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किन्नर अभिशाप नही



पंडित परमात्मा जी के कोई औलाद नही थी विबाह के लगभग पंद्रह वर्ष बीत चुके थे पण्डित जी एक औलाद के लिये जाने क्या क्या जतन करते सारे तीर्थ स्थलों पर गए कोई मंदिर कुरुद्वारा नही बचा जहां एक औलाद की मुराद न मांगी हो पण्डित जी एक दिन उदास निराश गांव लखपत पुर के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे बैठे थे जेठ की प्रचंड धूप थी बीच बीच मे हवा चलने से बरगद के बृक्ष के नीचे शीतलता का आभास होता पण्डित जी घण्टो से बरगद के बृक्ष के नीचे बैठे जैसे किसी का इंतज़ार कर रहे हों एकएक पण्डित जी ने देखा कि एक सन्यासी केशरिया धारण किये हाथ मे सारंगी लिये उनकी तरफ ही आ रहा था धीरे धीरे सन्यासी पंडित जी के करीब पहुंचे जो भयंकर गर्मी कारण पसीने से लथपथ और व्यथित थे पण्डित जी के पास आकर बोले बच्चा मुझे बहुत प्यास लगी है थोड़ा पानी पिला दो पंडित परमात्मा जी तुरंत उठे और सन्यासी का कमंडल लेकर गए और पास के कुएं से शीतल जल ले आकर सन्यासी को दिया सन्यासी ने जल पीने के बाद कहा बच्चा तुम बहुत निराश हताश दिख रहे हो जो प्रारब्ध में है ही नही उसके लिये तुम व्यर्थ परेशान हो तुम्हारे किस्मत में संतान सुख है ही नही तो कहा से तुम्हे संतान की प्राप्ति होगी तुम्हारा भाग्य लिखने वाला जगत पिता सबके भविष्य जीवन का निर्धारण करता है और उसे मिटाने की क्षमता स्वयं उसी में है फिर भी तुमने मुझे जल पिलाया है मुझे तुम्हे आशीर्वाद स्वरूप कुछ देना ही होगा मैं भी तुम्हे विधाता के लेख के इतर कुछ नही दे सकता तुम संतान के लिये दुखी हो मैं तुम्हे पुत्र या पुत्री का आशीर्वाद तो नही दे सकता मैं सिर्फ पिता बनने का आशीर्वाद तुम्हे देता हूँ पण्डित परमात्मा आश्चर्य में पड़ गए कि जब पुत्र और पुत्री होगा ही नही तो मैं पिता कैसे बन सकता सन्यासी महाराज बोले मैं सन्यासी हूँ मुझे सांसारिकता से कोई मोह नही है मेरे आशीर्वाद से तुम पिता बनोगे ईश्वर के अर्धनारीश्वर स्वरूप के जो ना पुत्र होगा ना पुत्री वह महाभारत के शिखंडी जैसा होगा इतना कहकर सन्यासी कहां गायब हो गए पता नही चल सका पंडित परमयात्रा व्याकुल होकर इधर उधर ढूढने का बहुत प्रयत्न किए मगर कोई फायदा नही हुआ अंत मे निराश होकर घर चले गए पंडित परमात्मा पहले से ज्यादा व्यथित हो गए उनको लगा कि इससे बेहतर तो निःसंतान होना लेकिन अब कर ही क्या सकते थे इसे ही अपनी नियत मानकर घर गए और पत्नी अनिता को सारी घटना बताई पंडित जी की पत्नी समझदार थी उन्होंने पण्डित जी को समझाया कि जब औलाद हमारे किस्मत में नही है तो जो ही है उसी को प्रारब्ध मानकर स्वीकार करना ही पड़ेगा सर पीटने निराश होने से कोई फायदा नही है जो ईश्वर को मंजूर है उंसे ही किस्मत मानकर स्वीकार कर लेने में हर्ज क्या है। पंडित जी ने अपने नियत का लेखा मानकर भविष्य का इंतजार करने लगे। पण्डित परमात्मा का दिन ज्यो त्यों बीत रहा था लगभग डेढ़ वर्ष उपरांत अनिता के घर एक शिशु ने जन्म लिया पंडित जी को सन्यासी की बात पहले से ही याद थी उनको सन्यासी की बात सत्य हुई क्योकि जो बच्चा उनके यहॉ पैदा हुआ था वह वास्तव मे ना लड़का था ना लड़की था पंडित परमात्मा ने पत्नी से कहा कैसे गांव और रिश्ते नातो को घर मे नए मेहमान आने की सूचना दी जाय क्या बताया जाय क्या कहा जाय जो भी जानना चाहेगा पूछेगा की पैदा होने वाली संतान लड़का है या लड़की लेकिन यह बात छिपाई भी तो नही जा सकती है अभी पंडित जी के घर नए मेहमान के आये एक सप्ताह ही हुआ था कि किन्नरों का एक दल बधाई गाने के लिए आ धमका पण्डित जी के समझ में यह नही आ रहा था कि किन्नरों को क्या बताये लेकिन किन्नरों के दल की मुखिया सुरैया ने पण्डित