहीं है,मेरे घर चलो वहाँ घर के प्रांगण कुआँ हैं एवं छोटा सा स्नानागार भी है,तुम दोनों को वहाँ कोई कष्ट नहीं होगा, अचलराज बोला....
"तुम तो युवतियों को बहुत सम्मान देते हो",कुबेर बना कौत्रेय बोला...
"युवतियों का सम्मान करना मेरा कर्तव्य है जो कि मुझे मेरे पिताश्री ने सिखाया है और मैं वही कर रहा हूँ", अचलराज बोला...
"तुम तो बहुत ही अच्छे हो",कर्बला बनी कालवाची बोली...
"अच्छाई तो देखने वाली की दृष्टि में होती है,तुम्हारी दृष्टि ने जैसे मुझे देखा तो मैं वैसा ही बन गया", अचलराज बोला...
अचलराज की बात सुनकर कर्बला लजा गई किन्तु बोली कुछ नहीं,उसे अचलराज की दयालुता ने अत्यधिक प्रभावित कर दिया था एवं उसकी परोपकारिता ने उसका मन मोह लिया था,इसके पश्चात सभी अचलराज के घर पहुँचे एवं वहाँ उन सभी को सेनापति व्योमकेश के दर्शन हुए,उन सभी ने भी सेनापति व्योमकेश को अपना अपना परिचय दिया,तभी दुर्गा बनी भैरवी से वार्तालाप करते हुए सेनापति व्योमकेश बोले....
"पुत्री दुर्गा!तुमसे वार्तालाप करके यूँ लगा कि जैसे मैं तुमसे बहुत पहले से ही परिचित हूँ,मेरे महाराज की पुत्री भैरवी भी तुम्हारी प्रकार ही वार्तालाप किया करती थी,ना जाने अब वो कैसीं होगी ,किस दशा में होगी,"?
"चिन्ता ना करें काकाश्री!यदि भाग्य में उससे मिलना लिखा होगा तो आप उससे पुनः मिलेगें",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"इसी आशा में तो जी रहा हूँ पुत्री!",सेनापति व्योमकेश बोले....
"आपकी आशा अवश्य पूर्ण होगी",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
सबके मध्य इसी प्रकार वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी अचलराज बोला....
"अच्छा!वार्तालाप बाद में कर लेना पहले तुम सभी स्नान कर लो,मैं तब तक पाकशाला में भोजन की व्यवस्था करता हूँ"
"हम दोनों के रहते भला तुम क्यों भोजन पकाओगे"?ये तो युवतियों का कार्य है,कर्बला बनी कालवाची बोली...
"और वैसे भी कर्बला और कुबेर तो भोजन करते ही नहीं हैं,भोजन करने वाले तो हम तीनों ही हैं",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"अरे!ये दोनों भोजन नहीं करते तो जीवित कैसें रहते हैं,"?,अचलराज ने पूछा...
"हम दोनों ने व्रत ले रखा है,इसलिए केवल फलाहार पर निर्भर रहते हैं",कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"आश्चर्यजनक बात है"अचलराज बोला...
"हाँ!मैं पहले स्नान कर आती हूँ और भोजन की व्यवस्था मैं ही कर लूँगी",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"हाँ!और मैं तुम्हारी सहायता करूँगा",अचलराज बोला...
"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है,मैं ये कार्य अकेले कर लूँगीं",दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"दुर्गा!तुम्हें भोजन पकाने का इतना अभ्यास नहीं होगा इसलिए मैं तुम्हारी सहायता कर दूँगा",अचलराज बोला...
"इतना कह रहे हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है,मैं शीघ्रता से स्नान करके आती हूँ"
और इतना कहकर दुर्गा बनी भैरवी स्नान करने चली गई,कुछ समय के पश्चात वो स्नानगृह से लौटी और पाकशाला में भोजन पकाने लगी,संग में अचलराज भी उसकी सहायता करने लगा और कुछ ही समय में भोजन पक गया,कुबेर एवं कर्बला को छोड़कर सभी ने भोजन का आनन्द उठाया,इसके पश्चात वें सभी अश्वशाला के स्वामी के पास पहुँचे और अश्वशाला के स्वामी ने अचलराज के अनुरोध करने पर उन सभी को अश्वशाला में कार्य हेतु रख लिया...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...