मौत का हिसाब नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मौत का हिसाब

मौत का हिसाब--

अपराधी पैदा नही होता बल्कि अपराधी बनाया जाता है कोई भी प्राणि अपने मूल स्वभाव के साथ जन्म लेता है किसी विशेष परिस्थितियों में उसके स्वभाव में परिवर्तन स्प्ष्ट परिलक्षित होता है जो भयावह और घातक होता है कहावत विल्कुल सही हैं कि अपराधी माँ की कोख से पैदा नही होता है ।।लेकिन जब कोई अपराध के रास्ते चल पड़ता है तो उसे उसी दलदल में फंसकर रह जाना पड़ता है अपराधी या तो समाज पैदा करता है या परिस्थियां दोनों ही समय समाज की अपनी
महत्वकांक्षाओ पर निर्भर रहते है।।
पण्डित बृषभान बहुत निर्धन ब्राह्मण थे उनको भोजन के लिये या तो भीख
मांगना पड़ता था या जवार में मरनी करनी शादी व्याह से भोजन की व्यवस्था होती पण्डित जी बिहार के छपरा जनपद के पकरुखिया स्टेशन के पास छपरौली गांव के रहने न थे गांव में सभी जातियों सम्प्रदाय के अमीर गरीब सभी स्तर के थे पण्डित जी के पास खेती के लिये जमीन नही थी घर के लिये भी जमीन नही थी बड़ी मुश्किल से ग्राम सभा ने उनको दो बिसा जमीन घर बनाने को दे रखी थी पंडित ने किसी तरह से छप्पर आदि डाल रखा था पण्डित बृषभान के पांच बेटे एव एक बेटी थी सुदीप
प्रदीपअमीष,सुधीश,मनीष एव एक मात्र बेटी मनीषा थी पण्डित जी को इतने बड़े कुनबे की मात्र दो वक्त के भोजन व्यवस्था मेहनत करनी पड़ती एव जुगत लगानी पड़ती बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी परिवार को नसीब होती बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे थे पण्डित जी की औकात पढ़ाने की नही थी फिर भी बच्चे गांव के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ते इससे पण्डित जी को बच्चों के दिन के भोजन की चिंता सप्ताह में छः दिन नही करनी पड़ती जहां आज कल लोंगो की जरा भी माली हालत ठीक होने पर लोग अपने बच्चों को कान्वेंट स्कूलों में पढ़ने भेजते है एक तो कान्वेंट में पढ़ने वाले बच्चों के माँ बाप को कल्चर्ड हाई स्टेटस सोसायटी का विकसित माना जाता है जबकि प्राइमरी स्कूलों में पड़ने वाले बच्चों के माँ बाप को कमजोर आर्थिक स्तिथि वाला आधुनिकता के विकसित समाज से अलग माना जाता है और पढ़ने वाले बच्चे भी भोजन कपड़ा एव छात्र बृत्ति के लालच में देश द्वारा करोड़ो अरबो की लागत से चलाए जा रहे प्राथमिक विद्यालयो में जाते है ऐसी अवधारणा समाज मे है।।पण्डित बृषभान के बेटो में दो दो वर्ष का मात्र अंतर था तो कोई बेटा कक्षा एक मे पढ़ता तो कोई दो में तो कोई तीन चार में संतानों में मनीषा सबसे छोटी थी पण्डित जी की दशा यह थी कि सर्दी के मैसम में कोई बढ़ा व्यक्ति क्षेत्र में मरता तो उसके गर्म कपड़े रचाई आदि से उनके परिवार के लांगो का काम चलता प्राइमरी स्कूल गांव में ही था बच्चो को कही दूर जाना भी नही पड़ता गांव के प्राइमरी विद्यालय के प्रधानाध्यापक थे त्रिगुणा मिश्र जिनको पण्डित जी की पारिवारिक स्थिति की पूरी जानकारी थी त्अतः उनकी कोशिश रहती की पण्डित जी के बच्चे लिख पढ़ जाए तो उनके दुखो का अंत हो पण्डित बृषभान के बारे में जवार में प्रचलित था कि जब भी किसी के दरवाजे पर पहुंचते थे कुछ मांगने के लिये ही कभी कोई उन्हें कुछ दे देता तो कभी लोग उनको तरह तरह से लज़्ज़ित कर अपमानित करते कभी लोग कहते पण्डित जी छः औलाद तो पैदा करते है और पालने खिलाने की औकात नही कभी कोई कहता पण्डित मुस्तण्ड जैसे है कोई मेहनत मजदूरी करनी चाहिये पण्डित जी को देखकर गांव कुत्ते भौंकते और बच्चे पागल समझ चिढ़ाते पण्डित जी अपमान के सारे घूंट पीते जाते प्राथमिक विद्यालय के प्राचार्य पण्डित जी के बच्चों को पढ़ने पर ध्यान देने के लिये तरह तरह से प्रेरित करते समय की गति सदैव एक जैसी नही होती और करवट बदलती रहती है सुदीप ने कक्षा पांच पास बहुत अच्छे नम्बरों से किया तब प्रधानाध्यापक त्रिगुण मिश्र ने पण्डित बृषभान को बुलाया और बोले पण्डित जी सुदीप ने कक्षा पांच की परीक्षा बहुत अच्छे नम्बरों से पास कर लिया है वारणसी में हमारे मित्र जलेश्वर पाठक जी है जिनके पास गरीब परिवारों के बच्चे रहते है थोड़ा बहुत काम के साथ फ्री खाना रहना और शिक्षा की व्यवस्था रहती है आप कहे तो मैं सुदीप को वहां भेज देता हूँ आपके एक बच्चे की परिवश और शिक्षा दोनों कि व्यवस्था हो जाएगी पण्डित जी को तो जैसे मुह मांगी मुराद मील गयी उन्होंने बिना किसी प्रश्न उत्तर के अपनी सहमति दे दी त्रिगुणा मिश्र को कुछ दिन बाद वारणसी जाना था उन्होंने बृषभान से कहा कि मुझे जब वाराणसी जाना होगा तब बताऊंगा आप सुदीप को एक दिन पहले मेरे यहाँ छोड़ दीजिएगा ।।पण्डित बृषभान त्रिगुणा मिश्र जी से मिलकर घर लौटे और तुरंत ही उन्होंने सुदीप को और सारे भाई बहनों और पत्नी बैजंती को बुलाया और त्रिगुणा मिश्रा से हुई वार्ता का विवरण बताया पत्नी बैजंती ने अपनी सहमति यह कहते हुये दे दी कि आप बाप है जो कुछ करेंगे बच्चो की भलाई के लिये ही करेंगे सुदीप भी आज्ञा कारी बेटे की तरह पिता के आदेश को अपना कर्तव्य मानकर कहा हा पिता जी हम पढने वारणसी जाएंगे एक सप्ताह बाद त्रिगुणा जी स्वय आये और पंडित बृषभान से बोले पंडित जी हम सुदीप को कल लेकर वाराणसी जाएंगे आज सुदीप हमारे साथ ही रहेगा हमारे घर उंसे मेरे साथ भेजने की तैयार कर दे पण्डित बृषभान बोले तैयारी करने के लिये मेरे पास कुछ नही है आप जब चाहे उंसे ले जा सकते है पण्डित जी अपनी छोपडी के अंदर गए और सुदीप का हाथ पकड़कर बाहर लेकर आये बोले मास्टर साहब सुदीप अब आपके हवाले है इसकी देख रेख भविष्य अब आपके भरोसे त्रिगुणा मिश्र जी बोले आपने भरोसा किया है तो आपका भरोसा व्यर्थ नही जाएगा विश्वास रखिये सुदीप ने बड़ी विनम्रता पूर्वक अपने प्रधानाध्यापक त्रिगुणा मिश्र जी के चरण छूकर आशीर्वाद लिया पण्डित बृषभान बड़ी दयनीय भाव से बोले मास्टर साहब मैं तो आपकी कोई सेवा सत्कार नही कर सकता मेरे पास कुछ है ही नही त्रिगुणा जी बोले कोई बात नह सुदीप को साथ लेकर कब आंखों से ओझल हो गए पता ही नही चला।।सुदीप के जाने से बाकी भाईयों और परिवार में उसके जाने की मायूसी थी परिवार अमीर हो या गरीब सभी को अपने विशेष के बिछड़ने का विछोह होता था लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी त्रिगुणा मिश्र की दया के अतिरिक्त नही था।