महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 2 Praveen kumrawat द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 2

(अटल बिहारी वाजपेई जी)
जिस भारतीय संस्कृति ने विश्व को शून्य का उपहार दिया, उसी कोख से श्रीनिवास रामानुजन् जैसे विलक्षण गणितज्ञ ने जन्म लिया। 32 वर्ष की कम आयु में ही रामानुजन ने गणित के संसार को ऐसा अद्भुत योगदान दिया जिसे परिभाषित करने के लिए आज भी सैकड़ों विद्वान प्रयासरत हैं।
एक मुनीम के घर में जन्म लेकर विश्व को प्रभावित करने तक की यात्रा में रामानुजन् ने हर भारतीय को गौरवान्वित किया है। उनकी हस्तलिपिबद्ध पुस्तिका सन् 1976 में अचानक ‘ट्रिनिटी कॉलेज’ के पुस्तकालय में मिली। वह करीब एक सौ पृष्ठ की पुस्तिका आज भी गणितज्ञों के लिए एक गुत्थी बनी हुई है। मैं आशा करता हूँ। कि भविष्य में विद्वान् रामानुजन् के सूत्रों को सिद्ध कर पाएंगे।
डॉ. भूदेव शर्मा एवं डॉ. नरेन्द्र कुमार गोविल (लेखक) ने हिंदी में रामानुजन् के जीवन व्यक्तित्व एवं कार्यो को इस पुस्तक में सँजोकर बीस करोड़ हिंदी भाषियों के सामने रखा है। यह प्रशंसनीय सराहनीय है। आने वाली पीढ़ियों को रामानुजन् का जीवन प्रेरित करता रहेगा।


(जॉर्ज ई. एंड्रज)
[इवान पुघ प्रोफेसर, गणित विभाग
द पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी]

भारत के एक महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् के जीवन एवं उपलब्धियों को प्रस्तुत करने वाली हिंदी की इस प्रथम पुस्तक के आरंभ में कुछ कह पाने की अनुमति को मैं एक बड़ा सम्मान मानता हूँ । विश्व भर के 20 करोड़ से अधिक हिंदीभाषी पाठकों को यह अवसर प्रदान करके प्रो. गोविल एवं प्रो. शर्मा ने अद्भुत कार्य किया है।
मेरे जीवन के पचास से भी अधिक वर्षों में श्रीनिवास रामानुजन का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। मैं जब ऑरेगन विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर का विद्यार्थी था तब जेम्स न्यूमैन की पुस्तक ‘द वर्ल्ड ऑफ मैथेमेटिक्स’ में उनकी जीवनी पढ़कर मंत्रमुग्ध हो गया था। बाद में पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर विद्यार्थी काल में प्रो. हंस रैडमाखर ने रामानुजन की उपलब्धियों पर विस्तार से भाषण दिए और थीसिस के लिए मुझे ‘रामानुजन के मॉक थीटा फंक्शन’ का विषय निर्धारित किया।
रैडमाखर के प्रभाव ने मेरे आरंभिक शोध-काल को स्वरूप प्रदान किया और मैंने ‘रोजर-रामानुजन तादात्म्यों’ के निकट क्षेत्र में ही अपने अध्ययन को केंद्रित किया।
1976 में संयोगवश कैंब्रिज विश्वविद्यालय में ट्रिनिटी कॉलेज के पुस्तकालय में एक दिन मैंने रामानुजन द्वारा लिखी सौ पृष्ठों से अधिक की एक पांडुलिपि को एक बक्से में उपेक्षित पड़ा पाया। यही सामग्री रामानुजन की ‘लॉस्ट नोट-बुक’ के नाम से जानी जाती है। मैंने उसमें प्राप्त सूत्रों पर बहुत से शोध-पत्र लिखे हैं तथा मैं और ब्रूस बर्नडट इसका एक संपादित संस्करण तैयार कर रहे हैं।
रामानुजन की जन्म-शताब्दी ( 22 दिसंबर, 1987 ) के अवसर पर नरोसा पब्लिशिंग हाउस ने ‘लॉस्ट नोट-बुक’ का एक फेसीमाइल संस्करण निकाला था। इसकी आशुप्रति तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी द्वारा रामानुजन की पत्नी जानकीअम्मल को भेंट की गई थी। उसकी दूसरी प्रति उन्होंने मुझे दी थी।
रामानुजन पर मेरा अध्ययन बहुत लाभप्रद रहा है। इस प्रतिभाशाली व्यक्ति के विचारों को समझने के प्रयास से मैंने बहुत कुछ सीखा है। मैं आशा करता हूँ कि यह पुस्तक पाठकों को रामानुजन तथा उनके कार्य के भावी अध्ययन के लिए प्रेरित करेगी।

टिप्पणी : प्रो. एंडूज, जैसा उन्होंने ऊपर संकेत किया हैं, ने रामानुजन का वह कार्य जो विलुप्त पड़ा था, को खोजा, उसको प्रकाशित किया और उस पर अथक शोध कार्य किया। उनके कार्य से गणित में रामानुजन के कार्य की महत्ता बढ़ी हैं तथा रामानुजन द्वारा गणित में दी एक नई दिशा का विकास हुआ है। वह वरिष्ठ प्राध्यापक और यू.एस.ए. की ‘नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ के सदस्य हैं। वह अपने जीवन में रामानुजन का विशेष स्थान मानते हैं। गणित में उनका विशेष स्थान है।


(डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम)
गणित में विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री श्रीनिवास रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में अपने कार्य से देश को गौरवान्वित किया हैं। भारत ही नहीं, पूरे विश्व के गणितज्ञों के लिए रामानुजन निरंतर प्ररेणास्रोत बने हुए हैं।
श्रीनिवास रामानुजन अपने समय के श्रेष्ठतम प्रतिभावान् व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। वह केवल तैंतीस वर्ष जीवित रहे। विधिवत् उच्च शिक्षा तथा जीवन-यापन के साधनों की कमी होने पर भी अपने विषय से नितांत प्रेम एवं अथक उत्साह के कारण उन्होंने गणित के शोध-कोष में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। आज भी विश्व के गणितज्ञ उनके द्वारा दिए कुछ सूत्रों को सिद्ध करने में प्रयत्नशील हैं।
रामानुजन एक ऐसे प्रतिभा संपन्न भारतीय थे, जिन्होंने कैंब्रिज के अति प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रो. जी. एच. हार्डी, जो बहुत रूखी प्रकृति के थे, के हृदय को पिघला दिया था। साथ ही यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि विश्व के सम्मुख रामानुजन को प्रकाश में लाने वाले भी प्रो. हार्डी ही थे। प्रो. हार्डी ने विभिन्न प्रतिभावान् व्यक्तियों को 100 के पैमाने से आँका है। अधिकतर गणितज्ञों को उन्होंने 100 में से 30 के निकट अंक दिए हैं, कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए हैं। केवल रामानुजन को उन्होंने पूरे-पूरे 100 में से 100 अंक दिए हैं। इससे बढ़कर रामानुजन अथवा गणित में भारतीय विरासत की और क्या प्रशंसा हो सकती है!
रामानुजन का कार्यक्षेत्र बड़ा विस्तृत रहा है। संख्या शास्त्र (Number Theory), मॉडुलर फलन शास्त्र (Modular Function Theory ), रूढ़ संख्याएँ, हाइपर ज्यामितीय श्रेणी, मॉडुलर फलन, दीर्घीय फलन (Elliptic Functions), मॉक-थीटा फलन, यहाँ तक कि मैजिक वर्ग के अतिरिक्त दीर्घवृत्त की ज्यामिति एवं वृत्त के वर्गीकरण जैसे गंभीर विषय उनके कार्यक्षेत्र में आते हैं। अंकों पर रामानुजन का विशेष अधिकार था। प्रो. जी.एच.हार्डी ने उनके प्रति एक श्रद्धांजलि में रामानुजन को ‘प्रत्येक अंक का व्यक्तिगत मित्र' कहा है।