कर्म धर्म नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कर्म धर्म



आशीष कायस्त कुल का होनहार नौजवान था हिंदी संस्कृति अंग्रेजी एव गणित में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर चुका था।

वह नियमित रूप से महाकाल की भस्म आरती में सम्मिलित होता और आरती के बाद गर्भ गृह की सफाई करता उंसे यह लगने लगा था कि जिस उद्देश को लेकर उसने घर छोड़ है वह अभी भी अधूरा का अधूरा ही है ।

एक दिन वह देव जोशी जी के पास बैठा बहुत हताश दुखी अपनी आप बीती सुना रहा था देव जोशी ने कहा कि आशीष बेटे चिंता विल्कुल मत करो महाकाल जो भी तुम्हारे विषय मे सोच रहे होंगे वही होगा।

निश्चित निर्भय होकर अपने कार्य करते रहो आशीष बोला महाराज मैं कायस्त कुल का हूँ और मुझे यह बचपन से मेरे माता पिता ने सिखाया है कि ब्राह्मणोंचित कार्यो का धन नही लोगे और तुम्हे अपने बौद्धिक या श्रम से अपने उद्यम करने होंगे।

मुझे महाकाल की सेवा एव काशी से महाकाल एव ओंकारेश्वर तक ऐसे अनेक अवसर मिले जिससे मैं अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता था मगर मैं अपने माता पिता कि शिक्षा को ही अपने जीवन का धर्म समझता हूँ जिसके कारण ब्राह्मणोचित कर्मो के धन का प्रलोभन नही किया।

भगवान श्री कृष्ण के गीता ज्ञान पर पूरा भरोसा है कि आत्मा जन्म लेती है और जन्म दर जन्म लेती है उसके साथ कुछ भी नही जाता है जाता है तो सिर्फ उसके संचित सद्कर्म जिसे उसके बाद कि पीढ़ी याद करती है वह स्थूल शरीर के बिना भी जीवित रहता है।

मैं भी महाकाल के संकेतों की प्रतीक्षा कर रहा हूँ कि उचित अवसर मिले और मैं जीवन के नैतिक मूल्यों के मर्यादित आचरण से कुछ ऐसा कर सकने में सक्षम हो सकू जीवन के बाद भी लोंगो के बीच मे जीवित रहूं।

आशीष देव जोशी जी के पास से लौटने के बाद त्रिलोचन महाराज जी के नित्य शिव पुराण की कथा की समुचित व्यवस्था के बाद स्वंय भी प्रतिदिन की भांति कथा के लिए बैठा त्रिलोचन महाराज महाकाल के काल महिमा का प्रसंग सूना रहे थे जिसमें जीवन के पल प्रतिपल के कर्म एव उपलब्धि के अनुसार स्वर्ग एव नर्क का निर्धारण होता है आत्मा अति शुक्ष्म अदृश्य किंतु संवेदनशील होती है जिसे सुख दुख की अनुभूति होती रहती है समूचे ब्रह्मांड में युगों का आगमन युग परिवर्तन प्रवर्तकों महापुरुषों का आगमन होता रहता है।

युग बदलता रहता है ब्रह्मांड के मूल स्वरूप में कोई परिवर्तन नही होता है समय के अनुसार कभी राम तो कभी कृष्ण कभी भगवन महावीर,
बुद्ध,जीजस ,पैगम्बर गुरुओं का आगमन प्राणि मात्र को क्लेश से मुक्त कराने एव भय मुक्त युग के लिए होता रहता है ।

त्रिलोचन जी जब अपनी कथा के महाकाल दर्शन में ये सब बता रहे थे तभी एक श्रोता आनंद मूर्ति ने पूछा महाराज ये बताये की कर्म के अनुसार जन्म होते है?

क्या पूर्व जन्म में कर्म बहुत अच्छे होते है पुनः उंसे उसके कर्मो के आधार पर जन्म मिलता है जो पिछले जन्म के साधरण से असाधारण अवधारणा का जन्म होता है ।जब जन्म मृत्य एक सतत प्रक्रिया है तो स्वर्ग नर्क क्या है ?

आनंद मूर्ति का प्रश्न बहुत प्रासंगिक था और असाधरण भी क्योकि ऐसे प्रश्नों का उत्तर दे पाना बहुत आसान भी नही होता फिर भी त्रिलोचन महाराज ने धर्म ग्रंथो में उपलब्ध साक्ष्यों को आनंद मूर्ति को वास्तविकता बताने की कोशिश किया ।

उन्होंने बताया कि जन्म मृत्यु की सतत प्रक्रिया को सभी धर्म अपने सिद्धांतों का कि मूल आत्मा मानते है मगर कर्माजीत जन्म को सिर्फ गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ही परिभाषित किया है आत्मा ईश्वरीय अंश है जो कर्मानुसार बिभन्न शरीरों को धारण करती है किंतु ईश्वरीय आत्मीय अस्तित्व ब्रह्मांड के सभी प्राणियों में एक समान अवस्थित रहती है जो पाप पुण्य के करमार्जित फलों के अनुसार सुख दुख की अनुभूति प्राप्त शरीर के द्वारा करती है ये है प्रत्यक्ष स्वर्ग नर्क की वास्तविकता।

कर्म वह जिससे दूसरे प्राणि प्राण को दुखो क्लेश से मुक्ति मिलती हो त्रिलोचन महाराज ने इलामिक अवधारण के ग्रन्ध अरबियन नाईट के एक प्रसंग को आनंद मूर्ति को बताया त्रिलोचन महाराज ने बताया-

कि एक व्यक्ति था जिसने रेगिस्तान में अपना एक गुट बना रखा था और हर राहगीर को लूटता एव बड़ी बेरहमी से उंसे मार डालता उसकी क्रुरता से मरने वाली आत्माओं की चीत्कार ब्रह्मांड की आदि सत्ता सुनती।

वह व्यक्ति मनुष्य के रूप में शैतान के रूप में विख्यात हो चुका था उसका नाम सुनते ही लोंगो की आत्मा कांप जाती लेकिन उसमें एक अच्छी आदत थी वह प्रति दिन शाम को दरिया के किनारे मछलियों को दाने खिलाता जब वह बुढ़ा हुआ और शरीर का त्याग किया कयामत के वक्त ख़ुदा ने फैसला सुनाया तूने इंसानी जिंदगी में इंसानी दरिंदे शैतान के रूप में जिया और लोंगो को दुख दर्द और खौफ दहसत के अतिरिक्त कुछ भी नही दिया तुझे तो बहुत भयानक सजा मिलनी चाहिये लेकिन तूने इंसानी जिंदगी के शैतानी हरकतों के बीच एक काम करता था जो तेरे सिर्फ एक नेक काम है भूखी मछलियों को हर दिन दाना खिलाया करता था जो तुम्हारे द्वारा खुदाई नेकी का सिर्फ एक कार्य किया गया।

अत मेरा फैसला है कि तू फिर उसी शरीर मे जा जिसे छोड़ कर आया है और उस शरीर से किये शैतानी हरकतों के पापो को उसी शरीर के नेक कार्यो से खत्म कर और जब तुम्हारे नेक कर्मो से तुम्हारे जीवन हिसाब भर जाए तब तूम्हे उस शरीर को छोड़ना होगा जो शरीर छोड़ कर आए हो वहीं शरीर तुम्हे दी जाती हैं ।

त्रिलोचन महाराज ने बताया कि यह कहानी अरबियन नाईट की विशेष कहानियों में से एक है यदि इस कहानी में लेखक की कल्पना ही मां मान लिया जाय तब भी जीवन मे किये जाने वाले सद्कर्मो का प्रभाव प्राणि विषेकर मानव पर उसके वर्तमान में ही परिलक्षित होने लगता है ।

त्रिलोचन महाराज बोले आशीष तुम मेरे प्रिय पुत्र की तरह ही हो अतः तुम्हे किसी प्रकार के असमंजस की स्थिति में पड़ कर जीवन उद्देश्य पथ को भटकने नही देना चाहिए।

अतः अपने शिव पुराण के मध्य जो भी कोई प्रश्न पूछता तो मैं तुम्हे केंद्र में रख कर ही कोई उत्तर देता हूँ।

सनातन में त्रेता में भगवान राम के समय ब्रह्मर्षि वाल्मीकि का प्रसंग किसी भी व्यक्ति कि आत्मीय बोध को जन्म जीवन एव करमार्जित पुनर्जीविन की सत्यता को कर्म धर्म मूल के माध्यम से समझ सकता है ।

जंगलो के खूंखार डाँकु को जब यह पता लगा कि वह जिस परिवार जनों के लिए हत्या लूट आदि पापकर्म कर रहा है वे लोग उसके इस कर्म के परिणाम में कत्तई सम्मिलित नही होंगे।

वाल्मीकि प्रकरण किसी परिवेश परिस्थिति एव युग मे मानव संस्कृतियो के ब्रह्म स्वरूप का ही मार्ग है अतः कर्म प्राणि वर्तमान एव भविष्य दोनों को प्रभावित करता है दोनों प्रसंग दो धर्मो के है जो इसे सत्यापित करने के लिए पर्याप्त है।

आशीष ने त्रिलोचन महाराज से पूछा प्राणि के कर्म क हिसाब कौन और कैसे रखता है ?

जिसके आधार पर मरणोपरांत किसी के दूसरे जन्म का निर्धारण होता है त्रिलोचन महाराज ने कहा तुम कायस्त हो और कायस्त कुल देवता भगवान चित्र गुप्त यह कार्य करते है जो धर्म देवता के मुख्य सलाहकार है।

वही ब्रह्मांड के प्रत्येक प्राणी के कर्मो का लेखा जोखा रखते है उनकी तीक्ष्णता एव सक्रियता के कारण ब्रह्मांड के किसी भी प्राणि के कर्मो के लेखा जोखा में कोई अनियमितता नही होती है।

आशीष ने पुनः पूछा महाराज चित्रगुप देवता के विषय मे कुछ बताये त्रिलोचन महाराज ने बताया कि भगवान चित्र गुप्त महाराज जी के विषय मे कल बताएंगे आज का समय प्रसंग समाप्त ।

आशीष त्रिलोचन महाराज के दैनिक शिवपुराण कथा का आयोजक था लेकिन जितना संसय भ्रम उसके मन मे उठ रहे थे कभी नही उठे वह बैचेन हो रहा था भगवान चित्र गुप्त के रहस्य या यूं कहे जानकारी के लिए लेकिन वह कर ही क्या सकता था इंतजार उंसे करना ही था अगले दिन का जबाब जानने जिज्ञासा शांत करने के लिए ।

आशीष ने रात को भोजन किया और सोने के लिए चला गया उंसे पता ही नही चला कि कब गहरी निद्रा के आगोश में चला गया एव वह स्वप्न लोक में विचरण करने लगा ।

उंसे दैत्याकार के यम दूत ने पकड़ कर धर्मराज यमराज के समक्ष प्रस्तुत किया यमदूत विल्कुल भुजंग काजल से भी काला अंगारे की तरह लाल आंखे काले काले बडे बडे बाल लंबे भयंकर नुकीले दांत शरीर जैसे पत्थर या फौलाद हाथ में खड्ग बहुत भयंकर एव डरावना धर्म राज कज्जल गिरी जैसे अमावस्या से भी काले सर पर मुकुट भैंसे की सवारी बहुत अजीब सी बनावट लेकिन आशीष को कोई भय नही लग रहा था वह निर्द्वंद होकर यमदूत के हाथों जकड़ा यमराज के दरबार मे खड़ा था बेखौफ निडर निर्भीक ।

यमराज ने बहुत कड़क आवाज में बोले दूत किसे पकड़ कर पृथ्वी लोक से लाये हो यमदूत बोला महाराक यह पृथ्वी का प्राणि आशीष है यमराज बोले हूऊ तो चित्रगुप्त को बुलाया जाय फौरन चित्र गुप्त हाज़िर हुये यमराज बोले चित्रगुप हमारे यमदूत ने जिसे पृथ्वी लोक से पकड़कर जिस्रे लाया है उसके कर्मो का लेखा जोखा प्रस्तुत किया जाय।

यमराज भगवान चित्र गुप्त को आदेश दे ही रहे थे बीच मे आशीष बोला यम महाराज यमराज बोले यहां यम कौन आशीष बोला महाराज आप ही का शार्ट नेम आपका नाम इतना लंबा चौड़ा है कि उच्चारण में कठिनाई होती है अतआज से आप अपने शार्ट नाम से पृथ्वी वासियों के बीच लोकप्रिय होंगे यमराज ने लम्बी हुंकारी हूऊ मारी और बोले इस पृथ्वी वासी प्राणि के कर्मानुसार क्या देना है स्वर्ग या नरक बताओ चित्रगुप्त जी ।।

आशीष बोला महराज एम चित्रगुप हमारे कुल देवता है मैं कायस्त हूँ आप कुछ भी कर लीजिए ये मेरे कर्मो सही ही बताएंगे आखिर विरादरी की बात है ।

यम बोले मैं स्वंय ब्रह्म हूँ मगर किसी के साथ पक्षपात नही करता चित्रगुप भी नही करेंगे इसी बीच चित्रगुप भगवान बोले महाराज हमारे दूत ने बहुत बड़ी गलती की है जिस आशीष को लाया है उंसे नियति के निर्णयानुसार अस्सी वर्षो बाद ही यमलोग अपने कर्म बही के साथ आना है।

आशीष बोला महाराज यम देखा विरादरी का कमाल आपके भगवान चित्रगुप महाराज ने कर दी ना हेरा फेरी कायस्तो के कुल देवता अपने आराधकों के लिए आपको धोखा दे सकते है कायस्तो को नही।

यम बहुत क्रोधित होकर बोले चित्रगुप्त क्या यह पृथ्वी का प्राणि सही कह रहा है तुम क़ायस्त कुल देविता होने के कारण पृथ्वीवासी आशीष जो एक कायस्त है उसके साथ अपने न्यायिक जिम्मीदारियो का निर्वहन ना करते हुए पक्षपात कर उसे बचाने की कोशिश कर रहे हो।

भगवान चित्रगुप्त ने महाराज यम का क्रोध देखकर भगवान चित्रगुप ने कर्मो के लेखा जोखा संकलन के आशीष के पन्ने खोल कर रख दिया यम ने बड़ी गंभरता पूर्वक से आशीष को देखा लेखा जोखा पुस्तक के आशीष अध्याय को और भगवान चित्रगुप्त द्वारा बताए गए तथ्यों को सही पाया।

यम महाराज का क्रोध और बढ़ गया बोले यमदूत तुमने बहुत बड़ी गलती की है अब तुम्हे वह दण्ड मिलेगा जो सबसे बड़े पापी के लिए यमपुरी की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार मुक़र्रर है यम दूत पाहि माँम पाहि माँम करके यम के चरणों मे अपने लिये गुहार लगाया यम ने सोचा जब मेरे दूत को भूल का एहसास हो ही गया है तो इसे एक अवसर अवश्य दिया जाना चाहिये और यम महाराज बोले यमदूत उठो और आशीष का यम लोग के अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में स्वागत करो यहां के मिष्ठान पकवान खिलाओ और पूछो इसकी इच्छा और उसे पूर्ण करो और जब यह प्रसन्न हो तब अपने लिए अपनी गलती की क्षमा मांग दोष मुक्त होने की अपील करो क्योकि एक तो तुमसे भयंकर त्रुटि हुई है और सबसे बड़ी बात यह है की आशीष महाकाल कालो के काल महाकाल भूत भाँवर भोले नाथ का सेवक है अर्थात आशीष हम सभी के आदि आराध्य देव के सेवक है यदि महाकाल को भनक भर लग गयी कि यमदूत द्वारा उनके सेवक को उनकी बिना अनुमति के पृथ्वी लोक से यमलोक ले जाया गया है तो उनके क्रोधग्नि से यम लोग भस्म हो जाएगा अतः जितना शीघ्र सम्भव हो आशीष को प्रसन्न करो।

यम दूत आशीष की तरफ मुखातिब होकर बोला महाराज अब गलती तो मुझसे हो ही गयी है आप मुझे क्षमा करें आपकी प्रसन्नता के लिए जो भी सम्भव होगा वह करूँगा ।

आशीष बोला यमदूत महोदय पहले मुझे यम लोक के खान पान सुख सुविधाओं एव बैभव का भोग कराओ फिर सोचते है ।

यम दूत आशीष को यमदूत के विलास महल ले गया और तरह तरह के व्यंजन जो पृथ्वी वासियों के बस की बात नही थी परोसता और आशीष को खिलाता आशीष अपना हाथ बार बार अपने मुंह की ओर ले जाता त्रिलोचन महाराज ने देखा कि ब्रह्ममुहूर्त में नित्य नीद से जागने वाला व्यक्ति दिन के दस बजे तक सो रहा है जैसे उंसे कोई फिक्र ही नही है।

बार बार अपना हाथ मुहं की तरफ ले जा कर वाह वाह क्या बात क्यो कर रहा है?

त्रिलोचन महाराज ने बड़ी मुश्किल से आशीष को उठाया और पूछा क्या बात है आज इतनी देर तक क्यो सोए हुए हो क्यो अपना हाथ बार बार सोने में मुँह की तरफ ले जाते हुए वाह क्या बात है बहुत स्वादिष्ट आदि बाते कह रहै थे?क्या बात है आशीष कोई भयानक डरावना सपना देख रहे थे क्या ?आशीष बोला नही महाराज मुझे कुछ भी स्मरण नही है ।

यही सत्य करमार्जित जन्म दर जन्म का है प्राणि को पिछले जन्म का स्मरण नही रहता है और अगले जन्म का पता नही इसी को सत्य मानकर वह वैज्ञानिक विज्ञान कि दृष्टि से जन्म जीवन मृत्यु का आंकलन करता है और धोखे में रहता है विज्ञान वैज्ञानिक ईश्वरीय अवधारणा के सत्य के अन्वेषक है जो सत्य है निर्विवाद निर्विकार निर्विरोध लेकिन जन्म जीवन मृत्यु जो विज्ञान एव वैज्ञानिक का भी सत्य है ईश्वरीय अवधारणा वास्तविकता का सत्य है ।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।