जी से कहा पण्डित जी काहे शर्मा रहे हो हम लोंगो को दुनियां चाहे जो भी समझे कितना भी अपमानित करे हम लोग दुनियां की खुशियों में ही आशीर्वाद की बधाई देने आते जाते है किसी भी अपसगुन के अवसर पर नही जाते ये हमारा वसूल है अब आप बच्चे को बाहर लाते है या हम ही लोग बच्चे के पास जाए पंडित जी ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर किन्नरों ने पण्डिय जी की एक भी बात न सुनी और सीधे अनिता के पास पहुंच कर नवजात को अपने गोद मे बिठा कर बधाई गाने लगे और पण्डित जी से न्यौछावर की मांग करने लगे तभी किन्नरों के दल की एक सदस्य नीलम ने कहा सुरैया देख तो ले पंडित जी के घर लड़का भवा है या लड़की सुरैया ने तत्काल बच्चे का निरीक्षण कर बताया कि यह तक ना लड़का है ना लड़की यह तक अपनी बिरादरी का है नीलम बोली तब पंडित जी से बधाई क्या लेना ये तो अपने ही परिवार में आया है पंडित जी से बधाई में यही बच्चा मांग लेते है इसे नाचना गाना सिखाएंगे जब हम लोंगन का हाथ पैर थक जाएगा तब ये कमाके खिलायेगा।पंडित जी को जैसे सांप सूंघ गया क्या करे क्या ना करे उनके समझ मे कुछ भी नही आ रहा था किन्नरों और पण्डित जी मे बात विबाद चल रहा था कि बात पूरे गांव में फैल गयी और गांव के लोग किन्नरों का कौतूहल देखने के लिये पण्डित जी के दरवाजे पर एकत्र हो गए पंडित जी किन्नरों से बार बार कहते कि आप लोग अपनी बधाई लो और जाओ मगर सारे किन्नर जिद्द पर आड़े थे कि बढ़ाई में कोई रुपया पैसा नही लेंगे अगर लेंगे तो पण्डित जी का बच्चा ही लेंगे गांव वालों को जब सच्चाई की जानकारी हुई तब सारे गांव वाले पंडित जी के साथ खड़े हो गए और पंडित जी की बातों का समर्थन करने लगे किन्नरों ने जब देखा कि पूरा गांव पण्डित जी के लिये मरने मारने के लिये खड़ा है तो जाते जाते कहने लगे कि ठिक है पंडित जी आज तो हम लोग जा रहे है लेकिन यह बच्चा हम लोंगो की अमानत है जितने दिन भी इसकी परवरिस आपको नसीब है कर लो यह बच्चा हमारे ही कुनबे की अमानत संमझ कर संभालना किन्नर पंडित जी को चेतावनी धमकी देकर चले गए पंडित जी का मन किसी अनहोनी आशंका से विचलित होने लगा गांव वालों ने पंडित जी को बहुत ढाढस बधाया मगर मंडित जी की आत्मा को चैन नही था।पंडित जी ने बड़े बिधि विधान से बच्चे के प्रत्येक सांस्कार को सम्पन्न कराया और प्यर से उसका नाम मनोहर रखा पण्डित जी को सदैव याद रहता कि मनोहर सन्यासी के आशीर्वाद की धरोहर उनके पास है अतः मनोहर में सदैव उस सन्यासी का बचपन देखते जिसे उन्होंने कभी देखा नही था उंसे मनोहर के बचपन मे देख रहे थे।धीरे धीरे मनोहर पांच साल का हो चुका था पण्डित जी किन्नरों की धमकी को भी धीरे धीरे भूलने की कोशिश करते एकाएक एक दिन पंडित जी को किसी कार्य से अपनी बहन नीमा के घर जाना पड़ा पंडित जी किसी अनजान खतरे की डर से मनोहर को भी साथ लेते गए पंडित को लौटने में शाम हो गयी गांव के रास्ते अक्सर सूर्यास्त के बाद सुन सान हो जाते है सूर्यास्त होने के बाद जब सुनसान रास्ता शुरू हुआ कुछ देर बाद ही एक भयंकर आवाज पंडित जी के कानों में पड़ी पंडित जी हमारी अमानत को कब तक पालोगे पंडित जी ने देखा कि किन्नरों का दल
जिसका नेतृत्व सुरैया कर रही थी उनको घेर कर खड़ा हो गया पण्डित जी के मुख से घबराहट के मारे कोई
शब्द नही निकल पा रहे थे पंडित जी कुछ बोल पाते उससे पहले किन्नरों ने उन पर धावा बोल दिया और मनोहर को पण्डित जी के आगोश से छुड़ाने का प्रयास करने लगे मगर पंडित जी दो चार पर अकेले ही भारी थे तब जब किन्नरों ने मनोहर को पंडित जी से नही छीन पाए तब पंडित जी पर डंडों से वार करना शुरू कर दिया फिर भी पण्डित जी ने मनोहर पर आंच नही आने दी जबकि स्वयं खून से लथपथ थे किन्नरों को लगा कि इतनी आसानी से पंडित से मनोहर को नही झीना जा सकता है तब सारे किन्नरों ने पंडित जी को पेट मे छुरा भोंक दिया पंडित जी जमीन पर तड़फड़ाने लगे मगर फिर भी मनोहर को उन्होंने नही छोड़ा किन्नरों ने आस पास से सूखी खास जिसे किन्नरों ने पहले से एकत्र कर रखी थी उसमें आग लगा कर पंडित जी पर डाल दिया अब पंडित जी का सब्र जबाब दे गया लेकिन उन्होंने तब भी मनोहर को अपने गले लगाए रखा जब मनोहर के जिस्म में आग के गर्मी की ज्वाला लगी तो वह स्वयं पण्डित से अलग हुआ ज्यो ही मनोहर पण्डित जी के आगोश से बाहर हुआ सुरैया ने उसे गोद मे उठा लिया और सब किन्नर उसके साथ भागने लगे पण्डित जी ने जो जीवन मृत्यु से स्वयं संघर्ष कर रहे थे जब मनोहर को किन्नरों द्वारा ले जाते देखा तो उन्होनें उस सन्यासी को पुकारते हुए जिसके आशीर्वाद से मनोहर पैदा हुआ था चिल्लाने लगे आपने मुझे कैसा आशीर्वाद दे दिया जो मेरे एव मेरे परिवार के लिये घातक
और खतरनाक है यह तो किसी श्राप से भी बदतर है अब आप ही अपने आशीर्वाद की रक्षा करे इतना कहने के बाद पण्डित जी अचेत हो गए आग तेजी से जल रही थी पंडित जी जलती आग में झुलस रहे थे मगर उनमें इतनी शक्ति नही थी कि अपनी रक्षा कर सके पता नही कब आग बुझी पंडित जी आब अध जले शव की तरह पड़े थे रात समाप्त हो चुकी थी सूर्य की किरणें अपनी नई ऊर्जा के साथ नव प्रभात का शुरुआत कर चुकी थी रास्तो की वीरानियाँ समाप्त हो चुकी थी एका एक गुजरने वाले मुसाफिरों ने देखा कि अधजला शव पड़ा हुआ है पहले तो उनको विश्वास नही हो रहा था कि यहाँ कौन सा श्मशान है कि अध जला शव यहाँ पडा हुआ है नजदीक जाकर देखा झुलसा जला घायल एक आदमी जो जिंदा है जीवन की आशा में चिल्लाने की कोशिशें तो कर रहा है मगर आवाज नही निकल पा रही है मांसाहारी पंक्षी जानवर जैसे गिद्ध आदि पंडित के ऊपर आस पास मंडरा रहे है।आने जाने वाले मुसाफिरों ने देखा कि पड़ा हुआ व्यक्ति मुर्दा नही बल्कि जिंदा है जल्दी जल्दी उठाकर उंसे पास के गांव ले गए जो कोस की दूरी पर था गांव वाले बिना बिलम्ब किये बैलगाड़ी से नजदीक अस्पताल पहुंचे इतनी ततपरता के बावजूद पँडित परमात्मा को अस्पताल पहुचने में दिन के लगभग तीन बजे चुके थे जब चिकित्सको ने पण्डित जी को देखा तो इलाज करने से ही इनकार कर दिया मुसाफिरों और गांव वाले जो पंडित जी को जानते तक नही थे उनके बहुत अनुनय विनय पर चिकितको ने चिकित्सा इस आधार पर शुरू की बच गए तो भगवान की कृपा नही बचे तो ईश्वर की मर्जी इधर इलाज शुरू हो गया पंडित जी की पत्नी अनीता ने सोचा कि बहन के घर गए है रुक गए होंगे मगर लगभग एक सप्ताह बाद पंडित जी नही लौटे तब चिंतित होने लगी और पंडित जी के अभिन्न मित्र कृपा शंकर को बुलाया और पंडित जी के बहन के घर भेजा।
कृपा शंकर ने लौट कर बताया कि पण्डित जी तो उसी दिन शाम लोटे रहे थे जिस दिन गए थे रास्ते की अनहोनी विस्तार से बताया और अनिता को अस्पताल लेकर गए जहाँ
पंडित परमात्मा की चिकिसा चल रही थी अनिता के आने के बाद गांव वाले चले गए।
सुरैया एव अन्य किन्नर जब मनोहर को लेकर अपने अड्डे पहुंचे मनोहर बड़ी करुण पुकार कभी माँ अनिता की करता कभी पिता की पुकार करता क्योकि मनोहर अनिता और परमात्मा के अतिरिक्त किसी को नही पहचानता था मगर किन्नरों में ना तो कोई वात्सल्य भाव था ना ही कोई दया उन्होंने तो मनोहर को व्यवसायिक दृष्टि और अपने निहित स्वार्थ में अपहृत किया था मनोहर के चीखने चिल्लाने का कोई असर नही था वे निरंतर जल्लाद की तरह मनोहर पर मानसिक दबाव बना रहे थे लेकिन अबोध मनोहर पर कोई असर नही हो रहा था वह निरंतर रोता रहता और अपने माँ बाप को याद करता खाना पीना छोड़ दिया लाख डर भय शाम दाम दंड का उसके बाल हठ पर कोई
असर नही हो रहा था। तब किन्नरों ने मनोहर को एक कमरे बंद कर दिया और अब क्रूरता की हद करने लगे एक तो लगभग दस दिन से मनोहर ने कुछ खाया पिया नही था बावजूद किन्नरों ने मनोहर को लोहे की गर्म सुर्ख लाल सलाखों से उसके गुप्तांगों को बुरी तरह जला दिया कुछ घंटों के लिये मनोहर अचेत सुध बुध खोया पड़ा रहा फिर उंसे होश आया तो चीखने चिल्लाने लगा अब उसके आवाज में पीड़ा वेदना का वह स्वर था कि भगवान भी कांप गया अब किन्नरों के
लिये और आफत का पहाड़ खड़ा हो गया सुरैया बहुत घबड़ा गयी मगर अब भी उसके मन मे लाकच और नज़रों में
क्रूरता का वहशियाना अंदाज़ था बार बार वह चाहता कि मनोहर को फिलहाल चुप कराया जाय उसने तुरंत मनोहर के आंखों में लाल मिर्च पीसकर डाल दिया और फिर उसे सुकून नही मिला उसने सुर्ख सलाखों से मनोहर के सारे बदन को दाग दिया मनोहर फिर बेसुध अचेत हो गया और जब किन्नरों को लगा कि या तो यह मर जायेगा या तो कम से कम दो दिन तक इसे चेतना नही आयेगी अगर मर गया तो इसे जूते चप्पल मारते नदी में फेंक देगे ऐसी मान्यता है कि किन्नर जब किन्नर मरता है तो उसे जूते चप्पलों से पीटते उसका अंतिम सांस्कार करते है ताकि उसे पुनः दुनियां में किन्नर का जन्म ना मिले यदि मनोहर बच गया तो कितने दिन नही टूटेगा जबसे मनोहर को लेकर किन्नर आये थे किसी धंधे पर नही गए थे सुरैया ने बीड़ी की लंबी कस छोड़ी और बीड़ी के खाली पैकेट मनोहर के पास फेंक कर कमरा बन्द किया और सारे किन्नर धंधे पर निकल पड़े किन्नर दल धंधे के चक्कर मे बहुत दूर निकल गया जहां से लौटना दिन भर में किसी तरह असंभव था इधर शाम को मनोहर को होश आया तो उसकी निगाह सबसे पहले सुरैया के फेके बीड़ी के खोखे पर गयी जिस पर भगवान शंकर की छवि बनी थी वह एक टक भगवान शंकर की छवि को देखता हुआ फिर करुण रुदन करने लगा लगभग रात्रि के बारह बजे दो तीन सन्यासियों का दल उधर से गुजर रहा था उन्होंने करुण रुदन किसी बालक की सुनी तो रुक कर अंदाज़ लगाने लगाने लगे कि आवाज किधर से कहाँ से आ रही है जल्दी ही उन्होंने पता कर लिया कि आवाज सामने बन्द कमरे से आ रही है तीनो सन्यासी उस मकान के कमरे के सामने गए और किन्नरों के बुजुर्ग मुखिया से कमरा खोलने का संत आग्रह किया किन्नरों का बुजुर्ग मुखिया सुगना ने पुरज़ोर विरोध किया और टांगी उठा कर सन्यासियों पर आक्रमण कर दिया एक सन्यासी घायल हो गए अब सन्यासियों ने संत परम्परा को त्याग कर हर हर महादेव जय भवानी बोलते सुगना पर एक साथ धावा बोल दिया चूंकि किन्नरों की बस्ती अमूमन नगर मोहल्लों से दूर होती है और मध्य रात्रि का सन्नाटा अतः सुगना और सन्यासियों के मध्य भयानक भयंकर तकरार मारपीट को भगवान के सिवा कोई नही देख रहा था थोड़ी ही देर में
तीनो सन्यासियों ने सुगना को मार मार कर अचेत कर दिया और अपने चिमटे से बंद कमरे का ताला तोड़ दिया कमरे के अंदर दाखिल हुए वहाँ का दृश्य देखकर उनके होश उड़ गए जमीन पर पड़ा मनोहर बीड़ी पर भगवान शिव की छवि को एक टक देखता करुण कराह से जीवन मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहा था उसकी सांस अब तब छूटने ही वाली थी तुरन्त एक सन्यासी ने मनोहर को गोद मे उठाया और तीनों सन्यासी बाहर निकले और चले गए कहा गए ना किसी ने देखा ना किसी को पता नही चला जब दूसरे दिन किन्नर अपने धंधे से लौटे देखा कि सुगना बेहोश पडा है और कमरा खुला मनोहर गायब है किन्नरों का माथा ठनका उनको यह तो कत्तई विश्वास था कि पंडित परमात्मा तो मनोहर को ले जाने के लिए परमेश्वर के दरबार से नही आये होंगे क्योंकि उतने घातक प्राण घातक मार और आग में झुलस कर निश्चय ही जिंदा नही होंगे फिर मनोहर को ले कौन गया किन्नरों ने किसी तरह से सुगना को अस्पताल लेकर गए जहां उसे होश आया होश आने और थोड़ा सहज होने पर उसने बताया कि तीन सन्यासि आये और कभी जद्दोजहद करने के बाद भी मनोहर को छुड़ा कर ले गए कहाँ ले गए पता नही सुरैया ने अपने कुछ किन्नरों को साथ छोड़कर कुछ साथियों को साथ लेकर मनोहर की तलाश में निकल पड़े दिन भर मंदिर
मंदिर तलाश करने के बाद मनोहर का
तो कोई बात नही किसी सन्यासी का कोई पता नही चला शाम को मायूस सुरैया लौटी सुगना के हालत में सुधार
हो रहा था अब प्रतिदिन सुरैया अपने साथियों के साथ मनोहर को खोजने जाती और हर शाम निराश होकर लौट आती बहुत प्रयास के बाद भी जब मनोहर का कही पता नही चला तब सुरैया ने किन्नरों की महासभा बुलाई और उसमें मनोहर की कहानी आप बीती बताई मगर यह नही बताया कि
उसने मंनोहर के पिता के साथ क्या किया सारे किन्नरों ने मनोहर को जमीन आसमान से खोज निकलने का बीड़ा उठाया सारे किन्नर अपने अपने दल बल के साथ मनोहर को खोजने का प्रयास करने लगे उधर पंडित परमात्मा की हालत में उतार चढ़ाव का नियमित सिलसिला जारी था एक महीने का समय बीत चुका था पंडित परमात्मा की हालत स्थिर नही हो रही थी चिकित्सको के दल को भी निराशा होने लगी । इधर तीनो सन्यासी जिसमे स्वामी गंभीरा नंद जी महाराज घायल थे शेष दो स्वामी निरंजन जी एव स्वामी अखंडानंद जी लगभग मरणासन्न मनोहर को एक गुफा में जहाँ शंकर भगवान का प्राचीन मंदिर था पहुंचे जहां किसी भी प्राणि का पहुँच पाना सम्भव नही था वहाँ पहुंचकर उन्होंने मनोहर और स्वामी गंभीरा नंद की जंगली जड़ी बूटियों से
इलाज शुरू किया जितनी भी कोशिश
उस निर्जन स्थान पर की जा सकती थी सन्यासियों ने की लगभग पन्द्रह दिनों की कठिन परिश्रम के बाद मनोहर को होश आया और स्वामी गंभीरा नंद विल्कुल भला चंगा हो चुके थे अब संन्यासीयो को विश्वास हो चुका था कि जिस बालक को वे साथ लाये थे वह स्वस्थ हो जाएगा उन्होंने पूरे ईश्वरीय आस्था से बालक का गहन उपचार जारी रखा लगभग छ महीने बाद मनोहर भी जंगा हो गया
अब सन्यासियों ने मनोहर को स्वामी
बालक नाथ नाम देकर उसी संबोधन से बुलाते मनोहर को भी इतनी क्रूरता की यातना से सन्यासियों का स्नेह भाने लगी और वह भी मगन होकर
भगवत भजन करता उसका मन भी लगता ।सुरैया प्रतिदिन जहाँ भी जाती मनोहर के विषय मे अपने तौर तरीके से पता करती मगर मनोहर का कही पता नही चलता उधर सन्यासियों ने मनोहर को साथ लेकर हरिद्वार नासिक उज्जैन आदि अनेको तीर्थ स्थलो का दर्शन कराया मनोहर का बाल मन उस क्रूर काल को भूलने लगा और उसका मन सन्यासियों की संगत में रमने लगा सन्यासी लोग जब भी फुर्सत पाते मनोहर को संस्कृत व्याकर्ण धर्म शत्रो का अध्ययन कराते
जिसमे बालक राम मनोहर का मन खूब लगता धीरे धीरे समय बीतने लगा
उधर पंडित परमात्मा को अस्पताल में ईलाज होते एक वर्ष से अधिक हो चुका था लेकिन कोई खास फायदा नही था पण्डित परमात्मा ब्रेन डेड की स्तिथि में थे लेकिन उस वक्त चिकित्सा विज्ञान आज की तरह विकसित नही था अतः कोई इलाज संभव नही था एकाएक चिकित्सा कर रहे चिकितक
डॉ शोभन थॉमस को लगा कि क्यो न
परमात्मा को इमोशनल ट्रीटमेंट दिया जाय एकाएक सुबह डा शोभन थॉमस
उठे और सीधे पंडित परमात्मा के पास पहूँचे और बेड के पास बैठकर एका एक बोले परमात्मा जी उठिए देखिये कौन आया है जल्दी उठिए आपकी इकलौती औलाद आपसे मिलने आई है इसी बात को डा थॉमस ने पहले धीरे धीरे फिर बाद में जोर जोर से दोहराने लगे उन्होंने देखा कि पण्डित परमात्मा के निर्जीव शरीर मे हरकत हो रही है डा थॉमस और तेज उसी बात को दोहराते रहे एकाएक पण्डित
परमात्मा को होश आ गया और होश आते ही उन्होंने पूछा मनोहर कहा है
डॉ थॉमस ने कहा कि पँडिन जी धीरज रखिये मनोहर भी आ जायेगा डा थॉमस का प्रयोग कारगर हुआ और पंडित परमात्मा के स्वस्थ में तेजी से सुधार होने लगा जब पंडित परमात्मा पूरी तरह से संजीदा और होश में रहने लगे तो डॉ थॉमस ने पुलिस को सूचना
दी जिसे परमात्मा के अस्पताल में भर्ती होने से पूर्व भी सूचित किया गया था थोड़ी ही देर में दारोगा विश्वेन्द्र सिंह आ गए और उन्होंने पंडित परमात्मा की पूरी कहानी सुनी सुनकर उनके आंखों में आंसू भर आये लेकिन भारतीय दण्ड संघीता में इस प्रकार के अपराध जिसमे किन्नर शामिल हो पर कोई धारा दफा नही थी फिर भी दारोगा विश्वेन्द्र सिंह ने पण्डित परमात्मा को आश्वस्त किया कि जो सम्भव होगा करेंगे ।पंडित परमात्मा लवभग चौदह माह चिकित्सा के बाद घर वापस लौटे उनकी पत्नी अनिता को कुछ औलाद पति दोनों के खोने की विपात्ति से एक तरफ से निश्चिन्ता हुई घर आने के बाद पंडित जी की पत्नी ने खूब सेवा की और जल्द ही पंडित जी पहले की तरह स्वस्थ हो गए पंडित जी ने गांव वालों को बुलाकर आप बीती सुनाई गांव वालों ने एक स्वर में पंडित जी के साथ संकल्प लिया कि मनोहर को किसी प्रकार ढूंढ निकालेंगे अब पण्डित परमात्मा के साथ पूरे गांव के लोग जहां भी जाते सुरैया का हवाला देकर उसके विषय मे पूछते इधर दारोगा विश्वेन्द्र भी अपने स्तर से तहकीकात में जुट गए यह बात जब सुरैया के कानों में पड़ी तो वह पूरी मंडली लेकर मध्यप्रदेश होते हुए महाराष्ट्र चली गयी गांव वाले और पंडित परमात्मा निरंतर सुरैया की खोज करते रहे मगर कुछ पता नही चल रहा था धीरे धीरे लगभग दो वर्ष का समय बीत चुका था दारोगा विश्वेन्द्र का स्थानांतरण दूसरे थाना हो गया मगर ना तो सुरैया का कोई सुराग मिल रहा था ना ही मनोहर का कुछ पता चल रहा था उधर सन्यासियों के मध्य मनोहर को लगभग तीन वर्ष हो गए थे इतने दिनों में इसने गीता रामायण आदि धर्म ग्रंथो का गम्भीरता से अध्ययन कर लिया था संस्कृति व्यकर्ण आदि का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया था जहाँ भी मनोहर सन्यासियों के साथ जाता वहाँ उनकी प्रतिष्ठा अपने आचरण ज्ञान और योग्यता से बढ़ाता महज़ आठ साल की अवस्था मे उंसे लगभग सम्पूर्ण ज्ञान हो गया था एक दिन स्वामी गंभीरा नंद ने कहा अब इस बालक का हम लोंगो के सानिध्य का समय पूर्ण हुआ अब इसे जगत में अपना कार्य पूरा करना होगा चलो हम लोग इसके जन्मदाता माँ बाप की खोज करते है लेकिन कहां गंभीरा नंद जी ने कहा कि हवा के विपरीत दिशा चलना होगा सन्यासी गंभीरा नंद जी मनोहर एव साथियों के साथ पूरब दिशा को चल दिये दिन भर गांव गांव घूमते जो मील जाता उंसे शाम को मनोहर के साथ ग्रहण करते मनोहर सन्यासियों के साथ रहते पाक कला में भी निपुण हो चुका था समय बीतते देर नही लगती एक वर्ष से ऊपर का समय मनोहर को सन्यासियों के साथ घूमते फिरते बीत चुके थे।पंडित परमात्मा और अनिता गांव वालों के साथ मनोहर के मिलने की अपेक्षा छोड़ चुके थे शिव रात्रि का दिन था पंडित जी ने भगवान की पूजा अर्चना करने के उपरांत अश्रुपूरित नेत्रों से दोनों हाथ जोड़कर शिव लिंग के समक्ष खड़े होकर करुण पुकार करते बोले है औघड़ दानी भूत भाँवर विश्वेशर शिव शम्भू भोले शंकर आप काल महाकाल त्रिलोक के सुख दुख के दाता है आपने भी मुझे निःसंतानी के कलंक से मुक्त करते अपना ही अर्धनारीश्वर रूप औलाद के रूप में दिया मैन उंसे आपका आशीर्वाद मानकर बड़े लाड प्यार से पांच वर्ष तक पाला उंसे बचाने के लिये स्वयं मौत को चुना मौत मुझे छूकर चली गयी सारे यत्न करने के उपरांत मनोहर को बचा नही पाया और किन्नर उसको पता नही किस हाल में कहा रखे होंगे आप उसकी रक्षा करना प्रार्थना करने के बाद पण्डित परमात्मा गांव के उसी पुराने बरगद के बृक्ष के नीचे बैठ गए धूप नही थी बौछारें और हल्की बारिस रुक रुक कर हो रही थी पण्डित परमात्मा अतीत की यादों में खोए हुये थे तभी तीन सन्यासी सामने आकर रुके उनके पीछे मनोहर था स्वामी गंभीरा नंद जी बोले किस