मजदूर - भाग 1 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मजदूर - भाग 1

रामू उठ भोर हो गया कब तक सोते रहोगे जो सोता है वो खोता है जो जागता है पाता है रामू के कानो में ज्यो ही पिता केवल के शब्द सुनायी दिये गहरी निद्रा से जागा उसे ऐसे लगा वह एक नई ऊर्जा के साथ जिंदगी के एक नई सुबह कि शुरुआत पिता के आशीर्वाद से प्रारम्भ कर रहा है।रामू तुरंत दैनिक क्रिया से निबृत्त होकर अपने अध्ययन में जुट गया यही प्रक्रिया उसके जीवन कि शैली थी प्रतिदिन पिता केवल उसे चार बजे ब्रह्म बेला में लगभग चार बजे उठाते और वह सात बजे तक अध्ययन करता और आठ बजे तक तैयार होकर उसे स्चूल जाना होता और पिता के केवल अपनी दिहाड़ी मजदूरी पर निकलते।दिन इसी तरह से बीतता पिता केवल जब भी खुद खाली होते रामू को पास बैठते और उसके बचपन के कोमल मन मस्तिष्क पर एक सशक्त सफल इंसान बनने के लिये उसे धार देते रहते।
हमेशा उसे यह बताने से नहीं चूकते कि वो एक मजदूर है उनके पिता ने उन्हें पढाने लिखाने कि बहुत कोशिश कि मगर उनका मन बचपन कि शरारतों में रमा रहा और पढाई लिखाई में मन नहीं लगा पाया और पिता के शिक्षा सपनों को चूर चूर कर दिया आज उन्हें याद कर पछतावा होता है और कभी कभी पश्चाताप के आंसू भी बहने लगते बेटे रामू तेरे स्वर्गीय दादा जी अपने समय के आठवी जमात पास थे और पुरे गावँ में वाही आठवी जमात पास थे सारा गावँ उनके पास अपनी समस्याओं को लेकर सुझाव और निराकरण के लिए आता और संतुष्ट होकर जाता।उनका कहना था कि शिक्षा इंसान कि ताकत और जिंदगी के संग्रमों के लिये धारदार हथियार होती है अतः जो गलती मैंने कि अपने पुज्ज दादा जी के नसीहतों को मानकर बेटा रामू तुम ऐसी गलती मत दोहराना ताकि मेरी तरह पछतावा और जिंदगी में अपमान का प्रतिदिन घूंट पीना पड़े।
मुझे देखो मैंने अपने जीवन में अपने पिता कि नसीहतों को नज़र अंदाज़ किया जिसके कारण आज मुझे दुनिया का प्रत्येक आदमी नसीहत देता है ।जब मै काम पर जाता हूँ तो जिसकी मजदूरी करता हूँ उसका गुलाम बनकर रहना पड़ता है उसकी जलालत सहनी पड़ती है गालियां सुननी पड़ती है कभी कभी तो ऐसा लगता है कि हम इंसान न होकर जानवर हो गए है यही तुम्हें बताना चाहते है कि तुम्हे जलालत अपमान का घूंट पिने के लिये जिंदगी विवस न करे।
इंसान अपने मान अपमान के लिये खुद जिम्मेदार होता है खुद अपने जीवन के आदर्शो मूल्यों का निर्धारक होता है यह सिख मैंने मजदूर होकर उसकी समाज में स्तिथि और पीडा से अनुभव कि है मजदूर इंसान अवश्य होता है लेकिन उसके पास उसकी इज़्ज़त सिर्फ दो जून कि रोटी उसके जज्बात गुलामी कि निष्ठा और उसकी जिंदगी निरंतर जानवर कि तरह न थकने वाली जिंदगी और मौत बेरहम कभी कफ़न नसीब तो कभी बदनसीबी को मिटटी का ही कब्र कफ़न शमसान और अपने पीछे छोड़ जाता है न समाप्त होने वाला मजबूर जिंदगी के मजलूम मजदूरों का सिलसिला ।मई चाहता हूँ बेटे रामू इस सिलसिले को तोड़ कर तमाम मजदूरों और उनकी नस्लो को नसीहत दो।मासूम रामु के दिल दिमाग पर बापू केवल कि बात पथ्थर कि लकीर कि तरह बैठ चुकी थी कभी कभी रामू का कोमल मन बापू के जीवन कि कड़वी सच्चाई को समाज के तिरस्कार का नतीजा मानता लेकिन रामु कृत संकल्पित था कि वह अपने बापू के नसीहतों को अपने जीवन का आदर्श बनाकर प्रमाणित करेगा।रामू अपने पिता कि नसीहतों को अपने लिये जीवन का मूल मन्त्र और पिता को आदर्श मानकर प्राण पण से अपने कठिन लक्ष्य कि चुनौती के विजय पथ पर सहस हिम्मत और हौसलो से आगे बढ़ाता गया दसवी कि परीक्षा में अव्वल रहा जिसके बाद उसे वजीफा मिलने लगा पिता केवल पर बोझ कुछ कम हुआ फिर इंटरमीडिएट कि परीक्षा में अब्बल रहा और बी एस सी में विश्वविद्याल प्रयाग में दाखिला लिया पिता केवल को बेटे कि सफलता पर अहंकार कम भगवान् का आर्शीवाद और बेटे कि मेहनत पर विश्वाश था।रामू जब बी एस सी द्वितीय वर्ष कि परीक्षा का परिणाम आया तब बापू केवल ने कहा बेटा रामू अब हमे विश्वाश हो चूका है कि तुम मेरे पिता कि इच्छा जो मैं उनका पुत्र होने के नाते नहीं कर सका वह तुम पूरा करोगे केवल उस दिन बहुत खुश था वह बेटे को ढेर सारा प्यार आशीर्वाद देकर घर से काम पर गया लेकिन कुदरत को तो और कुछ मंजूर था।
दोपहर में खबर आई कि केवल जिस भवन निर्माण कार्य में मजदूरी कर रहा था वह भवन धारासाही हो गया और केवल उसके निचे दब दब गया है खबर मिलते ही केवल के घर अफरा तफरी मच गयी रोते विलखते केवल कि पत्नी सुगना दो पुत्रिया रीमा नीमा वहाँ पहुँच गयी जहाँ केवल मजदूरी करता था वहाँ पहुचने पर दृश्य देखकर रीमा नीमा सुगना का लगभग आवाक अचेत रोती कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे क्या न करे चुकी केवल लखनऊ में परिवार के साथ रहता था गाँव उसका बिहार के हज़ारी बाग़ में था गाँव में खेती बारी थी नहीं जीविकोपार्जन का भी मजदूरी ही थी उसने सोचा बाहर जाकर कुछ अच्छा कमा सकेंगे मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था ।रोती विलखति सुगना ने मलबा के पास खड़े एक व्यक्ति से कहा आरे तनि हमारे बाबू के कोइ खबर पंहुचा दो अपने बाप के देख लिहे और के बा इनकर उस व्यक्ति ने पूछा कि तुम्हारे बाबू कहा रहते है उनसे बात करने का कोइ माध्यम सुगना ने सिर्फ इतना ही कहा इलहाबाद इंवर्सिटी में पढ़त हउअन इनकी जियत जिनगी के प्राण जिस व्यक्ति से सुकना अपने बाबू को बुलाने कि बात कर रही थी वह पुलिस विभाग में उपपुलिस अधीक्षक था पूछा नाम क्या है तुम्हारे बाबू का सुगना ने कहा रामू उस समय मोबाइल का ज़माना नहीं था अतः उपाधीक्षक सोमपाल सिंह ने हॉट लाइन से अलाहाबाद विश्वविद्याल के कुलपति महोदय के आवास पर पूरी जानकारी देते हुये रामू को तुरंत भेजने का अनुरोध किया कुलपति ने कहा सोमपाल जी रामू मेरे विश्वविद्यालय का शौर्य सूर्य है यहाँ का प्रत्येक छात्र् प्रत्येक सुबह खुद को रामू जैसा होने का भगवान से प्रार्थना करता है मई उसे अपनी कार से अबिलम्ब भेजने कि व्यवस्था करता हूँ।कुलपति तोताद्री ने रामु को अपनी कार ड्रॉवर कार भेज कर बुलवाया और पांच हज़ार रूपये पास से दिये और कहा घबराओ नहीं तुम्हारे पिता केवल कि तवियत ख़राब है अतः तुम्हारा जाना आवश्यक है।रामू चार पांच घंटे में लखनऊ पंहुचा तो माँ बहनो कि दशा देखकर स्वयं अनियंत्रित होने लगा फिर खुद को संभालते हुये पोस्ट मार्टम हाउस से पिता केवल का शव प्राप्त कर अंतिम संस्कार किया।उसके बाद केवल उस ठीकेदार के पास गया जिसकी बिल्डिंग को बनाते समय उसकी पिता केवल कि मृत्यु हुयी थी ठीकेदार ने रामू को जलील करते हुये जान से मारने कि धमकी देते हुये कहा मजदूर का बेटा है जा कही मजदूरी कर अपनी माँ बहनो का पेट पाल उस पर भी काम न चले तो अपनी जवान बहनो को धंधे पर बैठा देना बडा आया साला हराम का हर्जाना माँगने।रामू को लगा कि उलझना ठीक नहीं है अतः वह वहाँ से चला गया ।अब माँ बहनो का लखनऊ रहने का कोइ औचित्य नहीं था अतः बहन माँ को लेकर अलाहाबाद लेकर चला आया और गंगा नदी के किनारे झोपडी बनाकर उसमे माँ बहनो के साथ रहने लगा उसने यह बात किसी को नहीं बताई ।पहले उसका खर्च वजीफा और कुछ पिता केवल के सहयोग जो कभी कभार होता से काम चल जाता ।लेकिन अब उसके पास बहनो कि पढाई और माँ सहित भरण पोषण के साथ साथ अपने पढाई का खर्चे का सवाल था। रामू ने इसके लिये मेहनत पर भरोसा किया और सुबह आठ बजे से एक बजे तक विश्वविद्यालय में क्लास करता दो बजे से तीन बजे तक आराम करता तीन बजे से आठ बजे तक ठेले पर सब्जी बेचता और आठ बजे से बारह बजे रात तक शहर में छुपकर रिक्सा चलता फिर दो बजे रात से चार पांच बजे तक स्वाध्ययन करता सब्जी रिक्सा चलते खाली समय भी अध्ययन करता।इस तरह उसने अपने जीवन को मानव मशीन बना दिया था।बी एस सी में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान और एम एस सी गोल्ड मेडलिस्ट होकर विश्वविद्याल को गौरवान्वित किया।फिर रामू ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में आवेदन किया और प्रथम प्रयास में ही चयनित हो गया सक्षताकार में उससे पूछा गया कि देश में मज़दूरों कि हालत सुधारने के क्या सार्थक पहल होने चाहिये रामू का जबाब था मैं मजदूर स्वर्गीय केवल का बेटा हूँ मेरे पिता मजदूरी करते बिल्डिंग के निचे दब कर मर गए उन्हें मलवे के कबाड़ कि तरह कचरे कि ढेर में फेक दिया गया और मुझे लावारिस बनाकर सड़क पर जलील होने के लिये मैंने अपने पिता के सपनो कि हकीकत के लिये सड़को पर रिक्सा चलाया ठेले पर सब्जिया बेचीं और जलालत का जहर पिया मैं मजदूर के खून पसीने किबूँद कतरा हूँ जो किसी करिश्मे के विश्वस में जीता है साक्षात्कार कमेटी हथप्रद गयी ।उसे प्रशिक्षण में जाने से माँ बहनो के लिये किराये का मकान लेकर रखा।प्रशिक्षण समाप्त होने पर उसकी नियुकि लखनऊ में ही ।
केवल का हर सहयोगी मजदूर बड़े फक्र से अपने बेटो को रामू कि राह पर चलने कि नसीहत देता है जैसे केवल हर मजदूर कि आत्मा और रामू साहब उनकी संतान इंकलब के जिंदबाद है।।

कहानीकार नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
[10/29/2020, 12:31 PM] N L M Tripathi: --मजदूर भाग-2---


रामू अपने कार्यालय में एक दिन सुबह ठीक दस बजे पंहुचा आये पत्रों को और समस्याओं को पढ़ता शुरू किया और उसके उचित निदान का निर्देश अपने पी आर ओ को देता जाता ।एका एक रामू की निगाह एक बंद लिफ़ाफ़े पर पड़ी जिसके
प्रेषक का नाम लिखा था रामानुजम तोतादृ अर्नाकुलम केरल जल्दी जल्दी बंद लिफ़ाफ़े को खोलता है और पत्र पढना शुरू करता है पत्र में तोताद्रि जी ने लिखा था ----
प्रिय रामू
मैं आज बड़े ही भारी उदास मन से नितांत अकेले बैठा हुआ हूँ शांति इतनी कि साँस लेता हूँ तो
खुद के स्वांस की आवाज़ पवन के तूफान जैसी महसूस होती है
लगता है मेरी अपनी ही सांस मुझे संसार से जीते जी उड़ा कर किसी
ऐसे स्थान पर ले जायेगी जहाँ प्राश्चित अफ़सोस का स्थान तो होगा ही नहीं होगा तो सिर्फ जन्म से जीवन की यात्रा का सुखद दुखद बृतांत जिसकी अनुभुति को देखा और जिया गया है। व्यथित करती हुई सिर्फ मानस
पटल की यादों की परतो में आती जाती व्यथित करती रहेगी।मेरे पिता अर्नाकुलम में नारियल बागानों में साधारण से मजदूर हुआ करते थे मैं तीन बड़ी बहनो में सबसे छोटा भाई था आज मेरी तीनो बहने अमेरिका में अपने परिवार के साथ स्थाई रूप से बस चुकी हैं मेरे पिता ने मेरी बहनो का विवाह बड़ी गरीबी में निम्नतम मजदूर परिवार में किया था अब इसे भाग्य का खेल कहूँ या भगवन कृष्ण के गीत के कर्म ज्ञान का पुरुषार्थ मेरे तीनो बहन के पतियो ने अपने मजदूर मजबूर पिता को अपने मेहनत लगन निष्ठां से समाज में शिखरतम प्रतिष्ठा दिलाई आज उन्होंने साबित कर दिया की भगवान उन्ही के लिये है जो भगवान द्वारा प्रदत्त जन्म जीवन के मौलिक उद्देश्यों को अपने पराक्रम पुरुषार्थ द्वारा प्रमाणित कर सकने में सक्षम होता है।मैंने भी अपने पिता की बेबस आँखों में उनकी आकांक्षाओं की लाचारी का द्वन्द देखा स्कूल से विद्यालय विश्वविद्यालय तक आर्थिक तंगी के अपमान का विष पिता रहा फिर एम् एस सी पी एच डी आदि अध्ययन करता रहा कभी स्कालर शिप मिली कभी लोगो ने प्रोत्साहित किया चूँकि दक्षिण भारत में वर्ग भाषा और स्तर में बहुत विवाद भेद मौजूद है मैं उच्च ब्राह्मण परिवार से होने के कारण मेरी योग्यता की स्विकार्यता बहुत कठिन चुनौतियों जलालत के बाद हुई चूँकि मेरे पिता अनपढ़ भूमिहीन थे अतः उनके पास अपने परिवार पोषण का एक मात्र साधन शारीरिक श्रम की चाकरी यानि मजदूरी ही थी।उन्होंने अपना जीवन अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये मशीन बना दिया और अपने जीवन की आकांक्षाओं को अपनी संतानो की उपलब्धि में साकार किया मैं यह नहीं समझ पा रहा हूँ की मैं तुम्हे अपनी जिंदगी के विषय में बताकर क्या हासिल करना चाहता हूँ मगर मन ने आवाज दी और लिखना शुरू कर दिया मेरे जीवन का संघर्ष किसी भी कुरुक्षेत्र के महायुद्ध से कम नही है नौकरी के लिए मसक्कत शिक्षा प्राप्त करने के लिये कदम कदम पर संघर्ष कभी गिरीबी अगर अभिशाप है तो मजदूरी महापाप जिसकी जलालत इंसान को प्रत्यक्ष झेलनी भोगनी पड़ती है।मैंने जो अपने जीवन को देखा मेने कोशिश किया की उन परिस्तितियों का सामना मेरी संतान को न झेलनी पड़े मैंने सभी परिस्थियां संसाधन उनके बेहतर भविष्य के लिये उपलब्ध कराये और मेरी संतानो ने उसका लाभ भी उठाया और अपनी मन मर्जी की मंजिल के मुसाफिर बन गए मेरी एक बेटी आयर लैंड में वरिष्ठ और जानी मानी नेफ्रो सर्जन है उसने आयरिस से विवाह कर अपना घर बसा लिया है तो बेटा मेरा एकलौता विश्व का जाना माना कार्डियोलॉजिस्ट है और उसने फ़्रांस में अपना आशियाना बना लिया है दो जानी मानी सन्तानो का पिता आज अकेले अपनी अंतिम सांसो का घुट घुट कर इंतज़ार कर रहा है पत्नी विमला की मृत्यु हो चुकी है और सामने उसकी तस्वीर से बात करता रहता हूँ।भोजन बनाने के लिए बाई आती है और चली जाती है बेटे बेटी से बात करने की कोशिश करता हूँ तो बड़ी मुश्किल से उनका फोन उठता है जब भी फोन उठाते है सिर्फ यही कहते है यहाँ आ जाओ बृद्धाश्रम बहुत है या इण्डिया में ही बृद्धाश्रम हो वहां चले जाओ।मैंने अपना विशाल माकन बच्चों के स्कूल के लिये दान कर दिया है अनेकों बीमारियों ने जकड़ रखा है और अब सिर्फ मृत्यु से समंध का इंतज़ार कर रहा हूँ।आज वो रामानुज तोताद्री अपनी किस्मत पर तड़फड़ा रहा है जिसके जीवन की इस विषम घड़ी में तुमको साझा करना क्यों उचित समझा स्वयं नहीं समझ पा रहा हूँ?
मैं जीवन भर शिक्षक रहा हूँ लाखो विद्यार्थियो को शिक्षा और उनका भविष्य सँवारने में अपनी योग्यता से ईमानदार प्रयास किया जब भी मैं बहार निकलता बाज़ार हाट या किसी सार्वजनिक स्थान पर हमारे विद्यार्थी श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते है मुझे कभी कभी अभिमान का दीमक अंदर से खोखला करने का प्रयास करता मगर मैं कभी बसीभूत नहीं हुआ ।आज मुझे खुद के होने का बेहद अफ़सोस हो रहा है मुझे जीवन यात्रा की वेदना ने छलनी कर दिया है।मैं एक मजदूर की संतान होकर मजबूर पिता को मजबूरी के मकड़ जाल से निकलने का संकल्प सत्य किया मजदूर पिता को मजदूर महात्म्य
का महानायक बनाने में कोइ कोर
कसर बाकि नहीं रखा ।आज मै खुद मजबूर और अपने मजदूर पिता के इर्द गिर्द महसूस कर रहा हूँ।रामानुज तोताद्री का पत्र पढ़कर रामु की आँखे भर आयी ।तुरंत ही अपने कार्यालय सहयोगियों की मीटिंग बुलाई और कार्यालय का एक सप्ताह के कार्यो का निर्देश जिम्मेदारी प्रत्येक को निश्चित हिदायत के साथ सौंपते हुए अर्नाकुलम् जाने का फैसला कर लिया।अगले दिन अर्नाकुलम के लिये रवाना हो गया दो दिन बाद अर्नाकुलम रामानुज तोद्रादि जी के घर पहुँच गया।तोताद्री जी रामु को देखकर अचानक भौचक्के रह गए उन्होंने रामु का कुशल क्षेम पूछा और भावनात्मक सत्कार में स्नेह विह्वल आंसुओ के प्रवाह से किया रामू को तोताद्री जी की दशा देखकर अपने पिता की याद ताज़ा हो गयी जब वह हर सुबह उसे जीवन मूल्यों की शिक्षा देकर मजदूरी के काम पर निकलते।रामू और तोताद्री ने अपने बीते दिनों की यादों को अपनी बात चीत के शीलशिले के लिए आधार बनाया दोनों के मध्य यादो के पर्त खुलने लगे दर्द और सुख दुख के एहसास का अतीत वर्तमान में रिश्तों को मजबूती प्रदान करने में कारगर होने लगे ।दोनों के वार्तालाप में पता ही नहीं चला की
शाम कब हो गयी तोतादृ जी का
खाना बनाने वाली बाई आई तब रामु ने उसका हिसाब करते हुये बताया की आब तुम्हे खाना बनाने कीआवश्यकता नहीं है तोतादृ जी की दैनिक दिनचर्या में जो लोग भी सम्मिलित थे रामू ने सबको स्वयं जाकर एक एक का हिसाब कर दिया जैसे चिकित्सक वासरमैंन बाई आदि और यह भी बता दिया की अब तोताद्रि जी को आपके सेवाओं की आवश्यकता नहीं होगी आप लोगो ने जितनी लगन निष्ठां के साथ तोताद्री जी की सेवा की उसके लिये आप सभी को ह्रदय से आभार कृतज्ञता इसके उपरांत रामू ने उस स्कूल प्रबंधन से मुलाक़ात किया जिसको विद्यालय खोलने हेतु तोताद्री जी ने अपना मकान दान कर दिया था और उनसे रामानुज तोताद्रि के नाम से विद्यालय खोलने एवं उदघाटन करने का अनुरोध करते हुये बीस हज़ार रुपये दान स्वरुप इस निवेदन के
साथ किया की विद्यालय पूजन तोताद्री जी के कर कमलो द्वारा संपपन्न होगा विद्यालय प्रबंधन ने इस गौरवशाली आमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया ।तोताद्री
जी समझ नहीं पा रहे थे की रामू
क्या करना चाहता है ।लेकिन उन्हें भरोसा था की वह गलत नहीं हो सकता जिसके अपने बेटों ने चका
चौध की दुनियां और भौतिकता के आकर्षण में अपने नैतिक दायित्वों कर्तव्यों की तिलांजलि दे दी हो उसे रामू से क्या शिकायत हो सकती थी। चुप चाप रामू के निर्णयों को सिरोधार्य करते उसके साथ कदम से कदम मिलते जा रहे थे ।रामू को आये लगभग दस दिन हो चुके थे और वह स्वयं नाश्ता खाना बनाता तोतादृ जी की ऐसी देख भाल करता जैसे ईश्वर स्वयं रामू की शक्ल में उनका तीसरा बेटा दे दिया हो। आखिर वह दिन आ ही गया जब रामानुज तोताद्री कालेज का विधिवत पूजन शुभारम्भ होना था रामू ने स्वयं तोताद्री साहब को नहला धुला कर तैयार कर पूजन में साथ लेकर गया और पूजन विधिवत विद्यालय प्रबंधन समिति के सभी
सदस्यों की उपस्तिति में सम्पन्न हुआ। पूजन सम्पन्न होते ही रामू ने प्रबंध समिति को लगभग एक हजार वर्ग मीटर की भव्य इमारत जो तोताद्री जी के जीवन के सपनो संस्कारो की प्रत्यक्ष धरोहर थी की चाभी दस्तावेज प्रबंध समिति के अध्यक्ष तोताद्री जी के कर कमलों से समुगम नागराजन को सौप दिया चाभी सौपते वक्त तोताद्री जी बहुत भाउक हो गए और उन्होंने बोलना शुरू किया मैं रामानुज तोताद्री अपने स्वर्गीय माता पिता और ईश्वर को साक्षी मानकार अपने भौतिक जीवन की उपलब्धि आप लोगों को इस विश्वास के साथ सौंपता हूँ की इस विद्यालय में गरीब ,मजदूरों, असहाय ,बेसहारा बाच्चो को उनके जीवन मूल्य उद्देश्य के लिये शिक्षित कर सबल सक्षम नागरिक बनाकर राष्ट्र समाज को प्रस्तुत करेगा तभी मेरे मजदूर पिता के मेहनत पसीनों से सिंचित यह भूमि मेरे पुरुखों को शांति प्रदान कर सकेगी यदि संभव हो तो रामू का नाम इस विद्यालय के प्रबब्धन में अवश्य रखियेगा मुझे विश्वाश है की रामू मेरी इस इच्छा का आदर
करेगा ।मैं जीवन भर शिक्षक रहा हूँ यहाँ विद्यार्थियो को पढ़ते बढ़ते देख जीवित और मृत दोनों स्तितियों में मुझे शांति और ख़ुशी मिलेगी इतना कहकर रामानुज तोताद्री ने गहरी सांस छोड़ते हुए अपने अरमानो के आशियाने को भर नज़र निहारा उनकी आँखे गवाही दे रही थी उनके गुजरे अतीत की यादो को जिसको तोताद्री जी ने उस भवन में गुजारा था उनकी आँखों से आंसू छलक रहे थे ।इतनी देर में रामू ने तोताद्री जी के आवश्यक सभी सामान जो पहले से ही पैक थे बाहर निकाल कर रखवा दिया रामू ने कहा सर चलिए अब आप मेरे साथ रहेंगे। तोताद्री जी बिना कुछ कहे रामू के साथ चल दिए विद्यालय प्रवंधन कमेटी के सभी सदस्यों ने समुगम जी के नेतृत्व में अश्रुपूरित नम और भावों के प्रवाह से रामू और तोताद्री जी को बिदा किया ।रामू तोताद्री को लेकर अर्नाकुलम रेलवे स्टेशन पहुंचा करीब एक घंटे बाद ट्रेन चलने को तैयार हुए तोताद्री जी ने अपनी जन्म भूमि की मिटटी अपने माथे लगाया और बोले हे मेरी पावन मातृ भूमि मैं तेरे ही आँचल में पला बढ़ा मेरे पिता पुरखे भी तेरी ही परिवरिस से जाने पहचाने गए तेरा ऋण मेरे खून के कण कण और खानदान पे है कोई भी प्राणी जननी जन्म भूमि का ऋण नहीं चूका सकता मगर जन्म और मृत्यु तेरे दामन में सौभाग्य है जो मेरे पुरुखों को तो
प्राप्त हुआ मगर शायद मुझे प्राप्त नही होगा ,होगा भी कैसे मेरी संतानो को तूने संभवतः कुछ ज्यदा ही प्यार कर दिया जिसके कारण अभिमान के अभिभूत तेरी सेवा से बिमुख वहां चले गए जहाँ से उनका दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं है संभवतः मेरे ही किसी अनजाने अपराध के अंतर मन की सजा के कारण वे अपने नैतिक कर्तव्यों से विमुख हो गए ।
मुझे क्षमां कर दे मातृभूमि मैं जब भी जन्म लूँ तेरी ही मिटटी की
बचपन ,जवानी मुझे नसीब हो। ट्रेन अपनी गति से चलती जा रही थी रामू और तोताद्री आपस में बाते करते रहते जब कभी ख़ामोशी होती दोनों ही तोड़ने की कोशिश करते।रामू और तोताद्री जी वातानुकूलित प्रथम श्रेणी डिब्बे में सवार थे दोनों की बर्थ आमने सामने थी यह वह दौर था जब भारत में मोबईल का चलन नहीं था लेकिन संचार क्रांति का दौर प्रारम्भ हो चुका था जगह जगह प्राइवेट काल आफिस खुले थे।ट्रेन निरंतर चल रही थी रामू और तोताद्री के वार्ता का क्रम चलता कभी रुक जाता तो आस पास बैठे यात्रियों को खामोशी का एहसास होता प्रथम श्रेणी कोच
तब व्यक्ति के संभ्रांत और प्रसतिष्ठित होने की पहचान थी जो अब भी बरकरार है ।बातों ही बातों
में तोताद्री साहब को कब नीद आ गयी और वो सो गए ट्रेन के कोच
में लंबी खामोशी छा गयी रामू भी शांत बैठा था अपनी धुन ध्यान में तभी उसी कोच में बैठी सुजाता जो बड़े ध्यान से रामू और तोताद्री जी की आपसी बातो को सुन रही थी ने खामोशी तोड़ते हुए पूछा ये आपके पिता है रामू ने जबाब दिया नहीं मगर पिता समान है मैं एक मजदूर का बेटा हूँ जिसकी मृत्यु एक इमारत के निर्माण में कार्य करते वर्षो पहले हो चुकी है ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तोताद्री सर है। मैं लखनऊ में अकेला रहता हूँ इन्हेंअपने पास ले जा रहा हूँ।सुजाता ने झट दूसरा सवाल किया इन्होंने ऐसा क्या आपके लिये किया जिसके लिये आप इनको अपने पिता से बढ़कर मान दे रहे है इनके कुलपति काल में तो हज़ारों विद्यार्थियों ने शिक्षा विश्वविद्यालय में ग्रहण की होगी ?रामू ने उत्तर दिया मेरे पिता की दुर्घटना में मृत्यु
हुई थी इन्होंने अपनी सरकारी कार से मुझे इलाहाबाद से लखनऊ भेजा साथ ही साथ अध्य्यन के दौरान सदैव मेरी मदद पुत्र की तरह की सत्य है इनके कुलपति कार्य काल में हज़ारों
बच्चों ने शिक्षा ली मगर ये मेरे लिये
और में इनके लिये मैं पिता पुत्र की
तरह ही थे।सुजाता रामू का बेवाक जबाब सुनकर आश्चर्य से रामू का चेहरा देखने लगी कुछ देर ख़ामोशी के बाद रामू ने प्रश्न किया आप कहाँ जा रहीं है ?सुजाता ने बड़ी संजीदगी से जबाब दिया मैं लखनऊ जा रही
हूँ मैं केरल घूमने अपने दोस्तों के
साथ गयी थी वापसी में मेरे दोस्तों का कार्यकम और कुछ दिन रुकने का था मुझे लौटना था इसलिये मैं वापस जा रही हूँ।फिर रामू और सुजाता बातों ही बातो आपस में घंटो बीता दिये पता ही नहीं चला इसी बीच तोताद्री साहब ने एक बार लंबी सांस छोड़ी रामू को पुकारा और फिर निद्रा की मुद्रा में
चले गए रामू ने बहुत जगाने की कोशिशि की मगर तोताद्री साहब
नहीं उठे सुजाता ने भी बहुत कोशिश की मगर जब तोताद्री जी नहीं उठे तब रामू घबड़ाया रामू की घबराहट देखकर सुजाता ने कहा आप घबड़ाओ नहीं इनकी
साँसे धड़कन ठीक है ये अस्थाई
कोमा में जा चुके है रामू को सुजाता की ये बात सुनकर झुंझलाते हुये गुस्से से बोला आप इतने विश्वाश से कैसे कह रही है ये कोमा में है सुजाता ने उत्तर दिया जनाब मैं किंग जार्ज मेडिकल कालेज लखनऊ में न्यूरोलोगी विभाग में सहायक प्रबक्ता हूँ मेरे पास ऐसे अनेक मरीज लगभग रोज आते है। रामू ने तुरंत साँरी बोला और पूछा अब हमे क्या करना चाहिये सुजाता ने कहा जनाब आप घबड़ाये नहीं एक डॉक्टर आपके साथ है मगर अब कोच कंडक्टर से कह कर जल्दी से जल्दी अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकवाये जहाँ इनको मेडिकल
सपोर्ट मिल सके रामू तुरंत कोच कन्डक्टर स्वामीनाथन के पास गया और उनको अपने बर्थ के पास लाकर तोताद्री जी के की बिगड़ती हालत को दिखाया स्वामीनाथन ने कोमा में सोये तोताद्री जी का पैर छुआ और उसके आँख से आंसुओ धार निकल पड़ी रामू ने आश्चर्य से पूछा क्या आप इनको जानते है स्वामीनाथन ने बताया की जब वह स्नातक में पढता था तब तोताद्री साहब ने ही किताबे फीस
देकर उसकी मदत की थी मेरे बाप के पास इतनी हैसियत ही नहीं थी की वो मुझे स्नातक पढ़ा सकें ।आज मैं जो कुछ भी इनकी बदोलत हूँ। यदि मैं इनकी सेवा कर सका तो मेरे लिये सौभाग्य होगा अगला स्टेशन वारंगल आ रहा है वहाँ ट्रेन रुकेगी वहाँ समुचित मेडिकल सुविधाये भी है वहीँ इनके इलाज़ की व्यवस्था करते है।
कुछ ही देर ट्रेन चलने के उपरान्त वारंगल स्टेशन पहुंची बड़ी तेजी से स्वामीनाथन स्टेशन मास्टर के केविन जाकर मरीज के सम्बन्ध में जानकारी दिया और निवेदन किया की ट्रेन को तब तक रुकवा दे जब तक मरीज के इलाज़ की समुचित व्यवस्था नहीं
हो जाती ।फिर स्ट्रेचर मंगाने और मरीज को ट्रेन से उतरने और हस्पताल तक पहुँचाने हेतु निवेदन किया स्टेशन मास्टर सूर्या राव ने कहा घबराये नही। सूर्य राव स्वयम उठकर ट्रेन के गार्ड को वस्तुस्थिति से अवगत कराने के बाद स्ट्रेचर ट्रेन के कम्पार्टमेंट में भेजा जहाँ रामू तोताद्री के पास बैठा गंभीर मुद्रा में सोच में डूबा था अचानक स्ट्रेचर आया तब उसका ध्यान टुटा तुरंत उठकर वह् तोताद्री जी को स्ट्रेचर पर लाने अन्य लोंगों की मदत करने लगा कुछ ही मिनट में रामू तोताद्री जी को लेकर ट्रेन से निचे उतरा तभी सुजाता भी अपना सामान लेकर उतरी ट्रेन के निचे स्वामीनाथन खड़े थे अम्बुलेंस स्टेशन के बाहर खड़ी थी जब रामू तोताद्री जी को स्ट्रेचर से लेकर स्टेशन से बाहर जाने से पहले सुजाता की तरफ मुखातिब होकर बोला सुजाता जी आप क्यों अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ रही है ।तोताद्री जी मेरी जिम्मेदारी है आप खामख्वाह क्यों परेशान हो रही है सुजाता रामू की बात को बड़े ध्यान धैर्य से सुनने के बाद बोली रामू जी क्या आपका इन माहशय से कोई खून का रिश्ता है रामू ने कहा नहीं फिर क्यों इनके लिये अर्नाकुलम तक गए इनके बेटे इनसे मिलने नहीं आते पत्रो का जबाब भी नहीं देते देते तो इनको आहत करते आप ऐसा क्यों कर रहे है? जैसे ये आपके लिए भगवान हो रामू लगभग चिल्लाने के अंदाज़ में बोला हाँ हमारे लिये ये भगवान ही हैं तब सुजाता ने दृढ़ता पूर्वक कहा की यदि एक सादरण इंसान आपके लिए भगवान् है तो मेरे लिए क्यों नहीं? वो भी जो जीवन मृत्यु की शय्या पर पड़ा हो मैं एक डॉक्टर हूँ मेरा कर्तव्य है की हम तब तक इनकी देखभाल करे जब तक ये स्वस्थ नहीं हो जाते ये मेरा फ़र्ज़ है ।स्वामीनाथन रामू और सुजाता की बाते बड़े ध्यान से सुन रहे थे उन्होंने निवेदन के स्वर में रामू से कहा आप सुजाता जी को चलने दीजिये ।रामू किसी तरह दबे मन से सुजाता को साथ चलने की स्वीकृति दे दी अब सुजाता ,स्वामीनाथन और रामू एम्बुलेंस से स्टेशन से बाहर निकले और थोड़ी ही देर में बाला जी नर्सिंग होम जो वारंगल का सबसे प्रतिष्ठित नर्सिंग होम था पहुँच गए जहाँ सुजाता सबसे पहले नर्सिंग होम के स्वागत कक्ष में दाखिल हुई और वहाँ के चिकित्सक के बारे में अपना परिचय एक डॉक्टर के रूप में देकर पूंछा तब तक डॉक्टर सुब्बा राव रेड्डी बाहर निकले ।स्वागत कक्ष में बैठी महिला ने इशारा किया सुजाता तुरंत डॉ रेड्डी से मुखातिब हुई और अपना परिचय देने के बाद मर्ज और मरीज के विषय में बताया इसी बीच स्वामीनाथन और रामू स्ट्रेचर लेकर दाखिल हुए डॉ रेड्डी ने बिना बिलंब तोताद्री जी का इलाज़ शुरू कर दिया स्वामीनाथन, सुजाता और रामू नर्सिंग होम के सामने एक साधारण होटल में रुकने के लिये कमरे ले लिये बारी बारी से तीनों
तोताद्री जी की सेवा एवं देख भाल करते इसी बीच सुजाता और रामू जब भी समय मिलता बाते करते धीरे धीरे एक दूसरे के मन मतिष्क ह्रदय से एक दूसरे पर करीब होते गए पता नहीं दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया दोनों को भी एहसास नही हो पाया ।डॉ सुब्बाराव ने सारी कोशिश कर लिया मगर तोताद्री जी कोमा से बाहर नहीं आ सके लगभग दो सप्ताह का समय बीत चुका था सुजाता भी बहुत चिंतित थी चूँकि वह स्वयं जानती थी की अधिक दिनों तक कोमा में तोताद्री जी का रहना अच्छा नहीं वह चिंता सोच में बैठी थी तभी वहां रामू ने आकर सुजाता की चिंता ध्यान को तोड़ते हुए बोला क्या सोच रही है? सुजाता बोली रामू जी आप बार बार आप कहके शर्मिंदा कर रहे है आपको यह नहीं लगता है ट्रेन में अचानक हम लोंगो का मिलाना तोताद्री जी का अचानक बीमार होना और फिर हम लोंगो का साथ होना यह मात्र संयोग नहीं ईश्वर की इच्छा आशिर्बाद है मैं प्रति दिन अपने पिता जी से बात करती हूँ मैन बाता दिया है की मैंने अपनी शादी के लिये अपनी एवम आपकी पसंद लड़का पसंद कर लिया है ।रामू ने भी बिना झिझक सुजाता के प्रेम विवाह की सहमति देते हुये बोला मेरी भी अन्तरात्मा की यही आवाज़ है अतः मैं तुम्हे आज दशों दिशाओं सारे देवी देवताओ अवनि आकाश पर्वय नदियां झरने झील पेड़ पौधों वनस्पतियो को साक्षी मानकर तुमसे उचित समय आने पर विवाह करने का वचन देता हूँ।
सुजाता ने तुरंत ही एक सवाल
किया रामू तुमने इतनी जल्दी फैसला लेने के लिये किस ख़ास बात ने विवश किया मेरे निस्वार्थ प्रेम ने या कोई अन्य कारण से रामू ने बड़े ध्यान से सुजाता की आँखों में आँखे डाल कर देखा और बोला सुजाता क्या तुम जानती हो की मैं कौन हूँ मेरा बैक ग्राउंड क्या है मैं क्या करता हूँ मेरे क्योकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानता हो हूँ की तुम किंग जार्ज मेडिकल कालेज में न्यूरो बिभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हो सुजाता ने जबाब दिया मेरे लिये इतना ही काफी है की तुम्हारा दिल आइने की तरह है जिसमे दिल और चेहरा साफ़ साफ़ दिखता है ।मेरे लिये इतना बहुत है प्यार करने के लिये जिंदगी में रामू ने कहा फिर भी मैं तुमको बताना चाहता हूँ की तुमको पछतावा न हो मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी हूँ और लखनऊ में विशेष सेवा मे पोस्टिंग है मेरी अभी दोनों की वार्ता चल ही रही थी की स्वामीनाथन भागे भागे आये और बोले तोताद्री सर को होश आ गया सुजाता और रामू भागे भागे बाला जी नर्सिंग होम के उस रूम में पहुंचे जिसमे तोताद्री साहब की चिकित्सा चल रही थी तोताद्री जी ने रामू को देखते ही कहा रामू मैं बहुत गहरी नींद में सो गया था मगर नींद में भी तुम्हारी परेशानी का कारण मैं हूँ चिंता रहती आज लगा की तुम जीवन में कुछ खुश हो तो नीद तुम्हारी ख़ुशी देखने के लिये टूट गयी। रामू की आँखे भर आयी रानू ने तुरंत ही सुजाता की तरफ मुखातिब होते हुए सुजाता का परिचय कराते हुए बोला ये डॉ सुजाता है हमी लोंगो के डिब्बे में सफ़र कर रही थी ये न्यूरो बिभाग किंग जार्ज मेडिकल कालेज में सहायक प्रोफ़ेसर है आपकी बिमारी की स्थिति में अपना सफ़र बीच में ही छोड़ कर हम लोंगो के साथ उतर कर आपकी देख रेख बड़ी लगन से किया है ।तोताद्री साहब ने सुजाता को गौर से देखा और बोले बेहद खूबसूरत और होनहार है मेरा आशिर्बाद है बेटा। सुजाता और कुछ दे भी नहीं सकता क्योकि रामू के शिवा मेरे पास तुम्हे देंने के लिये कुछ भी नहीं है और रामू तुम्हारे साथ है ।फिर तोताद्री जी विश्वनाथन की तरफ मुखातिब हुते हुए बोले ये निरंकार विश्वनाथन मेरा प्रिय शिष्य मैं जीतनी बार जन्म लूँ हर बार विश्वनाथन और रामू जैसे बेटो पिता बनना मेरी एकमात्र इच्छा होगी मैं ईश्वर से सदैव यही मांगूगा।
इन्ही बार्ता के मध्य डॉ सुब्बाराव रेड्डी वहां पहुचे उन्होंने तोताद्री जी
की रूटीन चेक उप करने के बाद वहां उपस्थित सभी लोंगो को हिदायत दी तोताद्री जी को आराम की जरुरत है। फ़ौरन विश्वनाथन सुजाता और रामू तोताद्री जी को आराम देने की नियत से वहां से हट गए ।अब प्रतिदिन तोताद्री जी की सेहत में तेजी से सुधार होने लगा एक हफ्ते बाद पूरी तरह ठीक हो गए बाला जी नर्सिंग होम वारंगल में तीन सप्ताह तक इलाज़ इलाज़ के बाद तोताद्री जी पूरी तरह स्वस्थ हो गए डॉ सुब्बाराव रेड्डी ने कुछ आवश्यक हिदायत दी और सुजाता को समझाया और नर्सिंग होम से छुट्टी दे दी नर्सिंग होम में इलाज़ का पूरा खर्च निरंकार विश्वनाथन ने चुकाया और लखनऊ तक जाने का ट्रेन टिकट के साथ सुजाता ,रामू और तोताद्री जी के साथ रेलवे स्टेशन आया और ट्रेन में बैठाने आदि की व्यवस्था की और तोताद्री जी के पौरों पर सर रख कर आशिर्बाद लेकर सुजाता ,रामू के साथ तोताद्री जी को विदा किया ट्रेन वारंगल से च्लने लगी निरंकार स्वामीनाथन एक तक जाती ट्रेन को देखते रहे उनकी आँखों से अश्रु धरा बह रही थी धीरे धीरे ट्रेन आँखों के सामने से ओझल हो गयी ।विश्वनाथन भी अपने घर लौट गए विश्वनाथन दूसरे दिन पूरे तीन सप्ताह की छुट्टी आवेदन ले कर अपने कार्यालय पहुंचे जब वे अपने अधिकारी रामामूर्ति को छुट्टी का
आवेदन दिया रामामूर्ति जी आग बबूला हो गए और बोले मैं जनता हूँ की आपके पिता को ये दुनियां छोड़े वर्षो हो गए मगर फिर भी आपने लिखा है की आपके पिता जी की तबियत खराब होने के कारण डियूटी पर नहीं आ सके ये नया बाप कहाँ से आ गया ?विश्वनाथन को अपने अधिकारी रामामूर्ति जी की बात बड़ी नागवार गुजरी फिर भी उन्होंने बड़े धैर्य से जबाब दिया सर उन्होंने मुझे पढ़ाने में बहुत मदत की थी मेरे बाप के पास इतना संसाधन ही नहीं था की वो मुझे स्नातक की शिक्षा दिला पाते वो तो भला हो तोताद्री जी का जिनकी कृपा से मैं स्नातक भी हुआ और आपके समक्ष यह अवकाश प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर की हद हैसियत पाई। राममूर्ति जी को समझते देर नहीं लगी उन्होंने फ़ौरन अवकाश स्वीकृत करते हुए अपनी कुर्सी से उठे विश्वनाथन की
पीठ थापथाई और बोले तुम धन्य हो तुम्हारे जैसा इंसान जमाने में मिशाल है और यह कहते हुए उनकी आँख भर आयी बोले तुम सदा ही अपने उदेशय पथ पर सफल हो।।
ट्रेन अपना सफ़र पूरा करते हुए लखनऊ को पहुंची रामू सुजाता और तोताद्री साहब ट्रेन से उतारे और फ़ौरन रिजर्व टैक्सी कर अपने घर को चल दिए सुजाता ने भी कहा हम भी घर तक साथ चलेंगे और वह भी साथ हो ली आधे घंटे में तीनो रामू के सरकारी आवास पहुचे जहाँ रामू की दोनों बहने अपने भाई रामू और तोताद्री जी का इंतज़ार कार रही थी सुजाता ने तोताद्री साहब का कमरा विस्तर ठीक कराया और रामू की बहनों को तोताद्री साहब की देख भाल की खास हिदायत देकर चलने के लिये विदा लेने के लिये रामू की दोनों बहनों राशि और रोहिणी की तरफ मुखातिब हुई तभी दोनों बहनो ने कहा अच्छा भाभी आपकी हिदायत के अनुसार ही हम लोग बाबूजी की देखभाल करेंगे सुजाता को बहुत तेज झटका लगा उसने विस्मय कारी दृष्टि से राशि और रोहिणी की तरफ देखा तभी दोनों बहनो ने एक साथ बोला माफ़ करना भाभी आपकी शादी जिससे होगी वह् भी हम बहनो के भाई जैसा ही होगा। सुजाता ने हल्की मुस्कान बिखेरी और अपने घर जाने को बाहर निकली दोनों बहने अपने भाई रामू के साथ बाहर निकली और तीनो ने भावनात्मक अभिवादन से सुजाता को विदा किया। सुजाता कुछ ही देर में अपने घर पहुँच गयी घर पहुँचते ही सुजाता की पापा हृदय शंकर त्रिपाठी ने अपनी एकलौती बिटिया का बेहद भावनात्मक स्वागत किया और बिलम्ब का कारण पूछा सुजाता ने पूरी यात्रा का तप्सिल से वर्णन हृदय शंकर त्रिपाठी अपनी बेटी पर बहुत प्रशन्न हुये सुजाता सफ़र की थकान बोझ से सामान्य होकर अगले दिन से अपने डियूटी पर जाने लगी रामू भी अपने कार्य पर जाने लगा दिन धीरे धीरे जिंदगी सामान्य होने लगी राशि और रोहिणी जल्दी ही तोताद्री जी से घुल मिल गयी और तोताद्री जी को बाबूजी कहती और तोताद्री जी को भी दो बेटिया मिल गयी थी तोताद्री जी का मन विल्कुल ऐसा लग गया जैसे की अपने घर अर्नाकुलम में ।उधर सुजाता जब भी अपने डियूटी से खाली होती रामु से मिलने जाती दोनों घंटो बाते करते कभी कभी साथ घुमने पार्क रेस्त्रां चले जाते दोनों की प्रेम कहानी किंग जार्ज मेडिकल कालेज और लखनऊ के प्रशासनिक अमलों में चर्चा का विषय बन गयी थी धीरे धीरे यूँ ही दिन बीतते गए।एकाएक एक दिन तोताद्री जी ने रामू से कहा बेटा रामू राशि और रोहिणी अब विवाह योग्य हो चुकी है दोनों के लिए विवाह योग्य बर देखकर इनका विवाह कर दो या यदि इन दोनों की पसंद का कोई लड़का हो उनसे ही इनका विवाह कर दो रामू को तोताद्री जी की बात अच्छी लगी उसने पहले ही सुरेन्द्र नायक के परिवार में उनके दोनों बेटों को जो डॉक्टर थे अपनी बहनों के लिए पसंद कर रखा था दूसरे दिन रामू सुरेन्द्र नायक के घर जाकर अपने बहन राशि और रोहोणि का विवाह निश्चित कर दिया बड़े धूम धाम से दहेज़ रहित विवाह रामू ने अपनी बहनो का किया सुरेन्द्र नायक जी की ख़ुशी का क़ोई ठिकाना नहीं रहा रोहिणी और राशि जैसी सुलक्षणा सुन्दर बहुओं को पाकर तोताद्री जी ने दोनों कन्याओ का कन्या दान किया जब दोनों बहने बिदा होने लगी रामू और तोताद्री जी ने
भरी आँखों से बिदा किया सुजाता विवाह के एक सप्ताह पहले सुबह आ गयी थी और विवाह की तैयारी शॉपिंग आदि करती कभी दस बजे कभी बारह बजे रात्रि को अपने घर जाती। उसने अपनी ननदो की शादी में क़ोई कोर कसर नहीं रखी इसी तरह तीन महीने एकाएक दिन तोताद्री जी ने रामू को प्यार से बैठाया और कुछ देर पुरानी बातों की याद ताज़ा करते हुये बोले रामू अब तक तुमने अपनी सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया किसी भी परिवार को तुम पर नाज़ हो सकता है मगर अब तुम्हे अपने बारे में सोचना है तुम शादी कर लो सुजाता अच्छी लड़की है उसके आने से तुम्हे जीवन की सारी खुशियाँ मिलेंगी पढ़ी लिखी डॉक्टर है सुन्दर है मिलनसार है
सर्वथा तुम्हारे योग्य है आज ही तुम सुजाता से कहो की वो तुम्हारी शादी के लिये अपने पिता जी को यहां भेजे और विवाह की तिथि निश्चित करे। रामू ने सहमति से सर हिलाया और तैयार होकर कार्यालय को चल दिया उस दिन सुजाता जल्दी जल्दी अपने काम से छुट्टी पाकर रामू से मिलने के लिये फोन करके बुलाया रामू कार्यालय से खाली होकर जल्दी ही सुजाता से मिलने गया सुजाता पहले से इंतज़ार कर रही थी ।रामू के पहुँचते ही सुजाता ने कहा कब से मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूँ आज मै सरप्राइज देने वाली हूँ रामू ने कहा मैं भी तुम्हे सरप्राइज देनेवाला हूँ सुजाता ने झट कहा पहले तुम बताओ रामू ने कहा पहले तुम बताओ रामू ने कहा पहले तुम रामु ने कहा पहले तुम पहले तुम के चक्कर मे लखनऊ के नबाबों का हाल मत करो तुम पहले से आकर इंतज़ार कर रही हो अतः पहले तुम ही बताओ सुजाता ने कहा अच्छा बाबा मैं ही बताती हूँ तो सुनो मेरे पापा पंडित ह्रदय शंकर त्रिपाठी कल आपके घर मेरे रिश्ते की बात लेकर जाने वाले है जनाब मेरे पापा काफी कड़क ऊँचे ओहदेदार खानदानी आदमी है जरा संभल कर बात कीजियेगा रामु ने भी बताया कि मैं भी यही कहने वाला था कि तुम अपने पिता को मेरे घर हम दोनों की शादी की बात के लिये भेजो फिर दोनों काफी देर तक बातें करते रहे फिर दोनों अपने अपने घर को चले गए। दूसरे दिन अवकाश का दिन रविबार था ठीक सुबह नौ बजे ह्रदय शंकर त्रिपाठी रामू के घर पहुंचे दरवाजे का कालवेल बजाया तो तोताद्री जी ने ही दरवाजा खोला और आदर के साथ बैठाया थोड़ी देर बाद रामू ड्राईंग रूम में दाखिल हुआ और ह्रदय शंकर त्रिपाठी को देखकर बोला आप यहाँ कैसे यहाँ आने हिम्मत हुई तेज आवाज सुनकर तोताद्री साहब ड्राईंग रूम में दाखिल हुए बोले बेटा मैंने इनको बैठाया है ये सुजाता के पिता है क्या बात है रामू बहुत गुस्से में बोला बाबूजी ये वाही कॉन्ट्रेक्टर है जिनकी सुजाता अपार्टमेंट में काम करते मेरे पिता की मृत्यु हुई थीं और इन्होंने मेरी माँ को बहुत अपमानित किया था ह्रदय शंकर त्रिपाठी को समझ नहीं आ रहा था की वो बात को किस प्रकार शुरू करें उन्होंने तोताद्री जी से निवेदन किया सर वह एक दुर्घटना थी जिसके कारण मैं भी बहुत मानसिक दबाव में था मैं अपनी गलती के लिये क्षमा मांगता हूँ मेरी एकलौती बेटी ने मुझे यहाँ भेजा है रामू से अपने रिश्ते के लिए वो रामु से ही प्यार करती है और रामू से ही विवाह करना चाहतीं है मैं लाचार विवश पिता हूँ मुझे चाहे जो सजा दे दें लेकिन मेरी बेटी की ख़ुशी के लिये ये रिश्ता स्वीकार करें ।उसे नहीं पता की रामू के पिता की मृत्यु उसके पिता के ही प्रोजेक्ट में हुई थी और जब उसे बता चलेगा तो मुझसे नफ़रत करने लगेगी कहते हुये तोताद्री जी के पैर पकड़ लिया तोताद्री जी ने ह्रदय शंकर त्रिपाठी को उठाया और कहा धीरज रखिये रामू ने कहा हरगिज नहीं अब तो ये रिश्ता नहीं हो सकता।रामू ने तोताद्री जी से कहा सर जिस व्यक्ति में मानवता नाम की कोई संस्कार न हो उससे किसी भी प्रकार का रिश्ता ईश्वर का अपमान है मेरे पिता के मृत्यु के समय के दो किरदार जिनकी भूमिका मैं नहीं भूल सकता उसमे एक आप है जिनमे मुझे अपना पिता नज़र आते है दूसरे ये महाशय है जिनमें मुझे अपने दुर्दिन के अपमान जलालत और इंसानी जिंदगी का कोफ़्त नज़र आता है। मैं इनके व्यवहार आचरण से इतना आहत हुआ की जिंदगी भर मजदूर का बेटा होने का दर्द सताता रहेगा ।सर इनसे कहिये ये इसी वक्त यहाँ से चले जाय नहीं तो मैं कुछ भी धृष्टता करने पर विवस हो सकता हूँ। इतने में हृदय शंकर त्रिपाठी जी विवस लाचार असहाय होकर कहा बेटा मेरी एक ही बेटी सुजाता मेरे जिंदगी की तमाम खुशिया है मैं उसके लिए आया हूँ मैं उस दिन की कृत के लिये बहुत शर्मिंदा हूँ माफ़ी मांग रहा हूँ बेटे इतना कठोर न बन तू तेरे पिता रामू ने मेरे लिये जान गवांयी आगर वो आज होते तो शायद इतना पत्थर दिल नहीं होते रामू तुम्हारे पिता ने कभी मेरी बात नहीं टाली रामू ने तुरंत पलट कर जबाब दिया सही कह रहे है उसी मजदूर की विधवा पत्नी मेरी माँ
जीवन भर उनकी बेवसी को हमे याद दिलाती इस दुनिया से चली गयी ।मैं उसे क्या जबाब दूंगा क्या क्या कहूँगा की तेरे पति की लाश पर हैवानियत का नंगा नाच किया उन्ही के सपनों के आशियाने बना रहा है तू बड़ा लायक बेटा है एक मजदूर की मजबूरी का उसका बेटा मज़ाक उड़ा रहा है ठीक उसी तरह जिन्होंने मजदूरो की लाश की बोटियों की कीमत पर दौलत के महल बनाये लोगों की लाचारी का समाज में जुलुस निकाले क्या वहीँ बचे है दुनियां में रिश्तों के लिये।तोताद्री जी रामू के मुख मंडल की भाव भंगिमा से उसकी मानसिक और आहत ह्रदय के प्रतिशोध् को प्रत्यक्ष देख रहे थे ।
उनको खुद नहीं समझ आ रहा था की जिसने अपने जीवन में बड़ी से बड़ी समस्या को और भयंकर नफरत की आग को शान्तं कर सर्वस्वीकार सम्मानित समाधान दिया है वो आज खुद इतना विवस क्यों? तोताद्री जी ने
धैर्य पूर्वक बोलना शुरू किया कहा बेटा तुम्हारा ह्रदय विशाल है
देखो मुझे जिसके सगे बेटो ने ठुकरा दिया लेकिन तुमने खुद के बेटो से भी अधिक मान देकर पूरी मानवता को एक सन्देश दिया पिता जो अपने जवानी मेंअपनी संतान को अपने कंधे पर बैठाकर दिन दुनियां को बताता है की उसकी संतान उसे उसके आखिरी सांस तक उसके अभिमान को जिवंत रखेगा उसके जवानी के कर्म ,धर्म
के पुरस्कार के परिणाम से अभिभूत कर उसे जीवन समाज में संबंधो का अभिमान की अबुभूति करायेग आज कितनी संताने रामु है जो आदर्श है देखो मेरी ही औलाद जिनके लिये मैंने अपने जीवन की सभी दौलत लूटा दी और वे ही आज मेरी जिंदगी को असहाय छोड़कर चले गए और उनके पास वक्त तक नहीं की जानने की कोशिश करें की उनका बाप है भी या मर गया है ,जिंदा है तो किस हालात में हैं क्या ऐसे पिता जीना छोड़ देते है तुम्हारा जन्मदाता तो धन्य है जो खुद तो दुनियां छोड गया लेकिन अपनी औलाद के रूप में तुम्हे अपनी भावनाओ जिनको जिया सपनो को जिनको देखा का साकार रामू दुनियां में उसके अस्तित्व उसके सपनो की हकीकत का सत्य है।आज तुम पर दुनियां को गर्व है उन मूल्यों को धूलधुसित न होने दो जिसके लिये तुम्हारे पिता जीते रहे तुम्हे अच्छी शिक्षा तालीम मिली उसके लिये कितना भी थके हारे हो तुम्हे ब्रह्म बेला में तुम्हे नीद से जगाना नहीं भूलते थे वो खुद अनपढ़ होते हुये भी तुम्हारी शिक्षा संबंधी जानकारी हासिल कर कही कोई कमी होने नहीं होने देते उनकी चाहत थी की तुम दुनियां में सक्षम व्यक्ति बनो।तुमने भी उनकी आशाओं को सच साबित कर दिया ।जहाँ तक सुजाता से तुम्हारे विवाह का प्रश्न है तो तुमने देखा ही की बिना किसी जान पहचान के एक दो घंटे की सफर में मुलाक़ात में उसने अपना सफ़र बीच में छोड़ कर तुम्हारे साथ पूरे तीन हफ्ते मेरी सेवा करती रही इतना पर्याप्त नहीं है उसके पिता की माफ़ी के लिये यदि इतना पर्याप्त नहीं है तो तुम इस सत्य को नहीं झुठला सकते हो की तुम सुजाता को खुद भी खुद से ज्यादा चाहते हो और तुमने सुजाता को वचन दिया है की तुम उसे जीवन संगिनी बनाओगे और वह् तुम्हारे लिये सर्वथा उपयुक्त भी है।
तुम्हारे तो मेरे ऊपर बहुत ऋण है शिष्य होने का फ़र्ज़ इस तरह निभाया है तुमने की दुनियां में अर्जुन कृष्ण और भीष्म जैसा याद करेगी मैं किसी भी जन्म में तुम्हारा गुरु पिता बनना ईश्वर से अपने किसी भी सद्कर्मो के लिये वरदान में मांगूंगा यदि ईश्वर मुझे कुछ भी देना चाहे मैं ना तो तुम्हे सुजाता से विवाह के लिये आदेश देने की स्थिति में हूँ ना ही सुझाव मेरा मात्र निवेदन है की तुम उचित समझो तो सुजाता से पाणिग्रहण स्वीकार करो। तोताद्री जी की आँखे भर आयी रामू ने तुरंत ही तोताद्री जी के पैर पकड़ कर बोला आपका आशिर्बाद मेरे लिये मेरे पिता का आदेश होगा यदि आपकी इच्छा यही है तो हम सुजाता से विवाह करने को तैयार हूँ। मगर मेरी शर्त यह है की शादी मंदिर में होगी ह्रदय नारायण त्रिपाठी को लगा जैसे अंधे को दो आँखे मिल गयी तोताद्री जी ने विवाह का मुहूर्त निश्चित करके विवाह की तैयारी के लिये जुट गए
सुजाता और रामू का विवाह मंदिर पर सादगी के साथ हुआ ।रिसेप्शन रामू के निवास के समीप मैरेज लान में आयोजित किया गया जिसमे रामू और सुजाता की जोड़ी को सभी ने सराहा।रामू रिसेप्शन शुरू होने के साथ ही तोताद्री जी को डायस पर ले जाकर बोलना शुरू किया आज के इस कार्यक्रम में उपस्थित लखनऊ के सभी सम्मानित गणमान्य अतिथी आज मैं अपने उस पिता से आपको परिचित करता हूँ जिसने मुझे जन्म तो नहीं दिया मगर जीवन का मकसद हौसला और जीवन की सच्चाई से लड़ने की ताकत दी ये है हमारे जीवन के मार्ग दर्शक गुरु पिता और जीवन की उंचाईयों की उड़ान के पंख आदरणीय पूज्यनीय श्री रामानुज तोताद्री ये नहीं होते तो आज मेरा अस्तित्व नहीं होता मैं तो एक साधारण मजदूर पिता की संतान जिसमे ना तो समाज में स्वाभिमान से जीने का साहस होता है ना ही संबल देने वाला समाज मजदूर अपने खून पसीने से सिर्फ अपने परिवार को बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी दे सकता है ।और नीद के लिए झोपडी उसमें इतनी हिम्मत नहीं होती की वह समाज में खड़े होकर किसी से बराबरी से बात कर सके उसकी जिंदगी तो बाबूजी मालिक कहते बीत जाती है और जी हुज़ूरी जलालत भी उसे जिंदगी में ईश्वर की कृपा आशिर्बाद लगती है ।कीड़ों मकोड़ो की जिंदगी मजदूर का बेटा सपने देखने का हक नहीं रखता ऊँचे सपने तो बहुत दूर की बात है मेरे जन्मदाता पिता भी डरी सहमी जिंदगी के बोझ तले एक इमारत बनाते वक्त उसी के मलबे में जमीदोज हो गए उस मुर्दा मजदूर को भी सुकून के दो गज़ कफ़न और शमशान नसीब नही हो सकी आज मैं जहाँ भी हूँ उस मरहूम मजदूर के प्रतिनिधि के रूप में जिसे हुनर से तरासा है आदरणीय रामानुज तोताद्री जी ने आगर ईश्वर सत्य है तो इस दुनियां में जी उसके जीवन्त जाग्रत स्वरुप है।हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सुजाता और रामु ने तोताद्री जी का पैर छू कर आशिर्बाद लिया तोताद्री जी ने बोलना शुरू किया दुनियां अजीब है कोइ अपना होकर साथ छोड़ देता है कोई परया प्रेम के रिश्तों में ऐसा बाँध लेता है की अपनों की काली याद तक नहीं आती मैंने भी पैदा की संताने है जिनके सपनों को साकार करने के लिये अपनी हर संभव कोशिश की आज वो सम्मानित संपन्न भी है मगर उन्हें फुरसत नहीं की इस बुढ़े का हाल चाल ले सके यदि यही समाज की प्रगति है तो ऐसी प्रगति
प्रगति बिलकुल नहीं होनी चाहिये जिसमे प्रगति की प्रतिष्ठा ही दांव पर लग जाय और प्रगति की बुनियाद हिल जाय यदि क़ोई प्रगति की परिभाषा हो सकती है तो उसका प्रतिनिधित्व करता है रामू जो जीवन समाज के विखरे एक एक पन्ने तिनके को इकठ्ठा कर् प्रगति प्रतिष्टा का प्रेरक वर्तमान का युग राष्ट्र समाज का अभिमान है आज मेरे अपने खून ने मुझे तिरस्कृत किया तो मर्यादा के देवता यदि राम त्रेता में राम राज्य के प्रेरक पुरुष है तो आज उन मर्यादाओं का प्रतिनिधित्व करता है प्रत्यक्ष है रामू मेरे बेटों ने मुझे ठुकरादिया तो क्या हुआ राम मेरे साथ है जिसने आज यह प्रमाणित कर दिया की रिश्ते खून से ही नहीं मानवीय मूल्यों की संवेदनाओं की बुनियाद पर खड़े होते है आज मैं फक्र के साथ स्वीकार करता हूँ की रामू ही हमारा बेटा है। आज मैं इसे यह अधिकार देता हूँ की यदि मैं न रहूँ तो रामू मेरे बेटों को कोई सूचना नहीं देगा और मेरी चिता को अग्नि उसी प्रकार देगा जैसे इसने अपने जन्म दाता पिता को दिया था यह अधिकार मैं रामू को देता हूँ।एकबार पूरा हाल तालियों की
गड़गड़ाहट से गूँज उठा।
रिसेप्शन की पार्टी पुरे शबाब पर जोश खरोश से सम्पन हुई सबने नव दंपति सुजाता और रामू को उनके सफल सुखी जीवन का आर्शीवाद दिया मंगल कामनाये की पार्टी समाप्त हुई सुजाता बहु के रूप में तोताद्री जी की पसंद थी जैसा नाम वैसा गुण सुजाता ने घर का वातावरण खुशनुमा बनाने में हर संभव कोशिशि की तोताद्री जी का ख्याल अपने पिता की भाँती करती दोनों ननदे त्यौहार ख़ास अवसरों पर आती और भाभी सुजाता से खुश रहती महदुर का विखरा परिवार समाज का प्रतिष्ठित परिवार बन गया। धीरे धीरे दिन बितते गए तोताद्री जी को अपने बेटों की याद तक नहीं आती तोताद्री जी ने ऱामू के पिता की तरह अपनी सभी जिम्मेदारियां निभाई रामू दोनों बहनो की शादी का कन्या दान स्वयं किया रामू की शादी में पिता की भूमिका निभाई अब रामू एक खूबसूरत बेटे का पिता बन चूका था जिसका नाम तोतादृ जी ने स्वयं बड़े प्यार से दिया था शुभो रामू रामानुजम तोताद्री सुजाता और रामू बेटे को जूनियर तोताद्री सर कहकर बुलाते घर में विल्कुल खुशियो जैसा माहौल था एक आदर्श परिवार तोताद्री जी भी शुभ से दिनभर घुले मिले रहते उनको उम्र के आलावा कोई बिमारी नहीं थी बुढ़ापा उनकी उम्र लवभग पंचानवे वर्ष की हो चुकी थी फिर भी स्वस्थ की दृष्टि से वे विल्कुल फिट थे।एकाएक एक दिन तोताद्री जी को दिल का दौरा पड़ा सुजाता और रामू भी घर पर ही थे जल्दी जल्दी स्टाफ कार से ही रामु सुजाता तोताद्री जी को लेकर इलाज हेतु भागे दुर्भाग्य यह था की उसी दिन तमाम मजदूर ट्रेड यूनियन सड़को पर सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन कर रहे थे हर तरफ सड़को पर जाम लगा था रामू किसी तरह जल्दी से तोताद्री जी को मेडिकल एड दिलाने के लिये बेचैन था लेकिन जाम के कारण कही से निकल पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि विल्कुल नामुमकिन था अमूमन शांत शौम्य रामू खूंखार शेर की तरह गाडी से उतरा और गाडी निकालने के लिये निवेदन जोर जबरजस्ती करने लगा भीड़ इतनी उग्र थी की उसे समझ पाना संभव नहीं था उग्र भीड़ में रामू की झड़प हो ही रही थी तभी खाकी वर्दी में अधेड़ पुलिस अधिकारी कड़कती आवाज़ में बोला क्या है आप लोग इतना शोर हो रहा था की कोई किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं था इसी बीच रामू ने उस वर्दीधरी को पहचान लिया वहीँ पुलिस अफसर था जिसने रामू के मजदूर पिता की ह्रदय शंकर त्रिपाठी की निर्माणाधीन सुजाता काम्प्लेक्स में काम करते समय मृत्यु के समय माँ की थोड़ी बहुत मदत की थी रामू उस पुलिस अफसर के पास गया और उसने जल्दी जल्दी उस अतीत को याद दिलाते हुये कहा की आज फिर मेरे पिता जैसे क्या पिता ही जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहे है उन्हें जल्द चिकित्सा नहीं मिली तो मर जाएंगे उस पुलिस अधिकारी ने भीड़ को तितर बितर करने के लिए लाठिया भांजनी शुरू कर दी और साथ के सिपाही और पुलिस कर्मी भी लाठी भांजने लगे नतीजन गाड़ी निकलने का रास्ता हो गया उस पुलिस अधिकारी ने स्वयं कहा आगे आगे अपनी गाडी लेकर चलता हूँ आप पीछे पीछे आये तभी कार से सुजाता निकली और बोली सुनिये आपको पापा जी बुला रहे है उन्हें थोडा बहुत होश भी है रामू दौड़कर गाडी में गया तोताद्री साहब जैसे उसीका इंतज़ार कर रहे हो साथ में सुजाता भी गयी तोताद्री साहब ने कहा बेटा रामू रामू बोला हां पापा रामानुज तोताद्री की आँखों में चमक और मन में शांति बोध स्पष्ठ उनके चेहरे से झलक रहा था बोले बेटा रामू मुझे मुखाग्नि तुम ही दोगे जिससे मेरी आत्मा को शुख सुकून मिलेगा रामू ने कहा आप ऐसा क्यों कह रहे है हम लोग जल्दी ही अस्पताल पहुचने वाले है और आप ठीक हो जाएंगे रामानुज तोताद्री ने रानू का हाथ अपने हाथ में पकड़ा और निढाल हो गए कुछ देर के लिये लगा की भीड़ में सन्नाटा हो गया है सुजाता ने चेक किया छाती और स्वांस से जो भी मेडिको थिरेपी दी जा सकती थी दिया मगर बेकार अंत में बड़ी निराशा से बोली अस्पताल जाने का कोई फायदा नहीं है अतः घर चलकर अंतिम संस्कार की तैयारी की जाय रामू गाडी को तुरंत घर की तरफ मोड़वाया घर पहुचकर अंतिम संस्कार की तैयारी कर तोताद्री जी को कांधा दिया और मुखाग्नि दिया अस्थियों का विसर्जन संगम में करवाया फिर वीधिवत धार्मिक रीती रिवाज़ से श्राद्ध किया श्राद्ध में उत्तर ,भारत दक्षिण भारत दोनों विद्वानों ने अपने अपने कर्मकाण्ड पद्धतियों से कर्मकाण्ड कराया।रामानुज रामु तोताद्री अपनी तोतली आवाज़ में बाबा को खोजता है कभी उनकी तस्वीर के सामने खडा हो जाने अपनी बाल्यबन में क्या क्या बाते करता है।रामू हर वर्ष अर्नाकुलम जाता है और उनके विद्यालय को एक नयी सौगात देता है।
बहुत दिनों बाद एक दिन तोताद्री जी की डायरी रामू को मिल रामु को लगा की उनकी डायरियों को संकलित कराकर प्रकाशित कराई जाय रामु ने तोताद्री जी की डायरियों का दो संकलन छपवाय पहला वेदना दूसरा द्वन्द दोनों किताबो ने बहुत शोहरत हासिल किया नतीज़न लाखो रुपये रॉयल्टी आने लगी रामु ने उस रॉयल्टी और कुछ और सहयोग एकत्र कर रामानुज तोताद्री फाउंडेशन बनाकर मजदूरों की विधवाओं ,विकलांग, मजदूरो और बेसहारा मजदूरो एवम् मजदूरो के बच्चों की पतिवरिस शिक्षा स्वस्थ की बेहतरी का क्रांतिकारी अनुष्ठान प्रारम्भ किया जो शैने शैने समाज में नई जाग्रति चेतना का संचार कर रहा है।

कहानीकर ----नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर