हिमांशी को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने की घोषणा क्या हुई कला हांडी के पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गयी पूरे क्षेत्र के लांगो को लग रहा था जैसे पुरष्कृत उन्ही को सरकार द्वारा किया जा रहा हो पद्मश्री, पदम् विभूषण ,आदि सरकार के ऐसे सम्मान है जिसे पाने की लालसा सभी को रहती है।।सम्मान भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा दिया जाना था काला हांडी के जिला कलेक्टर जिला मुख्यालय भवानी पटना से चलकर स्वय हिमांशी के गांव आये और बड़े गर्व और अभिमान के साथ हिमांशी को मिलने वाले पद्म श्री पुरष्कार की जानकारी देने के लिये पूरे गांव वालों को एकत्रित किया सभी गांव वालों के एकत्रित होने पर जिलाधिकारी नितिन पांडा ने गांव के मुखिया सुशील मलिक से कहा कि आप हिमांशी जी को ससम्मान पद्मश्री प्राप्त होने की जानकारी को अंग वस्त्र और पुष्प गुच्छ देकर औपचारिक तौर पर सार्वजनिक करें।। सुशील मल्लिक ने गांव वालों के समक्ष खड़े होकर हिमांशी जी को पद्म श्री मिलने की औपचारिक घोषणा करने से पूर्व बोलना शुरू किया कि आदरणीय सम्मानित गांव के निवासियों बंधुओ, बहने ,भाईयों आज हमारे गाँव के लिये बहुत ही गर्व का दिन है कि हमारे गांव की एक महिला जिसने अपने दृढ़ता निष्पक्षता के साथ ऐसा आचरण प्रस्तुत किया है जो सर्वथा असंभव है हिमांशी ने जिस त्याग बलिदान की मिशाल कायम किया है आज जब स्वार्थ ,व्यक्तिगत आकांक्षा, महत्वाकांक्षा के लिये एक दूसरे की भावनाओं को रौंदते हुए निकल जाते है साथ ही साथ अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति के लिये लाशों की सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ते जाते है दूसरे की पीड़ा संवेदना को कोई महत्व नही देते बदलती दुनियां के संस्कार में भय, भ्रष्टाचार ,अन्याय ,अत्यचार की संस्कृति को अंगीकृत कर लिया है और इस बदलती दुनियां में न्याय, निष्पक्षता, विकास ,समानता की बात तो अवश्य करते है लेकिन वास्तविक में आचरण इसके विपरीत है ऐसे में हिमांशी जी ने काला हांडी से एक छोटी सी क्रांति चिराग जला कर साहसिक और भारत की गरिमामय इतिहास की प्रेरणा प्रेरक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है ।।आज काला हांडी जनपद ही नही उड़ीसा नही सम्पूर्ण भारत को एक दृष्टि दिशा मार्गदर्शन अपने महान बलिदान से दिया है आज में बड़े गर्व से गांव जनपद राज्य और देश की अभिमान हिमांशी जी को गांव की तरफ बड़े विनम्रता पूर्वक आमन्त्रित करता हूँ आदरणीय आये और हमारी भावनाओं के सम्मान को ग्रहण करते हुये जिलाधिकारी के द्वारा पद्मश्री सम्मना के लिये आमंत्रण को स्वीकार करे ।हिमांशी जी ज्यो ही उठी और मंच की ओर आगे बढ़ने के लिये एक कदम बढ़ाया पूरा गांव खड़ा हो गया और हिमांशी जी हमारी शान हिमांशी जी मेरा अभिमान के नारों से सम्पूर्ण अविनि और अम्बर गूंज उठा हिमांशी जी धीरे धीरे मंच की तरफ आगे बढ़ी और जिला अधिकारी और मुखिया के सामने पहुंची मुखिया सुशील मलिक ने उन्हें पुष्प गुच्छ देकर समानित करने के लिये ज्यो ही पुष्प गुच्छ उनकी तरफ बढ़ाया हिमांशी जी के मानस पटल पर जिंदगी के गुजरे हुये लम्हो की याद ताजा हो गयी घर पर चहल पहल थी पिता लोकेश नायक और माँ चंदमती नायक बहुत खुश थे भाई भूपेश नायक और भरत घर में व्यवस्था की देख भाल में लगे थे कि मेहमानों की सेवा में कोई कमी ना रह जाय छोटी बहन शिवानी बार बार आकर चिढ़ाती कहती दीदी अब तो तुम पर किसी और का हुकुम अधिकार चलने वाला है तुम तो बड़ी दगाबज़ निकली छोटी बहन को अम्मा पिता और भाइयों सबको छोड़कर चली जाओगी घर मे रौनक थी और सभी भगवान से प्रार्थना करते नही थकते की हिमांशी को देखने आने वाले पसंद कर ले एक माँ चंदमती नायक ही विश्वास से कहती कि मेरी हिमांशी लाखो में एक है इसे तो कोई पसंद कर लेगा और बिटिया को तरह तरह की बात बताती बेटी जब तुम जाना तो ऐसे जाना ये सवाल पूछे तो ऐसे जाबाब देना दिन के मध्यान को वह घड़ी भी आ गयी जब हिमांशी को देखने वाले आ गए पिता लोकेश नायक भाई भूपेश और भरत नायक ने मेहमानों का दिल खोल कर स्वागत किया मेहमानो में समीर ,सुधीर सालिक और शामली आई थी समीर
हितेंद्र के पिता सुधीर और सालिक भाई और शामली बहन थी मेहमान नवाजी के बाद हिमांसी को देखने की रश्म शुरुआत हुई हिमांशी को साधारण बिना किसी साज धाज के माँ चंदमती छोटी बहन शिवानी साथ
आई जहां समीर सुधीर सालिक और शामली और भाई भपेश ,भरत और पिता लोकेश वैठे थे शामली ने हिमांशी को देखते ही कहा वाह भईया
की किस्मत ही खुल गयी इतनी सुंदर भाभी उनकी किस्मत की ही देन है फिर समीर सुधीर सालिक और शामली ने कुछ सवाल अपनी अपनी संमझ से किया और चंदमती और शिवानी को वापस के जाने को कहा जब हिमांशी चंदमती और शिवानी चले गए समीर ने कहा लोकेश जी बिटिया हमे पसंद है और हम हितेंद्र का रिश्ता हिमांशी से निश्चित करते है आप सुविधानुसार मुहूर्त निकलवाकर शादी की रश्म पूर्ण करवाने की तैयारी करे और समीर ने स्वयं ही लोकेश भूपेश भरत को अपने हाथों से रिश्ता पक्का होने की खुशी में मिठाई खिलाई समीर सुधीर लोकेश जी से जाने की इजाज़त चाही लेकिन लोकेश जी के जिद करने पर रात्रि रुकने का नीर्णय लिए लोकेश ने भी अपनी श्रद्धा और स्नेह से मेहमानों का स्वागत किया दूसरे दिन सुबह समीर, सुधीर ,शामली, सालिक लौट गए दो महीने बाद हिमांशी हितेंद्र के विवाह के दिन निर्धारित हुआ लोकेश जी के घर विवाह की तैयारियां होने लगी तो समीर घर नई बधू के आगमन एव बारात की तैयारी समय अपनी रफ्तार से बीतता जा रहा था दो महीने कैसे बीत गए पता ही नही चला समीर अपने बेटे हितेंद्र की बारात लेकर लोकेश के दरवाजे पहुंचे लोकेश ने अपनी शक्ति के अनुसार स्वागत सम्मान की तैयारी करने में कोई कोताही नही की थी एक एक मौके रस्म को वह स्वयं ही बेटो भूपेश भरत के साथ निगरानी कर रहे थे माँ चंद मति और बहन शिवनी ने भी घर की साज सज्या और मेहमान नवाजी की तैयारी में कोई कोर कसर नही रखी थी हिमांशी की शादी बड़े धूम धाम के साथ हुई हिमांशी बाबूल के घर से विदा होकर ससुराल पहुंची सास कांति ने बहु का स्वागत घर मे लक्ष्मी के आगमन की तरह किया और बेटे हितेंद्र से बोली बेटे तुझ पर भगवान की मेहरबानी है जो तुझे हिमांशी जैसी जीवन संगिनी मिली इसे किसी भी तरह से कोई तकलीफ ना होने देना घर मे चारो तरफ से खुशियां ही खुशियां समीर को भी लगा जैसे उसके घर साक्षात लक्ष्मी जी चाँद के टुकड़े के रूप में साक्षात आयी है हितेंद्र पर और घर पर ईश्वर की मेहरबानी है
लोकेश भी बेटी की खुशी से अपने निर्णय से बहुत खुश थे उनको विश्वास हो गया कि समीर हिमांशी के पिता जैसे ही है और हितेंद्र एक लायक दामाद जो कभी भी परिस्थिति में हिमांसी को कोई तकलफ नही होने देगा ।परिवार भरा पूरा निरंतर खुशियों का आगमन विकासोन्मुख परिवार समीर की उम्मीदों से अधिक उनको मील गया कहते है कि किसी को सारा जहाँ नही मिलता कोई न कोई कमी रह जाती जिंदगी में ऐसा कुछ समीर के परिवार में भी हुआ ।हितेंद्र को मध्यप्रदेश पुलिस में पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गयी और प्रशिक्षण के बाद उसकी नियुक्ति नक्सल प्रभावित क्षेत्र में हुई हितेंद्र आधुनिक विचारधारा का पढा लिखा नौजवान था अतः उसके विचार में अपराध संमजिक परिवर्तन का मार्ग नही दे सकता अपने इसी एक लाइन के सूक्त से उसने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस की वर्दी पहन कर कार्य करना शुरु किया लक्सलवादी युवाओं से सम्बंधित गांव में जाता नवजवानों को एकत्र करता और उन्हें अनेक राष्ट्रीय सामाजिक आर्थिक जानकारी देता रोजगार के रास्ते बताता और शिक्षा स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करता शुरू शुरू में तो उसे बहुत प्रतिरोध का सामना करना पडा और जान भी जोखिम में पड़ी लेकिन धीरे धीरे लांगो में समझ बनने लगी और हितेंद्र की बातों और सुझाव पर गमम्भीरता से ध्यान देना शुरू किया हितेंद्र के प्रयासों से प्रेरित होकर अन्य विभाग जैसे स्वास्थ, शिक्षा, कृषि आदि विभाग के सरकारी मोहकमे भी अपने अपने स्तर से समाज राष्ट्र की मुख्य धारा से भटके नौजवानों को नक्सली मार्ग छोड़कर जोड़ने के लिये विकास की गंगा और जन भावनाओं का विश्वास जितने लगे अब हितेंद्र की मेहनत के परिणाम दिखने लगे थे और नक्सल प्रभवित अधिकतर नौजवान सकारात्मक सोच के साथ हथियार छोड़ किसी ने हल ,किसी ने कलम, किसी ने तराजू ,उठा लिया नतीजा फ़िज़ा बदलने लगी हितेंद्र ने मात्र तीन वर्षों में वह कर दिखाया जो पचास वर्षों में संभव नही हो सका था कहते है आवश्यक नही है कि अच्छाई सबको रास आये नक्सल आंदोलन कमजोर पड़ने लगा और क्रूर नक्सल नेताओ की राजनीति बंद होने लगी नक्सली नेता था कृपा महतो जो हितेंद्र की गतिविधियों से आहत था उसकी पुछ कम होने लगी और उसे एहसास होने लगा कि कभी भी सरकार उसके पुराने कुकृत्यों की फाइलें खोल देगी और उसे जेल में डाल देगी उसने खतरनाक योजना बना डाली अपने बचे खुचे साथियों के साथ वह कालाहांडी हितेंद्र के गांव रात के बारह बजे पहुंचा और समीर सुधीर लोकेश शामली कांति को जगा कर मौत के घाट उतार दिया और गले मे तख्ती लटका दी कि हितेंद्र के किये की सजा तामील कर दी गयी है।।पूरे गांव में हड़कंप मच गया मौके पर जब तक पुलिस पहुंची तब तक कृपा महतो बहुत दूर निकल चुका था इसकी सूचना जब हितेंद्र को मिली वह तुरंत ही अपनी मोटरसाइकिल से ही काला हांडी के लिये चल पड़ा उधर कृपा महतो के और भी खतरनाक इरादे थे उंसे जब मालूम हुआ कि हितेंद्र घर जा रहा है वह भी मोटरसाइकिल से तो उसने जंगलों के बीच सुनसान सड़क के एक तरफ से दूसरी तरफ शीशे और जहर से तैयार धागा बांध दिया इसी रास्ते से हितेंद्र को जाना था हितेंद्र से पहले लगभग दस लोग उस रास्ते मोटरसाइकिल से गुजरे जब भी मोटरसाइकिल सवार तेज रफ़्तार से जाता उसका गला उस महीन न दिखने वाले धागे से कट कर धड़ से अलग हो जाता हितेंद्र के साथ भी ऐसा ही हुआ हितेंद्र का पूरा परिवार नक्सलियों की क्रूरता की भेंट चढ़ चुका था हिमांशी इसलिये बच गयी थी कि वह कुछ दिनों के लिये अपने मायके गयी थी समीर सुधीर लोकेश शामली और कांति और पति हितेंद्र के शव उसके सामने पड़े थे वह करती भी क्या उसके आंख से आंसू झलकने का नाम ही नही ले रहे थे इतना गहरा सदमा लगा कि उसे कुछ समझ मे ही नही आ रहा था कि वह क्या करे बड़ी मुश्किल से गांव वालो ने मिलकर एक साथ समीर सुधीर लोकेश शामली कांति और हितेंद्र की चिता को हिमांशी से मुखग्नि दिलाई हिमांशी की तो दुनियां ही उजड़ चुकी थी उसके पिता लोकेश भाई भूपेश भरत माँ चंदमति ने बहुत समझया की वह उनके साथ चले पहाड़ जैसी जिंदगी कैसे कटेगी लेकिन नही मानी और अपने पति के परिवार के लांगो की हड्डियां स्वय चिता से एकत्र कर घर के बाहर लटका दिया और स्वय गम सुम रहने लगी ना खाने की चिंता ना जीने मरने की चिंता आंखों में मायूस लाचारी उदासी इसी तरह दो वर्ष बीत गए एक दिन हितेंद्र के पुलिस मोहकमे के दोस्त कबीर खान हिमांशी से मिकने आये और उसकी दशा देख कर भाव विह्वल हो गए और बोले हिमांशी भाभी हितेंद्र मेरा बहुत अच्छा दोस्त था आपको भी मालूम है क्योकि वह अक्सर कहा करता था कि यार कभी कुछ मुझे हो गया तो मेरी हिमांशी मेरे अधूरे सपनो कार्यो को पूरा करेगी आप हितेंद्र की परछाई उसकी जीवन उद्देश्यों की वसीहत और उसके अधूरे अरमानों की आस्था और पूर्णता की जीवंत है आपके इस तरह रहने से कुछ भी हासिल नही होने वाला कबीर खान की बात सुनकर हिमांसी के हृदय में दबी हुई आंसुओ का समंदर तूफान बनकर उसकी आँखों से झलक पड़ा और उसने कहा क्या करे कबीर भईया कबीर खान बोला भाभी तुम अपना संघर्ष वही से शुरू करो जहा से हितेंद्र छोड़ गया है और बोला आप उसी नक्सल प्रभावित क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि चुनो जिसे हितेंद्र ने चुना था मैं तुम्हारे पति के अधूरे सपनो को तुम्हारे द्वारा पूरा होते देखना चाहता हूँ
तुम तैयार हो और मेरे साथ चलो हिमांशी को भी लगा कि घुट घुट कर जीने से बेहतर है स्वाभिमान से मर जाना वह ऐसे उठी जैसे उसमें किसी अदृश्य शक्ति का सांचार हो गया हो और बोली कबीर भाईया मैने हितेंद्र और परिवार के लांगो की अस्थियों संभाल कर रखी है और उन्हें तभी विसर्जित करूँगी जब हितेंद्र के अधूरे कार्यो एव सपने को पूर्ण कर लुंगी कबीर खान हिमांशी को लेकर फिर वही आता जहां हितेंद्र की नियुक्ति थी और उसने हिमांशी के रहने खाने पीने की व्यवस्था करवा दिया और हिमांशी को हथियार चलाने के प्रशिक्षण के लिए देवेन को जिम्मेदारी सौंपी कबीर खान ने जाते जाते कहा भाभी औरत बहुत बड़ी ताकत होती है आप कमजोर ना खुद को समझे ना किसी औरत को कमजोर होने दे हिमांशी कबीर का इशारा समझ गई वह प्रति दिन हथियार सीखने का प्रशिक्षण देवेन से लेती और ड्राइविंग दोपहिया चार पहिया चलाने हेतु देवेन एव संतन ने दो तीन महीने में ही हिमांशी बंदूके रायफल सहित सभी खतनाक हथियारों के चलाने के साथ साथ किसी तरह के वाहन के चलने में दक्ष बना दिया बीच बीच मे कबीर जिनकी नियुक्ति नक्सल प्रभावित क्षेत्र से बाहर थी आते और आवश्यक समान एव सलाह देकर चले जाते हिमांसी ने अब महिलाओं को एकत्र करना शुरू किया खासकर उन महिलाओं को जिनके पति बेटे नक्सल गतिविधियों में संलग्न थे शुरू में हिमांशी को अपमान ,तिरस्कार और विरोध की कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिसके कारण कभी हल्की तो कभी गंभीर चोट जख्म आये और ठीक हुये जीवन मृत्यु के बीच सुबह से शाम ऐसे खेलती जैसे कोई सपेरा जहरीले सांपो से धीरे धीरे उंसे पांच वर्ष हो चुके थे कलाहांडी छोड़े उसने अपने पिता लोकेश भाई भूपेश भरत से या गांव वालों से कभी कोई सम्पर्क नही किया वह दिन भर गाँव गाँव घूमती महिलाओं को जागरूक करती और रात रात भर जंगलों में रहने वाले छिपे नक्सलियों की पोजिशन कभी मोबाईल से ट्रेस करती यदि पहुंच के दायरे में नक्सली होते तो धमक जाती और उनको रास्ते पर लाने के सारे प्रायास करती अधिकतर नक्सली तो हिमांसी के सामने हथियार रख आत्मसमर्पण ही करते कुछ जो कृपा की तरह खूंखार क्रूर थे उनको वही ढेर कर उनके गले मे तख्ती लटका देती हम नही सुधरेगे सुबह सरकार की पुलिस आती लाश ले जाती और हिमांशी कि तलाश करती हिमांशी के साथ औरतों और आत्मसमर्पण किये लांगो की एक अच्छी खासी फ़ौज थी जो विश्वसनीय और समर्पित भी इन्स्पेक्टर कबीर प्रशासन स्तर पर हिमांशी का परोक्ष पक्ष प्रस्तुत करते और मीडिया के लोग टी बी अखबार रेडियो आदि के प्रतिनिधि जो हितेंद्र के समय उसके कार्यो को समर्थन देते सब हिमांसी को भी समर्थन देते जब भी नक्सली मारे जाते उनके गले मे तख्ती मिलती हम नही सुधरेंगे तो मीडिया की हेडिंग होती जंगल की देवी का न्याय पुलिस हिमांशी की तलाश करती मगर आधे अधूरे मन से क्योकि हिमांशी परोक्ष रूप से पुलिस का ही कार्य कर रही थी हिमांशी की सक्रियता के बाद जो विभाग नक्सल क्षेत्र में शिक्षा स्वस्थ कृषि रोजगार आदि के विकास का कार्य हितेंद्र के रहते कर रहे थे तेजी से सक्रिय हो गये अब हर नक्सलियों के घर मे हिमांशी की पहुंच उनके घर की औरतों के माध्यम से थी समय बहुत तेजी से करवट बदली और नक्सली कमजोर होकर हिमांशी के समक्ष हथियार डाल देते अब सिर्फ कृपा का वही समूह बचा था जिसने हिमांशी के परिवार और पति की हत्याएं की थी हिमांसी को उनकी ही तलाश थी जल्द ही मौका मिल भी गया कृपा अपने साथियों के साथ हिमांसी पर धावा बोलने की तैयारी में था और उसने दिन तारीख मुक़र्रर कर लिया हिमांसी कि सखी सेना के मुखबिरों को खबर मिल गयी सूचना भी देने वाली कृपा की पत्नी सुलेखा ही थी जब हिमांसी को पता चला कि कृपा धावा बोलने वाला है तो कृपा की योजना के कारगर होने से पूर्व ही हिमांसी ने कृपा समेत उसके सौ साथियों को घेर लिया और इतना भी मौका नही दिया कि अपने हथियार संभाल सके उनके हथियारों को सखी सेना ने कब्जे में ले लिया और फिर हिमांसी ने उन्हें समझाने की कोशिश की और नक्सल क्रियाकलापों से नुकसान की परिणीति का वर्तमान इतिहास कम्युनिस्ट समाजवाद लोकतंत्र और अधिकार उन सभी विषयों को बताया जो किसी को भी नक्सल जैसे नकारात्मक गतिविधियों में संलिप्त होने के लिये प्रेरित करता है कुछ को बात समझ मे आंने लगी मगर मौत के खिलाड़ी कृपा को नही उसने बनते समाज को फिर बिगाड़ा और कुछ नही मिला तो यह जानते हुये की सखी सेना हथियारों से लैस है और घिरे है फिर भी शराब की बोतलों में माचिस की चिल्ली से आग जला कर सखी सेना पर फेखने लगे सखी सेना ने इस वार को भी इस विश्वास से कुछ देर झेला की शायद इसके बाद नक्सली मान जाए मगर एसा कुछ नही हुआ और अंत मे हिमांसी ने अपनी ही रायफल से फायर शुरु कर दिया नक्सली ऐसे ढेर हो रहे थे जैसे पेड़ से तेज आंधी में पत्ते गिर रहे हो चार पांच घण्टे में सभी नक्सली ढेर हो गए कोई जिंदा नही बचा जब स्थानीय पुलिस प्रशासन को पता चला कि हिमांसी सखी सेना के साथ कृपा महतो के नक्सल सेना से निपटने गयी है तो जानबुझ कर बिलम्ब कर दिया उसको तो कृपा की भी तलाश थी और हिमांशी की भी जो भी मरता पुलिस के लिये राहत ही थी पुलिस जब घनघोर जंगल मे पहुंची और नक्सलियों को ढेर पाया और सखी सेना के साथ हिमांसी वही डटी थी हिमांसी ने पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया और बोली मुझे जेल भेजने से पहले अपने प्रियजनों और पति की अस्थियां विसर्जित करनी है आप हमें इतना कार्य पूर्ण करने दे पुलिस को कोई आपत्ति नही थी पुलिस हिमांसी को लेकर उसके गांव कालाहांडी पहुचीं वहा कबीर खान पहले से पहुँचा था वह हिमांसी के साथ अस्थियों को लेकर विसर्जित करने पहुंचा साथ पिता लोकेश भाई भूपेश और भरत साथ थे हड्डियों को विसर्जित करते समय जब हितेंद्र की आस्तियों का विसर्जन हिमांसी कर रही थी तब कबीर खान बोला यार देख तेरी हिमांसी आज नई राह दिखाई है तू तो बड़ा किस्मत वाला है रे और पुलिस हिमांसी को लेकर चली गयी हिमांसी पर मुकदमा चला लेकिन विद्वान न्यायालय न्यायाधीश ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुये फैसला सुनाया कभी कभी न्याय को भी हथियार उठाने पड़ते है जो हिमांसी ने किया अतः न्याय कहता है कि इस महान नारी राष्ट्र गौरव को ससम्मान रिहा किया जाय जिसने औरत नारी की अबला अस्तित्व को समाप्त कर एक नई नारीबशक्ति को आवाज दिया है।मुखिया सुशील मलिक बोले बहन हिमांशी कहां खो गयी हिमांसी बोली कुछ नही जीवन के यादों की यात्रा याद आ गयी हिमांसी कि आंखों से अश्रुधारा फुट पड़े सारा गांव इस ऐतिहासिक घटना का गवाह बना वक्त भी कुछ देर के लिये ठहर कर हिमांसी का इस्तेकबाल करने लगा।।
कहानीकार--नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश