खुदा का इंसाफ नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

खुदा का इंसाफ



मृगेंद्र माधव महतो का होनहार एकलौता बेटा था माधव महतो के पास ससुराल की खेती मिली थी क्योंकि महिमा माँ बाप की इकलौती संतान थी जिसकी शादी महिमा जिसकी शादी पंद्रह वर्ष पूर्व माधव से हुई थी तब से माधव अपने ससुराल में ही रहता सास ससुर की सेवा करता माँ बाप की भी पुत्रवत सेवा करता माँ बाप के निधन के बाद श्वसुर मूरत और सास रमावती के अलावा बेटा मृगेंद्र कुल पांच लोगों का परिवार था जब माधव सखौती अपने ससुराल रहने आया तब सखौतीवासी उसे घरजमाई कहते मगर हंस कर टाल देता धीरे धीरे अपने व्यवहार से उसने गांव वालों का मन मोह लिया और वह गांव का संम्मानित व्यक्ति हो गया मृगेंद्र गांव के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था जहाँ गांव के सभी बच्चे पढ़ते मृगेंद्र गांव के ही सुलेमान की बेटी सायरा के साथ ही स्कूल के क्लास में बैठता खाली समय मिलने पर बाते करता गांव में भी अक्सर दोनों ही साथ घूमते और खेलते देखे जाते गांव वाले सनातन इस्लाम की जोड़ी साई कहते सुलेमान माधव को बच्चों की इस नादान मासूम कोई रंज शिकायत नही थी हा कभो कभार गांव में साम्प्रदायिक वात विवाद होता तब गांव वाले ही मृगेंद्र सायरा की साई या मृसा की दुहाई देकर एक दूसरे को नज़ीर देते समय अपनी गति से चलता रहा मृगेंद्र ने कोलकोता से एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली और सायरा ने भी कोलकोता से ही इलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर डिग्री हासिल कर ली कोलकोता में अध्ययन के दौरान आस पास रहते हमेशा मिलते जुलते दोनो में आपसी समझ बूझ प्यार के परवान चढ़ चुकी थी दोनों आपस मे मिलकर प्रतियोगिता की तैयारी करते दोनों का चयन इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन में हो गया लगभग दो वर्ष साथ साथ कार्य करते बीत चुके थे सायरा और मृगेंद्र विवाह करने का फैसला कर चुके थे पूरे सौखौती गांव में दोनों के विवाह को लेकर उत्साह था माधव और सलमान भी बच्चों की काबिलियत और सफलता पर फुले नही समा रहे थे एका एक मृगेंद्र को दो वर्ष के लिये उच्च अध्ययन हेतु रूस जाने का आदेश भारत सरकार की तरफ से आया सायरा बहुत खुश थी कि मृगेंद्र को तरक्की और देश की शान में कुछ हासिल करने का खुदा के करम रहम से मौका मिला है मृगेन्द्र भी सायरा की समझदारी से खुश एव संतुष्ट था अतः उसने खुशी खुशी रूस जाना स्वीकार कर चला गया इधर सायरा उसके इंतज़ार में एक एक दिन कार्य मे व्यस्त होकर व्यतीत करने लगी एक वर्ष बीत गए कोई खास बात नही थी सब सामान्य ही चल रहा था मगर एक व्यक्ति इसरो में था जिसे मृगेंद्र और सायरा के मोहब्बत और शादी विल्कुल मंजूर नही था जो सायरा से मन ही मन बेहद प्यार करता था और किसी तरह सायरा को हासिल करना चाहता डॉ मुस्तफा मंजूर मृगेंद्र और सायरा के ही साथ वह भी इसरो में आया था सायरा बेहद खूबसूरत बिंदास स्वतंत्र खयालात की लड़की थी डॉ मंजूर ने मृगेंद्र की अनुपस्थिति के एक वर्ष में सभी हथकंडे अपना लिया मगर सायरा ने उसे कोई तवज्जो नही दी अब मृगेंद्र के वापस लौटने में सिर्फ दस माह का समय शेष था वह निराश हताश जुमे की नमाज़ अदा करने के बाद मस्जिद में बैठा था कि मौलवी मज़हर मस्तान ने मुस्तफा के कंधे पर हाथ रखते बोला क्या बात है बरखुदार क्यो खुदा के हुज़ूर में खफा खफा बैठे हो डॉ मुस्तफा ने मौलवी मज़हर को सारी कहनी बताई मस्तान ने कहा तुम इतनी तालीम हासिल करने के बाद भी नादान ही रहे तुम्हे यह नही मालूम कि मज़हब ऐसा हथियार है जिसके धार की मार से कोई बच नही सकता कल से रमजान का मुकद्दस महीना शुरू होने वाला है कल से सायरा को हर रोजे इफतार के लिये अलग अलग मुस्लिम परिवारों में साथ लेकर जाओ और यह बताना मत भूलना की सायरा एक काफ़िर से शादी करने वाली है।डॉ मुस्तफा दूसरे दिन कार्यालय पहुंचा तो उसने सायरा को रमज़ान की मुबारक बाद देते हुये कहा सायरा जी मुझे और आपको पूरे रमजान इफ्तार की दावत है अब आपको पूरे रमज़ान हमारे साथ ही इफ्तार करना होगा सायरा ने कहा तौबा तौबा हमसे तो किसी ने कहा ही नही अपने मेरे लिये हामी क्यो भर दी डा मुस्तफा शातिरपना से बोला लोगो को समझा कि हम आप एक ही कौम से आते है हमे कहा तो आपको कह दिया चूंकि बात इस्लाम की थी अतः सायरा ने कुतर्क करना ठीक नही समझा और हामी भर दी अब हर दिन सायरा और डॉ मुस्तफा इफ्तारी के लिये साथ साथ जाते जहाँ जाते सायरा के काफ़िर से शादी की बात की चर्चा जरूर होती जिसे वह ध्यान नही देती जव डॉ मुस्तफा ने देखा कि यह हथियार काम नही कर रहा है तब उसने सायरा से कहा तुम्हारे अम्मी अब्बू गांव में ईद हर साल मानते है इस बार तुम्हे उन्हें ईद पर यहाँ बुलाना चाहिये इनकार मत करना तुम्हे खुदा का वास्ता सायरा इनकार नही कर सकी और उसने अम्मी अब्बू को ईद के लिये बुला लिया सुलेमान और रुबिया मुंबई बेटी के पास ईद मनाने आ गए ईदके दिन सुलेमान रुबिया और सायरा डॉ मुस्तफा के घर पहुंचे जहां पहले से मौलवी मज़हर कई अन्य इस्लामिक कट्टरपंथी मौलवियों के साथ मौजूद थे ।ईद के जश्न के बाद मलवियो कि तकरीर शुरू हुई जिसमें सभी ने काफिरों से किसी भी प्रकार से वास्ता संबंध रखने से खुदा के जहन्नुम का जलजला दिखाया और बताया मजलिस के अंत मे एक एक कर सभी ने कुरान पर हाथ रख इस्लाम की कसम खायी सुलेमान रुबिया ने भी कुरान पर हाथ रखा और इस्लाम की कसम खाते हुये किसी भी काफ़िर से कोई वास्ता न रखने की कसम खायी जब रुबिया सुलेमान कुरान पर हाथ रखा तो सायरा का भी हाथ रखवाया अब सायरा अंदर बाहर दोनों तरह से विखर कर इस्लाम की जूती बनने से थर्रा गयी। सायरा आने वाले भविष्य को स्पष्ठ देख रही थी उसके जीवन का प्यार लगभग धर्म की बलिबेदी पर चढने वली थी जिसे सोचकर ही उसका मन दहल जाता मृगेंद्र लौट आया आते ही उसने सायरा से शादी के लिये प्रस्ताव रखा सायरा ने अम्मी अब्बू से बात करने की औपचारिकता पूर्ण कर उनकी रजामंदी की बात कही जिसे मृगरेन्द ने सहर्ष स्वीकार लिया और बापू माधव को भेजा माधव ने जब बच्चों की शादी की बात कही सुलेमान ने कहा कल मुस्लिम समाज और इस्लामिक विद्वानों को बुलाया है उनकी अनुमति के बात बच्चों की शादी कर देंगे दूसरे दिन माधव सुलेमान के घर गए जहां मुस्लिम समाज और समाज के विद्वान पहले से मौजूद थे उन्होंने माधव को बड़े प्यार से बैठाते हुये कहा सायरा और मृगेंद्र की शादी तभी संभव है जब पूरा परिवार इस्लाम कबूल करे यदि पूरा परिवार नही तो मृगेंद्र अकेले कबूल करके काफिर माँ बाप से हर तालुकात खत्म करे तब भी सायरा और मृगेंद्र की शादी हो सकती है वर्ना दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की तो अंजाम अच्छा नही होगा माधव ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर बात नही बनी लौटकर सारी सच्चाई मृगेंद्र को बताई मृगेंद्र ने कहा कोई बात नही बापू आप दिल विल्कुल छोटा मत कीजिये और दूसरे दिन वह अपने कार्य पर मुंबई चला गया ।इधर इलामी समाज ने जबरन सायरा की शादी डॉक्टर मुस्तफा से कर दी जब मृगेंद्र को पता चला तब उच्च तकनीकी ज्ञान के लिये पांच साल के लिये जर्मनी चला गया।इधर कुछ दिन बाद डा मुस्तफा और सायरा में आये दिन झगड़े और मारपीट की स्थिति आम
होती नतीजा यह हुआ कि शादी के चार वर्ष में ही तलाक हो गया सायरा के अब्बू ने सायरा की दूसरी शादी के लिये बहुत अच्छे अच्छे रिश्ते देखे जो रजामंद भी थे लेकिन हलाला की रस्म
आड़े आ जाती जिसके लिये सायरा राजी नही थी । जर्मनी से जब मृगेंद्र वापस आया तो उसे देखकर सायरा फुट फुट कर रोने लगीं बोली मुझे माफ़ करना मैं अब तुम्हारे लायक नही मैं धर्म के फंदे में लटकी मुर्दा लाश हूँ मृगेंद्र ने कहा किसने कहा तुम मेरे लायक नही हो हमने तुम्हारी जिस्म से नही तुम्हारी आत्मीय खूबसूरती अच्छाई से प्यार किया था जो आज भी है हम आज ही मंदिर में चल कर विवाह करते है दोनों मंदिर गए पण्डिय जी ने वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न कराया स्वयं कन्यादान किया मृगेंद्र सायरा जब गांव गए तब बाबू माधव के साथ पूरे गाँव वालों ने पूरे जोश खरोस से स्वागत किया पूरे गाँव मे जश्न का माहौल था इसरो में भी नया उत्साह था डा मुस्तफा अपने प्यार को धर्म की बलिबेदी से मुक्त देख
दुखी था ।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश