"प्यार का स्पर्श.....
लो देखो यहां आराम से पसरकर सो रही है कुम्भकर्ण की तरह ....अरे उठ देख बिरजू दफ्तर से लौट आया है कोई चाय पानी पूछ ....ये लक्षण है इन नयी बहु के .....अरी निगोड़ी ये तेरा ससुराल है मायका नहीं
सासूंमां की आवाज सुनकर रीतू की नींद टूटी ....
जोकि गहरी नींद में सोई हुई थी सासूंमां की आवाजे सुनकर जाग गई और आंखें मलती हुई उठकर बैठ गई
इस लड़की को अगर सही से बताया नही जाए तो हो गया घर का बेडा पार ....राम बचाए ऐसी लडकियों से सासूमां ने फिर से कहा
कया हुआ मम्मी ....छोडो थकावट से आँख लग गई होगी रीतू की ....बिरजू मां को समझाने की कोशिश करते हुए बोला....
चुप कर ....बडा आया बहु का पक्ष लेनेवाला ....
तू थका हारा आया है तो उसको उठकर तुझे चाय पानी देना चाहिए या नही यही फर्ज होता है पत्नियों का ....
मम्मी कैसी बातें कर रही हो वही तो देती है आज सो गई होगी तो क्या हुआ....बिरजू ने फिर से बात खत्म करनी चाहिए....
अरे यह उसका मायका थोड़े ही है जो ....
मायका तो तुम्हारा भी नहीं है बिरजू की मां.....
हां ....ये घर वैसे तो तुम्हारा भी ससुराल ही है ना .....
ये आप कया कह रहे हो जी.....
सही कह रहा हूं .....तुमने भी अपने ससुराल को अपनी मेहनत और लग्न से अपना घर बनाया है मेरी मां और बाबूजी का दिल जीतकर वैसे ही रीतू बिटिया को भी कुछ वक्त दो और ये कया है ये तुम्हारा ससुराल है मायका नहीं बोलती रहती हो जब तक तुम बहू को इस घर को अपना घर नहीं समझने दोगी उसका मन भला कैसे लगेगा ..
अरे यहां भी उसको वैसे ही रहने दो जैसे अपने घर में रहती थी ...फिर देखना धीरे धीरे सब समझने लगेगी अभी थोडी देर पहले मुझे तुम्हें चाय देकर गई थी ना तो ...हो सकता है थकावट से आँख लग गई होगी ...
हां... हां... चढ़ा लो सिर पर तुम सब लेकिन बाद मे पछताओगे देखना....जब ये अपनी मनमानी करेगी...
ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रही हो तुम ....
यहां जन्म लिया बचपन बीता उस घर परिवार को छोडकर यहां हम अजनबियों के बीच आई है जिन्हें बमुश्किल कुछ ही दिनों से जानने की कोशिश कर रही है और वैसे भी जैसे कभी नर्सरी से कोई पौधा लेकर आती हो अपने घर में लगाने के लिए ये जानते हुए भी की वहां जड़ें हैं ....उस पौधे की जड़ें को छोडकर लाए पौधे को उखेड़कर दूसरी जगह लगाओगी तो समय तो लगेगा ही ना जड़ पकड़ने में... ..उसमें भी तो बराबर खाद पानी देती हो ना ताकि पौधा वहां पनप सके वैसे ही पौधे समान बहु को भी अपनेपन और प्यार का खाद्य पानी डालो फिर देखना यह पौधा तुम्हारे आंगन में कैसे खिल उठेगा .....इससे पहले सासूंमां कुछ कहे ...रीतू बीच मे आकर बोली .....मम्मी जी ....आपके प्यार और अपनेपन से मे सबकुछ सीख जाऊंगी बस बेटियों की तरह अपने आंचल की छांव में रख लीजिए .....रीतू की भीगी हुई पलकों की ओर जैसे ही सासूंमां की नजरें गई उन्हें रीतू मे अपनी शादीशुदा बेटी की छवि नजर आ रही थी ......अपने आप उनके हाथ रीतू के सिरपर चले गए उन्होंने खींचकर रीतू को सीने से लगा लिया ....प्यार का स्पर्श पाते ही दोनों का चेहरा फूलों समान खिल उठा वहीं दूसरी ओर खडे पिता पुत्र की आँखें भी खुशियों से भीग रही थी...