महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 25 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 25

[ ट्रिनिटी की फेलोशिप नहीं, आत्महत्या का प्रयास और ‘रॉयल सोसाइटी के फेलो’ का सफल चुनाव ]

रामानुजन बीमारी के कारण मैटलॉक सेनेटोरियम में थे। रामानुजन के संरक्षक-अध्यापक श्री बार्नस ने पूरे विश्वास से मद्रास विश्वविद्यालय को लिखा था कि रामानुजन को अक्तूबर 1917 में ट्रिनिटी की फेलोशिप मिल जाएगी; परंतु तब तक ट्रिनिटी का वातावरण बहुत बदल चुका था। बड रसेल के निकाल दिए जाने से अध्यापक वर्ग में विभाजन हो गया था। प्रो. हार्डी इस विषय पर अपना रोष व्यक्त कर चुके थे, अतः अधिकारी वर्ग उनसे रुष्ट था।
अक्तूबर 1917 में रामानुजन को पता लगा कि फेलोशिप के लिए उन्हें नहीं चुना गया। कैनीगेल ने लिखा है कि इस निर्णय में निश्चित रूप से जाति भेद कारण रहा, क्योंकि रामानुजन एक गोरे व्यक्ति नहीं थे। रामानुजन का मनोबल टूट गया। गणित में उनकी गति लगभग रुक गई और वह मानसिक रूप से असंतुलित होने के कगार पर पहुँच गए।
रामानुजन की मानसिक स्थिति प्रो. हार्डी से छिपी नहीं थी। ट्रिनिटी की दुत्कार की परवाह न करते हुए उन्होंने रामानुजन को लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी से सम्मान दिलाने का प्रयत्न किया। 6 दिसंबर, 1917 को रामानुजन लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी में चुन लिये गए। यह गौरव का विषय था, परंतु यह रामानुजन के लिए एवं उनके हितैषी वर्ग के लिए संतोष का विषय नहीं था।
सौभाग्य से उन्हें ब्रिटेन की एक अधिक सम्माननीय संस्था 'रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन' का फेलो बनाने के प्रयास आरंभ हुए। आज भी रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन' का फेलो बनना बड़े गर्व की बात मानी जाती है। जिनका इसके फेलो के लिए चयन हो जाता है वे अथवा अन्य कोई सदैव ही उस फेलो के नाम के पीछे ‘एफ. आर. एस.’ लगाना नहीं भूलते। तब सन् 1906 के भौतिकी नोबेल पुरस्कार विजेता जे. जे. थॉमसन, जिन्होंने इलेक्ट्रॉन का आविष्कार किया था, इसके अध्यक्ष थे।
18 दिसंबर, 1917 को प्रो. हार्डी और ग्यारह अन्य गणितज्ञों— ई. टी. वाटसन, एन. आर. फॉरसाइथ, ए.एन. ह्वाइटहेड, पी.ए. मैक्महोम, जे. एच. ग्रेस, जोसफ लैरमो, टी.जे. ब्राउनविच, ई.डब्ल्यू. हॉबसन, एच. एफ. बेकर, जे.ई. लिटिलवुड तथा जे.डब्ल्यू. निकोल्सन ने एक आवेदन ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन’ को दिया, जिसमें रामानुजन को उनके उन्नत कार्य के आधार पर विधिवत् फेलो निर्वाचित करने के लिए मनोनीत किया गया। यह आवेदन सोसाइटी की बैठक में 24 जनवरी, 1918 को 103 अन्य प्रस्तावित नामों के साथ प्रस्तुत किया गया।
रामानुजन जनवरी 1918 में कुछ दिनों के लिए मैटलॉक सेनेटोरियम से लंदन आए थे। ट्रिनिटी की दुत्कार से अपमानित, प्राणघातक बीमारी, सेनेटोरियम की परेशानियाँ, ठीक से भोजन न मिलने का कष्ट, घर में तनाव— ये सब उन्हें कदाचित् असहय लगने लगा था। मानसिक पीड़ा को दूर करने का कोई उपाय या साधन नहीं था। मन अस्थिर हो गया था, कहीं प्रकाश दिखाई नहीं पड़ रहा था। उन्हें अपना जीवन भार लगने लगा। उन्होंने प्राण देने की ठान ली। वह रेलवे स्टेशन गए और सामने से आती गाड़ी की पटरी पर कूद पड़े। यह चमत्कार ही हुआ समझिए कि गार्ड ने उन्हें पटरी पर गिरते देख दूर से ही गाड़ी रोकने का बटन दबा दिया। एक तेज कर्कश आवाज एवं झटके के साथ गाड़ी उनसे कुछ मीटर पहले ही रुक गई। रामानुजन की जान बच गई, परंतु उनके घुटने लहूलुहान हो गए।
उन्हें बंदी बना लिया गया और स्कॉटलैंड यार्ड में ले जाया गया। खबर सुनते ही प्रो. हार्डी घटना स्थल पर पहुँचे। ट्रिनिटी के सम्माननीय प्राध्यापक की मर्यादा का पूरा लाभ उठाते हुए उन्होंने वहाँ पुलिस अधिकारियों को रामानुजन का बढ़ा-चढ़ाकर परिचय दिया। उन्होंने कहा कि रामानुजन 'रॉयल सोसाइटी के फेलो' हैं। यह सुनते ही पुलिस अधिकारी हक्के-बक्के रह गए। रामानुजन को सम्मान सहित तुरंत रिहा कर दिया गया। वास्तव में तब न रामानुजन 'रॉयल सोसाइटी के फेलो' थे और न ही ऐसा कोई विधान था कि रॉयल सोसाइटी के फेलो को बंदी बनाकर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता; परंतु समय पर हार्डी का प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं युक्ति काम कर गई और रामानुजन एक बहुत बड़ी मुसीबत से बच गए। आगे के घटनाक्रम इस बात की पुष्टि करते हैं कि क्षणिक उद्वेग के कारण उनमें आत्महत्या का विचार पनपा था।
यह घटना तब हुई जब उनके 'रॉयल सोसाइटी के फेलो' का प्रस्ताव रॉयल सोसाइटी के विचाराधीन था। इसमें चुना जाना आसान बात नहीं थी। पहली बार तो यह लगभग असंभव जैसा था। विचाराधीन काल में ही डॉ. जे. जे. थॉमसन ने शायद यह विचार रखा भी था कि उन्हें अगले वर्ष के लिए छोड़ दिया जाए। परंतु प्रो. हार्डी ने उन्हें एक लंबा पत्र लिखा। उसमें उन्होंने रामानुजन की बीमारी का उल्लेख भी किया और कहा कि रामानुजन एक असाधारण और मेधावी गणितज्ञ हैं। उनमें तथा किसी भी अन्य गणितज्ञ में अंतर की एक बड़ी खाई है। इसी वर्ष उन्हें चुन लेना इसलिए भी आवश्यक है कि कहीं ऐसा न हो कि एक वर्ष बाद वह यह सम्मान पाने के लिए रहे ही नहीं और तब हम एक अद्वितीय गणितज्ञ को ठीक समय पर सम्मानित न करने का पश्चात्ताप ही करते रह जाएँ।

104 प्रस्तावित व्यक्तियों में से केवल 15 को उस वर्ष ‘रॉयल सोसाइटी का फेलो’ चुना गया। रामानुजन उनमें से एक थे। मई 1918 में रामानुजन के नाम के अंत में ‘एफ. आर. एस.’ जुड़ गया। यह एक बहुत बड़ा सम्मान था। भारत में इसका समाचार मिला तो यहाँ उनका हितैषी वर्ग बहुत कृतार्थ हुआ।
उनका स्वास्थ्य गिरता ही जा रहा था। तब वे मैटलॉक में थे। 17 मई को उन्होंने मैटलॉक से ‘रॉयल सोसाइटी’ को लिखा कि अधिक बीमार होने के कारण वह लंदन आकर सोसाइटी में विधिवत् प्रवेश लेने में असमर्थ हैं।