सांवली सी एक लड़की सीमा द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सांवली सी एक लड़की

लड़कियों के लिए सांवलापन होना
अभिशाप है क्या..!!
 
अँगूठी पहनाई जा चुकी थी।
सब अब खाने की प्लेट ले कर
अपना-अपना कोना पकड़ चुके थे।
नेहा अब अपनी सहेली और होने वाली
जेठानी व नन्द के साथ सिमटीं-सिकुड़ी बैठी थी।
 
इधर-उधर की बातें चल रही थी,
इतने में सासु माँ कमरे में आयी और
नेहा के पास बैठते हुए बोली,
" देखो नेहा अब शादी में कुछ ही दिन बचें हैं,
तो धूप में कम निकलना।
बेसन, दही, और हल्दी का लेप
रोज़ रात को लगाया करना।
उससे रंग साफ़ हो जाएगा।
"नेहा ने हाँ में सिर हिला दिया।
 
अब जेठानी चहकते हुए बताने लगी,
" हाँ नींबू और टमाटर का रस लगाओ तो
रंग साफ़ हो जाएगा।
देवर जी को गोरी-चिटटी लड़कियाँ पसंद हैं,
मेरे जैसी"और खिलखिला कर हँस पड़ी।
 
फिर माहौल हल्का हो गया।
ख़ैर, धीरे-धीरे कर के शादी के दिन
नज़दीक आने लगे।
जब तब ससुराल से फ़ोन आता तो घर में रहने,
ऑफ़िस से जल्दी आने व धूप में कम निकलने की हिदायत मिलने लगी।
आकाश भी जब फ़ोन करता तो अधिकतर,
उसके साँवलेपन को ले कर छेड़ दिया करता था,
तो कभी सीरीयस हो करकहता,
" नेहा मुझे तुम्हारे साँवलेपन से कोई शिकायत
नही है,मगर मम्मी का अरमान है
कि बहुएँ उनकी 'Milky-white' हों।
अब भाभी तो हैं, तुम थोड़ी साँवली हो,
तो वो जो टिप्स देती हैं मान लो न।
आख़िर ख़ूबसूरत तो तुम ही दिखोगी।
"नेहा जवाब देना तो चाहती मगर मम्मी की
हिदायत कि वजह से चुप रह जाती।
अपनी चिढ़ मम्मी पर निकालती,
तो मम्मी कहती,"अरे इतने बड़े घर में
रिश्ता हो रहा है,
सिर्फ़ इसलिए कि तू बैंक में नौकरी करने लगी,
वरना एक साधारण मास्टर की बेटी की
शादी कभी हो पाती क्या वहाँ।
तू देख, वो रईस लोग हैं।
बड़े लोगों के बीच उनका उठना-बैठना है।
सोसाइटी मेंटेन करते हैं वो।
तू क़िस्मत वाली है की तेरे ऐसे रंग-रूप के
बाद भी उन्होंने तुम्हें चुना है।
 
" फिर नेहा चुप हो जाती।
उसे भी लगता की मम्मी सच ही तो कह रही है।
सोचती की बदलते वक़्त के साथ
सब ठीक हो जाएगा।
 
लेकिन जैसे-जैसे दिन नज़दीक आने लगे,
सासु-माँ, और आकाश का ये प्रेशर बढ़ने लगा।
नेहा ये सब इग्नोर करना तो चाहती
मगर कर नही पाती।
फिर ख़ुद में अन्दर ही अन्दर और चिढ़ने लगी।
 
जो रंग खिलना चाहिए था,
ऊबटन लगने के बाद वो और मुरझाने लगा।
शादी से एक सप्ताह पहले आकाश का
जन्मदिन था।
आकाश ने पार्टी में नेहा को भी बुलाया था।
सासु माँ ने पहले ही फ़ोन पर समझा दिया था
कि पार्लर होती हुई पार्टी में आए।
माँ ने भी भाई के साथ पार्लर भेज दिया।
नेहा जब पार्टी में भाई के साथ पहुँची तो
उसे देखते ही,सासु माँ लाल-पीली होने लगी।
बड़ी बहु को बुला कर इन्स्ट्रक्शन दिया कि
"ले जाओ इसे बाथरूम में और
अपने मेक-अप से तैयार कर दो।
 
"मगर नेहा नही गयी।
वहीं खड़ी रही।
सासु-माँ के तलवे का ग़ुस्सा सिर पर चढ़ गया
और लगभग धक्का देते हुए नेहा को बोलीं,"
न रंग है न रूप, फिर तुम्हें घमंड किस बात का है।
हंम ने अपने से नीच घर से रिश्ता जोड़ कर
ग़लती कर दी।
 
"इतने में आकाश भी आ गया वहाँ,
हल्ला सुन कर और नेहा का हाथ पकड़ कर
बाथरूम की तरफ़ भाभी के साथ बढ़ने लगा।
नेहा ने धीरे से उसके हाथ से अपने हाथ को
आज़ाद करवाते हुए
वापिस सासु माँ की तरफ़ बढ़ने लगी और
उनके क़रीब जा कर बोली,
"हाँ, मैं साधारण घर से हूँ।
मेरा रंग साँवला है।
मुझे घमंड तो नही मगर गर्व है अपने आप पर।
मैं अपनी कड़ी मेहनत से आज एक
छोटे से मुक़ाम पर हूँ,
और हाँ मेरे घरवाले आपके जितने रईस तो नही,
मगर उनमें इतना संस्कार तो है की,
इंसान को इंसान समझते हैं,
 
उन्हें रंग-रूप के आधार पर तौलते नही हैं..
और आकाश तुम ..
ख़ैर तुमसे कोई शिकायत नही है,
क्यूँकि तुमने बचपन से ही यही देखा है,
की औरतें सजावटी समान हैं,
" कहते हुए उसने अपनी अँगूठी निकाल कर
अपनी होने वाली सास के हाथ में थमा दी
और भाई का हाथ पकड़कर,
हॉल से बाहर निकल गयी,""
एक आज़ाद हवा के झोंके की तरह।