नारी के लिए विवाह बंधन है या जरूरत
पढ़िए यह कहानी
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"आखिर तेरी शादी हो ही गयी।तू एक मर्द की दासी बन ही गयी,"रूपा बोली,"तूने एक आदमी की गुलामी स्वीकार कर ही ली।"
'रूपा तुम हर बात का उल्टा ही अर्थ क्यो निकालती हो,"रूपा की बात सुनकर शिल्पा बोली,"न जाने तुझे मर्दो से इतनी चिढ़ क्यो है?
"मर्द,"रूपा सड़ा से मुह बनाते हुए बोली,"इकीसवीं सदी में भी कुछ नही बदला है।आज भी मर्दो ने औरतों को गुलाम बनाकर रखा है।आज भी पति अपनी पत्नी से ऐसे व्यहार करते है,मानो वह उसकी बांदी हो।दासी जैसा सलूक करते है उससे।"
" रूपा यह तुम्हारा भरम है।तुमने मर्दो के प्रति अपने मन मे कुंठा पाल रखी है।शादी दो दिलो का मिलन है।शादी जरूरी है।मर्द औरत के मिलन से नवसृजनहोता हैं।इससे परिवार का निर्माण होता है।परिवार से समाज बनता है और परिवारी से ही देश बनता है।"शिल्पा ने अपनी सहेली रूपा को शादी के महत्त्व के बारे में बताया था।
"ऐसी बाते मर्दो ने ही नारी के मन मे भर दी है ,"शिल्पा की बाते सुनकर रूपा आवेश में आ गयी,"न जाने आजकल की लड़कियों को भी क्या हो गया है।इतनी पढ़ लिखने के बाद भी उनके विचार नही बदलते।हर मा बाप का बस एक ही सपना होता है।जवान होतेही बेटी के हाथ पीले करना।और लड़कियां भी जवान होते ही शादी का सपना देखने लगती है।राजकुमार से पति।"
"हर लड़की का यह सपना साकार होना जरूरी है,"शिल्पा, रूपा को समझाते हुए बोली,"जिंदगी भी एक सफर है।जिंदगी का सफर बहुत लंबा होता है।इस सफर को सुगम और आसान बनाने के लिए एक साथी की जरूरत होती है।साथी अगर साथ हो तो जिंदगी बहुत आसानी से गुजर जाती है।शादी का एक और फायदा है।"
"क्या?"रुपा बोली थी।
"सेक्स की पूर्ति।शारीरिक भूख भी पेट की भूख की तरह है।यह भूख हर मर्द और औरत को लगती हैं।समाज मे अनाचार न फैले इसलिए भी शादी जरूरी है।'
"शादी पुरषो की बनाई एक चालाकी भरी चाल है।शादी के बहाने औरत कोअपनी गुलाम बनाकर घर की चारदीवारी में कैद करने का सुनियोजित षड्यंत्र है।"रूपा की आवाज में गुस्सा था।गुस्से की वजह से उसका चेहरा तवे से सुर्ख लाल हो गया था।रूपा के रौद्र रूप को देखकर शिल्पा अपनी तरफ से बात का पटाक्षेप करते हुए बोली,"एक कहावत है।बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी।"
"तेरी यह कहावत मेरे पर लागू नही होगी।मेरी नजर में शादी एक बंधन है।इस बंधन में तू बन्ध गयी है लेकिन मैं हरगिज नही बन्धुनगी।"
मेरी बेटी रूपा ड्राइंग रूम में अपनी सहेली शिल्पा से बाते कर रही थी।मैं लान में बैठी अपनी बेटी की आक्रोश भरी बातें सुन रही थी।उसके दिल मे मर्दो के प्रति कितनी नफरत है।बेटी की बाते सुनकर मुझे अपना अतीत याद आने लगा।और मैं लें में बैठी बैठी सालों पीछे चली गयी।
मेरा जन्म एक मिडिल क्लास फैमली में हुआ था।मैं सबसे बड़ी थी।मेरे से छोटे दी भाई थे।मेरे पिता कालेज में लेक्चरार थे और मेरी माँ एक समाज सेविका थी।माँ कई महिला संगठनों से जुड़ी हुई एक झुझारू महिला थी।हमारा परिवार ज खुले विचारों का प्रगतिशील सोच का था।इसीलिए मुझे भी हर तरह की आजादी मिली थी।कोई रोक टोक नही