महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 11 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 11

[ प्रो. हार्डी की संक्षिप्त जीवनी ]

रामानुजन के जीवन में प्रो. हार्डी का वह स्थान रहा है, जो एक हीरे के लिए उसको तराशने वाले का होता है। रामानुजन एक अद्भुत गणितज्ञ-हीरा थे। वह चमके, परंतु उन्हें चमकाने में प्रो. हार्डी की प्रमुख भूमिका रही।
प्रो. हार्डी का पूरा नाम गोडफ्रे हैरॉल्ड हार्डी था। उनका जन्म 7 फरवरी 1877 को क्रैनले (सरे) में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आइजक हार्डी और माता का नाम सोफिया हार्डी था। पिता आइजक हार्डी क्रैनले स्कूल में भूगोल के अध्यापक थे और माता लिंकन ट्रेनिंग कॉलेज में वरिष्ठ अध्यापिका रहीं। उनके बाबा जीवन भर मजदूरी करते रहे थे और नाना ‘बेकरी’ का काम करते थे। माता-पिता दोनों ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे। प्रो. हार्डी की एक बहन, जरटूड एडिथ, उनसे दो वर्ष छोटी थीं। माँ-बाप ने दोनों बहन-भाई की अच्छी शिक्षा का प्रबंध किया और दोनों ही जीवन भर अविवाहित रहे। जी. एच. हार्डी ने शैशव काल से ही गणित को समझने और करने में विशेष तेज़ी के लक्षण दिखाए तो उन्हें साधारण रूप से कक्षा में न पढ़ाकर निजी कोचिंग के द्वारा गणित में आरंभिक शिक्षा दी गई।
प्रसिद्धि प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने एक पुस्तक ‘ए मैथेमेटिशियन्स अपोलॅजी’ लिखी, जिसका प्रथम
संस्करण सन् 1967 में प्रकाशित हुआ। उस पुस्तक से उनके विचारों तथा उनके जीवन की कुछ झाँकी मिलती है। उनमें गणित के प्रति स्पर्धा थी। उन्होंने लिखा है— “मैंने गणित को सदा परीक्षाओं और विद्वत्ता (scholarship) की दृष्टि से देखा। मैं प्रत्येक अन्य लड़के को पछाड़ना चाहता था और उस मार्ग पर मैं निश्चित रूप से चलता रहा।”
रामानुजन के साथ सहयोग उनके जीवन की एक बहुत बड़ी देन है और उन्होंने इस पर सदा गर्व किया है। अपने जीवन की सार्थकता को प्रो. हार्डी ने कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया है— “उदासी के उन क्षणों में जब मैं आडंबर-प्रिय तथा उबाऊ व्यक्तियों से घिर जाता हूँ तो मैं स्वयं से कहता हूँ– मैंने रामानुजन एवं लिटिलवुड दोनों के साथ बराबर के स्तर पर वह सहयोग किया है, जो ये लोग कदापि न कर पाते।”
बारह वर्ष की आयु में हार्डी को इंग्लैंड के विनचेस्टर पब्लिक स्कूल में, जो गणित में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था, पारितोषिक मिला। उन्नीस वर्ष की आयु में उन्होंने वहाँ से अपनी शिक्षा समाप्त की और आगे की शिक्षा के लिए ट्रिनिटी कॉलेज पहुँचे।
ब्रिटेन में दो विश्वविद्यालयों— कैब्रिज एवं ऑक्सफोर्ड— का विशेष स्थान रहा है। सन् 1904 में हैवलॉक एलिस ने ‘स्टडी ऑफ ब्रिटिश जीनियस’ में जो तथ्य दिए हैं, उनके अनुसार ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों से निकले तथा उच्च्च पदों एवं प्रसिद्धि को प्राप्त करने वालों में 74 प्रतिशत लोग इन्हीं दो विश्वविद्यालयों की देन थे।
सन् 1730 से ब्रिटेन में 'ट्राइपॉस' नामक एक परीक्षा किसी व्यक्ति की गणित में प्रखरता का मापदंड बन गई थी। इसमें पहला, दूसरा अथवा तीसरा स्थान पाना बहुत अर्थ रखता था। दार्शनिक व्हाइटहेड, भौतिक शास्त्री मैक्सवेल तथा जे. जे. थॉमसन, बड रसेल, लॉर्ड केल्विन, जे.ई. लिटिलवुड आदि इस परीक्षा में पहले सफलता पाकर प्रसिद्धि पा चुके थे।
6 मार्च, 1929 को नॉर्वे के प्रख्यात गणितज्ञ एबेल (Abel) की मृत्यु की सौवीं वर्षगाँठ के अवसर पर नॉर्वे के सम्राट् की उपस्थिति में ओस्लो विश्वविद्यालय ने प्रो. हार्डी को मानद डिग्री प्रदान की थी। उनको इस प्रकार की मानद डिग्रियाँ एथेंस, हार्वर्ड, मैनचेस्टर, सोफिया, बर्मिंघम, एडिनबरा आदि विश्वविद्यालयों से भी मिली थीं। 27 दिसंबर, 1932 को उन्हें 'चोवेनेट पुरस्कार' मिला तथा सन् 1940 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का ‘सिल्वेस्टर पदक’ प्रदान किया गया। सन् 1942 में वह कैंब्रिज विश्वविद्यालय के सैंडलीरियन चेयर से सेवानिवृत्त हुए। इससे पूर्व सन् 1920 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का रॉयल पदक मिल चुका था।
स्वास्थ्य ने प्रो. हार्डी का बहुत साथ नहीं दिया। सन् 1946 तक वह लगभग असहायावस्था में पहुँच गए थे। उनकी बहन उनकी देखभाल करती थीं, परंतु ट्रिनिटी के नियमों के अनुसार वह रात्रि में उनके कक्ष में नहीं रुक सकती थीं। वास्तव में सन् 1939 में हृदयाघात से उनके शारीरिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य को भारी धक्का लगा। सन् 1947 में नींद की गोलियाँ खाकर प्रो. हार्डी ने आत्महत्या का प्रयास किया, परंतु गोलियाँ बहुत ही अधिक मात्रा में निगल लेने के कारण उन्हें उलटी हो गई और वह बच गए।
बाद में सन् 1947 में उन्हें रॉयल सोसाइटी का सर्वोच्च पदक 'कोपले पदक' मिला और इस पदक को प्रदान करने के दिन 1 दिसंबर, 1947 को ही उनका निधन हो गया। उनके निधन पर मैसाच्युसेट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रो. नौबर्ट बीनर ने लिखा था— “उनका निधन हमें एक महान् युग की समाप्ति का आभास कराता है। निस्संदेह वह इंग्लैंड के महान् गणितज्ञों की श्रेणी में आते हैं।”
प्रो. हार्डी ने अपने जीवन-काल में 300 से अधिक शोधपत्र तथा कई पुस्तकें लिखीं। वह एक कट्टर नास्तिक थे। वह क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी और उसके उत्साही प्रशंसक थे। अपने एक मित्र को उनके द्वारा भेजे गए नव वर्ष के निम्नलिखित संकल्प उनकी आकांक्षाओं का निरूपण करते हैं—
1. रीमान् हाइपॉथसिस को स्थापित करना ।
2. क्रिकेट के किसी बहुत महत्त्व वाले मैच में उत्कृष्ट खेल दिखाना।
3. ईश्वर के अन-अस्तित्व का प्रमाण देना।
4. एवरेस्ट पर्वत की चोटी पर पहला व्यक्ति होना।
5. रूस, जर्मनी एवं ग्रेट ब्रिटेन के सम्मिलित राष्ट्र का प्रथम राष्ट्रपति होना।
6. मुसोलिनी की हत्या करना।
गणित के प्रति उनका दृष्टिकोण जटिल माना जा सकता है। किसी भी प्रमेय की विधिवत् उपपत्ति देने पर उनका इतना आग्रह था कि एक बार उन्होंने बट्रेंड रसेल से कहा था, “यदि मैं तर्कसंगत रूप से यह सिद्ध कर सकूँ कि पाँच मिनट पश्चात् आपकी मृत्यु हो जाएगी, तो मुझे आपकी मृत्यु का दुःख अवश्य होगा, परंतु सिद्ध करने की खुशी में वह दुःख फीका पड़ जाएगा।”
उनके एक जीवनीकार, गणितज्ञ प्रो. स्नो, ने लिखा है कि प्रो. हार्डी ने रामानुजन को खोज निकालने की बात कभी किसी से नहीं छिपाई एवं मैरी कार्टराइट ने लिखा है कि “हार्डी रामानुजन को खोज निकालने के प्रति बहुत गर्व करते थे।” रामानुजन ने उनके जीवन का मूल्य बढ़ाया और वह अपने जीवन में रामानुजन को कभी विस्मृत नहीं कर पाए।