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ग्रीन चेन



कायनात यानी ब्रह्मांड के दो प्रमुख आधार स्तम्भ है पहला प्रमुख स्तम्भ है प्रकृति पेड़ पौधे झरना झील नदियाँ समंदर पहाड़ जिनमे अदृश्य चेतना जागृति होती है जिनके कारण ऋतुएं मौसम आदि निर्धारित होते है साथ ही साथ दूसरा महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है
प्राणि यानी चैतन्य एव जाग्रत संवेदना का शरीर प्रकृति और प्राणि एक दूसरे
के पूरक है दोनों के सामंजस्य संतुलन से ही सृष्टि युग कायनात अपनी चाल निर्धारित गति से चलता रहता है।। यदि दोनों में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाय तो प्रकृति और प्राणि एक दूसरे को दुःख क्लेश पहुंचाते है हरा भरा खेत खलिहान मौसम ऋतुओ की समयनुसार चाल गति खुशहाल युग समय समाज को परिभाषित प्रमाणित करते है ।।
मनुष्य सभी प्राणियो में सबसे शक्तिशाली है कारण उसके पास सोचने समझने और खोजने की शक्ति है जिसके बल पर चाँद मंगल तक पहुंच चुका है और नित्य नए प्रयोग खोज में लगा हुआ है विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति के साथ इतना अधिक छेड़ छाड़ कर चुका है कि हवा,पानी ,पृथ्वी ,आकाश सब जहरीले हो चुके है प्रकृति क्रोधित हो नित्य विश्व युग के किसी न किसी कोने में अपनी क्रोधाग्नि की आग से भस्म करती रहती है कही
सुनामी ,भूकम्प ,चक्रवात ,तूफ़ान आदि का कहर बरपाती और प्राणि को उसके किये का दंड देती है प्रकृति मित्र पक्षी जीव धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहे है और प्राकृतिक त्रादसि की मार से प्राणि त्राहि त्राहि करता है बाढ़, सूखा ,अकाल तो बहुत साधारण सी बात है।।
प्रकृति से प्राणि मात्र के
प्रेम समन्वय सामंजस्य से ही प्रेम की उत्कृष्टता को परिभाषित किया जाता है।। मधुकर मिश्र उत्तर प्रदेश सिवान जनपद सीमा से लगे सिवान जनपद के गांव पुरवा के नौजवान थे बाप दादो की विरासत खेती ही मुख्य व्यवसास अच्छी खासी खेती इलाके में रसूख मगर बदलते समय की जरूरतों ने नौकरी को उत्तम और खेती को निसिध बना दिया जिसके कारण युवा गांवों से शहरों की तरफ पलायन करता जा रहा है गांवों का अस्तित्व ही संकट में पड़ता जा रहा है मधुकर भी बदलते परिवेश समय से अछूता नही रहा उसने हाई स्कूल इंटरमीडिएट की परीक्षाएं पास करने के बाद बी आई टी मेसरा रांची से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल किया और रोजगार की तलाश में निकल पड़ा बड़े मुश्किल से उंसे एक कम्पनी के ठीकेदार के तहद बहुत कम पैसे पर नौकरी शुरू करनी पड़ी चूंकि ठीकेदार देश की बहुत प्रतिष्टित कम्पनी से संबंधित था जिसके कारण दूर दृष्टि नजरजिया अपनाते हुये मधुकर ने ठीकेदार का कार्य करना स्वीकार किया मधुकर को भुज जाकर कार्य भार ग्रहण करना था मधुकर भुज पहुंच गया कहाँ बिहार और कंहा भुज भोजपुरी और गुजराती में कोई समानता नही रहन सहन खान पान में अंतर मधुकर नौकरी की तलाश में देश के बिभिन्न कोनो में भ्रमण करना पड़ा था अतः बहुत कठिन चुनौतियो से लड़ना उंसे अच्छी तरह आ गया था भुज पहुंच कर वह कार्य शुरू किया रहने के लिये उसने किराए पर छठी मंजिल पर मकान ले लिया भुज उंसे अंजाना और नीरस शहर लगता मगर रोजी रोटी के लिये इंसान की अपनी मर्जी का कोई मतलब नही होता अतः मधुकर अपना अधिकांश समय कार्य के लिये लगाता सिर्फ सोने और खाने के लिये छठी मंजिल अपने मकान जाता।।सबकुछ ठीक ठाक चल रहा था और धीरे धीरे मधुकर का मन भी लगने लगा
