पश्चाताप नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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पश्चाताप

पश्चाताप -


उत्तर प्रदेश वन सेवा के सर्वोच्च अधिकारी थे भूपेश कुमार उत्तर प्रदेश वन सेना में आने से पूर्व भूपेश कुमार भारतीय सेना में उच्च अधिकारी थे भारतीय सेना में उनकी बहादुरी के चर्चे होते रहते एव नए नवागत सैन्य सभी वर्ग के सैन्य कर्मियों को भूपेश कि जांबाजी के किस्से सुनाए जाते ।

भूपेश कुमार सेना से सेवा निबृत्त होने के उपरांत भारतीय वन सेवा के माध्यम से चयनित होकर सर्वोच्च पद पर पहुंचे और मुख्य अधिकारी उत्तर प्रदेश वन विभाग में नियुक्त थे ।

अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने बहुत सुधारात्मक प्रक्रियाएं शुरू किए जिसके परिणामस्वरूप उत्तर वन विभाग में अनुशासन के हर क्षेत्र में सर्वोत्तम परिणाम परिलक्षित हो रहे थे ।

जब भी भूपेश कुमार प्रदेश के किसी जनपद में दौरे पर निकलते सारे कर्मचारी अधिकारी नतमस्तक हो उनका अभिननंदन करते यह कहा जाय की भूपेश कुमार ने सेना के अनुशासन को उत्तर प्रदेश वन सेवा में भी लागू कर दिया था तो अतिशयोक्ति नही होगी ।

यह उन्नीस सौ अस्सी का दौर था भूपेश कुमार का विभागीय दौरा उत्तर प्रदेश के आखिरी जनपद देवरिया आकस्मिक दौरा था भूपेश कुमार समय नियम कानून के स्वंय बहुत पावन्द थे ।

निर्धारित तिथि एव समय पर वह देवरिया पहुंचे दिन भर विभाग की मीटिंग करते रहे आवश्यक निर्देश देते रहे शाम को वह वन विभाग के अतिथि गृह पहुंचे जहां उनके खाने पीने कि सर्वोच्च व्यवस्था हुई थी फिर भी विभाग के सारे अधिकारी एक पैर पर खड़े थे कि साहब को कोई परेशानी न हो तब तक कानो कान यह खबर आने लगी कि साहब को सबाब कि तलब लगी है और उनके लिए अबिलम्ब व्यवस्था कि जाय ।

इस कार्य के लिए डिप्टी फारेस्ट रेंजर मनी राम को उच्च अधिकारियों का निर्देश प्राप्त हुआ कि साहब की व्यवस्था तुरंत की जाय मनी राम रात्रि के दस बजे देवरिया जैसे पिछड़े जनपद में कहा से साहब कि मांग के अनुसाए व्यवस्था करे उन्हें भय यह भी था कि यदि वह व्यवस्था नही कर पाए तो सुबह नौकरी ही खतरे में पड़ जाएगी ।

मानी राम हताश निराश बैचैन चहल कदमी कर ही रहे थे कि उनके जेहन में वंजारो कि उस बस्ती का ख्याल आया जो सड़क किनारे जैसे तैसे रहते है ।

मनी राम तुरंत वहाँ पहुंचे और सारे हालात को बताया वंजारो की बस्ती से बड़ी मुश्किल से एक नव यवना को राजी किया उसे बेजतरींन तरीके से सजा धजा कर एव आवश्यक निर्देश देते हुए साहब कि सेवा में पेश किया गया उसका नाम था पैजनियां।

पैजनियां के पहुंचते ही भूपेश कुमार गदगद हो गए पैजनिया पूरी रात वन विभाग के अतिथि गृह में थी सुबह होते होते उंसे गोरखपुर मेडिकल कॉलेज चिकित्सा हेतु भेजा गया जहां वह महीनों इलाज के बाद स्वस्थ हो सकी ।

इधर भूपेश को पता चल चुका था कि उनको पेश की जाने वाली नौवयवना बंजारन थी वह बहुत नाराज हुए और सम्बंधित अधिकारियों एव कर्मचारियों को काफी फटकार लगाई ।

जब पैजनिया स्वस्थ हो गयी और कुछ समय बीत गया तो वह किसी तरह भूपेश कुमार तक पहुंच गई भूपेश ने जब पैजनिया को देखा हक्का बक्का रह गए कुछ बोलते पैजनिया बोल उठी बाबूजी आप नही पहचानते कोई बात नही मेरी इज़्ज़त लूटी कोई बात नही क्योकि बंजारों कि कोई इज़्ज़त होती ही नही हाँ मैं यही मांगने आयी हूँ कि आज के बाद आप किसी भी औरत या लड़की को अपने वहशियाना शौक कि बलि नही चढ़ाएंगे नही तो औरतो लड़कियों का पुरुष जाती पर बचा खुचा विश्वास उठ जाएगा ।

आप तो देश कि रक्षा के सिपाही भी थे और इतना कहते हुये वह भूपेश के बंगले से बाहर निकल गयी भूपेश एक टक उंसे देखते रहे ।

एक सप्ताह बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तब उन्होंने पैजनिया को खोजकर उससे विवाह किया ।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।