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मिठाई मिथक

मिठाई का मिथक ---

पण्डित ऊगन बहुत प्रतिष्टित पिता के पुत्र थे वह स्वंय भी पांडित्य पद्धति कर्म एव संस्कारो के विद्वान थे ।

उनकी चार बेटियाँ एव दो बेटे थे बड़ा बेटा तीन बेटियों के बाद पैदा हुआ था जिसके कारण उसे बहुत प्यार सम्मान प्राप्त था ।

प्यार से उसका नाम अभिमान रखा गया अभिमान ऊगन पण्डित के परिवार का वास्तव में अभिमान था ।

अभिमान कि छोटी छोटी खुशी के लिए पूरा परिवार एक पैर पर खड़ा रहता धीरे धीरे अभिमान बड़ा होने लगा ज्यो ज्यो वह बड़ा हो रहा था उसकी शरारतें भी विचित्र होती जा रही थी वह बहुत साहसी एव हिम्मती था अतः उंसे लोग तरह तरह के प्रलोभन देकर तरह तरह के कारनामे करवा देते और मजा लेते ।

अभिमान अब चौदह पंद्रह वर्ष का हो चुका था स्वभाव से दिलफेंक और शौकीन तबियत बन चुका था हम उम्र लड़कियों में उसका दूर दराज रिश्ते नातो में भी अच्छा हनक था कुल मिलाकर अभिमान मनमौजी और शौकीन किशोर युवा था
वह हर जगह अपने मतलब के शिकार कि तलाश करता रहता ।

अभिमान के चाचा का परिवार गांव से बाहर शहर में रहता था जहां अभिमान का आना जाना रहता था ।

अभिमान के चाचा के मकान के पड़ोस में एक गौड़ परिवार रहता था जिसके मुखिया कौशलेंद्र गौड़ थे उनकी दो बेटियाँ विशा एव विभु थी अभिमान चचा के घर आते जाते विशा पर फिदा हो गया और उसे हासिल करने के सारे जुगत करने लगा ।

विशा अच्छे संस्कारो कि आधुनिक सोच कि लड़की थी उसे किसी से भी बात चीत करने में कोई परहेज नही था और उसके बात करने कि अदा भी खासी प्रभवी थी ।

वह सदैव मुस्कुराते हुए बात करती अभिमान जब भी चचा के घर गांव से शहर आता बहाना निकाल कर घण्टो विशा से बात करता अभिमान को गलत फहमी हो गयी कि विशा उससे प्यार करने लगी है ।

अतः उसने विशा से पूछ ही लिया की उंसे किस तरह का लड़का पसंद है विशा ने अपनी पसन्दों को अभिमान से बताया साथ ही साथ उसने उच्च नौकरी पेशे को अपनी पसंद में प्रस्थमिकता दी।

अभिमान को लगा की यदि मैं नौकरी में आ जाँऊ तो विशा जैसी आकर्षक प्रभावी सुंदर लड़की मिल जाएगी अभिमान के मन मे किसी भी लड़की के लिए कभी कोई स्थायी भाव नही आये वह सिर्फ मतलब स्वार्थ के लिए ही जाल फेंकता बुनता ।

विशा अभिमान के नज़रों से दिल कि गहराई में उतर चुकी थी अतः वह ऐ न केन प्रकारेण उंसे हासिल करना चाहता था उसने तरकीब निकाली स्वंय के उच्च सरकारी सेवा में चयन का और एक नियुक्ति पत्र लेकर चाचा के घर शहर पहुंचा ।

उन दिनों संचार व्यवस्था इतनी तेज नही थी अतः कोई कुछ भी पता आसानी से नही कर सकता था ।

अभिमान शहर चाचा के घर पहुंचते सबसे पहले स्वंय के उच्च सरकारी सेवा में चयन कि जानकारी विशा को दिया बाद में चचा के परिवार को विशा ने मिठाई कि मांग कि अभिमान ने मिठाई चचा के पूरे मोहल्ले में
बटवाई और विशा का इंतज़ार चचा के घर एक सप्ताह रुक कर करता रहा लेकिन विशा खिलखिला कर अभिमान से बाते करती जरूर मगर अपने अंदाज में मर्यदा के अंदर ।

छुट्टी का दिन था अभिमान के चाचा एव परिवार के सभी लोग बैठे थे तभी एका एक विशा आयी और अपने मोहक अंदाज़ में खिलखिलाते हुये अभिमान के चाचा से बोली अंकल मैं मंदिर गयी थी क्योकि मैंने मन्नत मांगी थी की अभिमान भैया कि नौकरी लग जायेगी तब मैं प्रसाद चढ़ाऊंगी कल रक्षा बंधन है अभिमान भैया को राखी बाँधूँगी तो एच एम टी कि इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लुंगी ।

अभिमान के चाचा ने भी विशा कि बातों का समर्थन किया अभिमान के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई क्योकि उंसे पता था कि ना तो उसकी नियत सच्ची है ना नौकरी ।

वह करता भी क्या मन ही मन आत्म ग्लानि एव शर्मिदा होने के।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।

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