...उस दिन स्कूल में सुबह-सुबह कदम रखते ही गार्ड जी के मुरझाए और उदास चेहरे की ओर अचानक से ध्यान चला गया।लगभग 65-70 के बुजुर्ग को इस उम्र में अपना और परिवार का खर्च चलाने के लिए तीन शिफ्ट की ड्यूटी पूरी मुस्तैदी के साथ करनी पड़ती है।उस पर से न ढंग का भोजन,न कोई सुविधा और ना ही पदाधिकारियों का अच्छा बात-व्यवहार!
...सच में मुझे बहुत बुरा लगा,जब उस दिन गार्ड जी द्वारा गलती से एक बाहरी पदाधिकारी को सैल्युट नहीं किया गया।स्कूल के ही एक पदाधिकारी द्वारा उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई गयी।मैं सब देख और सुन रहा था।मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था।मैं तो खुद ही संविदा पर कार्य करता था,जिसका कोई निश्चित भविष्य नहीं होता।
...मैंने गार्ड जी को स्कूल के मेन गेट पर कड़ी धूप और उमस में पूरी मुस्तैदी के साथ ड्युटी करते पाया।मॉर्निंग एसेंबली के बाद सभी कर्मी अपने-अपने कार्य में लग गये।मैं स्टाफ रुम से अटेंडेंस रजिस्टर लेने गया तो अपना लंच बॉक्स भी साथ में ले लिया।स्कूल का मेन गेट बंद हो चुका था।देर से आनेवाले बच्चों को सज़ा के रूप में बाहर ही धूप में खड़ा कराया गया था।मैं गार्ड रुम में गया तो गार्ड जी एक टूटी हुई कुर्सी पर बैठकर खिड़की से बाहर के बच्चों को देख रहे थे।वे पसीने से तरबतर थे।मुझे देखते ही वे खड़े हो गये।
...मैंने उन्हें बैठने का संकेत करते हुए पूछा-"गार्ड जी,इस कमरे में तो पंखा भी नहीं है।उसपर से यह एस्बेस्टस तो गरमी में और तप रहा है।आप इसमें कैसे ड्युटी करते हैं??"गार्ड जी ने अपने माथे का पसीना पोछते हुए कहा-"केतना दिन से खराब है सर।कहते हैं ठीक करवाने को,तो कौनो नहीं सुनता है।जैसे-तैसे ड्युटी कर लेते हैं सर।दिक्कत त बहुत है।पर का करें??केहू सुनता ही नहीं है।"मैंने अपनी बात रखी-"आप कल से ड्युटी कर रहे हैं।दूसरे गार्ड कब आएँगे??"गार्ड जी ने थके स्वर में बात रखी-"सहूलियत के लिए तीन शिफ्ट का 24 घंटे का ड्युटी कर लेते हैं।बाकी दूसरा गार्ड आएगा तब न जाएँगे घरे।उसको आठे बजे आना था।आ देखिए पौने नौ बज रहा है।हम का करें??"
...मैंने उनसे पूछा-"गार्ड जी,मान लीजिए कि दूसरा गार्ड 12 बजे आए तो??" गार्ड जी निरुत्तर हो गये।मैंने फिर पूछा-"आप कुछ खाये हैं कि नहीं??"उन्होंने निराशा में कहा-"नहीं सर,कल्ले आठ बजे रात को सतुआ आ पियाज खाये थे।"मैंने अपनी बात रखी-"गार्ड जी,इस थैला में मेरा लंचबॉक्स है और पेपर में लपेटकर ठंडा पानी का बोतल रखा हुआ है।लंचबॉक्स में छः रोटी और सब्जी होगी।आपको जितनी भूख हो खा लीजिए और ठंडा पानी पी लीजिएगा"
गार्ड जी संकोच में पड़ गये।मैंने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा-"आप मेरे पिता समान हैं।जब आप ही भूखे रहेंगे मैं कैसे अपनी ड्युटी निभा पाऊँगा??थोड़ा भी संकोच मत कीजिएगा।"
...मेरा क्लास खाली जा रहा था।संयोग से टीचर इंचार्ज का ध्यान उस क्लास की ओर अब तक नहीं गया था,नहीं तो म़ुझे उनका कोपभाजन बनना पड़ता।मैं तेजी से अपने क्लास की ओर बढ़ चला।
...11 बजे अवकाश हुआ तो मैं ग्राउंड में बच्चों की निगरानी में आकर खड़ा हो गया।गार्ड जी तेज कदमों से मेरे पास आए और बोले-"सर,बुरा त नहीं मानिएगा न?? एगो बात कहना था।" मैंने कहा-"नहीं मानूँगा।क्या बात है बताइए??"उन्होंने अपनी बात रखी-"सर,हमको बहुत जोर का भूख लगा था।से हम सब रोटी-सब्जी खा गये हैं... और पानी भी सब पी गये।"मैंने कहा-"तो क्या हो गया??आपकी भूख मिटी न??"गार्ड जी मुस्कुराने लगे।मुस्कुराते हुए बोले-"सर,ई स्कूल में भांति-भांति का लोग है।बाकी अपने के सबसे अलग हैं।भगवान आपको बहुत बड़ा आदमी बनाएँगे एक दिन।आपने बहुत पुण्य का काम किया है सर।सर,हम अपने के लंचबॉक्स आ बोतल सरफ से साफ करके थैला में स्टाफ रुम में आपके टेबल पर रख दिए हैं।दूसर गार्ड आ गये हैं।हम घरे जा रहे हैं सर।परनाम सर!"
...मुझे प्रणाम करते हुए गार्ड जी तेज़ कदमों से अपनी साइकिल पर सवार होकर मेन गेट से बाहर चले गये।मैं उन्हें तब तक देखता रहा जबतक कि मेरी आँख से वे ओझल न हो गये।
...स्कूल से छुट्टी के समय मुझे बहुत ज़ोर की भूख लगी।ठंडा पानी पीकर किसी तरह आधा घंटा स्कूल में बिताने के बाद जब घर पर आया और श्रीमती जी को थैला थमाते हुए कहा-"बहुत ज़ोर की भूख लगी है!खाना लगा दो!"श्रीमती जी किचेन से ही बोली-"फिर किसी को आज का खाना खिला दिए क्या मेरे दानी-महात्मा?तभी मैं कहूँ कि आपको भूख कैसे लग गयी??आप तो आते-आते कभी खाते नहीं??"
...श्रीमती जी के इस प्रश्न का कोई उत्तर मेरे पास नहीं था।उसके सामने एक विनम्र,आज्ञाकारी बच्चे की तरह पेश होकर मैंने कहा-"वो बुजुर्ग गार्ड जी न,कल से भूखे थे।मेरा मन नहीं माना।सब दे दिया उन्हें खाने के लिए।"श्रीमती जी कुछ देर चुप रहीं।फिर चुप्पी तोड़ते हुए बोली-"तभी तो मेरे पापा कहते थे कि उन्होंने मेरे लिए लाखों में एक वर ढूँढा है।सच में आप बहुत ही अच्छे इंसान हैं!आप बैठिये,मैं खाना लगाती हूँ।"