इधर त्रिगुणा मिश्र अपने साथ सुदीप को लेकर जलेश्वर पाठक के घर लेकर वारणसी पहुंचे और पण्डित बृषभान की सारी सच्चाई को बताते हुये उन्होंने व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर सुदीप को छोड़ने की बात कही जलेश्वर पाठक ने त्रिगुणा जी को आश्वस्त करते हुये कहा कि मिश्र जी निश्चिन्त रहिये अब सुदीप मेरे संरक्षण में रहेगा और एक अच्छा बेटा और राष्ट्र का शसक्त नागरिक बनाने की मैं पूरी ईमानदारी से कोशिश करूँगा त्रिगुणा मिश्र जी एक दिन वाराणसी रुकने के बाद लौट आये जलेश्वर पाठक जी ने सुदीप को बच्चो के साथ रहने के नियम अनुशासन समझाते हुये कहा कि कोई अनुशासन हीनता बर्दाश्त नही होगी सुदीप अभी बच्चा था और दुनियादारी की बहुत संमझ नही थी मगर उसे अपने परिवार की स्थिति की समझ अवश्य थी अतः उसने जलेश्वर जी के हर निर्देश को बहुत गम्भीरता से ग्रहण किया और उंसे अपने आचरण में ढाल लिया सुदीप का जलेश्वर पाठक ने संस्कृत शिक्षा पद्धति से शुरु कराई सुदीप आचार्यो के मध्य संस्कृत की
प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करना शुरू किया और साथ साथ अंग्रेजी का भी अध्ययन शुरू किया अध्ययन के साथ साथ सारे निर्देश जो जलेश्वर पाठक द्वारा दिये गए थे उनको अक्षरशः पालन करता ।इधर पण्डित बृषभान का दूसरा बेटा प्रदीप भी कक्षा पांच की परीक्षा सुदीप से अधिक नम्बरो से पास किया था पुनः त्रिगुणा मिश्र ने पण्डित बृषभान को बुलाया और बोले पण्डित जी सुदीप को गए दो वर्ष हो गए उसकी चिठ्ठियां आती है उसने कभी कोई परेशानी या दिक्कत की बात लिखी आपको पण्डित बृषभान बोले नही मास्टर साहब उसने कभी किसी परेशानी की कोई बात नही लिखी हा जबसे गया आया नही कभी उसकी माँ बैजन्ती जरूर उसकी याद में उदास हो जाती है लेकिन मास्टर साहब कोई बात नही बच्चे किसी लायक हो जाये तो मेरी तरह से अपनमान अभिशाप की जिंदगी तो कम से कम नही जिएंगे आप प्रदीप को भी ले जाईये त्रिगुणा मिश्र जी प्रदीप को भी जलेश्वर पाठक के हवाले कर आये प्रदीप के आने से सुदीप को बहुत खुशी हुयी प्रदीप को जलेश्वर पाठक द्वारा कोई निर्देश नही दिये गए सुदीप ने ही रहने के सारे अनुशासन नियम समझा दिए अब सुदीप और प्रदीप साथ साथ बड़े खुश थे सुदीप तीन वर्ष की प्राथमिक संस्कृति शिक्षा के बाद प्रथमा में प्रवेश लिया और उसकी विधिवत शिक्षा का दौर शुरू हुआ इधर प्रदीप भी भाई के नक्से कदम पर चलता मेहनत लगन से पढ़ता और निर्धारित कार्यो को पूरा करता जलेश्वर पाठक को भी सुदीप और प्रदीप से कभी शिकायत नही हुई जबकि कभी कभार अन्य बच्चों को जलेश्वर पाठक द्वारा डांट और दंड दोनों मिलता।।दो वर्ष बाद अमिष ने भी कक्षा पांच की परीक्षा दोनों भाईयों से अच्छे नम्बरो से पास किया और प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक त्रिगुणा मिश्र ने अमिष को भी जलेश्वर पाठक के यहाँ छोड़ दिया फिर सु सुदीप ,प्रदीप और अमिष वारणसी में जलेश्वर पाठक के पास रह कर अंग्रेजी संस्कृति की शिक्षा ग्रहण करते थे कुछ दिन बाद सुधीश भी चला गया अब पंडित बृषभान के पास पत्नी बैजंती के अलावा सु मनीष पुत्री मनीषा ही रहती मनीष की आयु लगभग पंद्रह वर्ष थी वह कभी तीन कभी चार में ही कई वर्ष पढ़ता रहा प्रधानाध्यापक त्रिगुणा कितनी ही बार उसे समझने की कोशिश करते और उसके चारो भाईयों का वास्ता देते मगर मनीष पर कोई प्रभाव नही पड़ता अंत मे हार मानकर एक दिन त्रिगुणा मिश्र जी ने पंडित बृषभान को बुलाया और बोले पण्डित जी मुझे माफ़ करना मैंने आपके पांचवे बेटे मनीष को समझने की बहुत कोशिश किया परन्तु इसके ऊपर कोई असर नही पडा अब मेरा ताबादला दूसरे विद्यालय हो चुका है मुझे खेद है कि आपकी इस औलाद को सही रास्ता नही दिखा सका यह मेरे जीवन की बड़ी असफलता है अब तक मैंने जिस भी बच्चे को सही रास्ता दिखाया वह समाज का अच्छा नागरिक बना मगर मनीष अकेला ऐसा बच्चा है कि इस पर किसी दूसरे का प्रभाव नही पड़ सकता है यह अपने धुन ध्येय का पक्का है और अपने नीर्णय से जिस भी रास्ते पर जाएगा एक इतिहास कायम करेगा ये जो करना चाहे करने देंना और इसे तिरस्कार अपमान से बचाना क्योकि इसके बाल मन मे एक दबी चिंगारी है जो कभी भी ज्वाला का रूप धारण कर सकती है इतना कहते हुए त्रिगुण जी चले गए और कुछ दिनों बाद वे अपने नई नियुक्ति के स्थान चले गए।।
पण्डित जी के चारो बेटो के पास मेहनत के साथ पढ़ने के अलावा कोई विकल्प नही था दिन बीतते गए उधर
सुदीप प्रदीप और अमिष और सुधीश को कठिन परिश्रम के अलावा कोई विकल्प नही दिखता वे मेहनत से पढ़ते जा रहे थे सुदीप ने संस्कृत व्याकरण से आचार्य किया और अंग्रेजी में एम ए और फिर संस्कृति में विद्या वाचस्पति और प्रदीप भी आचार्य करने के साथ फ्रेंच लैंग्वेज की भी शिक्षा ग्रहण किया अमिष ने संस्कृत साहित्य और हिंदी साहित्य में उच्च डिग्री हासिल किया और सुधीश ने संस्कृत से आचार्य करने के साथ साथ जर्मन एव योग की शिक्षा हासिल किया चारो भाईयों की शिक्षाएं चल ही रही थी कि एक दिन भयंकर आफत पण्डित बृषभान के परिवार पर आ गयी पण्डित जी गांव से बाहर भोजन आदि की व्यवस्था में गांव से पास के बाजार जा ही रहे थे कि अचानक एक अनियंत्रित ट्रक उनको कुचलते हुये आगे निकल गयी जब यह खबर मनीष को प्राप्त हुई तब मनीष मनीषा बैजंती तुरन्त भागे भागे दुर्घटना स्थल पहुंचे भीड़ लगी थी कोई भी पण्डित जी को अस्पताल तक ले जाने की जहमत नही उठा पा रहा था सभी वीडियो ग्राफी कटने में जुटे थे किसी तरह बहुत याचना करने पर पण्डित बृषभान को नजदीक ब्लॉक के स्वस्थ केंद्र ले जाया गया जहां से डॉक्टरों ने उन्हें जिला चिकित्सालय के लिए रेफर किया फिर पण्डित जी को पचास किलोमीटर लांगो ने चंदा करके पहुँचवाया जिला चिकित्सालय के डॉक्टरों ने पण्डित बृषभान को आई एस पी जी आई पटना के लिये अपने एम्बुलेंस से भेज दिया केवल चार लोग जिनके पास खुद के आहार के लिये भोजन की व्यवस्था नही थी तो पंडित बृषभान की चिकित्सा कैसे होती आई एस जी पी जी आई ने पंडित बृषभान को भर्ती तो कर लिया लेकिन इलाज के पैसे व्यवस्था मनीष बैजंती के पास नही थी मनीष अजनवी शहर में करता भी क्या साथ मे माँ और बहन के खाने रहने का खर्च अलग से मनीष ने हिम्मत नही हारी काम भी कौन देता उसने मजदूरी करना शुरू किया दिन में मजदूरी करता रात में रिक्सा चलता चार पांच घण्टे ही सोने को मिलता फिर भी इतने पैसे नही मिलते की पिता का इलाज और माँ बहन का पेट पाल सके डॉक्टरों द्वारा बृषभान की चिकित्सा करते एक माह से अधिक हो चुके थे मगर पण्डित जी की हालत में कोई सुधार नही था चिकित्सको को भी मरीज बृषभान की आर्थिक हालत की जानकारी थी कभी कभी कुछ डॉक्टर ही चंदा लगाकर आवश्यक दवाएं पण्डित बृषभान के लिये मंगाते डॉ क्षमा द्विवेदी पण्डित जी की चिकित्सा कर रही दल में जूनियर रेजिडेंट थी आते जाते कभी कभार मनीषा से बात करके हाल चाल पूंछ लेती एक दिन उन्होंने मनीषा को बुलाया और कहा कि तुम अपने भाई मनीष से कहो कि मुझसे मिले मनीषा ने भाई मनीष को डॉ क्षमा का संदेश दिया मनीष ने भाईयों को कोई सूचना पिता के दुर्घटनाग्रस्त होने के सम्बंध में नही दी थी सिर्फ इनता ही पत्र से सूचित किया था कि वह पिता जी माँ मनीषा को लेकर पटना जा रहा है जल्दी ही पटना का पता भेज देंगे आप लोग मेहनत से पिता जी के आशाओं को पूरा करने में पढ़ाई करते रहे उस हम उचित समय समय पर हाल चाल देते रहेंगे और आप लोग गांव या गाँव वालों से कभी
संपर्क ना करे क्योकि उनको कुछ पता
नही हैं भाईयों को भी लगा कि मनीष निश्चित रुप कुछ खास विचार लेकर कर ही पटना गया होगा उस पूरे परिवार के पास इस आधुनिक युग मे भी मोबाइल नही था।जब मनीषा ने डॉ क्षमा द्विवेदी के बुलावे का संदेह दिया मनीष तुरन्त से मिलने डॉ क्षमा के पास गया डॉ क्षमा द्विवेदी ने मनीष को बढ़े सम्मान के साथ बैठाया और कहा तुम्हे कुछ भी बताने की जरूरत नही दो महीने में मुझे तुम्हारे परिवार के विषय में सब कुछ मालूम है अब तुम हमारी बात ध्यान से सुनो मैं तुम्हे दस हज़ार रुपये उधार दे रही हूँ तुम इससे जो भी हुनर जानते हो व्यवसाय का वही व्यवसाय शुरू करो मुझसे तब तुम मिलने आना जब तुम्हारे पास दस हज़ार रुपये वापस करने के लिये हो जाये उससे पहले मत आना मनीष कुछ नही बोला दस हज़ार रुपये लिया और चल पड़ा लौट कर आने के बाद उसने सारी बाते माँ बैजंती और बहन मनीषा को बताई और दूसरे दिन सुबह उठा और एक ठेका खरीदा कुछ वर्तन खरीदा और अगले दिन से उसने आई एस पी जी आई से कुछ दूरी पर बाटी भर्ते की चलती फिरती दुकान शुरू किया पण्डित बृषभान कोमा में ही थे और इलाज चल रहा था उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी बाटी भर्ते की चलती फिरती दुकान चल निकली और दो ही महीने में मशहूर हो गयी उसने डॉ क्षमा द्विवेदी का पैसा वापस कर दिया और आई एस पी जी आई के सामने ही एक छोटा मकान किराए पर ले लिया पंडित जी कोमा में ही थे उनका इलाज होते लग्भग छ माह का समय बीत चुका था कहते है जब समय भाग्य मेहबान होते है तो एक साथ सब चमत्कार होने लगते है पण्डित जी की हालत में आश्चर्यजनक सुधार होने लगा और दो महीने में स्वस्थ होकर बैजंती और मनीषा के साथ पटना रहने लगे मनीष ने भाईयो को तब पत्र से सारे घटना क्रम की जानकारी दी चारो भाई वाराणसी से एक साथ पटना आये और कुछ दिन रहने के बाद पुनः वाराणसी लौट गए ।मनीष की चलती फिरती बाटी भर्ते की दुकान इतनी मशहूर हो चुकी थी कि उसके यहां शहर के बड़े से बड़े रईस घराने के लोग आते और बाटी चोखा खाते मनीष सुबह से शाम रात अपने धंधे में व्यस्त रहता उंसे पटना आये डेढ़ वर्ष हो चुके थे कभी कभार डॉ आशा को बाटी भर्ता पहुचाने अवश्य जाता एकाएक एक दिन कुछ बाहुबली घरानों के बिगड़ैल औलादे मनीष कि दुकान पर आए भीड़ लगी थी उन्हने बाटी भरते का आर्डर दिया मनीष उनके आर्डर को बनाने लगा भीड़ के कारण कुछ बिलम्ब हुआ बिगड़ैल नौजवानों की टोली मनीष के पास आई और बोली अबे हमे क्या तब बाटी देगा जब तेरी बहन के बराती खा कर जा चुके होंगे मनीष बोला साहब बना ही तो रहे है क्यो ऊँट पटांग बोल रहे है तब उन बिगड़ैल नौजवानों में से एक बोला इसके पास तो जुबान भी है साले की जुबान ही काट देते है सब के सब शराब के नशे में धुत थे और चारो ने मिल कर मनीष को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया जो लोग भी वहां मौजूद थे भाग खड़े हुये मनीष को भी बचने का जब कोई तरीका नही सुझा तब उसने बाटी की आग उठा कर चारो के ऊपर फेंक दिया जब तक चारो सम्भल पाते तब तक पास पड़े पत्थर उठाकर दो नौजवानों के सर पर बड़ी तेजी से मारा जिसके कारण दोनों लहुलुहान होकर गिर पड़े और कब मर गए पता ही नही चला अब मनीष अनजाने में किये अपराध के लिये छुप छुप कर भागे भागे कभी इधर कभी उधर जाता उसने किसी तरह से डॉ क्षमा से संपर्क कर माँ बैजंती और मनीषा को वारणसी भेजवा दिया जब वाराणसी में भाईयों को सच्चाई मालूम हुई तो चारो भाईयों ने जलेश्वर पाठक से संपर्क किया तब जलेश्वर पाठक ने समझया की तुम लोग अब अपनी मंजिल के करीब हो मनीष को उसके भाग्य कर्म पर छोड़ दो चारो भाई पाठक जी की बात को मान कर भाग्य नियति का खेल देखने लगे इधर मनीष
मनीष को जब पता चला कि जिनकी मृत्यु उसके मारने से हुई है दोनों पटना के दुर्दान्त बाहुबली संग्राम सिंह और माधव सिंह के जवान बेटे थे संग्राम सिंह और माधव सिंह का दहशत इतना था कि आम नागरिक नाम लेने से डरते थे शहर में उनके क्षेत्र बटे थे जहाँ के व्यवसायी और शहरी अपनी आमदनी से गुंडा टेक्स देते थे पुलिस तो उनके सामने दुम हिलाती थी अब मनीष जाए तो जाए कहा उसके सामने कोई रास्ता नही सूझ रहा था संग्राम सिंह और माधव महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टीयों के रसूकदार थे सत्ता उनके हाथ की कठपुतली थी चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के चुनाव में उनका बाहुबल धनबल काम आता मंत्री ऐसे दरबार करते जैसे कोई पालतू कुत्ता मनीष के पास कोई रास्ता था ही नही शहर के चप्पे चप्पे पर उनके गुंडे मनीष की तलाश में जुटी थी और परोक्ष प्रशासन पुलिस भी उनके ही कार्य मे लग गयी थी भागते भागते मनीष ऊब चुका था वह रात्रि को ज्यो ही गंगा नदी में कूदकर जान देने के लिये पल की रेलिंग पर चढ़ा तभी पीछे से आवाज आई मुह छुपा कर मरने क्यो जा रहे हो दुनिया मे जीना है तो जीना सीखो मनीष ने पीछे मुड़कर देखा तो एक खाकी वर्दी धारी ने उसका हाथ पकड़ कर खिंचा और कहा सीधे मेरे मोटरसाइकिल पर पीछे बैठ जाओ तुम्हे जब तक कोई जाने पहचाने चलो मैं तुम्हे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देता हूँ मेरा नाम इंस्पेक्टर अवदेश मिश्र है डरो नही मौत तुम्हारे आगे पीछे है या तो तुम मौत के आगे चलो या मौत से हार जाओ कुव्ह ही देर में इंस्पेक्टर अवदेश एक निर्जन स्थान पर ले गया और उसने बताया कि जिन दो नौजवानों को तुमने अनजाने में मारा है उनमें रांका संग्राम सिंह का बेटा है और दूसरा शार्दूल माधव सिंह का बेटा ये वही दोनों है जिन्होंने मेरी फूल सी बहन के साथ महीनों बलात्कार किया और फिर मार कर फेंक दिया मैं कितना बदनसीब भाई हूँ की पुलिस में होते हुये भी कुछ नही कर सका न्याय व्यवस्था भी इनकी ही गुलाम है सारे सबूतों को झूठा बताते हुये बाइज़्ज़त रिहा कर दिया अभी इंस्पेक्टर अवदेश और मनीष की वार्ता चल ही रही थी कि संग्राम सिंह और माधव के गुर्गे आठ दस की संख्या में आ धमके और बोले क्यो बे इन्स्पेक्टर बहन शिफाली की आत्मा से मिलने का बहुत मन हैं जो इस शहर में तू ही अकेला इसकी मदद कर रहा है तू मनीष को मेरे हवाले कर दे और दफा हो जा इंस्पेक्टर अवदेश ने अपनी सर्विस रिवाल्वर मनीष की तरफ उछाल दी मनीष ने बाज़ की तरह उस रिवॉल्वर को झपट लिया तब इन्स्पेक्टर अवदेश बोला चूको नही मनीष ने इंस्पेक्टर अवदेश की सर्विस रिवाल्वर से छः गोली ऐसी चलाई की दस की संख्या में आये बदमाशों में से छ वही ढेर हो गए बाकी चार को पुनः रिवाल्वर लोड करके दौड़ा कर मार डाला मनीष ने दसो के पास असलहे थे मगर या कहे अंदाज़ा नही था या वो फायर करने का मौका नही पा पाए अब इंस्पेक्टर अवधेश ने दसो के असलहे मनीष को सौंपते हुये बोला कि तुम्हारे पास सिर्फ चौबीस घण्टे का समय है कल तुम संग्राम और माधव को सरेआम गोली मरोगे जब दोनो इन दसो की हत्या के विरोध में राजनीतिक प्रदर्शन कर रहे होंगे तुम बुरका पहन कर औरतों के वेश में उस प्रदर्शन में सम्मिलित होंगे व्यवस्था मैं करूंगा तुमने जाने अनजाने अपराध की दुनियां में कदम रख ही दिया है अब अंजाम से डरने की कोई जरूरत नही दूसरे दिन वही हुआ संग्राम और माधव मृत अपने दस गुर्गों के शव के साथ बिगड़ी कानून व्यवस्थाओं के लिये प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे शहर के मुख्य मार्गो से होते हुये जुलूस ज्यों ही
विधान सभा के सामने पहुंचा मनीष ने बुरके को उतार फेंका और सीधे संग्राम और माधव के सामने जा खड़ा हुआ संग्राम और माधव जब तक उसको पहचान पाते कुछ समझते तब तक मनीष ने संग्राम और माधव को ढेर कर दिया जुलूस में भगदड़ मच गई तुरंत पुलिस बल के साथ इंस्पेक्टर अवदेश ने मनीष को पुलिस कस्टडी में ले लिया आक्रोशित जनता कुछ करती उससे पहले उसे जेल भेज दिया मनीष पर वर्षों मुकदमा चला और उसे उम्र कैद की सज़ा हुई जो
उच्चतम न्यायालय द्वारा चौदह वर्षों के लिये सीमित कर दी गयी चौदह वर्ष बाद जब मनीष रिहा हुआ तब डिप्टी एस पी बन चुके अवदेश मिश्र उससे मिलने गए और बताया कि संग्राम सिंह और माधव के बेटे रांका और शार्दूल की उनके बाप के कर्मो के कारण हत्या हो चुकी है अब पटना की ताकत तुम्हारे हाथों में है मनीष ने अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी का गठन किया और राजनीतिक खिलाड़ी बन गया उधर उसके भाई सुधीश मसहूर कथा वाचक ,प्रदीप प्रोफेसर,सुदीप जर्मनी में योग शिक्षक और अमिष भारतीय पुलिस सेवा में सीनियर सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस बन चुका था बहन मनीषा का विवाह हो चुका था मनीष गाँव जाता तो गांव के विकास के लिये जितने भी प्रायास संभव होते करता लेकिन यह बात अपनी हर सभा मे कहता अपराध और अपराधी समाज ही पैदा करता है
कोई अपराधी बनना नही चाहता ना ही माँ की कोख किसी संतान को अपराधी पैदा करती हैं।।

कहानीकार --नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश