कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१०) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(१०)

जब कालवाची ने कोई उत्तर ना दिया तो कुशाग्रसेन ने तनिक दीर्घ स्वर से पुनः कालिन्दी से पूछा....
कौत्रेय कहाँ है कालिन्दी!मेरे प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं देती?
जी!महाराज!वो बाहर गया है,कालिन्दी ने झूठ बोला...
किन्तु!क्यों?रात्रि को बाहर क्यों गया है वो?महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा...
जी!महाराज!अपनी पत्नी से मिलने,कालिन्दी ने पुनः झूठ बोला...
ठीक है यदि वो अपने निवासस्थान गया है तो तुम्हें मुझसे झूठ बोलने की क्या आवश्यकता थी कि वो अपने कक्ष में सो रहा है,ये तो समझ आ गया मुझे कि वो अपनी पत्नी से भेट करने गया है,परन्तु!ये कठफोड़वा!यहाँ क्यों है?महाराज कुशाग्रसेन ने क्रोधित होकर कालिन्दी से पूछा...
जी!ये उसका पार्षद(पालतू)पक्षी है,यही तो उसकी पत्नी का संदेश लेकर आया था,कालिन्दी ने पुनः झूठ बोला...
यदि ये उसका पार्षद पक्षी है तो ये उसके संग क्यों नहीं गया?महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा....
कदाचित!कौत्रेय अपने पार्षद पक्षी को यहीं छोड़कर गया है,कालिन्दी बोली...
तुम जानो और कौत्रेय जाने,ना जाने तुम दोनों ने ये क्या स्वाँग रचा रखा है?मैं अब और यहाँ नहीं ठहर सकता,मैं राजमहल जा रहा हूँ और इतना कहकर महाराज कुशाग्रसेन शीशमहल से चले आए.....
महाराज कुशाग्रसेन शीशमहल से बाहर आकर मन ही मुस्कुराएँ एवं मन में ही बोला...
ओह...आज तो प्राण बचे उस मायाविनी से,कौत्रेय का अपने कक्ष में ना होना,मेरे क्रोध का कारण बना, नहीं तो मैं उस मायाविनी से कैसें पीछा छुड़ा पाता, मुझे अब पूर्ण विश्वास हो चला है कि वो उन सभी हत्याओं की दोषी है,किन्तु कौत्रेय रात्रि को अपनी पत्नी से मिलने गया,ये बात कुछ अद्भुत थी,कदाचित वो मायाविनी झूठ कह रही हो,मुझे अब इस प्रसंग की तलहटी तक जाना होगा,यही सब सोचते सोचते महाराज कुशाग्रसेन राजमहल कब पहुँच गए उन्हें ज्ञात ही नहीं हुआ,राजमहल पहुँचकर उन्होंने अपनी रानी कुमुदिनी से रात्रि की पूर्ण कथा का विवर्णन किया,महाराज कुशाग्रसेन की बात सुनकर रानी कुमुदिनी बोली...
महाराज!ध्यान दीजिएगा,वो मायाविनी है,कहीं आपके प्राण संकट में ना पड़ जाएं....
हाँ!महारानी!आप सत्य कहतीं हैं,किन्तु राज्य की सुरक्षा हेतु मुझे इतना संकट तो उठाना ही पड़ेगा.....
महाराज और महारानी उस विषय पर अत्यधिक समय तक वार्तालाप करते रहे एवं कुछ समय पश्चात वें दोनों सो गए,प्रातःकाल हुई महाराज अभी जागे भी ना थे कि द्वारपाल ने आकर महाराज के कक्ष के समक्ष एक संदेश कहा जो कुछ इस प्रकार था....
महाराज की जय हो!सेनापति व्योयकेश एवं राजनर्तकी मत्स्यगन्धा आपसे शीघ्र ही भेंट करना चाहते हैं॥
द्वारपाल का स्वर सुनकर महाराज एवं महारानी जाग उठे एवं महाराज ने अपने कक्ष से ही कहा....
उन्हें शीघ्रतापूर्वक मेरे कक्ष में भेज दो...
कुछ समय पश्चात राजनर्तकी मत्स्यगन्धा एवं सेनापति व्योमकेश महाराज के कक्ष में पधारें एवं दोनों ने महाराज कुशाग्रसेन को प्रणाम किया,महाराज ने दोनों का प्रणाम स्वीकार करके पूछा....
कहिए!क्या बात है?जो आप दोनों इतनी प्रातः यहाँ पधारे...
तब मत्स्यगन्धा बोली...
महाराज!कल रात्रि तो अनर्थ हो गया? इसलिए मैं ने प्रातः होते ही सर्वप्रथम सेनापति व्योमकेश को ये सूचना सूचित करने का सोचा....
क्या अनर्थ हो गया मत्स्यगन्धा?कुशाग्रसेन ने पूछा....
महाराज!कल रात्रि मैं गुप्त रूप से कालिन्दी पर दृष्टि रख रही थी,जब कौत्रेय एवं कालिन्दी,कौत्रेय के ही कक्ष में वार्तालाप कर रहे थे तो मैनें सुना....इतना कहते-कहते मत्स्यगन्धा रूक गई....
रूक क्यों गईं मत्स्यगन्धा बोलो....,रानी कुमुदिनी ने कहा....
महाराज!मैनें सुना कि कालिन्दी का नाम कालिन्दी नहीं कालवाची है एवं कौत्रेय एक मनुष्य नहीं कठफोड़वा है,मैनें चुपके से उनके कक्ष में झाँककर देखा तो कालवाची से कौत्रेय ने कहा.....
कालवाची!मुझे मनुष्य रूप में निंद्रा नहीं आएगी इसलिए मुझे पुनः मनुष्य से कठफोड़वें में परिवर्तित कर दो,जो कि मैं हूँ.....
तब कालवाची बोली....
मुझे तो तुम मनुष्य रूप में ही सुन्दर दिखते हो एवं मनुष्य रूप में रहकर तुम सुन्दर स्त्रियों को अपने प्रेमजाल में फाँसकर उनसे प्रेम का अभिनय कर सकते हो,यहाँ शीशहमल में तो वैसें भी इतनी सुन्दर सुन्दर दासियाँ हैं....
तब कौत्रेय बोला....
वो तो ठीक है कालवाची!किन्तु मैं तो पहले से ही तुम्हारे लिए इतने झूठ बोल चुका हूँ,अब और कितने झूठ बुलवाओगी मुझसे,वैसें भी ये प्रेम-व्रेम मेरे वश की बात नहीं....
तब कालवाची बोली.....
वो तो ठीक है कौत्रेय!किन्तु तुम्हारा मत्स्यगन्धा के विषय में क्या विचार है?वो तो अत्यधिक सुन्दर है,उससे ही प्रेम कर लो....
तब कौत्रेय बोला....
वो राजनर्तकी मत्स्यगन्धा,वो तो देखने बस में सुन्दर है,किन्तु घमण्ड तो उसमें कूट कूटकर भरा हुआ है,देखा है ना वो कितनी हठी है,वो भला क्यों मुझसे प्रेम करने लगी....
और क्या क्या सुना तुमने राजनर्तकी मत्स्यगन्धा?महाराज कुशाग्रसेन ने पूछा....
तब मत्स्यगन्धा बोली.....
महाराज!वार्तालाप के मध्य उसने कहा कि उसे सुन्दर रहने हेतु मनुष्यों के हृदय भक्षण करने की आवश्यकता होती है,यदि वो ऐसा ना करें तो धीरे धीरे वो वृद्ध एवं क्षीण होती जाएगी....
इसका तात्पर्य है कि कालिन्दी ही वो हत्यारिन है,महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
महाराज!कालिन्दी नहीं कालवाची,सेनापति व्योमकेश बोले....
हाँ...हाँ...वही,किन्तु अब क्या समाधान होगा इस समस्या का ?महाराज कुशाग्रसेन बोले...
जी!समाधान तो एक ही है,मेरे तातश्री के मित्र कालभुजंग,जिनके विषय में मैने आपसे कहा था,मैनें उन्हें संदेशा तो भिजवा दिया है वे शीघ्र ही यहाँ पहुँचने वाले होगें...,सेनापति व्योमकेश बोलें....
तब महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
मैं भी कल रात्रि जब शीशमहल पहुँचा तो मैनें जब कौत्रेय से भेट करने की इच्छा जताई तो कालवाची कुछ विचलित सी हुई थी,इसका तात्पर्य है कि कौत्रेय मनुष्य नहीं है कठफोड़वा है,मैनें उस समय क्रोधित होने का अभिनय किया और शीशमहल से बाहर आ गया,पहले सोचा कि मत्स्यगन्धा से सब बता दूँ कि वो सावधान हो जाए किन्तु इसके पश्चात अनुभव हुआ कि कहीं कालिन्दी ने मुझे मत्स्यगन्धा से वार्तालाप करते देख लिया तो उसे मुझ पर संदेह हो जाएगा कि मैं उसे झूठे प्रेम का अभिनय कर रहा था....
ये आपने ठीक किया,महाराज!मत्स्यगन्धा बोली...
ओहो....तो आपको एक कठफोड़वा अपनी प्रेमिका बनाना चाहता है,किन्तु आपका शुष्क व्यवहार देखकर उसका मन इस बात की अनुमति नहीं देता,सेनापति व्योमकेश ने मत्स्यगन्धा से हँसते हुए कहा....
आप भी सेनापति जी!मुझसे परिहास ना करें,मैं तो वैसें भी चिन्तित हूँ कि अब ना जाने क्या होगा शीशहमल में ,उस पिशाचिनी के आने पश्चात कोई शेष भी बचेगा या नहीं,क्योंकि आज चौथा दिवस है और उसने अब तक भोजन नहीं किया,मत्स्यगन्धा बोली.....
ये तो अत्यधिक चिन्ताजनक बात है,सेनापति व्योमकेश बोले....
हाँ!वही तो मैं कहना चाहती हूँ कि अब शीशमहल के निवासियों के प्राण संकट में हैं,मत्स्यगन्धा बोली....
हम यदि कालिन्दी को राजमहल में ले आए्ं तो,रानी कालिन्दी बोली....
ये सम्भव नहीं है महारानी!वो विश्वास करने योग्य युवती नहीं है.....सेनापति व्योमकेश बोलें....
हम उस के क्रियाकलापों पर दृष्टि रख सकते हैं,रानी कुमुदिनी बोली...
ना महारानी!इतना संकट उठाने की आवश्यकता नहीं है,सेनापति व्योमकेश बोलें...
तो क्या करें ,कोई दूसरा मार्ग भी तो नहीं सूझ रहा,कुमुदिनी बोली...
बस हम कालभुजंग बाबा के आने तक प्रतीक्षा कर सकते हैं,वही हमें उचित मार्ग सुझाऐगें,सेनापति व्योमकेश बोलें....
किन्तु!आज रात्रि मुझे पुनः कालिन्दी से मिलने जाना होगा,आज कौन सा बहाना बनाकर मैं शीशमहल से लौटूँगा,महाराज कुशाग्रसेन बोलें....
तब मत्स्यगन्धा हँसते हुए बोली....
महाराज!ये तो आपकी प्रेमिका और आपकी समस्या है,इसमें हम सब क्या कर सकते हैं?
मत्स्यगन्धा की बात सुनकर सब हँस पड़े.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....