वीर सावरकर - 15 Veer Savarkar द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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वीर सावरकर - 15

नागपुर ( सन् १९३८ ई० )
मत विभाजन के सम्बन्ध में तथा अपने इतिहास पर एक दृष्टि डालते हुए श्री सावरकर जी ने कहा—

हिन्दू राष्ट्र जीवन तत्वों से बढ़ा है, काग़ज की सन्धि से नहीं
यह स्पष्ट हो गया होगा कि कम से कम ५ हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज वैदिक काल में ही हमारे देश के लोगों को धार्मिक, जातीय, सांस्कृतिक और राजनैतिक जीवन तत्वों से संगठित कर एक राष्ट्र
बना रहे थे जो आज हिन्दू राष्ट्र के नाम से समस्त भारत में फैला हुआ है और सब लोग भारतवर्षं को अपनी पितृभू पुण्यभूमि मानते हैं। चीन को छोड़कर संसार का कोई भी देश इतने-अधिक समय की राष्ट्रीय-जीवन की अविच्छिन्नता का दावा नहीं कर सकता जितना हिन्दू राष्ट्र अविच्छिन्न रूप से बढ़ा है।
हिन्दूराष्ट्र की वृद्धि कुकुरमुत्ता (अल्प जींवी पौधों) के समान नहीं हुई। हिन्दूराष्ट्र सन्धि करके नहीं बनाया गया है यह कोई कागज़ के टुकड़े से नहीं बनाया गया है। यह शान्त बैठे रहने को राष्ट्र नहीं बनाया गया था। यह कोई विदेशियों का नया राष्ट्र नहीं बनाया गया है। यह इसी देश की भूमि में बढ़ा है और इसकी जड़ें बहुत गहरी और दूर-दूर तक फैल गई हैं। यह मुसलमानों को अथवा संसार में किसी भी व्यक्ति को चिढ़ाने के लिये कपोल कल्पित कथा नहीं है। बल्कि यह हिमालय की भांति विशाल और ठोस सत्य है।
इसकी चिन्ता नहीं है कि इसमें कितने ही सम्प्रदाय हैं और कितने ही विभाग हैं, इसके अन्दर कितने ही विरूपता और विभिन्नता से मुक्त हैं। किसी भी राष्ट्र को इसलिये राष्ट्र नहीं कहा जा सकता कि उसमें विभाग नहीं हैं, अथवा विभिन्नता नहीं है किन्तु उनमें परस्पर सजातीयता और सहधर्मता अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा अधिक होती है क्योंकि वे निश्चित रूप से संसार के अन्य देशों के लोगों से अधिक परिमाण में भिन्न होते हैं । संसार में राष्ट्रों के जताने की यही एक कसौटी है।

भारतीय राष्ट्र की कल्पना का उदय

हमने हिन्दू राष्ट्र की सजीव तत्वों से वृद्धि और उसके विकास का इतिहास मरहठा साम्राज्य के पतन अर्थात् १८१८ तक का बताया है। बाद में मरहठा साम्राज्य का पतन हो जाने पर भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का आगमन हुआ। पंजाब में सिख हिन्दुओं के राज्य का पतन हो जाने से अंग्रेजों को समस्त देश में बेरोक-टोक अपना प्रभुत्व जमाने का मौका मिल गया था । अंग्रेजों ने देखा कि भारत को विजय करने में उन्हें जितने युद्ध करने पड़े वे सब हिन्दू राजाओं से ही करने पड़े। इसलिये ब्रिटिश लोगों को सबसे पहले यह चिन्ता थी कि हिन्दूराष्ट्र कोो किस प्रकार नष्ट करें। अंग्रेजों ने पहले भारत में ईसाई पादरियों को राजनैतिक सहायता देकर हिन्दुओं को ईसाई बनाने का यत्न किया। परन्तु सन् १८५७ के गदर ने उनकी आंखें खोल दीं कि हिन्दू और मुसलमानों के धर्म पर खुले रूप से हमला करने में क्या भय है, इसलिये उन्होंने ईसाई पादरियों को खुले रूप से सहायता करने का काम बन्द कर दिया। इसके बाद उन्होंने हिन्दूराष्ट्र को समूल नष्ट करने की एक दूसरी नीति सोची कि हिन्दू युवकों में पाश्चात्य शिक्षा, जो राष्ट्रीयता को नाश करने वाली थी, जारी कर दी। हिन्दू युवकों का पहिला दल, जिसने पाश्चात्य शिक्षा बड़े प्रेम से ग्रहण की थी, प्राचीन हिन्दूपन और हिन्दुत्व की भावना से बिलकुल अलग हो गया। उन्हें हिन्दूधर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू इतिहास का कुछ भी ज्ञान न रहा। इसके विपरीत मुस्लिम पाश्चात्य शिक्षा से एक हाथ पीछे रहे और परिणाम स्वरूप उनकी साम्प्रदायिक दृढ़ता नष्ट नहीं हो सकी। ब्रिटिश सरकार प्रसन्न हो रही थी। उन्हें मालूम था कि ऐसी परिस्थितियों में भारत में उनके राजनैतिक प्रभुत्व को किसी से यदि भय हो सकता है तो केवल हिन्दू जाति के राष्ट्रीय जागृति उत्पन्न होने तथा भारत में हिन्दूपद पादशाही स्थापित करने की भावना से हो सकता है। यह सत्य है कि सन् १८५७ के बाद भी यदि किसी हिन्दू को राजनैतिक दृष्टि से हिन्दू होने का अभिमान होता तो सन्देह से देखा जाता था क्योंकि उसे अपनी हिन्दूपद पादशादी नष्ट होने का दुःख रहता। इसीलिये जिस प्रकार किसी क्रान्तिकारी पर दृष्टि रखी जानी है उसी प्रकार उस पर दृष्टि रखी जाती थी । सन् १८५७ के गदर में हार जाने के बाद भी
पंजाब में रामसिंह कोक ने तथा महाराष्ट्र में वासुदेव बलवन्त फड़के ने अंग्रेजों को देश से निकाल कर पुनः हिन्दू साम्राज्य
प्राप्त करने के लिये सशस्त्र क्रान्ति की थी जिससे अंग्रेजों का सन्देह और भी दृढ़ हो गया था ।

राष्ट्रीय के लिये प्रादेशिक एकता कोई अंग नहीं है ।

आगे चलकर आपने कहा कांग्रेस गत ५० वर्षों से मुसलमानों को संयुक्त भारत में मिलाने का प्रयत्न कर रही है, परन्तु
फिर भी वह असफल क्यों रही, इसके मुख्य कारण क्या हैं ? उनसे यह कहना कि पहले भारतीय बनो और बाद में मुसलमान ? यह बात नही है कि मुसलमान भारतीय राष्ट्र न चाहते हों। परन्तु उनकी एकता की कल्पना भारत की राष्ट्रीय एकता -
प्रादेशिक एकता पर नहीं है। यदि किसी मुसलमान ने इस सम्बन्ध में अपने हृदय के भाव को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है तो मोपला विद्रोह के नेता अली मुसलियर ने । उसने युद्ध में निर्दयतापूर्वक हजारों स्त्री पुरुष और बच्चों को जबरदस्ती
मुसलमान बनाया और जिन लोगों ने मुसलमान बनने से इन्कार किया उन्हें उसने तलवार के घाट उतार दिया। अपने इस कृत्य का औचित्य बताते हुए उसने कहा था हिन्दू मुसलमानों की स्थायी एकता इसके सिवाय दूसरे किसी रूप से नहीं हो सकती कि समस्त हिन्दू मुसलमान बना दिये जायें । जो हिन्दू ऐसा करने से इन्कार करते हैं, वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के शत्रु हैं, अतएव देशद्रोही हैं और कत्ल करने के योग्य हैं। ये शब्द अली
मुसलियर ने अपनी मातृभाषा में स्पष्ट रूप से बिना किसी मिलावट के कहे थे । मुहम्मदअली जैसे सफाईबाज मुसलमान इन शब्दों को घुमा फिराकर इस रूप से कहेंगे, जो किसी की समझ में हीं न आवे, परन्तु इन सबका भावार्थ एक ही है। राष्ट्र निर्माण करने के लिये प्रादेशिक एकता नहीं चाहिये किन्तु धार्मिक, सांस्कृतिक और जातीय एकता की आवश्यकता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस तत्त्व को नहीं समझ सकी और यही कारण है कि इस सम्बन्ध मे अपने मनोरथ में विफल रही।

क्या भारतीय मुसलमानों में यह इच्छा है कि वे हिन्दुओं के साथ एक होकर रहें?

यही सब प्रश्नों में बड़े से बड़ा प्रश्न है और कांग्रेसी हिन्दू अपने कांग्रेस अधिवेशन के आरम्भ में इस तत्व पर एक मिनट के लिये भी विचार नहीं करते और न उस समय करते हैं जब कांग्रेस का अधिवेशन मुसलमानो की नमाज के लिये स्थगित किया जाता है। केवल मुस्लिम लीग को साम्प्रदायिक घोषित कर देना मात्र व्यर्थ है । यह कोई समाचार नहीं है। वास्तविक बात तो यह है कि समस्त मुस्लिम जाति ही साम्प्रदायिक भावना से परिपूर्ण है और इसमें कांग्रेसवादी मुसलमान भी सम्मिलित हैं। यह बात समझनी चाहिये कि वे साम्प्रदायिक क्यों हैं ? कांग्रेसी हिन्दू इस प्रश्न पर आरम्भ से ही विचार करना नहीं चाहते। उन्हें भय है, कि यदि वे इस प्रश्न पर विचार करेंगे तो उन्हें अपनी प्रादेशिक राष्ट्रीयता को धुन के भूत को धर्मान्धता, मूर्खता कहकर छोड़ना पड़ेगा । आप इसे भले ही धर्मान्धता या मूर्खता कहें परन्तु मुसलमानों के लिये यह धर्मान्धता या मूर्खता एक
ठोस तत्व है। आप गालियां देकर उस पर विजय प्राप्त नही कर सकते, बल्कि जिस अवस्था में वह है, उसमें मुकाबला करना चाहिये | मैने ऊपर जो कारण बताये हैं उनसे मुसलमानों के लिये यह बिलकुल मनुष्योचित बात है, कि वे प्रादेशिक राष्ट्रीयता
के प्रति अपनी उदासीनता प्रकट करें । यह वात कांग्रेसवादियों को प्रकट हो गई है। कांग्रेसवादी लोग मुसलमानो के इतिहास, तत्वज्ञान और उनकी राजनीतिक मनोवृत्ति से बिलकुल अंजान
जान पड़ते हैं।
मुसलमानों की मनोवृत्तियों का चित्रण करते हुए आपने कहा कि मैं चाहता हूँ कि ब्रिटिश सरकार भी ऊपर बताई हुई बात
पर गम्भीर रूप से ध्यान करे और मुसलमानों की हिन्दुओं के विरुद्ध कार्यवाही करने की नीति को कम करा दे। मुस्लिम लीग
ने खुले रूप से यह घोषित किया है कि भारत के दो भाग कर दिये जायेंगे एक मुस्लिम फेडरेशन और दूसरा हिन्दू फेडरेशन । हिन्दुओं के मुंह पर थुकवाने के लिये ब्रिटिश सरकार अपनी लाडली बीबी का इतना अधिक विश्वास कर रही है, जरा इसे वह अच्छी तरह विचार ले। अपने इस उद्योग से कही ब्रिटिश सरकार के ही मुॅह पर थूक न पड़ जाय । परन्तु चाहे जो हो, यह काम हमारा नहीं, ब्रिटिश सरकार का है। इसकी चिन्ता ब्रिटिश सरकार को होनी चाहिये। वास्तव में हम हिन्दुओं का काम केवल इतना ही है कि हम निश्चय कर ले कि न तो हम ब्रिटिश सरकार के गुलाम बनेगे और न मुसलमानों के हम अपने घर में, हिन्दुओं की भूमि हिन्दुस्थान के स्वयं मालिक बनेगे।

हमारा तुरन्त क्या कार्यक्रम होना चाहिये ।
ऊपर जो कारण बताये गये हैं कि भारतीय मुसलमान भारत में समान रूप से और समान दर्जे से प्रादेशिक नाते से एक राष्ट्र बनाने मे या राजनैतिक एकता बनाने में कभी साथ नहीं देते इसलिये हम हिन्दू संगठनवादियों का कर्त्तव्य है कि अपनी पहली भूल को सुधार लें। हमारा पहिला राजनैतिक अपराध जो हमारे कांग्रेसवादी हिन्दुओं ने अंजान से कर डाला और जिसे वे आज भी करते चले आ रहे है, वह यह है कि वे प्रादेशिक राष्ट्र की मृगतृष्णा के पीछे दौड़े चले जा रहे हैं और अपनी इस व्यर्थ की दोड़ में वे उस सजीव हिन्दू राष्ट्र को मार डालना चाहते है जो
इतने प्रेम से पोषित किया था। हम हिन्दुओं को चाहिये कि जहां से मरहट्ठा और सिख हिन्दू साम्राज्य का पतन हुआ है, वहां से हम राष्ट्रीय जीवन का सूत्र ग्रहण करें । योग्य आहार के अभाव में हिन्दू राष्ट्र को अचानक आघात पहुॅचा और उसे आत्मविस्मृति को हटाकर उसमें फिर से नवजीवन फूंकना है जिससे उसमें जीवन और वृद्धि के तत्वों की वृद्धि होती रहे । इसलिये हमें बड़ी दृढ़तापूर्वक विघोषित कर देना चाहिये कि सिन्धु नदी से दक्षिण महासागर तक सारा देश हिन्दुओं का है और हम हिन्दुओं का एक राष्ट्र है—वही इसके मालिक हैं। यदि आप भारतीय राष्ट्र कहेंगे तो यह हिन्दूराष्ट्र का पर्याय ही समझा जायेगा । हम हिन्दुओं के लिये भारत और हिन्दुस्थान एक ही देश है। हम हिन्दू होने के नाते भारतीय भी हैं और भारतीय होने के कारण हिन्दू हैं।

परन्तु करेंगे कैसे ?

हिन्दू राष्ट्रवादियों को साम्प्रदायिक कहने से न गिड़गिड़ाने का उपदेश करने के बाद आपने कहा कि अपनी इस हिन्दू नीति से आप सहमत तो अवश्य होंगे, परन्तु आप सबके सामने एक
प्रश्न विशेष रूप से आता होगा कि यह सब होगा कैसे ? इस नीति को व्यवहार में कैसे लाया जाये ? यह हिन्दू संगठन दल शक्तिहीन अवस्था में है, इसके सामने अनेक कठिनाइयां हैं, फिर
उस शक्तिशाली स्थिति को कैसे प्राप्त किया जाये ? इसका एक ही उत्तर है। आप निराश न हों। अभी एक बड़ा शक्तिशाली अस्त्र हमारे समीप ही है। ठीक दिशा में अपना हाथ फैलाओ और उस शस्त्र को पकड़ लो । बस यहीं से इसका आरम्भ होता है।

कांग्रेस का बहिष्कार करो

राजनीतिक सत्ता के स्थानों पर अपना अधिकार करने के
लिये कहते हुए आपने कांग्रेस का बहिष्कार करने का उपदेश दिया और कहा कि कांग्रेस के टिकट वाले उम्मीदवार को अपना वोट न देकर केवल हिन्दू राष्ट्रवादियों को ही अपना बोट दें।
क्योंकि ये कांग्रेस वाले यों तो अपने को हिन्दू समझना अपने गौरव के विरुद्ध समझते हैं, परन्तु विधान के अनुसार प्रत्येक उम्मेदवार को अपना धर्मं और जाति लिखनी होती है और ये काग्रेस के उम्मेदवार उस समय राष्ट्रीयता भूलकर चुपचाप
अपनी जाति, धर्मं आदि लिख देते हैं और अपनी जाति वालों से कहते हैं कि हमें ही मत दीजिये। जिससे ये सबसे अधिक मतों से चुने जा सकें। परन्तु जहां वे चुन लिये गये, फिर वे अपने को हिन्दू समझने में अपना अपमान समझने लगते हैं । परन्तु यदि आप इन्हें यह स्पष्ट बता दें कि आप ऐसे दुफसलो हिन्दुओं को अपना मत नहीं देंगे तो इनमें से ७५ फीसदी राष्ट्रवादी चुपचाप हिन्दू महासभा के प्रतिज्ञा पत्र की शपथ ले लेंगे किन्तु धारा सभा के सदस्य अथवा मन्त्री होने का अवसर नहीं जाने देगे।

ठोस हिन्दू राष्ट्रीय दल की स्थापना करो
आगे चलकर आपने बताया कि कांग्रेस के इस हिन्दू विरोधी और राष्ट्र बिरोधी भाव का मुकाबला हिन्दू राष्ट्रीय दल कीीस्थापना से हो सकता है। देश के समस्त सनातनी, आर्यसमाजी, हिन्दू संगठनबादी और साधु-संन्यासी संगठन करके यह निश्चय कर लें कि हम कांग्रेस के टिकट वाले उम्मेदवार को अपना वोट नहीं देंगे तो आगामी चुनाव में हिन्दू महासभा का बहुमत हो जायेगा । यदि यह संभव न भी हो तो भी आप अल्पसंख्या में ही चुने जायें और सरकार को अपनी मनमानी न करने दें । यदि यह हो जाय तो सारा दृश्य ही बदल जायेगा। देश में हिन्दू राष्ट्र का फिर उदय होगा और प्रत्येक हिन्दू अपना सीना आगे करके चलेगा।
इससे हिन्दू संगठनवादियों ! आप आज से हिन्दू राष्ट्रबादियों को अपना मत देना आरम्भ कर दे और फिर आप देखेंगे कि आपकी शिकायतें धुएँ की भांति उड़ जायेंगी। जब आपको इतना प्राप्त हो जायेगा तब आप एक दिन स्वतन्त्र शक्ति शाली हिन्दूराष्ट्र का उदय देखेंगे जिसमें उन सब नागरिकों को समान अधिकार दिये जायेंगे जो भारत के सच्चे भारतीय नागरिक हैं। जो राजनीतिक सत्तायें हैं उन्हें प्राप्त कर लो। हिन्दूराष्ट्र का झण्डा ऊँचा करो यह देखो कि भारत सदा हिन्दुस्थान बना रहे । पाकिस्थान या इंगलिस्थान न बनने पायें |