सब कुछ सामान्य चल रहा था दिन ढला और रात धीरे धरे लांगो को निद्रा के आगोश में समेटने की तरफ बढ़ रही थी अचानक चारो तरफ अफरा तफरी मच गई धरती काँपने लगी और प्रकृति कोप का तांडव शुरू हो गया इंसान के विज्ञान के सारे चकाचौध अंधेरों में तब्दील हो गए हर तरफ से भागो भागो भूकम्प आया कि गूंज सुनाई देने लगी मधुकर छठी मंजिल से जान बचाने के लिये कूद पड़ा कूदना उंसे याद था मगर उसके बाद क्या हुआ उंसे याद नही बड़ी बड़ी अट्टालिकये दौलतमंद आशियाने ध्वस्त हो चुकी थी और चारो तरफ चीख रुदन का भयंकर मंजर रात के अंधेरे में किसी को कुछ नही पता कि जिन रिश्तो के साथ कुछ देर पहले जीवन भविष्य के खूबसूरत ख्वाब देख रहे थे वे जीवित भी है या नही चारो तरफ बर्बादी का मंजर और हृदय विदारक चीखने चिल्लाने की आवाजें पूरी रात यही दृश्य था सुबह आसमान में उड़ते गिद्ध बता रहे थे कि एक अच्छा खासा शहर श्मशान कब्रिस्तान में तब्दीली हो चुका है सदैव की तरह बर्बाद तबाही के बाद नए जीवन सम्भावना की तलाश शुरू हुई सरकारी अमला मलबा हटाने एव मृतकों की शिनाख्त ताकतवर तकदीर के मालिकों की तलाश में जुट गया खोजते खोजते सरकारी दस्ता मधुकर मिश्र को मलबे से तीन दिन बाद तलाश कर निकाला
मधुकर की सांस चल रही थी मगर दिनों पैर बुरी तरह से टुकड़ो में बंट चुके थे तुरंत चिकित्सा हेतु भेज दिया डाक्टर्स द्वारा मधुकर की चिकित्सा शुरू की और दोनों पैरो का ऑपरेशन किया गया जो बारह घण्टे लागातार जारी रहा ऑपरेशन सफल रहा अब अस्पताल में भी चारो तरफ मौत के खौफ का मंजर जितने लोग इलाज के लिये आते उससे अधिक अंतिम संस्कार के लिये बाहर जाते भुज भूकम्प की त्रदासि का भय लांगो में इस कदर खौफ पैदा कर चुका था कि लांगो को हर समय धरती कांपती नज़र आती एक सप्तह बाद मधुकर के पैरो का टांका डॉक्टरों द्वारा काटा गया और फिर दोनों पैरों पर प्लास्टर चढ़या गया लग्भग आठ सप्ताह बाद प्लास्टर कटने के बाद मधुकर की फिजियोथेरेपी शुरू हुई किसी तरह मधुकर छः माह बाद सहारे से चलना शुरू किया मगर दो वर्ष की निरंतर चिकित्सा और प्रयास से मधुकर ठीक हो गया उसने पुनः भुज जाने का फैसला किया दो दिन बाद भुज पहुंच गया वहाँ पहुंचा तो वह दंग रह गया भूकम्प त्रदासि से पूर्व जिन लांगो का भुज था ना तो वह लोग थे ना ही वह परिवार के परिवार समाप्त हो चुके थे तभी मधुकर को दस बारह वर्ष का
पुरुषोत्तम मिला पुरुषोत्तम भुज के अच्छे खासे परिवार का इकलौता वारिस था भूकम्प में उसके परिवार के सारे लोग मर चुके थे उंसे अपने पारिवारिक विरासत की कोई जानकारी नही थी अतः जहाँ तहां पुरुषोत्तम भटक भटक कर अपना जीवन यापन कर रहा था मधुकर ने पुरुषोत्तम से उसके मां बाप का नाम पूछा फिर कोई सहायता कही से प्राप्त हुई कि नही पूछा उसने बताया नही फिर मधुकर मिश्र ने पुरुषोत्तम को अपने साथ रख लिया और उसके पुश्तैनी व्यवसास के बैंक खाते एव लाकर का पता कर सारी संपत्ति उसके नाम स्थानांतरित करके उसका स्वय संरक्षक की भूमिका निभाने लगा ईमानदारी के साथ पुरुषोत्तम ने बढ़े भोलेपन से पूछा कि भूकम्प आता ही क्यो है ?