राज बहादुर सुबह सुबह उठे और बेटे अरबिंद को जगाने लगे बहुत आवाज़ देने के बाद जब अरबिंद नही उठा तब उन्होंने पूरा लोटा पानी भरकर उसके ऊपर डाल दिया एकाएक अरविंद उठा और आंख मलते हुये बोला बापू कितना खूबसूरत सपना देख रहा था आपने जगा दिया राजबहादुर बोले बेटा जरा खुली आंख भी सपना देख लिया कर सोते हुये सपने अक्सर ख्वाब होते है जो इंसान की कमजोरी हुआ करते है जो इंसान चेतन अवस्था मे अपनी हसरते पूरी करने में अक्षम होता है वह सोते हुये सपने में ख्वाब को हकीकत मान बैठता है यह कमज़ोर इंसान की कमजोरी के लक्षण है ।अरविंद बोला बापू आज मैं सही खूबसूरत ख्वाब देख रहा था जो लगता है एक न एक दिन अवश्य पूरी करूँगा ।राजबहादुर बेटे अरबिंद के विचार आत्म विश्वास से भरे सुने तो बोले बेटा अब बता भी दे कि ख्वाब सोते सोते क्या देख रहा था जिसे पूर्ण होने का तुम्हे इतना विश्वास हैं अरविंद बोला बाबू मैं जिले का कलक्टर बन कर अपने जिले के विकास के लिये मीटिंग कर मातहदो को तमाम निर्देश दे रहा था तभी एक बूढ़ी सी औरत दुखियारी तमाम सुरक्षा कर्मियों से मुझसे मिलने की जिद्द कर रही थी की आज अभी क्लक्टर साहब से मुझे मिलना है उसके सुरक्षा कर्मचारियों से बात विवाद की आवाज मेरे कानों में गूंजी तो मैं मीटिंग छोड़ कर स्वयं बाहर गया और उससे पूछा माई क्या बात है क्यो इतना शोर मचा रही हों उसने बताया कि मेरा नाम शोभना है मैं स्वस्थ विभाग में परिचारिका थी मेरे पति स्वर्गीय तिरथ स्वास्थ बिभाग में बाबू थे उनकी मृत्यु दुर्घटना में होने के कारण मुझे उनके जगह पर अनुकम्पा के आधार पर परिचारिका की नौकरी मिली थी अब मैं सेवा निबृत्त हो चुकी हूं जब मैंने अपनी पति के जगह अनुकम्पा के आधार पर नौकरी प्रारम्भ की थी तब मेरे तीन बेटे थे सुरेंद्र रबिन्द्र मुनीन्द्र मैने अपनी सीमित आय में अपने बेटों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दी और उनके जीवन मे माँ बाप दोनों का प्यार दिया और एक सम्मान जनक परिवरिस की तीनों बेटों की शादी विवाह उनकी मर्जी और पसंद से जहां उन्होंने चाहा कर दिया मेरे तीनो बेटे उच्चपदस्थ अधिकारी है तीनो की पत्नियां भी सरकारी सेवारत अधिकारी है उनको कमी किसी बात की नही है।मेरे सेवा निवृत होने के बाद मेरे बेटे तब तक मेरी आवभगत करते रहे जब तक मुझे सेवा निबृत्ति में मिली धनराशी प्राविडेंट फण्ड आदि समाप्त नही हो गए और मेरे स्वर्गीय पति तिरथ द्वारा बनाये मकान को बेंच कर तीनो ने आपस मे न बांट लिया जब मेरे सेवा निबृत्त के प्राप्त नगद लाभ समाप्त हो गए और मेरे पति का मकान भी मेरे पास न रहा तब तीनो ने आपस मे मिलकर फैसला किया कि माँ चार चार माह हर बेटे के पास रहेगी मुझे बेटों की खुशी के लिये यह भी मंजूर था और मैं हर बेटे के घर चार चार माह रहती और उनकी संतानो की देख रेख करती मगर हाय रे कलयुग मेरे बेटों बहुओं को यह भी रास नही आया और उन्होंने मुझे अपने घर की नौकरानी बना दिया चूंकि तीनो बेटों की पत्नियां भी उच्च पदों पर कार्यरत थी अतः जब तीनो बेटों में से किसी बेटे के यहाँ मेरे रहने का अवसर आता बेटे और बहू घर के नौकरों को छुट्टी दे देते मुझे ही चौका वर्तन झाड़ू पोछा और खाना बनाने का कार्य करना पड़ता अब मैं अपने ही संतानो के लिये माँ न होकर एक आया बन कर रह गयी बेटे मुझे पेंशन से प्राप्त होने वाली राशि जबरन कभी बहाना बनाकर कभी कुटिलता से भूखे भेड़िये या यूं कहूँ की भुख्खड़ कंगाल कुत्तों की तरह झपट लेते मैं जब अत्यधिक जरा बूढ़ी हो गयी और उनके घर का चौका बर्तन नही हो पाता तो वे मुझे बृद्धाश्रम छोड़ गए ।जब से बृद्धाश्रम छोड़कर गए तबसे आज दस वर्षों में एक बार भी मिलने नही आये और ना ही उन्होंने बृद्धाश्रम का पैसा दिया वो तो भला हो उस आश्रम का की उन्होंने मेरी इस लाचारी विवसता में भी मेरी पेंशन की रकम से अबतक पाला ।
आप जिले के कलक्टर है आपके कंधों पर जिले की जिम्मेदारी है आप इतने बड़े पद पर है क्या हम जैसी दुखियारी के लिये आपके पास कोई सम्मान जनक न्याय सम्मत समाधान है ।अरविंद अपने सपने को अपने बाबू को बता रहा था और उसके आंख से अश्रुधारा बहती ही जा रही थी अरविंद फिर बोला बाबू उस बूढ़ी औरत शोभना ने मुझसे एक सवाल इतनी मासूमियत से किया कि मेरे स्वयं के संयम ने जबाब दे दिया उसने पूछा क्या बेटा तुम्हारे मां बाप जिंदा है क्या तेरा व्यवहार भी अपने माँ बाप के लिये मेरे ही बेटों जैसा है
बाबू उस बूढ़ी शोभना के प्रश्न सुनकर दंग रह गया और उसे अपने साथ अपने घर लाया और तभी आपने पानी डालकर मुझे नीद के ख्वाब से जगा दिया राजबहादुर बोले बेटा इतने बड़े बड़े सपने देखता है तुम्हारे ख्वाब में भी एक बात खास है कि तुम ख्वाब में भी दुखियों के साथ उनके दुख को समझने की शक्ति रखते हो और खास बात यह है कि तुम ख्वाब में भी मानवता को नही भूले हो सकता है कि मेरे किसी सदकर्म का फल है जो
तुममे मानवता प्रधान व्यक्तित्व का बीज सुरक्षित है जो निश्चय ही फल फूल कर बड़ा बृक्ष बनेगा और समय के साथ लोग उसकी छाया में शांति शुख की अनुभूति कर सकेंगे एक बात ध्यान रखना बेटे अरबिंद इस नेक विचार को जो बचपन के ख्वाब में भी तेरे कोमल मन मे बीज के रूप में सुरक्षित है उंसे अंकुरित होकर प्रस्फुटित होने दो शायद लोगो का स्नेह आशीर्वाद तुम्हे तुम्हारे सपने को हकीकत का जामा पहनाने में मददगार साबित हो अरबिंद ने बापू की भावनाओं को जीवन की सीख मानकर गांठ बांध लिया बोला बापू मैं अपने जीवन मे कभी आपको निराश नही होने दूंगा।राजबहादुर बोले इस समय गर्मी की छुट्टी है और हम लोंगो की पालन पोषण करने के लिए मात्र सहारा खेती ही है तो बेटा तुम अबकी इस गर्मी की छुट्टी में एक सिख अपने जीवन मे ग्रहण करो नियमित ब्रह्म बेला में उठो और कुछ खेती बरी के कार्य मे योगदान करो अरबिंद एक आज्ञाकारी बेटे की तरह बापू के आदेश को जीवन मूल्य मानक स्वीकार किया राजबहादुर फिर बोले बेटा नदी के किनारे रेत की जमीन जो पूरे बरसात पानी मे डूबी रहती है हम किसानों के लिये सोना उगलती है उस जमीन को प्रतिवर्ष किसी न किसी कुंजड़े को करेला तरबूज ककड़ी खीरा आदि की खेती करने के लिये दिया जाता है और खेती की लागत दी जाती है और उपज की आय का साठ प्रतिशत मुनाफा हम लोंगो का होता है और चालीस प्रतिशत कुंजड़े ले जाते है क्योंकि बेचारे दिन रात मेहनत करते है और फसल की रखवाली करते एव बाजार में बेचते है ।इस बार करीम कुंजड़े को नदी के किनारे का रेता खेती के लिये दिया गया है और हा बेटा यह सिर्फ माघ से बैशाख यानी चार माह की खेती है क्योंकि असाढ़ से बरसात शुरू हो जाती है और नदी का किनारा जलमग्न हो जाता है पिछले वर्ष कुल साठ हजार की आमदनी हुई थी जबकि लगत ही पच्चीस तीस हजार की आयी थी इस बार इस खेती का भार तुम पर है क्योकि तुम्हारे स्कूल भी जुलाई में खुलेंगे तब तक ही यह खेती कार्य भी चलेगा राज बहादुर बोलते ही जा रहे थे उन्होंने एक बार बेटे अरबिंद की आंखों में आंखे डाल कर कहा बेटा हम ठहरे किसान तुम्हे पिकनिग के लिये गर्मी की छुट्टियों में कही भेज तो सकते नही क्योकि हमारी औकात नही है सो तुम इसे अपनी जिम्मेदारी समझो या पिकनिक यह तुम्हारे विवेक पर निर्भर करता है अरबिंद को समझने में देर न लगी कि बापू ने उसके समक्ष एक चुनौती उसकी क्षमता दक्षता को भांपने के लिये दी है अरविंद आठवी कक्षा उत्तीर्ण करके नौंवी कक्षा में प्रवेश ले चुका था वह औसत दर्जे का विद्यार्थी था मगर उसमें आत्म विश्वास जबरदस्त था उसने बाबू को आश्वासन दिया कि बाबू इस वर्ष नदी के किनारे की खेती से आय चारगुना ज्यादा होगी राजबहादुर को लगा कि उनका बेटा अरविंद या तो अति आत्मविश्वास में है या नीद के ख्वाब से उसको खुद का अंदाज़ा नही है।अरबिंद उठा और बापू के पैर छू कर आशीर्वाद लिए और बोला बाबू अब हिसाब मेरे स्कूल जाने से पूर्व बताइएगा पिता पुत्र की वार्ता में समय का पता ही नही चला कब दिन के आठ बज चुके है अरबिंद उठकर दैनिक क्रिया के लिये चला गया और राजबहादुर अपने कार्यो में मशगूल हो गए ।अरविंद के मन मस्तिष्क में पूरे दिनरात के ख्वाब और बापू की शिक्षा और जिम्मेदारी के रूप में दी चुनौती घूमती रही उंसे संमझ में नही आ रहा था कि उसने बापू से चौगुना इस बार की फसल से आय का वादा करके कोई भूल की है या वास्तव मे यह सम्भव भी है इसी उहापोह में सारा दिन बीत गया उसकी समझ मे नही आ रहा था कि वह क्या करे या क्या ना करे दिन ढलने को आया लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर नही पहुँचा तभी उसके मन मे बाबू के छुट्टियों में बड़े घर के बच्चों के पिकनिक मनाने की बात ध्यान आयी फिर नदी का किनारा खेती एका एक वह उठा और कुछ किताबें कांपिया उसने ली और बापू से बोला बापू मैं पिकनिक मनाने जा रहा हूँ राजबहादुर सन्न रह गए बोले बेटा कहा पिकनिक मनाने जा रहे हो अरबिंद बोला मैं नदी के किनारे जा रहा हूँ वही करीम की छोपडी में रहूँगा और खेती की भी देख भाल करूँगा राजबहादुर को लगा अरबिंद अभी बच्चा है उंसे सुख दुख का कोई आभास नही है दो चार दिन में नदी के किनारे दिन की तेज धूप में तपती रेत की गर्मी और रात अनेक जानवरो का खौफ पिकनिक का भूत अरबिंद के सर से उतार देगा सो उन्होंने अरबिंद से कहा बेटा यह तो बहुत उत्तम विचार है मैं करीम को तुम्हारे खाने पीने के राशन भेजवा देता हूँ तुम निश्चिन्त होकर जाओ अरबिंद को बापू की सहमति मिलने पर बहुत खुशी हुई। वह अपनी किताब काँपी लेकर नदी के किनारे रेत वाले खेत पर पहुंच गया वहां पहुचते देखा कि करीम कुंजड़ा अपनी पत्नी और एक बेटी और एक बेटे के साथ छोपडी बनाकर रहते है खाना कंडे लकड़ी पर जैसे तैसे बनाते है करीम ने जब देखा कि छोटे मालिक आये है तो वह उठा बोला मालिक कोई जरूरत रहे तो हमहि को बुलाय लेते काहे आप कष्ट उठाये अरबिंद बोला कि हम आये नही है हम पूरे तीन महीने तोहरे साथ यही झोपडी में रहेंगे करीम को लगा कि छोटे मालिक को अभी जीवन का कोई तजुर्बा तो है नही रात भर रह कर और यहॉ की समस्याओं से त्रस्त होकर सुबह चले जायेंगे करीम कुंजड़ा बोला अच्छा छोटे मालिक हम आपके रहने खाने की व्यवस्था तो कल ठिक से करेंगे आज तो आप हम लोंगो के साथ जैसे तैसे गुजार लीजिये अरबिंद बोला ठीक है।उस रात करीम ने अपनी पत्नी से कहा छोटे मालिक अब हम लोंगो के साथ रहेंगे इनके खाने पीने का खास खयाल रखना कोयली करीम की पत्नी बोली यहाँ कौनो परेशानी छोटे मालिक को नाही होई मालती के बापुआप बेफिक्र रहे।उस दिन कोयली ने बाटी चोखा बनाया अरविंद को घर के खाने से बेहतर लगा खुला मैदान नदी का किनारा चारो तरफ सन्नाटा अंधेरा और सिर्फ एक टिमटिमाता दिया जिसकी रोशनी में खाना बनता और खाना होता टार्च अवश्य किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिये पर्याप्त था नदी का किनारा किसी महंगे टूरिस्ट स्पॉट के पिकनिक से बहुत अच्छा था अरबिंद ने खाना खाया कुछ देर दिये कि रोशनी में पढ़ाई की फिर सो गया और ब्रह्म मुहुर्त में ही उठकर दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर पढ़ाई में जुट गया कुछ देर बाद करीम उठा और अपने कार्यो में व्यस्त हो गया सुबह सूरज की पहली किरण ने जैसे अरबिंद के जीवन मे नए विश्वास का संचार लिये आया हो करीम ने अरबिंद का मन टटोलने के लिये बोला आज हम आपके बापू बड़े मालिक से मिलने जा रहे है आप भी चलिये अरबिंद बोला हम तो चार महीने बाद ही जाएंगे तुम चले जाओ करीम लवभग आठ बजे अरबिंद के बापू से मिलने गांव गणेश पुर गया करीम को देखते ही राजबहादुर बोले अरबिंद गया है वह कब लौटेगा करीम बोला मालिक छोटे मालिक त बोले है कि चार फसल खत्म होने के बाद ही आएंगे राजबहादुर बोले कोई बात नही तुम अरबिंद की खुराकी का राशन और खर्चा लेते जाओ जितने दिन बाद वह आना चाहे आये और अपनी पत्नी को आवाज लगाई और उनके बाहर आते ही बोले सुनो जी पांच पसेरी आटा पांच पसेरी चावल दो किलो दाल दो किलो तेल और पांच लीटर किरासन तेल हर महीना तीन महीना तक करीम को भेजते रहना अबकी खुद आये है पत्नी शोभना ने तुरंत ही पति के आदेशों का पालन किया करीम सारा राशन पताई लेकर नदी के किनारे झोपड़ी पर पहुंचा तो दिन चढ़ चुका था और रेत तपने लगी थी लेकिन अरविंद के चेहरे पर शिकन तक नही थी।अरविंद पूरी तरह से करीम के साथ उसकी जिंदगी का हमसफर बन गया था खेती में जो कार्य करीम करता अरबिंद आगे बढ़कर हाथ बटाता दिन में करीम के साथ अक्सर मछली का शिकार करता और मछली चावल मछली रोटी का स्वादिष्ट आहार करता दिन बीतते गए अब फसलें तैयार हो चूंकि थी नित्य उंसे बाज़ार ले जाकर बेचना था फसलों में तरबूज़ ,खरबूज ,करेला, ककड़ी ,खीरा आदि थे जिनकी मांग गर्मी पर जोरो पर होती है अरविंद करीम से बोला एक एक दिन एक फसल ही बाज़ार जाएगी जैसे एक दिन तरबूज एक दिन खरबूज आदि और किसी छोटे वाहन से बात करके उसे नियमित फसल मंडी पहुचाने के लिये निश्चित ठेका कर देते है और मंडी एक दिन आप और एक दिन हम जाएंगे करीम को लगा छोटे मालिक ने तो तमाम समस्याओं का सुगम रास्ता ही निकाल दिया अतः करीम अरबिंद के साथ जाकर एक मिनी ट्रक से फसल नियमित मंडी पहुचाने का अनुबंध कर लिया अगली सुबह से नियमित एक उपज मंडी जाती और एक दिन करीम तो एक दिन अरबिंद मंडी जाता जो भी आमदनी होती दोनों ही मंडी के निकट बैंक में जमा कर देते और ट्रक का भाड़ा अदा कर देते ।
अरबिंद को आये दो माह बीत चुके थे मगर उसके अंदर ना तो कोई भय था ना ही कोई हताशा वह नित्य नए उत्साह से उठता और अपने कार्य मे लग जाता करीम की बेटी मालती और बेटा मुरारी को भी समय निकालकर पढ़ाता दो महीने में मालती और मुरारी हिन्दी अंग्रेजी की वर्णमाला सौ तक गिनती जोड़ घटाना इमला के दक्ष हो गए थे अरबिंद ने करीम को कह रखा था कि मालती और मुरारी अगले सत्र से स्कूल जाएंगे करीम को भी छोटे मालिक की बात वाजिब लगी सो उसने भी इरादा कर लिया बच्चों को स्कूल भेजने के लिये।अरबिंद को किसी भी महंगे टूरिस्ट स्पॉट से कम मजा नही आ रहा था उधर पिता राजबहादुर नियमित उसके
खाने पीने के लिये राशन आदि भेजते रहते अरबिंद रात देर तक दिए के उजाले में पढ़ता जबकि करीम कोइली सो जाते अरबिंद के साथ मालती और मुरारी भी पढ़ते और साथ साथ सोते और साथ उठते दिन में मछलियों का शिकार रात में नदी की धाराओं का कलरव जीवन और प्राकृति के समन्वय के प्राणी आनंद के नैसर्गिकता को परिभाषित प्रमाणित कर रहे थे अरबिंद को बहुत मज़ा तो आ ही रहा था उंसे जीवन समाज और परिस्थिति परिवेश का गहन अध्ययन और अनुभव अनुभूति नीत आकर्षित कर रही थी।इसी तरह दिन बीतते गए पता नही कैसे दिन बीत गए अब वर्षा ऋतु के आगमन में सिर्फ बीस दिन शेष रह गए थे फसलों का उत्पाद भी समाप्त होने के कगार पर था। ऐसे एक दिन एका एक अर्ध रात्रि को अरबिंद की नींद खुली वह लघुशंका करने छोपडी से कुछ दूर गया तभी उसके कानों में कुछ आवाज़ आयी वह निर्भीक कुछ दूर और आगे गया तो देखकर दंग रह गया उसने देखा कि कुछ लोग एक नौजवान को बड़ी बेरहमी से गला रेतने के लिये जमीन पर पटक कर कसाइयों जैसा व्यवहार कर रहे है अरविंद ने तुरंत मौके की नजाकत को संमझ बड़ी तेजी से मगर किसी को पता नही चला क्योकि टार्च होते हुये भी अरबिंद ने टार्च नही जलाई और जो लोग जबर्दस्ती कर रहे थे उनको एक एक कर सबको अकारी मारकर धराशाही कर दिया तब तक करीम भी उठ गया अरबिंद बोला करीम चाचा बड़ी रस्सी लाओ करीम भाला चॉपर और रस्सी लेकर पहुंचे अरबिंद और करीम ने मिलकर अरबिंद की अकारी की मार से घायल छवो बदमाशों को रस्सी से कस कर हाथ पैर दोनों बांध दिया फिर उस नौजवान को जिसका गला रेतने का प्रयास बदमाश कर रहे थे उसके गले को अंगौछे से बांधा जिसमे खून का रिसाव बंद हो जाय इसके बाद करीम ने तेज चिल्लाना और थाली पीटना शुरू किया जिसकी आवाज से नजदीक के गांव वाले जग गए और एकत्र होकर हाथों में लुकार टार्च जिसके पास जो भी था लेकर ला
लाठी डंडों के साथ नदी के किनारे करीम की छोपडी के पास पहुंच गए ज्यो ही गांव वालों का हुज़ूम नदी किनारे पहुचकर छ लोंगो के बंधे होने को देखा तो सभी ने उनकी पहचान जनपद के मशहूर अपराधियों के रुप मे की और अरबिंद और करीम को बहादुरी के लिये बधाई देते हुये कृतज्ञता व्यक्त की फिर उस घायल बच्चे की शिनाख्त की जिसे अरबिंद और करीम द्वारा पकड़े गए बदमाशों ने कुछ दिन पहले अपहरण कर लिया था जो जनपद के मशहूर चिकित्सक डॉ बी आर शर्मा का बेटा था और पांच लाख फिरौती न मिलने पर हत्या की धमकी रोज देते यह खबर रोज समाचार पत्रों और मीडिया के माध्यम से पंद्रह दिनों से आ रही थी पुलिसः प्रशासन पर शिथिलता और अकर्मण्यता के आरोप नित्य लग रहे थे गांव का हर आदमी उस रात बड़े अभिमान से गर्व से करीम और अरबिंद द्वारा पकड़े गए अपराधियों को लाठी बल्लम से मारता हालांकि अरबिंद की अकारी के मार से वे पहले ही बुरी तरह घायल थे गांव के कुछ लोग जल्दी से नजदीकी थाने पहुंचकर सारी खबर बता चुके थे थोड़ी देर में दारोगा मौलिक सिंह दल बल के साथ पहुंचे और करीम और अरबिंद द्वारा पकड़े गए अपराधियों को अपने कब्जे के लिया डॉ बी आर शर्मा के बेटे को लेकर अस्पताल दाखिल कराया सुबह अखबार मीडिया में यह खबर छा गयी
डॉ बी आर शर्मा ने व्यक्तिगत करीम और अरबिंद से मिलकर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की और अरबिंद के अनुरोध पर करीम के बेटी मालती और बेटे मुरारी की शिक्षा का दायित्व स्वीकार कर अभिमानित और आल्लादित हुये ।राजबहादुर को जब अपने बेटे के कारनामों का हाल औरों से सुना तो उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा लेकिन बेटे को दिये बचन से मजबूर थे कि वह नदी वाले खेत तब तक नही जाएंगे जब तक अरबिंद स्वयं न बुलावे ।अब रेत की फसल का समय समाप्त हो चुका था और अरबिंद करीम को लेकर बापू राज बहादुर के पास फसल की आमदनी का हिसाब और बैंक पासबुक लेकर पहुंचा जिसमे दस लाख रुपये फसल की बिक्री से आय के थे राजबहादुर के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा क्योकि हर साल दो ढाई लाख से अधिक की आमदनी नही होती थी राजबहादुर ने तुरंत चार लाख करीम को दे दिये और कहा करीम मैं अगले साल के लिये अभी से तुम्हे ठेका देता हूँ करीम बोला बड़े मालिक एक शर्त है कि छोटे मालिक हमारे साथ रहेंगे।।
अरविंद की छुट्टियां खत्म हो चूंकि थी और जून समाप्त हो चुका था अब स्कूल खुल चूके थे अरबिंद के बापू के मन मे एक शंका घर कर गयी थी कि कही अरबिंद का मन खेतिहर मजदूर के आकर्षण में शिक्षा दीक्षा को तिलांजलि न दे दे अरबिंद नौंवी कक्षा में नए सत्र में स्कूल जाना शुरू किया चूंकि जूनियर हाई स्कूल तक लगभग सभी बच्चों का मन पूर्णतया अपरिपक्व और अत्यधिक भावुक होता है अतः बहुत संभावना परिस्थितियों के कारण नकारात्मक बदलाव की भी रहती है इसी शंका में की अरबिंद पूरे तीन महीने अप्रेल से जून बिल्कुल सामान्य भारतीय वातावरण के यथार्थ के में बिताए है जो उसके मानसिक सोच को परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त है फिर भाग्य और भगवान के भरोसे छोड़ नियति को देखने का फ़ैसला किया राजबहादुर ने इधर इन सब बातों से बेफिक्र अरबिंद अपने स्कूल निययमित जाता और घर शाम और फिर ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठ कर अपने अध्ययन की जिम्मेदारी का निर्वहन करता उसने वो तीन महीनों का जिक्र कभी नही करता जिसके लिये उसके बापू ने उसे चुनौती दी थी जिसे उसने पूर्ण किया था ना ही उसके क्रिया कलाप से उसकी कोई छाप झलकती थी वह जब भी अपने बापू से बात करता तब अपने किसी शिक्षक के तारीफ में या अपने प्राप्तांकों के विषय मे सदैव उसकी कोशिश रहती की वह स्कूल और क्लास में टॉप कर प्रथम स्थान ग्रहण करे मगर उसे अपेक्षित सफलता नही मिल रही थी नौंवी कक्षा के फाइनल एक्ज़ाम होने के दिन करीब आ गए थे तभी एक दिन कक्षा में एकाएक प्रधानाचार्य नीलकंठ सिंह आये क्लास के सभी बच्चों ने प्राचार्य का खड़े होकर अभिवादन किया प्रचार्य महोदय ने सभी बच्चों का अभिवादन स्वीकार कर उन्हें बैठने के लिये आदेश दिया सभी बच्चे शांत भाव से प्रचार्य के आदेशानुसार बैठ गए तब प्रचार्य जी ने बोलना शुरू किया मेरे प्यारे बच्चों आज मेरे एव मेरे स्कूल के लिये बड़े गौरव की बात है कि इस क्लास का एक होनहार छब्बीस जनवरी को बीरता के लिये देश के चौबीस बहादुर बच्चों में शुमार है जिसे पच्चीस जनवरी को प्रधानमंत्री भारत द्वारा राष्टपति बालपुरस्कार से विशेष शौर्य बहादुरी के लिये पुरस्कृत किया जाना है आप सभी बच्चों से अनुरोध है कि आप सभी अंदाजा लगाकर बताये वह आपसभी में से कौन है क्लास के सभी बच्चे एक दूसरे का मुंह ताकने लगे लवभग कुछ मिनटों के सन्नाटे के बाद प्रचार्य महोदय ने फिर बोलना शुरू किया अच्छा अगर तुम लोग ही अपने अभिमान को नही समझ पा रहे हो तो मैं बताता हूँ तुम्हारे क्लास स्कूल और शहर जनपद का देश मे नाम रौशन करने वाले होनहार का नाम है अरबिंद ज्यो ही अरबिंद ने अपना नाम सुना भौचक्का रह गया उंसे विश्वास नही हो रहा था कि उसे किस बीरता शौर्य के लिये चुना गया है डॉ बी आर शर्मा के बेटे की अपहरण कर्ताओं के चंगुल से झुडाना उंसे बहुत साधारण घटना लगी और उसे वह भूल चुका था प्रचार्य जी ने फिर दोहराया कि अरबिंद को यह पुरस्कार डॉ बी आर शर्मा के पुत्र को अपहरणकर्ताओ के चंगुल से बीरता पूर्वक लड़ते हुये मुक्त कराने हेतु उसकी बहादुरी शौर्य के लिये दिया जा रहा है पूरा क्लास तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा प्रचार्य नीलकण्ठ ने अरबिंद को पास बुलाया और उसका स्कूल की तरफ से माल्यार्पण कर स्मृति चिन्ह प्रदान किया सारे विदयालय में अरबिंद की चर्चा जोरों पर होने लगी स्कूल की बात तो दीगर पूरे शहर जनपद में अरबिंद की गूंज हर अखबार मीडिया ने अरबिंद की बहादुरी और शौर्य में कशीदे पढ़े राजबहादुर अरबिंद के बापू ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सबका आभार व्यक्त करते हुये अरबिंद के लिये सबसे आशीर्वाद की कामना कर रहे थे। अंत मे वह दिन भी आ गया जब भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अरबिंद को गणतंत्र दिवस की पूर्व सांध्य पर संम्मानित किया जाना था अरबिंद के साथ उसके क्लास टीचर मान्धाता सिंह प्रचार्य नीलकंठ सिंह और पिता राजबहादुर गए थे अरबिंद को प्रधानमंत्री द्वारा संम्मानित किये जाने के बाद एक प्रश्न पूछा गया की तुम जीवन मे क्या बनना चाहोगे अरबिंद ने जबाब दिया देश राष्ट्र के सम्मान में जो कुछ भी कर सकूंगा वही मेरा बनना विगड़ना होगा अरबिंद का उत्तर सुनकर सभी दंग रह गए सम्मान समारोह समाप्त होने के तीन दिन तक अरबिंद अपने क्लास टीचर प्राचार्य पिता के साथ दिल्ली की सैर किया फिर लौट कर अपने गांव आ गया ।दिल्ली से लौटने के बाद अरबिंद अपनी पढाई में जुट गया और नौंवी कक्षा अच्छे नम्बरो से उतीर्ण कर लिया इस बार उसके पास सिर्फ डेढ़ माह का ही समय नदी के रेत की खेती के लिये मिले जिसे उंसे पहले से जानकारी थी अतः उसने करीम चाचा को बाजिब सलाह दे रखा था अब सिर्फ कोइली और करीम ही नदी किनारे छोपडी में रहते थे क्योंकि मालती और मुरारी डॉ बी के शर्मा के संरक्षण में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे ।स्कूल की छुट्टि होते ही अगले ही दिन वह किताब काँपी लेकर नदी के किनारे रेत के खेत पे चला गया अब बापू राजबहादुर उंसे रोकने की बजाय उसकी हौसला आफ़ज़ाइ करते अरबिंद खेत पहुंच कर पिछले वर्ष की भांति अपने कार्य मे जुट गया वही जीवन चर्या दिन में मछली का शिकार समय मिलने पर पठन पाठन शाम देर रात और ब्रह्मबेला तो सिर्फ और सिर्फ उसके अध्ययन के लिये ही निर्धारित था अंत मे फिर वर्षात का समय निकट आ गया नदी के रेत की खेती का समय समाप्त होने वाला था अरबिंद और करीम पिछले वर्ष की तरह फिर राजबहादुर के पास बैंक का पासबुक लेकर गए जिसमें बारह लाख रुपये थे यानी पिछले वर्ष से भी दो लाख अधिक राजबहादुर ने शर्तो के मुताबिक चार लाख अस्सी हजार रुपए करीम को दे दिये करीम पिछले वर्ष के चार लाख रुपयों में सिर्फ डेढ़ लाख ही खर्च कर पाया था। पुनः जुलाई माह में स्कूल खुल चुका था अबकी बार अरबिंद को दसवीं क्लास में बोर्ड की परीक्षा देनी थी बापू राजबहादुर ने खास हिदायत दे रखी थी अरबिंद अपनी पूरी क्षमता निष्ठा के साथ अध्ययन कार्य मे जुटा था हाई स्कूल की फाइनल बोर्ड परीक्षा देने के बाद अरबिंद पिछले दो वर्षों की भांति पुनः नदी के किनारे करीम चाचा के साथ रहने चला गया उधर मालती और मुरारी की शिक्षा भी बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थीं ।इस वर्ष भी छुट्टियों में पूरी एकाग्रता से अपने द्वारा शुरू किये गए रेत के खेत से सोना उगाने में पूरी क्षमता दक्षता और पूर्व के खट्टे मीठे अनुभतियो को संजोए उनसे प्रेरित होते सिख लेते अपने उद्देश्य पथ पर बढ़ता जा रहा था अरबिंद हाई स्कूल का परीक्षाफल निकला और वह प्रथम श्रेणी से प्रत्येक विषय मे ऑनर्स के साथ उत्तिर्ण हुआ अरबिंद को अपने हाई स्कूल के परिणाम उसके बापू स्वयं राजबहादुर बताने करीम की झोपड़ी तक नदी के किनारे आये थे अरबिंद ने अपना परीक्षाफल जाना लेकिन उसके चेहरे पर कोई भी अभिमान या अहंकार के भाव नही थे उंसे तो अपने उद्देश्य पथ पर निर्विकार निरंतर निष्काम कर्म सिद्धान्त के पथ से आगे बढ़ते जाना था वह अपने कार्य मे जुटा रहा बरसात का मौसम पुनः दस्तक देने वाला था उसने पिछले वर्षों की भांति खेती के उपज से आय का पूरा व्योरा बापू राजबहादुर को सौंप दिया और करीम चाचा के पक्के मकान बनवाने का सम्पूर्ण खाका खिंचकर करीम चाचा को सारी बातों को समझाते अपने अगले कदम की तरफ बढ़ गया उसने कक्षा इग्यारह में दाखिला लिया और आपने अध्ययन कार्य मे जुट गायक कक्षा ग्यारह की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर वह पुनः नदी के किनारे रेत के खेत की तरफ चल दिया दो माह करीम चाचा के साथ रहने के बाद उसने फिर पिछले तीन वर्षों की भांति उपज की आय अपने बापू राज बहादुर को सौंप दिया और इंटरमीडिएट के अंतिम वर्ष के अध्ययन में जुट गया और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की भी तैयारी करने लगा उसने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे नम्बरो से उत्तिर्ण किया और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में भी उसने सफलता हासिल किया उंसे आई आई टी खड़कपुर में मैकेनिकल ब्रांच में दाखिला मिल गया।अरबिंद के पास जो भी समय बचा उंसे करीम चाचा के साथ पिछले वर्षों की भांति बीता कर फसल की उपज का पूरा हिसाब बापू राजबहादुर को सौंप इंजीनियरिंग कॉलेज के लिये अरबिंद चल पड़ा अरबिंद के जाने से सबसे ज्यादा दुखी करीम और उसकी पत्नी कोइली को हुआ क्योकि पिछले चार वर्षों में अरबिंद के साथ रहने से उसकी हैसियत बढ़ गयी थी जिसकी उसने कभी कल्पना तक नही की थी उसकी संताने मालती और मुरारी डा बी के की देख रेख में अच्छे वातावरण में अच्छे स्कूलों से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे साथ ही साथ पिछले चार वर्षों की अच्छी फसल से आमदनी से करीम का मकान पक्का बन चुका था अरबिंद के बापू राजबहादुर एव माँ रमा को अरबिंद के जाने का बेहद कष्ट था मगर बेटे के बेहतर भविष्य के लिये कलेजे पर पत्थर रख लिया अरबिंद इंजीनियरिंग कलेज पहुंच कर अपने अध्ययन में जुट गया अब उसे गांव आने की फ़ुर्सत नही मिलती कभी त्योहारों की छुट्टियों में दो चार दिन के लिये आता वह जब भी आता करीम चाचा मिलने अवश्य आते इसी तरह चार साल कैसे बीत गए पता ही नही चला अरविंद को दक्षिण कोरिया की कम्पनी में कैम्ब सलेक्शन मिल गया
अच्छी सेलरी सुविधा ओहदा सब कुछ
अरविंद अब दक्षिण कोरिया जाने की तैयारी में जुट गया अरबिंद के बापू को लगा कि एकलौता बेटा दूर देश जा रहा है कही इधर उधर के चक्कर मे पड़कर फँसगया तो लेने के देने पड़ जाएंगे अतः उन्होंने अरबिंद की सहमति से उसका विवाह एक होनहार शुशील कन्या बिशा से कर दिया बिशा कि आने से राजबहादुर का घर गुलज़ार हो गया कुछ दिन बाद अरविंद दक्षिण कोरिया चला गया वह भी उसने अपनी ईमानदारी मेहनत से जल्दी ही सबका मन मोह लिया।
लेकिन ईश्वर ने तो अरबिंद की किस्मत में कुछ और ही लिख रखा था एक दिन अरबिंद का अधिकारी वर्कशाप के केविन में आकस्मिक निरीक्षण के लिये बैठा था उसी समय बाहर काम करते समय अरबिंद के हाथों छूट कर टूल किट्स की पेटी गिरी जिससे जोरो की आवाज़ हुई जिसके केबिन में बैठे अधिकारी जिंकिंग की चाय की प्याली उनके सूट पर गिर गयी सारा सूट खराब हो गया जिंकिंग केबिन से बाहर निकले और गुस्से से अरबिंद की तरफ मुखातिब होते बोले यु बास्टर्ड इंडियंस यु डोन्ट नो मैनर्स गेट आउट फ्रॉम वर्कशॉप नाउ अरबिंद को तुरंत प्रधानमंत्री द्वारा प्राप्त शौर्य पुरस्कार का वक्त याद आ गया जब उससे पूछा गया था कि वह क्या जीवन मे बनना चाहेगा उसने उत्तर दिया था जी राष्ट के सम्मान के लिये जो कुछ कर सकता है करेगा ।अरबिंद ने तुरंत जिंकिंग से पलट कर कहा माइंड योर लैंग्वेज बीईंग इंडियन आई प्राउड माइ कंट्री व्हाट वाज यु वेयर सेयिंग पीपुल आर अनमैननरेड एंड बास्टर्ड लाईक ट्र्सपासर आई एम गोइंग तो रिजाइन एंड रिटर्न्स टू आवर बिलवेड कंट्री जिंकिंग सर पीटता रह गया अरबिंद ने त्यागपत्र देकर तुरन्त भारत लौटने के लिये हवाई जहाज पर बैठ गया और अपने गांव पहुंच गया बापू राजबहादुर एव माँ रमा तथा पत्नी विषु ने एकएक लौटने का कारण तो नही पूछा क्योकि सभी को अरबिंद के निर्णय पर भरोसा एव विश्वाश था अरबिंद ने भी कुछ ऐसा बहाना बनाया की सबने उंसे स्वीकार कर लिया अरबिंद ने बताया कि दूर देश मे मन नही लग रहा था हर पल घर और आप लोंगो की याद सताती किसी काम मे मन नही लगता इसीलिए मैं चला आया सभी ने अरबिंद के निर्णय को शिरोधार्य किया लवभग एक सप्ताह बाद अरबिंद बोला कि मैं और बिशु एक वर्ष के लिये दिल्ली जा रहे है बापू राजबहादुर ने फिर कोई प्रश्न बेटे से नही किया और उसके और बिशु के दिल्ली जाने की व्यवस्था कर दी अरबिंद और बिशु दिल्लीः पहुचकर एक कमरे का मकान किराए पर लिया और पत्नी बिशु से बोला हम अब एक वर्ष इस कमरे से बाहर नही निकलेंगे क्योकि हमे आगे के भविष्य के लिये कुछ पढाई करनी है जो भी समान खाने पीने का सामान लाना होगा उंसे तुम लाओगी और तुम सिर्फ हमे समय से खाना बनाकर दोगी बिशु ने भी पति के आदेश का पालन एक आर्दश पत्नी की तरह पालन किया अरबिंद कमरे सिर्फ एक यज्ञ पर बैठ गया वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी बिना किसी अतिरिक्त सहयोग के वह स्वयं तैयारी करने लगा अरबिंद पूरे एक वर्ष कमरे से बाहर नही निकला निकला तो सिर्फ भरतीय प्रशासनिक सेवा की लिखित परीक्षा के लिये अरबिंद ने पूरी तैयारी से परीक्षा दी और मेरिट लिस्ट में आया पुनः साक्षात्कार में भी वह अव्वल रहा भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर दसंवी रैंक लाकर अपने जनपद गांव और प्रदेश का नाम रौशन किया राजबहादुर रमा और बिशु की खुशी का कोई ठिकाना ही नही रहा जगह जगह अरबिंद की सफलता के लिये जश्न मनाए जा रहे थे अंत मे अरविंद प्रशिक्षण हेतु भारतीय प्रशासनिक सेवा अकादमी गया और एक वर्ष के प्रशिक्षण के उपरांत उसकी नियुक्ति उपजिलाधिकारी जिला विकास अधिकारी के महत्वपूर्ण पदों पर हुई जब जहां भी बेटे की नियुक्ति रहती राजबहादुर एव रमा कुछ दिनों के लिये बहु विषु की सहूलियत के लिये जाते और कुछ दिन रहने के बाद लौट आते अरबिंद की नियुक्ति पहले जिलाधिकारी के तौर पर जनपद सम्बल हुई तब भी राजबहादुर औऱ रमा बेटे बहु के पास कुछ दिनों के लिये गए थे एक दिन जिलाधिकारी आवास पर ही जनपद के फरियादियो की भीड़ जमा थी राजबहादुर को बेटे के न्याय को देखने की इच्छा हुई उन धीरे से फरियादियों के बीच मे जाकर
छुप कर खड़े हो गए तभी एकाएक भीड़ को चीरती एक महिला अरबिंद के पास पहुंची और बोली मेरा नाम शोभना है मेरे पति स्वस्थ विभाग में क्लर्क थे एकाएक उनकी दुर्घटना में मृत्यु हो गयी और मैं अनुकम्पा के आधार पर उनकी जगह पर परिचारिका की नौकरी की इतना सुनते ही राजबहादुर भीड़ को चीरते शोभना के बगल में आकर बोले आपके तीन बेटे है और आप अनाथलय से आई है शोभना ने पूछा आपको कैसे मालूम तब राजबहादुर ने अरबिंद से कहा बेटे तुम अपने उस ख्वाब को याद करो जब गहरी नींद में तुम थे और पानी का भरा लोटा तुम्हारे ऊपर डाल दिया था तब तुमने अपने नीद के ख्वाब की बात बताई थी आज वही ख्वाब हकीकत तुम्हारे सामने है शोभना को अपने साथ हम लोंगो के साथ रखो यही कुदरत का न्याय और निर्णय है अरबिंद भी अपने उस ख्वाब की हकीकत को देख कर दंग रह गया और शोभना से बोला माई मेरा भाग्य है की आप हम लोंगो को अपनी सेवा का अवसर दे शोभना ने खुशी खुशी अरबिंद के आमंत्रण को स्वीकार करते ईश्वर का धन्यवाद किया।।
कहानीकार---
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश