हर्जाना - भाग 3 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हर्जाना - भाग 3

लिव इन रिलेशनशिप के बारे में गीता मैडम की बात सुनते ही माया ने कहा, “हाँ मैडम आप सही कह रही हैं। अरे मैडम अब तो ऐसी माँ भी हैं, जो भगवान का दिया आँचल में छुपा हुआ उपहार स्तन, उसे भी अपनी सुंदरता के साथ जोड़ लेती हैं और बच्चे को उस सुख से वंचित रखती हैं। भगवान ने इसलिए यह उपहार नहीं दिया है। यह उपहार तो दुनिया में जन्म लिए बालक का पेट भरने का साधन है।”

महिमा ने कहा, “अरे यह बदलाव तो अब यहाँ से बहुत आगे तक अपने पैर पसार चुका है। जिनके पास पैसा है, जो समर्थ हैं, फैशन जगत की कुछ ऐसी महिलाएँ अब बच्चे को अपनी कोख में रखने से भी घबराती हैं कि कहीं उनका शरीर खराब ना हो जाए। उनकी कंचन जैसी काया पर ममता की सलवटें, उसके दाग ना पड़ जाएँ, इसीलिए तो अपने अंश को उधार की कोख में पालती हैं।”

गीता मैडम ने कहा, “पता नहीं यह सिलसिला समाज को और कहाँ तक लेकर जाएगा। यह सब तो चलता ही रहेगा, चलो सो जाते हैं, रात काफ़ी हो चुकी है। देखो आयुष्मान भी सो रहा है, कितना प्यारा लग रहा है,” कहते हुए गीता मैडम उसके पास जाकर लेट गईं।

आँखें बंद करके वह भूतकाल की भूल भुलैया में खो गईं। उन्हें सीता मैडम का बताया हुआ हर शब्द याद आ रहा था। बिल्कुल आयुष्मान की ही तरह खून से लथपथ, रोती हुई वह भी इसी अनाथाश्रम में मिली थीं। इस तरह की बातें याद आते ही उनकी आँखों से अपने आप ही आँसू बह निकले लेकिन अब तक वह उसकी आदी हो चुकी थीं। आज कई वर्षों के बाद उन्हें सीता मैडम की बताई बातें बहुत याद आ रही थीं, उन्हें रुला रही थीं। इसी बीच वह नींद की आगोश में समा गईं।

धीरे-धीरे आयुष्मान बड़ा होने लगा। वह सब बच्चों से अलग था। बहुत होनहार, बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का धनी, जो उसके बचपन से ही उसमें नज़र आता था। आयुष्मान इस अनाथाश्रम को अपना घर और रहने वाले सभी को अपना परिवार समझता था। माँ बाप क्या होते हैं, उसे पता ही नहीं था। जब तक वह छोटा था इस बात से अनजान था, पर बड़ा होते-होते, अनाथाश्रम से बाहर क़दम निकलते ही उसे सब समझ में आने लगा। वह समझ गया कि किसी ने उसे यहाँ लाकर छोड़ दिया था। वह अनाथ है, उसके माँ बाप कौन है कोई नहीं जानता।

आयुष्मान की रगों में किसका खून दौड़ रहा है यह तो कोई नहीं जानता था लेकिन उसे और उसकी हरकतों को देखकर लगता ज़रूर था कि वह किसी बड़े रईस, संपन्न परिवार का बच्चा है। उसकी इन सभी खूबियों को देखते हुए गीता मैडम ने उसे बहुत ही अच्छे स्कूल में पढ़ाया और उसे हर मौका दिया। आयुष्मान ने भी अपनी मेहनत और लगन से यह सिद्ध कर दिया कि अनाथाश्रम में रहकर और माँ-बाप के द्वारा तिरस्कृत किए जाने के बाद भी इंसान चाहे तो वह मुकाम हासिल कर सकता है जो यहाँ के बच्चों के लिए असंभव-सा समझा जाता है।

आयुष्मान ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने हेतु परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। लोगों को लगता था यह नामुमकिन है लेकिन आयुष्मान ने उस नामुमकिन को मेडिकल की प्रवेश परीक्षा पास करके मुमकिन कर दिखाया। मेडिकल की पढाई पाँच वर्ष की थी। यह पाँच वर्ष का लंबा समय था। समय आगे बढ़ता रहा और समय के साथ-साथ आयुष्मान भी आगे की राह तय करता गया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः