नौकरी का पहला दिन नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नौकरी का पहला दिन




दिपांकर गांगुली होनहार पिता अतुल देव माँ देविका जी का लाड़ला दुलारा एकलौती संतान था ।पढ़ाई पूरी होने के बाद नैकरी की तलाश एव प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में जुटा था लगातार नौकरी के आवेदन करता और प्रतियोगिता के परीक्षाओं को देता मगर भाग्य था कि साथ ही नही देता चार पांच वर्ष की लागातार मेहनत के बाद अंतिम अवसर में दीपांकर गांगुली को भारतीय वन सेवा में मंडलीय वन अधिकारी पद हेतु चयन किया गया।।दीपांकर गांगुली की सफलता से पिता अतुल माँ देविका की खुशियों का ठिकाना नही रहा घर मे उत्सव का वातावरण था गांव में भी खुशी का बातावरण था क्योंकि बीर भूमि जनपद के जॉगमबाड़ी गांव के किसी परिवार में अब तक कोई इतने बड़े पद पर चयनित नही हुआ था। जिसके कारण गाँव मे खुशी का माहौल था रिश्ते नाते में भी दीपांकर की सफलता के चर्च हो रहे थे। साक्षात्कार एव स्वस्थ परीक्षण के उपरांत दिपांकर को प्रशिक्षण में जाने का आदेश प्राप्त हुआ।जांगमबाड़ी गांव वालों ने अतुल गांगुली एव देविका से दीपांकर की सफलता के लिये भोज की मांग की जिसे अतुल गांगुली ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और दिपांकर के प्रशिक्षण में जाने से पहले भोज देने का वचन गांव वालों को दिया दीपकंर गांगुली ने गांव के ही कन्हैया बाबू को बुलाकर दिपांकर की नौकरी मिलने की खुशी में भोज के व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी कन्हैया बाबू ने बड़ी ही खुशी से जिम्मेदारी के निर्वहन के लिये हामी भर दी और भोज की तैयारियों में जुट गए मिष्टी दोई मच्छी भात आदि बंगाली व्यंजनों की सूची तैयार की और तैयारी में जुट गए।।धीरे धीरे समय बीतने लगा और दीपांकर के प्रशिक्षण में जाने की तिथि मात्र एक सप्ताह शेष रह गयी अतुल गांगुली ने दीपंकर को बुलाकर कहा बेटे तेरी कड़ी मेहनत सब्र ईश्वर की
कृपा एव बड़ो के आशीर्वाद से यह सफलता हसिल हुई है तुम कलकत्ता जाकर काली बड़ी माँ काली के दर्शन एव दक्षिण काली स्वामी रामकृष्ण आश्रम के आशीर्वाद दर्शन कर लौट आओ फिर भोज के बाद प्रशिक्षण में
जाना ही है अतुल आज्ञाकारी और धार्मिक मान्यताओं में विश्वास करने वाला पुत्र था अतः उसी दिन शाम को वह सारी तैयारियां पूरी करके माँ का आशीर्वाद लिया और कोलकाता रवाना हो गया पूरे पांच दिन बाद पिता की आज्ञानुसार सारे दर्शन आशीर्वाद प्राप्त कर गांव लौट आया भोज की पूरी तैयारी हो चुकी थी सारे रिश्ते नातों इष्ट मित्रो को आमंत्रण दिया गया था जिनके आने का सिलसिला शुरू हो चुका था भोज के दिन सुबह से ही कन्हैया बाबू दीपांकर के घर पर आकर जम गए भोज की सारी तैयारी का बड़ी बारीकी से निगरानी कर रहे थे सारे पकवानों की गुणवत्ता की स्वय परख कर रहे थे धीरे धीरे शाम ढलने को हुई और अब भोज का कार्यक्रम शुरू हुआ पूरी रात भोज का जश्न चलता रहा जांगमबाड़ी गाँव के लोग बहुत खुश थे कि उनके गांव का दीपांकर देश की प्रतिष्ठित सेवा भारतीय वन सेवा के लिये चयनित हुआ है सबने ह्रदय से दिपांकर को आशीर्वाद दिया एक दिन बाद दीपांकर को प्रशिक्षण हेतु जाना था पिता अतुल गांगुली माँ देविका एव दीपाकंर को दूसरे दिन शाम को फुर्सत मिली जब सारे मेहमान चले गए और भोज से संबंधित सारे कार्य निबट गए। एक दिन ही विश्राम के लिये दिपांकर को मिला अगले दिन दीपांकर ने जाने के लिये आवश्यक सामन की पैकिंग की पिता अतुल एव माँ ने दीपांकर को बाहर जाने और रहने सम्बंधित अनेको नसीहतें दी जिसे शिरोधार्य किया
दीपांकर के जाने का समय आ गया लगभग पूरे गांव के लोग अतुल के दरवाजे पर दीपांकर को विदा करने एकत्र हुये दीपांकर को बग्घी से रेलवे स्टेशन जाना थ बग्घी तैयार थी पूरे गांव के लोंगो ने हृदय भाव के साथ दीपांकर को विदा किया मां देविका की आंखों में खुशी एव वियोग आंसू झलकने लगे अतुल गांगुली ने पत्नी देविका को समझया दिपांकर बग्घी पर सवार होकर रेलवे स्टेशन को चला पूरा गांव एव माँ बाप तब तक दिपांकर की बग्घी को निहारते रहे जब तक कि आंख से ओझल नही हो गया
सभी गांववासी अपने अपने घर चले गए एव अतुल देविका घर से बेटे के सकुशल प्रशिक्षण पूरा होने की ईश्वर से प्रार्थना करने लगे ।दीपांकर रेलवे स्टेशन पहुंचा और ट्रेन का इंतज़ार करने लगा लगभग आधे घण्टे बाद ट्रेन आयी दिपांकर ट्रेन में बैठा ट्रेन चल दी दो दिन की यात्रा के बाद ट्रेन पूना पहुची जहाँ दीपांकर उतरकर प्रशिक्षण केंद्र पहुंच अपनी उपस्थिति सम्बंधित औपचारिकताओ को पूर्ण कर होस्टल में चला गया अगले ही दिन से प्रशिक्षण प्रारम्भ हो गया।।
एक वर्ष का प्रशिक्षण पुरा करने के उपरांत दीपांकर पुनः गांव जांगम बड़ी लौट कर आया गांव वालों ने बढ़े जोश खरोश से दिपांकर का स्वागत किया माँ ने बेटे की आरती उतार कर अभिनंन्दन किया पिता अतुल गांगूली ने भी बेटे का विधिवत स्वागत अभिनंन्दन किया दिपांकर को एक सप्ताह बाद पूर्वोत्तर के आंध्रा एव तमिलनाडु के सीमा पर जंगलों में नियुक्ति मिली थी एक सप्ताह कैसे बित गया बता ही नही चला माँ बेटे दीपकंर को प्रतिदिन नया व्यंजन बना कर खिलाती और बाहर के जादू टोना और संमजिक खतरों के बाबत समझती सप्ताह बीत गया और दिपांकर नौकरी में कार्यभार ग्रहण करने आंध्रा जिला पहुँच गया उसने सबसे पहले तिरुपति के बाला जी के दर्शन किये और कार्य भार ग्रहण करने पहुँच गया कार्यलय अतिथि गृह एव निवास जंगल में ही था दीपांकर जब पहुंचा कार्यालय के सभी कर्मचारी अधिकारी उपस्थित थे सबसे पहले दीपांकर की मुलाक़ात उसके पी आर ओ राघव रेड्डी से हुई फिर राघव रेडडी दिपांकर को कार्यालय लेकर दाखिल हुआ और सभी कर्मचारियों अधिकारियों से परिचित होने के बाद एक औपचारिक बैठक में कार्यक्षेत्र का पूरा विवरण कार्य मे जोखिम और सभी सकारात्मक नकारात्मक पहलुओं पर विचार विमर्ष करने के बाद बैठक को समाप्त कर सभी कर्मचारियों अधिकारियों को कार्य के उचित निर्देश देने के उपरांत अपने पी आर ओ रामा रेड्डी से आवश्यक जानकारी हासिल करते हुए कार्यलय में टांगी फ़ोटो के विषय मे पूछना शुरू किया सबसे पहले तस्वीर के विषय मे रामा रेडडी ने बताया ये साहब है कमलेश डोंगरिया कार्यभार ग्रहण करने के छः माह में ही शेर ने मार डाला फिर दूसरी तस्वीर के विषय मे बताया कि ये जनाब शार्दूल सिंह जी इनको कार्यभार ग्रहण करने के चार माह में ही चंदन तस्कर समूह ने के
जिंदा जला कर मार डाला तीसरी तस्बीर के विषय बताया कि ये जनाब माहेश्वरी चंद्र इनके कार्यभार ग्रहण करने के दो माह बात जन जातिय लोंगो ने बेरहमी से मार डाला चौथे तस्बीर के बिषय में बताया कि इनको
जंगली दंकुओ ने जिंदा जमीन में दफन कर दिया इसी प्रकार कार्यालय के लगभग सभी तस्वीरों का कुछ ना कुछ ऐसा ही इतिहास था कुछ को छोड़ कर दिपांकर बिल्कुल भयभित नही हुआ और रामा रेड्डी से सारी जानकारियां हासिल करता रहा रामा रेड्डी भी निरंतर दिपांकर के चेहरे का भाव जानने की कोशिश करता रहा मगर उसको पूरा यकीन हो गया कि दिपांकर एक मजबूत इरादों का दृढ़ व्यक्तित्व है शाम ढल चुकी थी दिपांकर ने रामारेड्डी से अपने साथ वहां के लिये चल पड़ा जो कार्यालय के निकट ही अतिथि गृह था जिसमे दिपांकर के रुकने की व्यवस्था थी क्योकि बंगले की मरम्मत का कार्य चल रहा था अतिथि गृह पहुचने पर दिपांकर एकएक आश्चर्य से ठिठक गया क्योकि अतिथि गृह के द्वार पर खड़ी एक लड़की उसके अतिथि गृह में आने का इन्ज़ातर कर रही थी वह वही लड़की थी जिसे वह बचपन से लेकर लगभग हर रात अपनी ख्वाबो में देखा करता था उंसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ख्वाब की बेहद खूबसूरत लड़की जिसे खोजते खोजते हार कर भूल चुका था आचानक इस घनघोर जंगल मे देखकर उसे कुछ समझ मे ही नही आ रहा था कि वह अभी भी
ख्वाब ही देख रहा है या हकीकत दिपांकर को विस्ममृत देख रामारेड्डी ने कहा क्या हुआ साहब आप अचानक रुक क्यो गये दिपांकर ने रामारेड्डी से पूछा कि अतिथि गृह के दरवाजे पर खड़ी लड़की कौन है रामारेड्डी रेड्डी ने बताया कि वह छमियां है अतिथि गृह की देख रेख करती साफ सफाई करती है वह जनजातीय समुदाय के कालू की बेटी है उसके पिता ने उसकी शादी कई बार जनजातीय लड़को से करने की कोशिश की मगर हर बार यह कह कर मेरा शौहर आनेवाला है उसी से शादी करूंगी जिद कर लेती बातों ही बातों में दिपांकर और रामा रेड्डी अतिथि गृह पहुंचे ज्यो ही रामा रेडडी ने कुछ कहना शुरू किया साहब ये छमियां है तभी छमियां बोली यही तो है जिसकी राह मैं इतने दिनों से देख रही थी यही मेरा शौहर है जो पिछले जन्म मेरा साथ छोड़ कर चला गया था अब मिला है रेड्डी साहब बताने की कौनो जरूरत नही है।। दिपांकर को लगा जैसे सांप सूंघ गया हो एक तो कार्यालय में टंगी तस्वीरों का सच उंसे अंदर से चिंतित किया था अब नई मुसीबत गले पड़ गयीरामारेड्डी ने कहा साहब इसकी बात का बुरा ना मानना यह अपने खोजते प्यार में पागल है। लेकिन दिपांकर को विश्वास भी हो रहा था क्योंकि छमियां हूबहू वही लड़की थी जिसे वह अपनी चाहत की ख्वाबो में अक्सर देखता रहता उसने रामारेड्डी से कहा रेड्डी साहब आप जाईये आराम करिए बहुत थक गए होंगे छमियां से मुझे कोई परेशानी नही होगी।रामारेड्डी के जाने के बाद दिपांकर ने छमियां से कहा छमियां गरम पानी दो कपड़ा बदल कर हाथ पैर थो कर फ्रेश होना चाहूंगा छमियां बोली साहब हमने पहले से पानी गरम कर रखा है जब शौहर कही बाहर से आते है उनके पैर धोए जाते है।दीपकंर को यह समझ मे नही आ रहा था कि वह क्या करे क्या ना करे उसने छमियां को नज़रंदाज़ करने की नीयत से कहा अच्छा तुम गर्म पानी दो हम स्वयं हाथ पैर थो लेंगे मगर छमियां ने कहा आज लगभग डेढ़ सौ साल बाद तो मुलाक़ात हुई और मुझे पैर भी नही पखारने दोगे तुम तो ऐसे ना थे कही तुम्हारे बाप राज गजेंद्र सिंह की क्रूरता का असर तो नही हो गया तुम पर दिपांकर ने कहा कि मेरे पिता अतुल गांगुली है जो बहुत दयालु और लोंगो के सुख दुख को समझने वाले इंसान है छमियां तपाक से बोली मैं डेढ़ सौ साल पुरानी बात कर रही हूँ छमियां बोल ही रही थी कि अतिथि गृह का खानसामा बालू आ गया उसने पूछा साहब आप खाने में क्या पसंद करते है दिपांकर कुछ बोलते उसके पहले ही बोली कड़ी चावल रोहू मछली बहुत पसंद है साहब को दीपांकर को तब आश्चर्य का ठिकाना नही रहा जब उसकी स्वाद खाने की पसंद को छमियां ने बताया उसने तुरंत बालू को जाने के लिये कहा क्योकि उंसे छमियां के रहस्य की जानकारी चाहिये थी छमियां बोली साहब पैर पखारने का आज मेरा ही हक है और आप पैर मुझसे नही पखारने देंगे तो अनर्थ हो जाएगा दुनियां भगवान को प्यार के बलिदान का भरोसा सदा के लिये खत्म हो जाएगा दिपांकर ने बात टालते हुए कहा कि तुम तो डेढ़ सौ पहले प्यार की बात कर रही थी छमियां बोली हा हुज़ूर आप रीवा जो मध्य प्रदेश का रियासत के राज कुमार थे आप एक दिन शिकार खेलते खेलते बहुत घने जंगल में पहुँच गए रात हो चुकी थी तभी जंगली जातियों ने आपको घेर लिया उस रात पूनम की रात थी और आदिवासी अपने देवता को खुश करने के लिये खून का स्नान कराते दुर्भाग्य से उस पूरन वासी को आप ही कि बलि हमारा कबीला देने वाला था जिसमे मेरा बाप कबीले का सरदार हिम्बा भी थे जब मध्य रात्रि हुए और तुम्हारी बलि होने का समय आया कुछ पल पूर्व मैं कबीले के झोपडी से बाहर निकली देखा कि तुम बंधे हुए और केबिले के लोग अपने परम्परागत नृत्य से अपने देवता को रिझाने की कोशिश कर रहे थे तभी मैन तुमको देखा मेरे मन मे प्यार का तूफान उठा जिसने मुझे झकझोर दिया मैं तुरंत अपने बापू हिम्बा से तुम्हारी मुक्ति के लिये याचना करने लगीं जब मेरी बापू से बात चल ही रही थी बीच मे निंगा जिसकी नज़र बहुत पहले से मुझ पर थी और मुझसे विवाह करना चाहता था पहुंचा और बापू को तुम्हे छोड़ने से मना करता रहा मैं बापू की प्यारी दुलारी और एकलौती संतान थी बापू मेरे प्यार से हार गया और उसने तुमको छोड़ दिया और मुझसे बोला तुम इसी रात इसे जंगल बाहर छोड़ कर वापस आ जाओ तुम्हे छोड़ कर जब मै वापस आयी तो निंगा बापू को मार कर खुद कबीले का सरदार बन चुका था मेरे जाने के बाद गुस्से से बोला देख छमियां तेरे बापू के खून से कबीले के देवता की पूजा हुई जिसे उन्होंने कबूल किया है और प्रसन्न है अब तेरी मेरी शादी कोई रोक नही सकता है छमियां हाथ मे कटार लिये दुर्गा काली के रौद्र रूप में बोली खबरदार जो मेरी तरफ आंख उठा कर देखा भी मैं राजकुमार से ही शादी करूंगी और इतना कहते हुए वह जंगल के दूसरे छोर बहुत दूर निकल गयी उसके बाद तुम्हारी हमारी मुलाकात बढ़ती गयी और एक दिन तुमने अपने पिता राजा गजेंद्र सिंह से मुझसे विवाह के लिये कहा तुम्हारा पिता क्रूर और चालक लोमड़ी की तरह था उसने कहा ठीक है बेटे तुम छमियां को राजमहल लेकर आओ मैं देंखु तो की तुम्हारी पसंद कैसी है तुम मुझे लेकर राज महल गए और वहां तुम्हारे पिता राजा गजेंद्र सिंह एव माँ मैनावती को मेरी खूबसूरती देखकर विश्वास ही नही हुआ कि मैं जंगल की आदिवासी लड़की हूँ उन्होंने मेरा स्वागत बड़ी खुशी से किया मगर तुम्हारे पिता ने कुछ और ही सोच रखा था जब मेरे कुछ दिन अतिथि महल में बीते और मेरे तुम्हारे विवाह की बात चल रही थी उसी बीच तुम्हारे पिता ने अपने मंत्री कुंदन सिंह के साथ मिलकर मेरे शयन कक्ष में विषधर नाग छोड़ दिया मैं गहरी नींद में सोई थी तभी विषधर ने मुझे डस लिया और मैं हमेशा के लिये सो गई सुबह पुरे राज्य में इस बात की चर्चा थी कि तुम्हारे पीता ने धोखे से मेरी हत्या करवा दी है। जब तुम्हे इस बात का पता चला तब तुम भी मेरे मृत शरीर पर आकर प्राण त्याग दिए राजा गजेंद्र सिंह माँ मैनावती को बहुत कष्ट हुआ मगर सब समाप्त हो चुका था उसके बाद आज तुम इस अतिथि गृह में मीले हो दिपांकर को छमियां की बात सुनते सुनते चक्कर आने लगा और उसे छमियां द्वारा बताई हर घटना का दृश्य स्पष्ठ नज़र आने लगा
अचानक वह फर्श पर गिरा और सर फट गया जिससे खून गिरने लगा छमियां ने दिपांकर को उठाया और कंधे पर ज्यो ही उसका सर रखना चाहा अचानक दीपकंर का सर छमियां के मांग से ठकरा गयीं और दिपांकर के सर से निकल रहे खून से छमियां की मांग भर गई तब तक रामारेड्डी खानसामा सभी वहाँ पहुँच गए और कुछ उपचार के बाद दीपांकर को होश आया और बोला छमियां मेरा प्यार जिन्दगी और जन्मों की जीवन साथी है यह पागल नही बल्कि सच्चे प्यार त्याग की देवी है और यह मेरी पत्नी है जो रिश्ता प्यार डेढ सौ वर्ष पहले परवान नही चढ़ा वह आज मेरे नौकरी के पहले दिन ही पूरा हो गया ।।

कहानीकार -नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश