हर्जाना - भाग 9 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हर्जाना - भाग 9

सुहासिनी को इस तरह रोता देख गीता मैडम ने कहा, "तुम्हें कुछ नहीं होगा सुहासिनी तुम हिम्मत रखो।"

"बस वही तो नहीं है ना दीदी वरना ..."

"नहीं सुहासिनी हमारे समाज में इस तरह बच्चे को जन्म देना आसान नहीं है। तुम कहाँ डरीं तुमने तो उसे जन्म दिया। यदि कोई और होती तो बच्चे को ख़त्म करके ख़ुद के जीवन को आगे बढ़ा लेती और फिर धीरे-धीरे उस हादसे को शायद भूल भी जाती पर तुमने ऐसा नहीं किया। पाप तो उसने किया है सुहासिनी। सजा तो भगवान ने उसे देनी चाहिए थी। भगवान ने भले ही उसे छोड़ दिया है लेकिन अब मैं उसे नहीं छोडूँगी। तुम्हारे साथ ही साथ वह आयुष्मान का भी दोषी है। उसे इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। उसके पास तो बीवी बच्चे, शान शौकत, दौलत, शोहरत सब कुछ है। ऊपर से समाज सेवक होने का बड़ा-सा तमगा भी छाती पर लटकता रहता है। सरकार ने कई बार उसे सम्मानित भी किया है पर वह इसका हकदार था ही नहीं।"

"जाने दो दीदी जीवन के इस अंतिम पड़ाव में अब मैं किसी के साथ कोई झगड़ा नहीं करना चाहती। मुझे जो भोगना था मैंने भोग लिया। मेरा निर्दोष आयुष्मान भी बिना माँ के पल गया। मुझे बस अपने बेटे के साथ रहकर अंतिम सांस लेनी है। जब मैं अंतिम सांस लूँ वह मेरी नजरों के सामने हो, यही एक ख़्वाहिश दिल में बसी है। मेरे मरने के बाद उसे मेरी पूरी सच्चाई बता देना और यह भी कह देना कि मेरे जीवन का एक भी पल ऐसा नहीं गया जब मेरे दिल में दर्द ना रहा हो। मेरी आँखों के आँसू कभी सूखे ही नहीं। मुझे ख़ुद से ही नफ़रत-सी हो गई थी। उसकी चिंता ने हर पल मेरे दिल और दिमाग़ पर दस्तक दी है।"

सुहासिनी की बातें सुनकर आयुष्मान की आँखें किसी जगह रुके हुए बादल के समान फट पड़ीं। वर्षों से सीने में रुका हुआ तूफान आज सीने से बाहर निकल आया। वह रुमाल से आँखों को पोंछता हुआ कमरे में दाखिल हो ही गया।

उसे देखते ही गीता और सुहासिनी दोनों उठकर खड़े हो गए। दोनों के मन में एक ही सवाल आया कि कहीं आयुष्मान ने सब सुन तो नहीं लिया? आयुष्मान की भीगी पलकें तो अपने आप ही इस बात का सबूत बन गई थीं कि उसने सब कुछ सुन लिया है।

सुहासिनी उसे अपने इतना नज़दीक देखकर प्यार भरी नजरों से उसे निहारे ही जा रही थी।

आयुष्मान ने बिना कुछ बोले, बिना देर लगाए, सुहासिनी के कंधों को पकड़ कर उसकी आँखों के आँसुओं को पोंछा और फिर कहा, “माँ, मेरी माँ …”

सुहासिनी जिस शब्द को सुनने के लिए तरसती आई थी, उस एक शब्द ने उसके कानों में प्यार की भीनी-भीनी बारिश कर दी।

सुहासिनी ने कहा, “आयुष्मान मेरा बेटा।”

यह मिलन था प्यार का, वेदना का, शांति और सुकून का, संतोष का, जिसका हर पल उन्हें स्वर्ग की अनुभूति करा रहा था। ऐसे प्यार का एहसास वह दोनों ही पहली बार महसूस कर रहे थे। माँ क्या होती है आयुष्मान पहली बार जान रहा था।

उसने कहा, “माँ आप डरो नहीं, इतनी मुश्किल से मुझे मिली हो; मैं आपको मरने नहीं दूंगा।”

गीता मैडम भी इन लम्हों में बसा प्यार, त्याग, आँसू और मजबूरी सब कुछ महसूस कर रही थीं। 

उसके बाद आयुष्मान हाथ पकड़ कर सुहासिनी को अपने कमरे में ले गया।

उसने कहा, "माँ यह मेरा कमरा है और इसी से लगा हुआ यह क्लिनिक भी है। मैंने अपना पूरा जीवन इस अनाथाश्रम के नाम कर दिया है क्योंकि इसका कर्ज़ तो मैं कभी भी चुका ना पाऊंगा। माँ यदि ऐसे अनाथाश्रम ना हों तो ऐसे बच्चों का क्या हो जो छोड़ दिए जाते हैं।"

सुहासिनी ने कहा, "तुम्हारा निर्णय बिल्कुल सही है बेटा, मुझे तुम पर गर्व है।"

"माँ आप अपने दिल पर किसी तरह का बोझ मत रखो। मैंने सब कुछ सुन लिया है, जो भी हुआ उसमें आपका कोई कुसूर नहीं है। अब तक मुझे माँ शब्द से कोई लगाव नहीं था, कोई प्यार नहीं था। लेकिन आज मैं माँ की ममता को पहचान गया हूँ, उसे महसूस भी कर रहा हूँ।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः