अग्निजा - 139 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 139

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-139

‘नहीं, मेरे अस्तित्व के साथ एकरूप हो चुकी, मुझमें समा चुकी केतकी सिर्फ मेरी है...मेरे अकेले की...पूरी तरह से... ’ ये शब्द केतकी के कानों से बार-बार टकरा रहे थे। इन्हें सुनकर उसके भीतर मीठी सी संवेदनाएं जाग रही थी। इतना प्रेम? एक तरफ तो उसे खुशी हो रही थी कि प्रसन्न जैसा व्यक्ति उसे पसंद करता है, लेकिन क्या वास्तव में उस पर प्रेम है? या केवल सहानुभूति? दया? जो होगा सो होगा...लेकिन मैं उसके लायक नहीं, ये बात तो सही है। और, मेरे नसीब में प्रेम भी नहीं है। इसी लिए तो मेरे जन्म के साथ ही मेरे पिता नहीं रहे, नाना भी जल्दी गुजर गये, नानी भी। मां मुझ से प्रेम करती तो है लेकिन उसकी खुद की स्थिति इतनी खराब है। इसी लिए प्रसन्न से दूर रहना होगा। उसके सुख के लिए। इतने विचार करते करते अचानक केतकी ने देखा कि भावना न जाने कब से कंप्यूटर में खोयी हुई है। उसने केतकी को फोन करके दक्कन सेंटर में नहीं आने का भी बताया था। उसने अपने लिए एक प्लेट मेंदू वड़ा और इडली लेकर आने के लिए कहा था। केतकी को याद आया कि वह सुबह से ही कंप्यूटर में सिर गड़ा कर बैठी है।

‘भावना, तुम कंप्यूटर में ऐसा क्या कर रही हो?’

‘प्लीज, मुझे डिस्टर्ब मत करो। और आज तुम भी आराम करो। कल से तुम्हें समय मिलने वाला नहीं। फिर मुझसे मत कहना।’

‘समय क्यों नहीं मिलेगा?’

‘कल बताऊंगी, गुडनाइट।’

केतकी सिर के ऊपर से चादर ओढ़कर सोने का प्रयास कर रही थी लेकिन उसके सामने से प्रसन्न का चेहरा हट ही नहीं रहा था। और कानों पर वही-वही शब्द गूंज रहे थे, ‘मेरी केतकी...मेरे अकेले की...पूरी तरह से...’

सुबह साढ़े पांच बजे अलार्म बजा और भावना उठकर बैठ गयी। उसने तुरंत केतकी को ही हिलाया पर वह जाग नहीं रही थी इस लिए भावना ने उसकी चादर खींच ली। कोई रास्ता न देखकर केतकी को उठना पड़ा। उसकी आंखों में नींद थी, ‘कितने बजे हैं, जो इतनी हल्ला-गुल्ला मचा रही हो?’

‘साढ़े पांच...’

‘साढ़े पांच ही न...? फिर इतना धूम क्यों मचा रही हो?’

‘तुम्हारे पास तैयार होने के लिए सिर्फ आधा घंटा है। तब तक मैं मेरे लिए चाय बना रही हूं। और मुझे कोई बहाना नहीं सुनना है, योर टाइम स्टार्ट्स नाउ....’

इतना कहकर भावना भीतर चली गयी। केतकी को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था। उसे बड़ी नींद आ रही थी। रात भर नजरों के सामने प्रसन्न, उसका प्रपोजल, उसका प्रेम यही सारी बातें घूम रही थीं। लेकिन भावना भी बेवजह परेशान तो नहीं कर रही होगी। सवा छह बजे केतकी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर निकली। भावना ने उसके सामने चाय का कप रख दिया, लेकिन केतकी ने मना करते हुए कहा, ‘मैं सुबह की चाय कहां लेती हूं?’ बिना कुछ कहे भावना चाय पीने लगी। ‘ध्यान से सुनो अब। कुछ दिनों तक मैं जैसा कहूं, वैसा तुम्हें करना पड़ेगा। और केवल उतना ही करना है। बीच के समय में केवल स्कूल जाने की छूट मिलेगी तुमको। बाकी सारा समय मेरा। तो? शुरू करें अब?’

‘क्या शुरू करना है तुमको?’

‘ग्रूमिंग। सौंदर्य प्रतियोगिता में जाने की तैयारी नहीं करनी है क्या?’

‘ग्रूमिंग, तुम करवाओगी?’

‘हां, लेकिन इसे तुम ग्रूमिंग पहले की ग्रूमिंग समझो। वहां पर प्रोफेशनल लोग सिखाएंगे उससे पहले कुछ बातों को जान लोग। और जितना अधिक संभव हो, उतना सीख लो।’

‘अरे,पर तुम मुझे ये सब कैसे सिखाओगी?’

‘क्यों नहीं? गूगल गुरू से मैंने बहुत सारा ज्ञान ले लिया है। दो दिनों से मैं वही तो देख रही थी। तो करें शुरू?’

‘भावना, आधा घंटा सो लूं क्या? मुझे नींद की बहुत आवश्यकता है...प्लीज।’

‘नहीं, अब नींद उड़ाने की जरूरत है। और मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करने की जरूरत नहीं। इज दैट क्लीयर?’

केतकी मुंह बिचकाते हुए सोफे पर पालथी मार कर बैठ गयी। उसने अपने हाथ मोड़कर एक ऊंगली ओठों पर रख ली। उसे खुद ही हंसी आ गयी। सामने देखा तो भावना जरा भी हंस नहीं रही थी। ‘हंस लो...ग्रूमिंग मे ये सारी हंसी बंद होने वाली है...सबसे पहले शुरुआत करते हैं हील्स वाली सैंडल से...’

‘वह तो रहने ही दो...मैं गिर जाऊंगी...’

‘गिरना, लेकिन यहां प्रैक्टिस करते समय...एक बार...दो बार...पांच-सात बार भी गिरोगी तो चलेगा। इसके कारण वास्तविक ग्रूमिंग तक पहुंचते तक तुम्हें आदत हो जाएगी।’ ऐसा कहते हुए भावना ने बाजू में रखी हुई एक प्लास्टिक की थैली से ऊंची एड़ी की चप्पलें निकालीं। ‘इसे कहते हैं ब्लॉक हील्स। इसमें चप्पल के नीचे का प्लेटफॉर्म ऊंचा होता है। इसमें चप्पल के सामने और पीछे के भाग में जगह होती है। दूसरा प्रकार होता है स्टीलेटो। उसे पेंसिल हील कहते हैं। क्योंकि उसमें पेंसिल जैसी बारीक हील होती है। तीसरा प्रकार होता है वेजिस..डब्ल्यू...ई...डी...ई..जीई..एस...इसमें चप्पल का पूरा प्लेटफॉर्म ऊंचा होता है। आज ब्लॉक हील्स पहनकर चलने की प्रैक्टिस करनी है।

‘नहीं, मुझसे ये नहीं हो पाएगा।’

‘तुम्हें तो क्या...रणछोड़दास दास से भी हो पाएगा...कोई विकल्प ही नहीं है..’ भावना ने चप्पलें केतकी के हाथों में देते हुए कहा, ‘जल्दी से पहनो। ’ केतकी ने मुंह टेढ़ा करते हुए चप्पलें पहनीं। पहनकर खड़े होते ही उसका संतुलन बिगड़ गया लेकिन भावना ने जल्दी से उसे संभाल लिया।

केतकी ने भावना की ओर देखा,‘ मैं कह ही रही थी न कि मुझसे नहीं होने वाला...’

‘सब होगा...बस मुंह बंद रखो। जीभ को आराम दो। जब उसका समय आएगा तब उसे चलाना। अब खड़ी हो ही गयी न? अब चलना शुरू करो...’ केतकी ने एक कदम उठाकर रखा, लेकिन घबराकर तुरंत भावना का हाथ पकड़ लिया और उसकी तरफ देखा, ‘मेरी तरफ नहीं सामने देखो, तभी चल पाओगी।’

केतकी जैसे-जैसे कदम उठाकर आगे बढ़ने लगी। भावना भी उसके साथ उसका हाथ पकड़कर चल रही थी। कमरे के दूसरे कमरे पर पहुंचने के बाद केतकी ने हुश्श किया। भावना ने उसका हाथ छोड़ दिया और कहा, ‘अब तुम खुद चलो...’ केतकी ने मुंह बनाया। हाथ जोड़े लेकिन भावना कहां सुनने को तैयार थी। ‘चलो...फटाफट..अभी बहुत कुछ सीखना है...’ केतकी ने गिरते-पड़ते वो अभ्यास पूरा किया और फिर सोफे पर जाकर बैठ गयी। भावना तुरंत एक नोटबुक लेकर आयी, ‘अब चलते समय यह नोटबुक अपने सिर पर रखना है। गिरनी नहीं चाहिए। क्योंकि वहां रैम्प वॉक करते समय पूरा शरीर एक खास स्थिति में रखकर बिना गिरे-पड़े करना होगा। सीधा रहना होगा और चेहरे पर मुस्कान होनी चाहिए। अब नोटबुक सिर पर रखकर चलने का अभ्यास करो।’ इसके बाद ग्रूमिंग के दौरान होने वाली सभी बातों की जानकारी भावना ने केतकी को बतायीं। उनका अभ्यास करवा लिया। बड़ी कड़ाई से। इसमें फिजिकल फिटनेस, योग, स्टेज एटीकेट्स, डायनिंग मैनर्स, डांस सेशन, मोटिवेशनल स्पीच जैसी बातों का समावेश था। उसके बाद अलग-अलग तरह के परिधानों के साथ इन बातों का अभ्यास करवाया। उसमें भारतीय परिधान, पाश्चात्य परिधान, कॉर्पोरेट राउंड और सवाल-जवाब भी शामिल था।

ये सब तीन दिन चला। शनिवार, रविवार और सोमवार। सोमवार रात को ग्रूमिंग समाप्त हुई, तब भावना ने केतकी को गले से लगा लिया, ‘सॉरी बहन...लेकिन..’ केतकी ने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा, ‘गुरु को कड़क होना ही पड़ता है।’

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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