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नारी गौरव



पंडित जमुना प्रसाद लखीसराय गांव के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में माने जाते थे लखीसराय वैसे भी धनाढ्य और विद्वत लोंगो का गांव था गांव में सभी जाति के लोग थे जोअपने परिश्रम से साक्षर शिक्षित और संपन्न क्योंकि गांव के प्रत्येक परिवार के पास पक्का मकान और जीवन की न्यूनतम मध्यम अधिकतम सभी जीवनोपयोगी संसाधन थे।। पंडित जमुना प्रसाद जी विद्वान और धर्म मर्मज्ञ तो थे ही नेक नियत और साफ दिल भी इंसान थे पण्डित जी ख्याति प्राप्त कथा वाचक रामायण श्रीमद्भभागवत मर्मज्ञ थे जिसके कारण उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी जिसके कारण लखी सराय का भी नाम था लखीसराय मतलब पण्डित जमुना प्रसाद का गांव के ही ठाकुर शमशेर सिंह जमुना प्रसाद की बहुत इज़्ज़त भी करते और खास मित्र भी थे दोनों की मित्रता भी अपने आप मे मिशाल थी क्योंकि ठाकुर शमशेर विशुद्ध भौतिकता एक कर्म वादी तो पण्डित जमुना प्रसाद धार्मिक एव पुरातन सांस्कारो के पोषक शमशेर सिंह की एक ही बेटी थी जबकि पण्डित जमुना प्रसाद के कोई संतान नही थी ।।शमशेर सिंह की बेटी कुष्मांडा सिंह बेहद खूबसूरत तेज दिमाग की सबका मन मोह लेने वाली परी या अप्सरा कन्या जैसे जो भी देखता कहता ठाकुर साहब को भले ही पुत्र ना हो लेकिन कुष्मांडा ने बेटी बेटे दोनों की भरबाई कर दी थी जब भी ठाकुर साहब कही भी बाहर से आते कुष्मांडा की भोली मुस्कान से उनके तनाव थकावट दूर हो जाती कुष्मांडा के बाल पन के चर्चे पूरे गाँव मे थी पण्डित जमुना प्रसाद भी जब कही कथा वाचन करने जाते तो जो कुछ भी उन्हें लगता कि बिटिया कुष्मांडा को पसंद हो सकता था लाते एक बार पंडित जी कथावाचन कार्यक्रम से लौटे और कुष्मांडा के पसंद के खिलौने आदि लेकर ठाकुर साहब के घर गए कुष्मांडा ठाकुर शमशेर सिंह जी के पास ही बैठी थी पंडित जमुना प्रसाद जी को देखते ही बोली पंडित ताऊ आप खिलौने गुड़िया लाते हो गौरी हमारी सहेली को नही लाते मैँ आपका कोई खिलौना समान नही लूगी जब तक मेरे साथ खेलने वाली गौरी नही आ जायेगी।। शमशेर सिंह और जमुना प्रसाद आवाक रह गए उनको यह समझ नही आ रहा था कि कुष्मांडा क्या कहना चाह रही है और उसके कोमल मन मे यह ख्याल आया कैसे दोनों ने कुष्मांडा को तरह तरह से बहलाने और समझने की कोशिश की मगर सारे यत्न युक्ति बेकार हो गए अंत मे पंडित जमुना प्रसाद को कहना पड़ा कि अबकी बार गौरी को लेकर ही आएंगे।।किसी तरह से कुष्मांडा को समझने के बाद जब कुष्मांडा घर में खिलखिलाती मुस्कुराती चली गयी तब शमशेर सिंह ने पंडित जमुना प्रसाद से कहा कि पण्डित बिटिया को झूठा दिलासा देकर कितने दिन बहलाओगे पंडित जमुना बोले कि ठाकुर साहब बहुत से प्रश्नों का उत्तर स्वय समय देता है अतः सारी बाते समय पर छोड़ देना चाहिये पता नही क्यो किस अदृश्य शक्ति ने बिटिया के मन मे गौरी की छबि बिठा दी है जिसके लिये जिद कर बैठी है अतः आप चिंता न करते हुये नीर्णय समय पर छोड़ दे ठाकुर श्मशेर को भी इसके अतिरिक्त कोई दूसरा उपाय नही सूझ रहा था बोले सही कहते हो पंडित जी समय के अतिरिक कुष्मांडा के प्रश्न का समाधान भी कोई नही दे सकता।।
समय अपने अंदाज और रफ़्तार से चलता जा रहा था एका एक कुष्मांडा की तबियत बहुत खराब हो गयी चूंकि ठाकुर शमशेर आधुनिक वैज्ञानिक सोच ख्यालात के व्यक्ति थे अतः उन्होंने एक से बढ़कर एक डॉक्टरों को कुष्मांडा को दिखाया बड़े से बड़ा जांच कराया मगर कोई भी डॉक्टर यह बाता सकने में असमर्थ था कि कुष्मांडा को क्या हुआ है सभी अपने अपने अंदाज अनुभव से कुष्मांडा की चिकित्सा करते मगर कुष्मांडा के स्वस्थ में सुधार के बजाय उसकी हालत ज्यादा खराब होती गई ठाकुर शमशेर निराश हो चुके थे भगवान ने एक बेटी दी थी वह भी मृत्यु के नजदीक पण्डित जमुना प्रसाद जी भी जितने भी धार्मिक अनुष्ठान संभव थे कुष्मांडा के स्वस्थ होने के लिये किया लेकिन कोई फायदा नही हुआ कुष्मांडा की हालत बद से बदतर होती जा रही थी जमुना प्रसाद को लगा कि बिटिया कुष्मांडा को श्रीमद भागवत का श्रवण कराया जाय कम से कम उंसे मुक्ति मिलेगी यही प्रस्ताव लेकर पण्डित जी शमशेर सिंह के पास गए मरता क्या न करता ठाकुर शमशेर सिंह ने पण्डित जी का प्रस्ताव तुरंत स्वीकार कर लिया पंडित जी ने पूरे विधि विधान से कुष्मांडा बिटिया को श्रीमद्भभागवत की कथा सुनाना शुरू किया दो दिन तक तो कोई प्रभाव दिखा मगर तीसरे दिन से कुष्मांडा के स्वस्थ में सुधार परिलक्षित होने लगा सातवें दिन पूर्णाहुति तक कुष्मांडा के स्वस्थ में बहुत सुधार हो चुका था पंडित जमुना प्रसाद जब बिटिया को पूर्णाहुति का प्रसाद दिया तब कुष्मांडा बोली पंडित ताऊ आप वचन दीजिये की आप जब अगली बार आएँगे गौरी को साथ अवश्य लाएंगे पण्डित जी के मुख से अकस्मात निकल पड़ा बेटे क्यो नही अवश्य ले आएंगे कुष्मांडा ने प्रसाद ग्रहण किया मगर पंडित जी चिंता में पड़ गए भगवान ने मुझसे एक मासूम से झूठा वादा क्यो करवाया फिर उन्होंने सोचा की जब मेरे बस में कुछ है ही नही तो बेकार सर धुनने से क्या फायदा ईश्वर जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे और अपने घर लौट आये और किसी तरह रात बीती सुबह उन्हें पुरुषोत्तम मास में गंगा के किनारे पूरे एक माह श्रीमद्भभागवत कथा वाचन करना था पण्डित जी पूरे एक माह की तैयारी करके गंगा तट पहुँच गए उनका पांडाल पहले से लगा था पण्डित जी नियमित कथा वाचन करते लेकिन उनके मन को कुष्मांडा बिटिया की गौरी साथ लाने वाली बात चिंतित करती व्यथित करती पण्डित जी की कथा के मास परायण का अंतिम दिन था और पुरुषोत्तम मास का भी अंतिम दिन पंडित जी ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठे स्नान किया और मन्दिर गए वहां पहुंचते ही पंडित जी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा ठीक भगवन श्री कृष्ण के सामने ढाई साल की एक बच्ची कपड़े में लिपटी बेसुध सो रही थी पंडित जमुना प्रसाद जी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा वह आश्चर्य से सोई कन्या को देख ही रहे थे कि पीछे से मन्दिर के पुजारी देवदत्त आकर बोले क्या देख रहे है महाराज यह गौरी है अब पण्डित जमुना प्रसाद जी और भी आश्चर्य में पड़ गए बोले पुजारी जी यह मासूम यहां कैसे पण्डित जी ने बताया कि नटो का एक समूह यहां काफी दिनों से मन्दिर परिसर में रात में विश्राम करता और दिन भर आस पास के गांवों में जाकर शारीरिक करतब दिखाता कल शाम के बाद नटो के दल लौटा ही नही है यह लड़की उन्ही के समूह की है लगता है वह सब इस मासूम को जान बूझ कर छोड़ गए है पण्डित जमुना ने पुजारी से कहा पुजारी जी मैं इस मासूम को अपने साथ ले जा रहा हूँ यदि नटो का समूह इसे खोजते आये तो मेरे पास भेज दीजियेगा में दो दिनों तक अभी रुका हूँ पूजारी बोले ले जाये महाराज पण्डित जमुना ने बड़े प्यार से उस सोती हुई मासूम को गोद मे उठाया और अपने साथ ले आये सुबह पण्डित जी मास परायण के अंतिम दिन कथा वाचन कर ही रहे थे कि गौरी रोते रोते हुये उठी और सीधे पण्डित जी के गोद मे बैठ गयी जैसे पण्डित जी की ही बेटी हो पण्डित जी करते भी क्या वह कथा वचन करते रहे श्रोताओ को यह दृश्य इतना भाया जैसे भगवान की किसी माया का साक्षात दर्शन कर रहे हो पंडित जी व्यास पीठ पर सामने श्रीमद्भभागवत का पवित्र ग्रंथ और दोनों के मध्य बेहद सुंदर गौर वर्ण कन्या नीले वस्त्र में लिपटी छिर सागर में नारायण और नारी शक्ति सम्पूर्ण सृष्टि की सच्चाई
प्रमाणिकता का याथार्त पण्डित जी बिना बिचलित कथा सुनाना जारी रखा कथा समाप्त हुई श्रोताओं को विश्वास था कि पण्डित जी की गोद मे बैठी कन्या उनके किसी करीबी की होगी या पण्डित जी की संतान होगी तभी तो बेखौफ आकर गोदी में बैठ गयी इसीलिये किसी ने कोई सवाल नही किया पण्डित जी गौरी को फल मिठाईयां और उसके मन पसंद की सारी चीजें मंगवाकर देते वह प्यार से खाती ना रोती ना किसी को याद करती जैसे पण्डित जी को वह जन्म से जानती है दो दिन बीत गए लेकिन कोई गौरी को लेने नही आया पण्डित जी गौरी को लेकर पुजारी के पास गये और बोले पुजारी जी गौरी को कोई लेने नही आया मैं इसे साथ ले जाना चाहता हूँ मगर डरता हूँ कि कोई बैठे बैठाए आफत गले ना पड़ जाय पुजारी महाराज बोले पण्डित जी आप चिंता ना करो मेरे साथ थाने चलो पण्डित और पुजारी थाने गए पुजारी ने थानेदार सुर्यवंशी सिंह को सारी बाते बताई और बोले पण्डित जी गौरी को ले जाना चाहते है सूर्यवंशी सिंह ने पुजारी से एक लिखित गारन्टी इस बात के लिये ले लिया कि यदि कोई भी व्यक्ति पच्चीस वर्षों के अंदर गौरी के विषय मे दावा करता है और साक्ष्य प्रस्तुत करता है तो पण्डित जमुना प्रसाद को गौरी वापस करनी पड़ेगी
पण्डित जमुना प्रसाद को किसी शर्त पर कोई आपत्ति नही थी अब पण्डित जी सीधे गौरी को लेकर ठाकुर शमशेर सिंह के घर पहुंचे और बोले कुष्मांडा कहा हो देखो मैं गौरी को लाया हूँ श् शमशेर सिंह आते उससे पहले ठुमुक ठुमुक करती कुष्मांडा आ गयी और खुशी से चिल्लाने लगी गौरी आ गई शमशेर पत्नी सुभदा के साथ बाहर निकले बाहर का दृश्य देखकर दंग रह गए कुष्मांडा के पास एक कन्या बैठी थी जिससे कुष्मांडा बाल अंदाज़ में बाते कर रही थी जैसे दोनों एक दूसरे को जन्म से जानते हो जब कुष्मांडा ने अपने माता पिता को देखा बोली देखो यही है पंडित ताऊ की गौरी कुष्मांडा को कभी भी इतना खुश संतुष्ट किसी किसी ने नही देखा था शमशेर और सुभदा सीधे पण्डित जमुना प्रसाद से पूछा माजरा क्या है पण्डित जी ने बिना किसी भूमिका के सीधे सीधे सारी घटना सिलसिलेवार सुना दी और बोले अभी मैं अपने घर नही गया हूँ शमशेर सिंह बोले महाराज आप घर जाए गौरी आपकी बेटी मेरी भी बेटी कुष्मांडा की तरह है इसे अभी यही रहने दीजिये पण्डित जी घर पहुंचे और पत्नी सुनैना से सारी घटनाक्रम का वर्णन किया सुनैना को तो जैसे संसार मिल गया हो अब ठाकुर शमशेर सिंह की बेटी कुष्मांडा और गौरी की साथ साथ परिवश हो रही थी गौरी सुबह कुष्मांडा के घर चली जाती और शाम ढले अपने घर यानी पंडित जमुना प्रसाद के घर दोनों लगता दो जिस्म एक जान है साथ साथ खेलना खाना पढ़ना यहां तक कि साथ साथ एक जैसी शरारते भी करती प्राइमरी स्तर की शिक्षा पूर्ण होने के बाद पास के कस्बे में मैट्रिक शिक्षा हेतु साथ साथ प्रवेश लिया मेट्रिक की परीक्षा उत्तिर्ण करने के उपरांत इंटरमीडिएट मे दोनों ने साथ प्रवेश लिया दोनों साथ साथ स्कूल जाती दोनों बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी जिसके कारण रास्ते मे स्कूल के लफंगों की अश्लील हरकतों से रूबरू होना पड़ता स्कूल का वार्षिक समारोह था जिसमे गोरी और कुष्मांडा का सयुक्त नृत्य कार्यक्रम था बहुत शानदार प्रस्तुतियां प्रस्तुत करने के बाद जब दोनों घर लौट रही थी तब कुछ अराजक तत्वो ने दोनों को घेर लिया और अश्लील हरकतें करने लगे कुष्मांडा और गौरी ने दस की संख्या में आये लफंगों को उनकी औकात बाता दी दोनों ने कराटे की ब्लेक वेल्ट चैंपियन थी पहले तो स्वय पिटा उसके बाद बांध कर थाने ले गयी थाने पर थानेदार दुर्दान्त सिंह ने बुरी तरह पीटा और सर मुड़वाकर गले मे जूते चप्पल की माला पहनकर पूरे कस्बे घुमाया फिर सबके माँ बाप को बुलाकर कर लिखित माफी मंगवाया गया इस घटना की चर्चा पूरे क्षेत्र में थी क्षेत्र के अनेको सामजिक संगठनो ने कुष्मांडा और गौरी का सार्वजनिक नागरिक अभिनंन्दन किया कुष्मांडा और गौरी का नाम सुनते ही मजनुओं के पशीने छूट जाते किसी भी लड़की को कोई छेड़ता बस इतना कहती कुष्मांडा और गौरी दीदी से तुम्हारी शिकायत करती हूँ बस सब भाग खड़े होते।।
दोनों ही पढ़ने में उत्कृष्ट थी सदैव विद्यालय और गांव जनपद का नाम रौशन करती इंटरमीडिएट के बाद दोने कुष्मांडा ने मेडिकल में दाखिला लिया और गौरी ने एरोनॉटिक इंजीनियरिंग में दोनों के कॉलेज एक शहर बेंगलुरु में कुछ दूरी पर थे दोनों ही अलग अलग होस्टल में रहती मगर दिन में एक बार अवश्य मिलती गौरी ने चार वर्ष में इंजीनियरिंग पूर्ण कर लिया और सिर्फ कुष्मांडा के लिये दो वर्ष उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की लेकिन कोई जाब नही किया जब कुष्मांडा का मेडीकल कोर्स पूरा हुआ तव दोनों साथ उच्च शिक्षा हेतु अमेरिका चली गयी दोनों को उनकी काबिलियत पर सरकार द्वारा हर प्रकार का समर्थन तो था ही परिवार का भी समर्थन हर तरह से था।
दोनों ही अमेरिका में भी साथ साथ साये की तरह रहती कुष्मांडा और गौरी में उच्च शिक्षा में भारत के अभिमान को ऊंचा किया कुष्मांडा और गौरी अपने अपने क्षेत्रों देश का का मान बढ़ा रही थी गौरी को आये पच्चीस वर्ष से ऊपर हो चुके थे किसी ने कभी उसके विषय मे दावा नही प्रस्तुत किया कुष्मांडा और गौरी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद स्वदेश लौट कर अपने अपने पसंद का भविष्य चुन लिया गौरी ने कुछ दिनों तक भारतीय स्पेस रिसर्च अनुसंधान में कार्य किया मगर कुष्मांडा ने कही कोई नौकरी नही किया और उसने अपना नर्सिंग होम स्थापित किया गौरी ने इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन की नौकरी छोड़ दिया और भारतीय धर्म दर्शन पर प्रवचन देना शुरू किया बहुत जल्द पूरे भारत वर्ष में एक स्थापित नाम बन कर प्रतिष्ठा प्राप्त करने लगी कुष्मांडा का नर्सिंग होम धीरे धीरे एक बड़े अस्पताल में बदल चुका था कुष्मांडा का विवाह कार्डियोलॉजिस्ट डा योगेंद्र प्रताप नारायण सिंह से हुआ और गौरी का विवाह प्रोफेसर हितेंद्र से हुआ पहले सिर्फ गौरी और कुष्मांडा साथ थे तो अब डा योगेंद्र नारायण और प्रोफेसर हितेंद्र दोनों के पति सकारात्मक सोच के इंसान थे दोनों ही अपनी पत्नियों की सोच के सारथी बन गए गौरी ने शिक्षा संस्थान की स्थापना किया जिसमें भारतीय धर्म संस्कृति परक शिक्षा की व्यवस्था थी कुष्मांडा के अस्पताल में गरीबो की मुक्त चिकित्सा की व्यवस्था थी तो गौरी के शिक्षा संस्थान ने शिक्षा सभी तक सुलभ कराने को कृतसंकल्प कुष्मांडा और गौरी के साहस सेवा के किस्से मिथक बन नव पीढ़ी के लिये आदर्श बन चुके थे दोनों ने कन्या युवा लड़की और नारी गरिमा को नई ऊंचाई प्रदान किया और आदर्श नारी शक्ति के प्रतीक के रुप मे प्रेरक प्रेरणा बनी देश विदेश के अनेक सम्मान प्राप्त किया हर माँ बाप अपनी संतानों कोगौरी और कुष्मांडा जैसी बनने को प्रेरित करते।।

कहानीकार ---नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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