भोलेपन से किया गया पुरुषोत्तम का यह प्रश्न मधुकर को अंदर से हिला दिया पुरुषोत्तम ने एक जमीन के टुकड़े के सामने ले जाकर पुरुषोत्तम से पूछा कि इस जमीन के टुकड़े में आम का पौधा लगाया जाए तो क्या पैदा होगा ?पुरुषोत्तम ने बड़ी मासूमियत से कहा आम पैदा होगा यानि हम जो बोयेंगे वही काटेंगे माधुकर की बात सुनकर पुरुषोत्तम फिर बोला कि हमने क्या बोया की हमे शूल मिला मधुकर बोला इसमें तुम्हारा कोई दोष नही दोष पीढ़ियों का है पीढियां सजा पाती है भूकम्प भी पीढ़ियों के अपराध की सजा किसी पीढ़ी को भुगतना पड़ता है पुरूषोत्तम को माधुकर की बाते समझ मे नही रही थी फिर भी पुरुषोत्तम ने माधुकर से कहा अंकल जो भी पैसा हमारे परिवार वाले छोड़ कर गए है उस धन संपत्ति का उपयोग पीढ़ियों द्वारा किये गए अपराध को कम करने के लिये किया जा जाय पुरुषोत्तम की बात माधुकर को संमझ आई उसने एक संस्था की स्थापना किया ग्रीन चेन जिसका कार्य वृक्षारोपण एव वन संरक्षण था संस्था के प्रत्येक सदस्य को पांच बृक्ष लगाना औए पांच लांगो से पौध लगवाना था पुरुषोत्तम दिन भर गली मोहल्ले घूम घूम कर ग्रीन चेन में हम उम्र लांगो को जोड़ता धीरे धीरे ग्रीन चेनल की वन संरक्षण की बहुत मजबूत और नामचीन गैर सरकारी संथा बन गयी और जिसके प्रायास से कुछ ही दिनों में वन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई जिसका प्रभाव मौसम और पर्यावरण पर कुछ अवश्य परिलक्षित होने लगा सरकार द्वारा ग्रीन चेन को सन्मानित करने के करने के लिये मधुकर और पुरुषोत्तम को बुलाया गया और पुरस्कार देने से पूर्व संस्था की तरफ से बोलने के लिये आमन्त्रित किया गया मधुकर ने पुरुषोत्तम को डायस पर भेजा पुरीषोत्त तो कुछ भी बोलने से पहले भुज भूकम्प की त्रदासि और उसके परिणाम के फल को स्वय के रूप में डायस पर देख रहा था उसने रुंधे गले से बोलना शुरू किया आदरणीय महोदय आज मैं इस डायस पर भूकम्प जैसी भयंकर त्रदासि में अपना सब कुछ गंवाने के बाद खड़ा हूँ जब मैंने यह जानने की कोशिश किया कि मैने अपना सब कुछ क्यो कैसे खोया? और मेरे जैसे ना जाने कितनों ने अपना सब कुछ खोया यानी मेरी पीढ़ी के बहुत से लांगो ने अपना बहुत कुछ खोया क्यो खोया इनका अपराध क्या था ?पाया कि हमे हमारी पीढ़ियों के द्वारा किये गए कृत्यों की सजा मिली जो भयानक और भयावह है मैने निश्चय किया कि कम से कम हम अपनी बचीं पीढ़ी के साथ प्रायास करे कि भावी पीढ़ी को हमारे कुकृत्य की सजा नही बल्कि सद्कर्मों का फल मीले और ग्रीन चैनल के माध्यम से जन जन में प्रकृति प्रेम संरक्षण और संवर्धन के जागरूकता का कार्य हमने शुरू किया है और आप सभी से विनम्र निवेदन करता हूँ कि आप लोग भी जहाँ भी है जिस जगह पर है वहाँ से प्रकृति को संरक्षित करे एव बचाइए साथ ही साथ प्राकृतिक के सहयोगी जीव जंतु पक्षियों को विलुप्त होने से बचाइए प्रकृति बचेगी तभी प्राणि बचेगा विल्कुल आईने की तरह साफ है यदि स्वयं से प्यार करते है तो प्रकृतिं से प्यार करना सीखिये प्रकृतिं से प्यार परमेश्वर से प्यार करना परमेश्वर प्रकृति प्राणि प्राण ही ब्रह्म सत्य ब्रह्माण्ड और तब भय भयाक्रांत रहित संसार ना भूकम्प ना सूनामी ना चक्रवात ,ना तूफ़ान ।।

कहानीकार --नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

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