रिहाई का इंतजार नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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रिहाई का इंतजार

जब तुम्हारे रिहाई के आदेश औपचारिक रूप से आ जाएंगे तब रिहाई के बाद तुम्हे माँ के पास ले चलूंगा तुम्हे दो माँ एक साथ आशीर्वाद देंगी एक तो तुम्हारी माँ जिसने तुम्हारे इन्तज़ार में जीना ही छोड़ दिया है सिर्फ जिंदा लाश खुद की ढोए जा रही है और मेरी माँ मैंने अपनी सगी बहन मिताली को तो बचपन मे ही माँ बाप के साथ खो दिया था मगर जितने दिन भी वह साथ रही उसकी यादे आज भी उसी तरह है जैसे तब थी ।

हंसती खिलखिलाती भईया से लड़ती झगड़ती माँ बाप की लाड़िली जिसके हर जिद्द के लिए माँ बाप भाई कुछ भी करते ऐसे गयी कि दो गज कफ़न तक नसीब नही हुआ ।

आज भी मिताली की बोली बालपन की आवाज कानों में गूंजती रहती है तुम्हारी फाइल को पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि तुम्हारे ही रूप में मुझे मेरी मिताली मिल गयी ।

जेलर मुकुन्द राठौर ने बैरक में जाने का आदेश दिया और स्वंय कुछ बंदी रक्षकों के साथ मेरी माँ जंगिया को खोजने निकल पड़े मेरी माँ जेल से बहुत दूर नही जाती कभी कभी तो वह जेल कुछ दूरी पर ही सो जाती खुले आसमान के नीचे सर्दी गर्मी या वारिस जैसे वह पत्थर की इंसान हो गयी हो और उसके ऊपर किसी भी स्थिति परिस्थिति वेदना संवेदना का कोई प्रभाव नही पड़ता आंखे सुख गयी थी शरीर चलता फिरता कंकाल हो चुका था।

कुछ ही देर में माँ जंगिया को लेकर जेलर मुकुन्द अपने घर आये और अपनी माँ पद्मा से मिलवाया साथ ही साथ जेल के डॉक्टर को बुलाकर कर माँ की जांच कराई और माँ का इलाज कराया ।

पंद्रह दिनों बाद मेरी रिहाई के औपचारिक आदेश आ गए पूरे बैरक के कैदियों ने बड़े आत्मीय भाव से मुझे जेल के मजबूत दीवारों से बाहर के लिए विदा किया जेलर मुकुन्द राठौर मुझे लेकर अपने घर गए और अपनी माँ पद्मा से मिलवाया मेरी माँ ने जब मुझे देखा तो ऐसा लगा कि उसने दोबारा जन्म ले लिया हो उसमें जीवन और जीने की एक साथ हज़ारों अभिलाषओ ने जन्म ले लिया हो ।

मुझे भी नया जीवन जेलर मुकुन्द के कारण मिला था लेकिन उनके व्यवहार में कही से ऐसा नही लगता था कि उन्होंने कोई एहसान किसी बाहरी के लिए किया हो ।

दो तीन महीने जेलर मुकुन्द के साथ रहने के बाद मैने कहा कि साहब मुझे और माँ को अब जाना चाहिये उन्होंने एव माँ पद्मा ने बहुत जिद्द किया लेकिन मैंने उन्हें बहन का वास्ता देकर जाने की अनुमति ली ।

जब जेलर मुकुन्द ने पूछा जाओगी कहा तब मैंने कहा कि भारत देश के बाहर किसी दूसरी देश मे जेलर मुकुन्द ने कहा भारत से नफरत क्यो मेरे कुछ भी बताने से पहले वे समझ गए कि मिलन रागिल आदि कोई न कोई खुराफात कर सकते है ।

उनको भो लगा कि जान्हवी सही ही कह रही है उन्होंने तुरंत ही अपने मित्र जो नेपाल में रहते थे और नेपाली नागरिक बन चुके थे नाम पत्र लिखकर मुझे और माँ को एक बंदी रक्षक के साथ भेजने की व्यवस्था किया और सगे भाई की तरह बोले पढ़ने लिखने में कोई कोताही मत करना हम जहां भी रहेंगे पैसे भेजते रहेंगे तुम जीवन मे उस ऊंचाई की मुकाम को हासिल करना कि समय तुम्हारे साथ होने पर अभिमान करे ।

तुम्हारे कंधे पर अब तीन महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां है पहली तो यह कि तुम्हे आदिवासी लड़कियों के मिथक को तोड़ना है कि उनकी रुचि पढ़ने लिखने में नही होती है वह मानव समाज एव सभ्यता में अनपढ़ गंवार बनकर तिरस्कार कि पंक्ति में बैठना पसंद करती है ।

दूसरी जिम्मेदारी तुमने गरीबी और उसके परिणाम को बहुत करीब से देखा है अतः उन सभी मिथकों को तोड़ना है तुम्हे जिससे कि समाज लड़कियों के प्रति अपना नजरिया बदले ।

तीसरा तुम्हे भारत लौट कर आदिवासी महिलाओं एव भारतीय महिलाओं के सम्मान गौरव में एक नए अध्याय आयाम के युग का शुभारंभ करना है।