महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 26 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 26

[ सुधरती हालत ]
रॉयल सोसाइटी का सम्मान प्राप्त होने के कुछ समय बाद रामानुजन के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। साथ ही पुनः गणित में उनके नए महत्त्वपूर्ण सूत्र व साध्य भी निकलने लगे। वह मैटलॉक से लंदन चले गए और फिट्जरॉय हाउस में रहने लगे। परंतु कभी-कभी ज्वर तेज हो जाता था। यहाँ उन्होंने कई विशेषज्ञों की सम्मति ली, परंतु ठीक निदान नहीं हो पाया था। उनके दर्द के ठीक कारण का पता लगाने में डॉक्टर एकमत नहीं थे। उसी समय उनके दाँत उखड़ने की बात भी आई तो एक डॉक्टर ने दर्द का कारण दाँत को ही ठहरा दिया।
अगस्त-सितंबर 1918 में पुनः उनका नाम ट्रिनिटी की फेलोशिप के लिए प्रस्तावित किया गया। रामानुजन के प्रति प्रो. हार्डी के विचारों को पक्षपातपूर्ण माना जाने लगा था और उस दौरान कैंब्रिज की राजनीति में हार्डी का काफी विरोध भी हुआ था। अतः यह प्रस्ताव इस बार लिटिलवुड, जो युद्ध की नौकरी से अस्वस्थता के कारण कैंब्रिज लौट आए थे, की ओर से प्रस्तुत हुआ। इस प्रस्ताव ने रंगभेद का रूप ले लिया। लिटिलवुड ने बाद में लिखा कि “रामानुजन के विरुद्ध शत्रुता रखने वाला एक व्यक्ति खुलेआम यह कहता पाया गया था कि वह एक काले व्यक्ति को फेलो के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता।”
विरोधियों ने रामानुजन के विरुद्ध आत्महत्या के प्रयास का मामला भी लाने का प्रयत्न किया। लिटिलवुड के मित्र और पूर्व ट्राईपॉस शिक्षक आर. ए. हरमैन ने उन्हें बताया कि “रामानुजन के मानसिक संतुलन के प्रति गंभीर शंकाएँ उठाई जा रही हैं।” लिटिलवुड, जो स्वयं इतने बीमार थे कि व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सकते थे, ने रामानुजन के मानसिक रूप से स्वस्थ होने के प्रमाण में दो डॉक्टरों के प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए।
लिटिलवुड ने बाद में लिखा है कि “इससे चुनाव समिति के संयत सदस्यों को ठेस लगी तथा यह निश्चय किया गया कि वे प्रमाण-पत्र वहाँ न पढ़े जाएँ और फिर निर्णय केवल रामानुजन की योग्यता के आधार पर लिया जाना निश्चित हुआ। रॉयल सोसाइटी के फेलो होने के नाते निश्चित रूप से यह रामानुजन के पक्ष में ही था। एक रॉयल सोसाइटी के फेलो को ट्रिनिटी की फेलोशिप अस्वीकार करना तो कलंक की बात होती।”
इस संबंध में लिटिलवुड ने हरमैन, जो रामानुजन का विरोध कर रहे थे, से कहा “तुम एक एफ. आर. एस. को अस्वीकार नहीं कर सकते।”
“हाँ”, “हरमैन ने कहा, “हम जानते हैं कि यह कपटपूर्ण (डर्टी-ट्रिक) चाल चली गई है।”
अंततोगत्वा रामानुजन को ट्रिनिटी की फेलोशिप मिल गई। रामानुजन को तार द्वारा इसकी सूचना दी गई। 18 अक्तूबर, 1918 को रामानुजन ने फिट्जरॉय हाउस से प्रो. हार्डी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने धन्यवाद के साथ फेलोशिप की कुछ जानकारी चाही और किसी संख्या के विभाजनों पर अपने नए शोध के महत्त्वपूर्ण निष्कर्षो का उल्लेख किया। पत्र का आरंभ इस प्रकार था—
“आपके कृपापूर्ण टेलीग्राम के लिए मेरा हृदय से धन्यवाद। रॉयल सोसाइटी में मेरा चुनाव कराने में सफलता के पश्चात् इस वर्ष ट्रिनिटी में मेरा चुनाव कदाचित् उतना कठिन नहीं रह गया था। कृपया श्री लिटिलवुड एवं श्री मैकमहोन को बता दें कि मैं उनका बहुत आभारी हूँ। यदि आपने कष्ट न किया होता और उन्होंने उत्साहित नहीं किया होता तो आज मैं न एक का फेलो होता, न दूसरे का।”
रामानुजन के पत्र में कई महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष (results) देखकर हार्डी को यह अनुमान हो गया कि सम्मान मिलने पर रामानुजन की चेतना और उनका कृतित्व पुनः मुखरित हो उठे हैं।
उनका एक शोध लेख ‘सम प्रॉपर्टीज ऑफ पी (एन.), द नंबर ऑफ पार्टीशंस ऑफ एन’ (Some Properties of p (n), the Number of partitions of n) बाद में ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द कैंब्रिज फिलोसोफिकल सोसाइटी’ के
सन् 1919 के अंक में प्रकाशित हुआ।
इतना ही नहीं, तुरंत बाद ही उनका एक अन्य शोध-पत्र 'प्रूफ ऑफ सरटेन आइडेंटिटीज इन कंबीनेटोरियल एनालिसिस' (Proof of Certian Identities in Combinatorial Analysis) आया, वह भी उन पर लिखे शोधपत्र के साथ ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द कैंब्रिज फिलोसोफिकल सोसाइटी’ के सन् 1919 के अंक में प्रकाशित हुआ। ये दोनों लेख 28 अक्तूबर, 1918 को फिलॉसोफिकल सोसाइटी की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किए गए थे।
तभी युद्ध ने एक नया मोड़ लिया। इस बीच बोल्शेविक क्रांति के कारण रूस की सेनाएँ जर्मनी की सेनाओं के कारण परास्त हो चुकी थीं। जर्मनी ने अपने कुछ सैनिकों को इस पूर्वी मोरचे से हटाकर मध्य यूरोप में पेरिस की ओर भेजा। एक बार फिर जर्मन सेनाएँ 1914 की ही तरह मोरचे को पीछे छोड़ते हुए पेरिस के निकट पहुँच गई। परंतु अबकी बार लगभग दस लाख अमेरिकन सैनिक फ्रांस पहुँच चुके थे। लंबे युद्ध से थकी जर्मन सेनाओं को पीछे हटने के लिए बाध्य होना पड़ा और शीघ्र ही शांति की पुकार करनी पड़ी। रामानुजन के दो शोध-लेख प्रस्तुत
होने के दो सप्ताह पश्चात् एक सुखद समाचार मिला। 11 नवंबर, 1918 को युद्ध समाप्ति की घोषणा हो गई।