महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 13 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • तमस ज्योति - 43

    प्रकरण - ४३मैंने निषाद मेहता को फोन लगाया और कहा, "निषादजी!...

  • साथिया - 110

    हल्दी की रस्म के बाद मनु ने नील को कॉल लगाया। "सुनो ना यार व...

  • उजाले की ओर –संस्मरण

    स्नेहिल सुभोर प्रिय मित्रो कैसे हैं आप सब? ज़िंदगी इक सफ़र ह...

  • My Wife is Student ? - 9

    वो दोनो स्वाति के जाते ही आपस में जोड़ जोर से हसने लगती हैं!...

  • चलो मुस्कुरा दो अब

    1.अपनी अच्छाई पे तुम भरोसा रखना,बंद मत करना खुद को,किसी कमरे...

श्रेणी
शेयर करे

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 13

[ इंग्लैंड जाने का निर्णय अभी नहीं ]
रामानुजन ने कैंब्रिज जाना स्वीकार नहीं किया। वह एक संस्कारित और कर्मकांडी ब्राह्मण थे। हिंदू समाज और विशेष रूप से ब्राह्मण समाज में समुद्र पार की यात्रा को तब वर्जित माना जाता था। प्रो. हार्डी के बुलाने पर भी वहाँ जाना स्वीकार न करने का एक कारण यही रहा होगा, जो प्रत्यक्ष में अपने निकट के व्यक्तियों के सामने रखा भी गया होगा। उनके माता-पिता, विशेष रूप से माता, अवश्य उन्हें विदेश भेजने के पक्ष में नहीं रही होंगी; परंतु इसके अन्य कई कारण भी स्पष्ट दिखाई देते हैं।
पहला महत्त्वपूर्ण कारण स्वयं ‘इंडिया ऑफिस’ की इस संबंध में भूमिका हो सकती है। बाद में, जब पुनः रामानुजन के इंग्लैंड जाने की बात उठी और धन का प्रश्न सामने आया, तब भी 'इंडिया ऑफिस' ने इस मद में धन का प्रबंध करने से साफ मना कर दिया था। अतः संभव है कि ऑर्थर डेविस ने इस प्रस्ताव को पूरी निष्ठा से न रखा हो। तब विदेशी लोग भारतीयों से संवेदनापूर्वक व्यवहार नहीं करते थे। जिसमें उनकी विशेष रुचि अथवा सरकारी जिम्मेदारी न हो, उसको वह टालू तरीके से प्रस्तुत करते थे और उनका व्यवहार भी संदेह पैदा करता था। धन के अतिरिक्त रामानुजन को यह स्पष्ट नहीं किया गया होगा कि उन्हें इंग्लैंड जाकर क्या करना है।
इंग्लैंड न जाने के रामानुजन के कुछ व्यक्तिगत कारण भी थे। वह शाकाहारी थे और किसी अनजान व्यक्ति का बनाया भोजन ग्रहण नहीं करते थे। उन्हें अंग्रेजी भाषा के अपने ज्ञान पर भी पूरा भरोसा नहीं था। उन्हें यह लगा होगा कि वहाँ जाकर उन्हें विश्वविद्यालय में आगे की शिक्षा लेनी होगी और परीक्षाएँ पास करनी होंगी। इन कारणों से वह मद्रास में ही रहकर, किसी प्रकार कोई छात्रवृत्ति पाकर गणित में कार्य करने के लिए ही प्रयत्नशील थे। यह बात उन्होंने अपने 27 फरवरी, 1913 के पत्र में भी लिखी। पत्र दस पृष्ठों का था और उसमें कुछ अन्य सूत्र लिखे थे। इस पत्र के कुछ अंशों का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है—
“आपके पत्र में कई स्थानों पर मैंने पाया है कि समुचित उपपत्तियाँ देनी आवश्यक हैं और आपने अपनी सिद्ध करने की प्रणाली को भेजने के लिए मुझे कहा भी है। मुझे विश्वास है कि आप लंदन के प्रोफेसर का मार्ग ही अपनाएँगे। परंतु वास्तव में मैंने उन्हें कोई उपपत्तियाँ नहीं भेजीं, केवल अपनी नई पद्धति के आधार पर कुछ दृढ़ कथन भर किए। मैंने उनसे कहा कि मेरी नई प्रणाली के अनुसार 1 2 3 4 ...= 1/12 है। यदि में आपसे यह स्वीकार करने को कहूँ तो आप तत्काल ही कहेंगे कि मेरा ध्येय पागल खाने जाना है। इसलिए कह रहा हूँ कि आप सिद्ध करने की मेरी पद्धति को किसी एक पत्र के माध्यम से समझ नहीं पाएँगे। आपका प्रश्न हो सकता है कि गलत आधार पर प्राप्त किए गए निष्कर्षों को आप कैसे स्वीकार कर लें। मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि आज के चक्र में चल रहे गणित के आधार पर मेरे द्वारा निकाले गए निष्कर्षों की जाँच आप करें और यदि उन्हें सही पाएँ तो यह भी स्वीकार करें कि मेरे गणितीय आधार में कहीं सत्यता है।
“अतः इस समय मैं आप जैसे प्रतिष्ठित प्राध्यापकों से यह मान्यता भर चाहता हूँ कि मेरा कोई मूल्य है। मैं इस समय अधभुखमरी की स्थिति में हूँ। अपने मस्तिष्क को चलाते रखने के लिए मेरी पहली आवश्यकता भोजन की है। आपका एक सहानुभूतिपूर्ण पत्र मुझे यहाँ विश्वविद्यालय अथवा सरकार से छात्रवृत्ति दिला पाने में सहायक हो सकता है।
“संभव है कि आप यह धारणा बना लें कि सिद्ध करने की मैं अपनी प्रणाली पर मौन रहना चाहता हूँ। मैं पुनः यह कहना चाहता हूँ कि यदि मैं संक्षेप में अपनी प्रणाली की बात करूँ तो मुझे गलत ही समझा जाएगा। अतः यह मेरी अनिच्छा का द्योतक नहीं है। मुझे आशंका है कि मैं अपनी बात पत्र द्वारा पूरी तरह समझा नहीं पाऊँगा। मैं नहीं चाहता कि मेरे तरीके मेरे साथ समाप्त हो जाएँ। यदि मेरे द्वारा निकाले गए निष्कर्षों को आप जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति स्वीकार करेंगे तो मैं उन्हें प्रकाशित भी करूंगा।”

परंतु यह सत्य है कि प्रो. हार्डी उनके कैंब्रिज न आने से निराश थे। उन्होंने तब रामानुजन को तीन महीने के अंदर एक के बाद एक चार लंबे पत्र लिखे, परंतु बाद में उनके पत्र लंबे समय तक नहीं आए। इन पत्रों में प्रो. हार्डी ने वह सब लिखकर स्वीकार किया था, जो रामानुजन ने सिद्ध करने का दावा किया। इससे रामानुजन को उन पर विश्वास जम गया था और वह खुलकर उनसे पत्र व्यवहार करने लगे थे।


* देखने पर यह बात बड़ी ही अटपटी थी। इस श्रेणी का योग अनंत है। बाद में जब रामानुजन कैंब्रिज पहुँचे, तब उन्हें रामानुजन से बात करने के बाद इसका रहस्य समझ में आया। इसमें एक अन्य संख्या 'कांस्टेंट' भी आती थी, जिसको रामानुजन ने 'सेंटर ऑफ़ ग्रेविटी' की संज्ञा दी थी। यह रामानुजन द्वारा 'डाईवजेट सीरीज' को एक नया अर्थ देने की प्रक्रिया थी ।