सुनहरे भविष्य की ओर… अतीत से होकर Ruchi Modi Kakkad द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सुनहरे भविष्य की ओर… अतीत से होकर

चारों तरफ़ लोगों की भीड़ थी। कुछ ही दूरी पर एक बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर लिखा था- सुस्वागतम सुकन्या जी। मैं उस ओर बढ़ चली। जैसे ही एक दो सीढ़ी चढ़ी, मेरा पैर साड़ी में फंस गया और मैं लड़खड़ा गई। चेहरे पे मुस्कान पहने, डर को छिपा के मैंने पीछे मुड़ के देखा। मुझसे दो कदम पीछे मेरी मां खड़ी थी, जिसके मुंह से झटपट आवाज़ निकली - संभाल के सुकन्या और उसके हाथ के इशारे से यह साफ़ था की वह मुझे गिरने से बचाने आ रही थी।

मैं सुकन्या हूं। आज का दिन मेरा है, मेरे सम्मान मैं यह स्वागत समारोह आयोजित किया गया है। क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि आख़िर मैंने ऐसा किया क्या? मैं गुजरात के भूज शहर में रहती हूं मेरी शुरुआती पढ़ाई यहीं के प्राथमिक विद्यालय से हुई है। तो आप सोच रहे होंगे कि इसमें सम्मान समारोह आयोजित करने जैसी क्या बात है? चलो रहस्य समाप्त करते हुए आप सबको बता दूं कि बीते कल मेरी परीक्षा का परिणाम (रिजल्ट) आया था। मैं प्रथम स्थान लानेवाली, पहली महिला फाइटर प्लेन पायलट बन गई हूं। बहुत जल्द मैं अपने सपनों की पहली उड़ान भरने वाली हूं।

बस! इसी कारणवश माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने यह समारोह आयोजित किया हैं। हमारा शहर थोड़ा छोटा है। सूखे की मार, बारिश की कमी और हर समय तंगी का आलम। यहां तो अच्छे विद्यालय भी गिने चुने है, ऐसे में एक लड़की का पायलट बनना तो गर्व का विषय है साथ ही बहुतों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी।


स्वागत समारोह कक्ष, रोशनी से चकाचौंध और फूलों से सजा- धजा है। स्टेज के बैकग्राउंड में मेरी एक बड़ी सी तस्वीर देख, मन प्रफुल्लित हो रहा है। जन समूह का सैलाब उमड़ पड़ा है। इतने सारे लोग मैंने, पहले कभी एक साथ नहीं देखे थे। एक तरफ से पत्रकारों की भीड़ को काटते हुए मैं जैसे-तैसे मंच पर आ गई। खुशी तो बहुत है अपनी कामयाबी की मगर यह सब देख थोड़ी घबरा भी रही हूं। मेरी नज़र भीड़ के सैलाब में अपनी मां को ढूंढ़ रही है, जैसे ही मेरे चक्षुओं को मां के दर्श हुए मानो सांस में सांस आ गई। वह भी मेरी बैचनी समझ गई और हाथ के इशारे से मुस्कुराने को कहने लगी।


मंत्री जी ने पुष्प गुच्छ देते हुए मेरा स्वागत किया तथा मेरी उपलब्धियों का विवरण देने लगे। दर्शकों की भीड़ में अधिकतम संख्या स्कूली छात्राओ की है, जो मुझ-सी बनने की अभिलाषा रखती है। मंत्री जी ने जैसे ही मुझे mic देते हुए मंच पर आमंत्रित किया, मेरा दिल जोरों से धड़का, आखिर क्यों न हों? पहली बार पत्रकारों से मिलना-जुलना, उनके साथ सवाल-जवाब का राउंड करना मेरे लिए आसान नहीं हैं। जैसे तैसे मैंने हिम्मत जुटाई और कहा- पूछिए आप लोग, जो भी सवाल आपके मन में हैं।


पत्रकार-1: सुकन्या जी ! सबसे पहले बधाई स्वीकार करें और साथ ही बताइए कि आप इस जीत से कैसा महसूस कर रही है।


सुकन्या: जी मैं बहुत उत्साहित हूं और गर्व महसूस कर रही हूं। मेरी यह जीत, बहुत सी लड़कियों के लिए भविष्य के रास्ते खोलेंगी।


पत्रकार 2: क्या आप पहले से ही पायलट बनना चाहती थीं।

सुकन्या: जी हां, जबसे मुझे याद है, मैं यही करना चाहती थी। (दर्शकों में बैठी, अपनी मां की ओर देखते हुए) क्यों मां सही कह रही हूं ना ? (मां ने भी वही बैठे बैठे हामी भरी)


पत्रकार 3: क्या आप बचपन से ही पढ़ाकू थी?मेरा मतलब … (थोड़ा लडघड़ाते हुए) स्कूल की पढ़ाई में क्या आप अव्वल नंबर लाती थी?

सुकन्या: जी हां।


पत्रकार 4: हमने सुना है की आप चित्रकारी भी गज़ब की करती हो।

सुकन्या: हां जी! आपने सही सुना है।


पत्रकार 5: हमें पता चला है कि आपने तैराकी प्रतियोगिता में राजकीय स्तर तक भाग लिया है और मेडल भी जीता है ?

सुकन्या: सही कह रहे है आप।


पत्रकार 1: (फिर एक बार हाथ उठाते हुए पूछते है) मेरी जानकारी के मुताबिक आप संगीत व नृत्य की भी अच्छी जानकारी रखती हैं?

सुकन्या: यह भी 100% सही है।


दर्शकों की तरफ से एक छोटा-सा हाथ उठा हुआ दिखाई दिया मुझे, लगता है जैसे वो कुछ पूछना चाहती है। मैंने पत्रकारों की तरफ इशारा करते हुए कहा--प्लीज कोई अपना mic उन्हे दीजिए, वह भी कुछ कहना चाहती है।


Mic मिलते ही स्पॉट लाइट उस छोटी बच्ची पर जा रुकी।

बच्ची: दीदी! मेरा नाम कंचन है। मैं स्कूल में पढ़ती हूं। मैं भी आपकी तरह पायलट बनना चाहती हूं। आप मुझे बताएंगी की इतना सब कुछ आप कैसे कर लेती है?


सुकन्या: हां, यह सब मुमकिन हुआ है मेरी मां की वजह से। मैं उनकी सब बात मानती हूं। आज भी। तुम भी….

(अचानक मेरी बात काटते हुए, एक पत्रकार ने पूछा…)


पत्रकार: तो क्या वो भी पायलट हैं?

सुकन्या: जी क्या पूछा आपने? (इतनी हड़बड़ाहट में, मुझे प्रश्न समझ ही नई आया)

पत्रकार: (फिर एक बार प्रश्न दोहराते हुए…) क्या आपकी मां भी पायलट हैं?

सुकन्या: नहीं।

पत्रकार: क्या वह स्कूल टीचर है और किसी विद्यालय या महाविद्यालय में पढ़ाती हैं?

सुकन्या: नहीं।

पत्रकार: तो क्या वह चित्रकार है? चित्रकारी करती हैं?

सुकन्या: नहीं नहीं।

पत्रकार: वह जरूर संगीत विशारद होंगी?

सुकन्या: वह इनमें से कुछ भी नहीं है।

पत्रकार: तो कौन है वो? और आपकी सफलता मैं उनका क्या

योगदान है?

दर्शकों की आवाज़ एक साथ गूंज उठी… प्लीज बताइए ना, हम सभी लोग यह जानने की उत्सुकता रखते है।

सुकन्या: वह तो बस मेरी मां हैं। साधारण सी दिखने वाली तथा असाधारण से काम कर जानेवाली… मेरी मां।

मैंने अपनी मां से फिर मंच पर आने की गुज़ारिश की।

मां! इस सम्मान की असली हकदार तो आप ही हो। पायलट आज बेशक मैं बनी हूं, परंतु मेरे सपनों को होंसलो की उड़ान तुमने ही दी है। मेरे साथ-साथ तुमने भी इसमें कड़ी मेहनत और लग्न का इंधन भरा है।

माना कि मेरी मां ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है। उन्हें मेरे विषयों का ज्ञान भी नहीं हैं। वह तो कभी हवाई जहाज में भी नहीं बैठी, उसे चलाना तो बहुत दूर की बात है।

हां! पर एक बात अवश्य कहूंगी की मेरी मां को यह बहुत अच्छे से पता है कि उसकी बेटी को उसके सपनों से कैसे मिलवाना है।

समय पर उठना, समय पर सोना, समय पर खाना और पढ़ाई, इन सभी चीजों का ख्याल वह पूरी शिद्दत से रखती थी। कभी अगर बीमार भी पड़ जाती, तो भी अपनी जिम्मेदारियां ज़रूर निभाती। किस विषय में, मैं अच्छी हूं, किसमे कमज़ोर, किस विषय का अभ्यास कैसे करना है, यह सब वह बखूबी जानती थी। कभी कभी तो स्कूल में आकर मेरे शिक्षकों को भी ज्ञान दे देती थी (माहौल को हल्का करते हुए)। सभी लोग हंसने लगे। आप लोगों की यह हंसी बता रही हैं की आप लोगों की मां ने भी ऐसे पराक्रम अवश्य किए हैं।

जैसा कि आप लोग जानते है… हमारे इस छोटे-से शहर में पायलट की ट्रेनिंग संभव नहीं है। ऐसे में मुझे तीन साल पढ़ने के लिए अकेले दूसरे शहर भेजना, जबकि उसने कभी भी एक दिन के लिए भी मुझे अपने से अलग नहीं किया था, किसी तपस्या से कम नहीं था।

इतने वर्षो का संघर्ष, त्याग और बलिदान, इन कुछ पलों में समेटना नामुमकिन-सा है परंतु अंत में यही कहूंगी की मैं और मेरी मां एक टीम की तरह है। बेशक हम दोनों अलग व्यक्ति है, हमारा अलग व्यक्तित्व है, परंतु हम दोनो जब भी मिलकर काम करते हैं तो एक और एक ग्यारह बन जाते हैं।


-रुचि मोदी कक्कड़