बात की चिंता करते हो तुम्हारा मनोहर साथ लाये हैं पंडित जी को जैसे भगवान मिल गए तब तक मनोहर पँडित परमात्मा के चरण पकड़कर रोने लगा परमात्मा की आंखों से जैसे अश्रु की गंगा जमुना बह पड़ी पिता पुत्र के इस मिलन को देख बैरागी सन्यासियों का भी मन करुणा से भर गया फिर स्वामी गंभीरा नंद जी ने पंडित परमात्मा से कहा आज हम सभी आपके यहाँ विश्राम करेंगे और सुबह चले जायेंगे मनोहर के लौटने को बात पूरे गांव में आग की तरह बात फैल गयी जैसे सबके मन का आकर्षण आ गया हो पूरा गाँव उस पुराने बट बृक्ष के नीचे एकत्र होकर सन्यासियों के प्रति कृतज्ञता से नतमस्तक होकर कृतज्ञता आभार व्यक्त करने लगा।पंडित परमात्मा ने सन्यासियों का आतिथ्य सत्कार पाकर अपने भाग्य कर्म ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की पत्नी अनिता से कहा आज हमारे भाग्य है जो स्वयं भगवान भोले नाथ सन्यासियों के वेश में पधारे है इनको कही से ये न लगे कि हमारी सेवा में कोई त्रुटि या कमी रह गयी अनिता ने भी बड़ी सावधानी श्रद्धा से सन्यासियों के लिये भोजन आदि की व्यवस्था की सन्यासियों के भोजन के उपरांत जब सोने के लिये गए तब पंडित परमात्मा मनोहर एव अनिता ने उनके पांव दबाना शुरू किया सन्यासियों के आदेश पर ही मनोहर अनिता एव पण्डित परमात्मा सोने के लिये गए सुबह हुई तब सन्यासी उठे दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर साधना ध्यान आदि नियमित पूजा की उसके बाद उन्होंने अनिता और पंडित परमात्मा के साथ मनोहर को बुलाया तीनो एक साथ उपस्थित हुये तब स्वामी गंभीरा नंद जी महाराज बोले देखो पंडित जी एक बार भगवान भोले नाथ स्वयं अर्ध नारीश्वर स्वरूप मनोहर को अनिता के कोख में दे गए थे अब पुनः उसकी रक्षा का माध्यम हम सन्यासियों को बनाया वैसे तो इस पर कोई आंच आएगी नही फिर भी अगर कोई बात आती है तो भगवान शिव का ध्यान करिएगा आपकी परेशानी तुरंत दूर हो जाएगी ।इतना कह कर तीनो सन्यासी उठे और चल दिये लाख अनुनय विनय करने पर भी नही रुके ।मसनोहर को सन्यासियों के बिछड़ने की पीड़ा बर्दास्त नही हो पा रही थी। सन्यासियों ने मनोहर की शिक्षा के दौरान समाज संसार जीवन मृत्यु मोह संबंधों के संबंध में शिक्षित किया था जो मनोहर के बाल मन पर पत्थर की लकीर की तरह छा गयी थी अतः समूर्ण दुख पीड़ा से बाहर निकल कर वह अपने जीवन के उद्देश्य पथ पर निकल पड़ा पंडित परमात्मा ने मनोहर की शिक्षा के लिये लगभग सभी विद्यालयों के दरवाजों को खटखटाया मगर किसी ने भी प्रवेश देने से इनकार यह कह कर दिया कि मनोहर के आने से विदयलय का वातावरण दुषित हो सकता है अतः प्रवेश असम्भव है हार थक कर पंडित परमात्मा ने मनोहर को स्वयं मार्ग दर्शन में शिक्षा देना शुरू किया सारी पुस्तके विषयनुक्रम और सलेबस के अनुसार खरीद कर लाते और मनोहर उन्हें स्वयं पड़ता संसय का हल खोजता और व्यक्तिगत परीक्षा देता इसी प्रकार समय बीतता गया मनोहर ने आयुर्वेद साहित्य व्याकर्ण गणित ज्योतिष आदि में उच्च योग्यता हासिल कर ली और संबंधित परीक्षाएं उत्तिर्ण कर ली शिक्षा उपाधि प्राप्त करने के बाद मनोहर ने पाँच वर्ष तक स्वयं अध्ययन से विषया गत परिपक्वता हासिल किया और गांव के बाहर बरगद बृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना किया गांव वालों ने मिल कर खूबसूरत भगवान शंकर का मंदिर बनवा दिया जहाँ सुबह शाम दोपहर जब जिसको समय मिलता मंदिर पर आता मनोहर से आध्यात्मिक सानिध्य प्राप्त करता मसनोहर ने आयुर्वेद नृत्य गायन आदि कला में दक्षता हासिल की थी अतः गांव की कन्याओं को नृत्य गायन कला सिखाता कोई लड़का भी सीखना चाहता उंसे भी सिखाता गांव के बच्चों को पढ़ाता कोई बीमार होता तो उसको अपने पास रख कर इलाज करता धीरे धीरे मनोहर की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी आस पास के बच्चे बच्चियां उसके पास अध्ययन करने आते नवयुवकों के लिये जीवन उपलब्धि नामक सत्र चलाता देश के विभिन्न भागों से जिनको चिकितको द्वारा इलाज से इनकार कर दिया जाता वे मरीज आते मनोहर की कीर्ति इस प्रकार देश के कोने कोने फैल गयी। इधर सुरैया का दल महाराष्ट्र में बहुत दिनों से घूमता फिरता ऊब चुका था और आय भी नही होती सुरैया बीमार रहने लगी और लाख इलाज के बाद चिकित्सको ने जबाब दे दिया कि अब भगवान ही कोई चमत्कार कर सकता हैं सुरैया ने कहा कि मरना ही है तो अपने देश ही मरेंगे सुरैया के दल के सभी सदस्य सुरैया को लेकर लौट आये और उसके मरने का इंतजार करने लगे चूंकि किन्नरों के ठौर कभी एक जगह नही होता है सुरैया के साथी भी रोज धंधे पर निकलते कही से उनको पता चला कि मनोहर नाम के कोई जाग्रत संत है वहाँ सुरैया को ले जाने पर वह निश्चित ठिक हो जाएगी सुरैया के साथी उसको लेकर मनोहर के पास गए जहाँ गांव वाले और बुजुर्ग हो चुके पंडित परमात्मा भी मौजूद थे जब गांव वालों एव परमात्मा ने देखा कि सुरैया के साथी सुरैया को मरणासन्न ले कर आये है सभी ने कहा मारो मारो जब यह आवाज़ सुरैया के कानों में पड़ी तो उसने अपने साथियों से कहा मुझे गांव वालों एव परमात्मा के समक्ष ले चलो उसके साथी उसको लेकर वहाँ गए सुरैया ने बड़े करुणा भाव से कहा मैं आप लोंगो की अपराधी हूँ आप लोग मुझे मार डाले मेरे अपराध का दंड भी पूरा हो जाएगा और मुझे भयंकर भयानक बीमारी की पीड़ा से मुक्ति भी
इतने में भीड़ को चीरता हुआ मनोहर सुरैया के सामने पहुँचा और बोला यह तो स्वयं मरणासन्न है इसे मारने से क्या फायदा इसे मंदिर पर ले चलिये इसका इलाज हम करेंगे सुरैय्या को लेकर उसके साथी मंदिर पर गए मनोहर ने उनका इलाज शुरू किया लगभग एक माह की चिकित्सा के बाद सुरैया को फायदा होना शुरू हो गया लगभग छः माह बाद सुरैया विल्कुल स्वस्थ हो गया अब सुरैया किन्नरों के कार्य से विरत मंदिर में सेवा करता और मनोहर के कार्यो में हाथ बताता उसके सभी साथी भी उसी के रास्ते पर चल पड़े।एक दिन एका एक भोर में उठा देखा कि मंदिर की सीढ़ियों पर नवजात शिशु के रोने की आवाज़ आ रही है तब उसने मनोहर को जगाया मनोहर ने उस बालक को देखा वह किसी तेजश्वी की तरह लग रहा था पौ फटा सुबह हुई गांव के लोग एकत्र हुए उस अदभुत बालक को गांव वालों ने एक स्वर में कहा यह भगवान की तरफ से मनोहर को पुरस्कार है जो पंडित पमात्मा के खानदान को रोशन करेगा क्योंकि वह बच्चा लड़का था पंडित परमात्मा के परिवार एव गांव की खुशी की लहर दौड़ गयी सुरैया और उसके साथी एक स्वर में बोल उठे की हम लोंगो ने किन्नर का कार्य छोड़ दिया है मनोहर की संगत में मगर आज हम लोग पंडित परमात्मा के वारिस के लिये बड़ाई गाएंगे झट सुरैया ने अबोध बालक को गोद मे उठा लिया और सारे साथी घंटो नाचते गाते उस बालक को अनिता के गोद मे देते हुये बोले आज भी हम बधाई नही लेंगे क्योकि बधाई में हम लोंगो ने मनोहर मांगा था जो मिल गया जिसने जलालत अपमान के जीवन मे सूरज की रोशनी दिखाकर हम किन्नरों को नया जीवन दिया है पंडित जी आप धन्य हो जिसे मनोहर जैसा ईश्वर का अर्धनारीश्वर संतान मिली जिसने ईश्वरीय विधान में दोष देखने वालों का मान मर्दन कर दिया अब हम लोग बधाई में आपको आपकी पीढ़ी सौंपते है और इसके सलामती के लिये ईश्वर से प्रार्थना करते है पूरे गांव आस पास के गांवों में उल्लास उत्साह का माहौल था मनोहर की ख्याति उपलब्धि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही थी।

कहानीकार ---नंदलाल मणि त्रिपाठी पितम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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