कंकड़ कंकड़ शंकर नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कंकड़ कंकड़ शंकर



आशीष इंग्लिश, संस्कृत हिन्दी में स्नातकोत्तर कर चुका था और मैथ से स्नाकोत्तर की तैयारी में जुटा था उंसे माँ बाप परिवार को छोड़े सत्रह वर्ष हो चुके थे वह कभी कभी एकांत में रहता तो माता पिता एव भाईयों की याद आती किंतु वह तो जीवन के निश्चित उद्देश्यों के साथ निकला था जो काशी से महाकाल से ओंकारेश्वर तक के सफर के मध्य एक नई ऊंचाई एव पहचान बना चुका था ।

ओंकारेश्वर में आदिवासियों के विकास एव कल्याण हेतु चलाये जा रहे कार्यक्रम भारत के आदिवासी समाज मे नए आत्म विश्वास को जन्म दे रहा था।

विराज एव तांन्या ने अपने मैराथन अथक प्रयास से आदिवासियों एव उनकी परम्पराओं के प्रति जन जागरण को सांमजिक क्रांति का स्वरूप प्रदान किया था ।

आदिवासी समाज वनवासी से समाज राष्ट्र के विकास की धुरी का महत्वपूर्ण हिस्सा बनने लगा तरुण भी बड़ा हो चुका था और वह बहुत बड़ा डॉक्टर बन चुका था और आदि वासियों के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों का माँ पापा विराज एव तांन्या का
महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका था ।

विराज ने वनवासियों के जीवन एव आर्थिक स्थिति के लिए जिस भारत यात्रा का आयोजन किया था उसके निष्कर्ष के अनुसार तीन महत्वपूर्ण पहलू स्प्ष्ट तौर पर परिलक्षित हुये पहला आदिवासियों में कुछ लोगों ने शिक्षा दीक्षा एव सरकारी सामाजिक योजनाओं के अंतर्गत समाज राष्ट्र की मुख्य धारा में अपने आदिवासी संस्कृति के साथ घुल मिल चुके थे ।

दूसरा कुछ आदिवासी समाज शिक्षा एव अपनी परम्पराओं के मध्य असमंजस की स्थिति में थे।

तीसरा वह आदिवासी समाज जो अपनी संस्कृति के साथ अपनी रूढ़िवादी प्रारम्परागत जीवन मे संतुष्ट थे ।

असमंजस एव अभी भी रूढ़िवादी परम्पराओं के कारण विकास से दूर था।

एक महत्त्वपूर्ण योजना बनाई गई जिससे कि आदिवासी समाज को आर्थिक रूप से सक्षम सबल बना कर समय के साथ राष्ट्र समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जाय जिससे उनकी आमदनी बढ़े क्योकि आदिवासी समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता पैसो की थी।
आदिसमाज के पास हुनर का भंडार है जिसे समाज राष्ट्र के लिए उपयोगी गौरवशैली बनाया जाय जिससे की उनका आकर्षण विकसीत समाज की सुविधाओं के तरफ बढाया जा सके और उनकी आय में बृद्धि सम्भव हो सके।

चूंकि विराज स्वंय आदिवासी परिवार से था उंसे भलीभाँति मालूम था कि यह उद्देश्य कैसे प्राप्त किया जा सकता है।

विराज को मालूम था कि आदिवासी समाज मे ऐसे ऐसे हुनर मौजूद है जिससे उनकी आमदनी तो बढ़ेगी ही राष्ट्र का मान बढ़ेगा।

आदिवासी समाज शारीरिक दृष्टिकोण से बहुत मजबूत होता है कारण प्राकृतिक परिवेश जिसके कारण उन्हें सदैव संघर्ष करना पड़ता है ।

आदि वसी समाज शारीरिक करतब दिखा कर अपना जीवन यापन करते है जो पश्चात देशों के लिए एक खेल है जिसका अभ्यास भारत का आदिवासी समाज अपने जीवन मे प्रतिदिन करता है जैसे पोलवाल्ट जिम्नास्टिक आदि।

जिसे यदि आधुनिक समय के अनुसार विकसित किया जाय तो आदिवासी समाज से बहुत सी राष्ट्रीय प्रतिभाएं देश का मान बढ़ा सकने में सक्षम होंगी।

दूसरा आदिवासी समाज के अपने रोजगार जैसे जड़ी बूटियों की पहचान तीसरा कुछ आदिवासी समाज खाना बदोस की तरह कभी इधर कभी उधर घुमक्कड़ प्रबृत्ति का है जिसके पास पशुपालन एव लोहे को तरह तरह के शक्ल देकर उपयोगी निर्माण करने की क्षमता है ।

आदिवासी समाज तीरंदाजी में माहिर होता है पर्यावरण संरक्षण एव वन संरक्षण या यूं कहें कि ब्रह्मांड की सत्ता में प्रकृति का अधिपति मानव राजा आदिवासी समाज ही होता है ।

एक बात बहुत स्प्ष्ट थी कि आदिवासी समाज को तभी जागरूक कर विकास की मुख्यधारा में सम्मिलित किया जा सकता है जब उन्हें यह भरोसा होगा कि उनकी संस्कृति एव विरासत ही उनके बैभव का मूल स्रोत एव आधार है ।

विराज आदिवासी समाज की सच्चाई से पूर्ण भिज्ञ तो था मगर इतने बड़े कार्य के लिए वह स्वयं उसकी पत्नी तांन्या एव पुत्र तरुण के प्रायास ओस की बूंद के समान ही थे ।

अतः उसने ॐ ओंकारेश्वर आदिवासी महासम्मेलन का गठन किया जिसके पहले सम्मेलन के लिए तिथि एव स्थान का निर्धारण किया गया जिसमें राष्ट्र के महत्वपूर्ण आदिवासी व्यक्तियो एव आदिवासी समाज का विकास ही मुख्य विषय था एव आदिवासियों की आय कैसे बढ़या जाय जिससे कि उनकी मूल पहचान को भी कायम रखा जा सके एवं उन्हें विकास एव निर्माण की राष्ट्रीय अवधारणा से जोड़ा जा सके।


याशिका को महाकाल से गये पूरे दो वर्ष बीत चुके थे वह जापान लौटी तब उसके मन में भारत की खूबसूरत यादे उसके लिए किसी दौलत से कम नही थी और उसका हीरो किसी राजा से कम नही था वह अपने पापा हितों एव माँ यामा से भारत मे प्रवास के दौरान भारतीयों के व्यवहार का बखान करते नही थकती उसकी माँ कभी कभी कहती हितों याशिका बाँवरी हो गयी है इसकी शादी भारत मे कर दो तब हितों और याशिका हंसने लगते।

बेटी से महाकाल महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह के साथ बिताए गए लम्हो को याद कर बखान करती तब उसके माता पिता उसे कहते बेटे एक दिन हम सब तुम्हारे ही साथ भारत चलेंगे और महाकाल भी जाएंगे और वह दिन आ भी गया जब हितों यामा और याशिका भारत के लिए चल पड़े भारत पहुँचने के बाद सर्वप्रथम उन्होंने लुम्बनी, बोध गया ,सारनाथ एव कुशीनगर के बाद अरुणांचल हिमाचल आदि स्थानों पर गए जहाँ भगवान बुद्ध के पवित्र स्थान स्थल है और अंत मे उज्जैन महाकाल पहुंचे।

याशिका ने अपने माता पिता के साथ उज्जैन आने की बात पत्रों से अपने हीरो आशीष एव देव जोशी जी सतानंद त्रिलोचन महाराज को दे रखी थी हितों अपनी प्रिय पुत्री एवं पत्नी यामा के साथ उज्जैन पहुंचे उज्जैन पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया विषेकर याशिका का जैसे कोई बेटी बहुत दिनों बाद अपने घर आई हो अपने स्वागत के अभिभूत हितों एव यामा को समझ ही नही आ रहा था कि वे जापान के कोई राष्ट्राध्यक्ष है या साधारण जापानी नागरिक जो भारत मे मात्र भ्रमण हेतु आया था।

याशिका हितों एव यामा के स्वागत में महाकाल युवा समूह उत्साहित उन्हें महाकाल के नगर गांवों संस्कृति संस्कारो से परिचित कराने में व्यस्त था और महादेव परिवार महाकाल की महिमा बताने में ठीक उसी समय विराज तांन्या महाकाल अखिलभारतीय बनवासी कल्याण न्यास के महा सम्मेलन की भूमिका एव सम्मेलन की सफलता पर वैचारिक मंथन के लिए महाकाल पहुंचे।

विराज तांन्या का स्वागत महाकाल में पारंपरिक तौर तरीकों से होने के बाद विचार मंथन के लिए विराज ,देव जोशी जी, त्रिलोचन ,महाराज ,सतानंद दीना महाराज आदि एव महाकाल युवा समूह के युवा ब्रिगेड के सदस्य महादेव परिवार के अनुभवी सब एक साथ एकत्र हुए सभी ने अपने अपने विचार रखे विराज के द्वारा सुझाये गए प्रस्तवो में देव जोशी जी त्रिलोचन महाराज ने दो प्रस्ताव और जोड़ दिए एक तो आदिवासी बच्चों मे कुपोषण एव अधिक मृत्युदर तथा आदिवासी महिला समाज के लिए वनदेवी योजना जिसके लिए सुझाव था आदिवासी महिलाओं के अपने हुनर को विकसित किया जाय आदिवासी महिलाएं तरह तरह की उपयोगी वस्तुयों का निर्माण दैनिक जीवन मे उयोग के लिये करती है उंसे वनदेवी योजना के अंतर्गत प्रोत्साहित करते हुये राष्ट्रीय स्तर पर एव अन्तराष्ट्रीय स्तर पर उनकी कला कौशल को निखरने का अवसर एव धरातल प्रदान किया जाय ।

विराज को गलती का एहसास हुआ वास्तव में ये प्रस्ताव उसके मूल प्रस्ताव में सम्मिलित नही थे अतः विराज ने इन प्रस्तवो को हर्षित मन से स्वीकार कर आदिवासी महा सम्मेलन में विचारार्थ स्वीकार कर लिया देव जोशी ने एक और निवेदन व्यक्तिगत तैर पर किया विराज से की वह महा सम्मेलन का मुख्य अतिथि हितों जो महाकाल के अतिविशिष्ट अतिथि है बनाया जाय ।

विराज को कोई आपत्ति नही थी विराज सतानंद त्रिलोचन एव आशीष स्वयं अध्यक्षता का निमंत्रण लेकर हितों के पास गए हितों ने अध्यक्षता बनाना स्वीकार करने से पूर्व सम्मेलन के उद्देश्यों एव भविष्य की जानकारियां चाही जिसे विराज ने बहुत स्प्ष्ट समझने की कोशिश किया ।

हितो और यामा अंग्रेजी बहुत अच्छी जानते थे और याशिका तो हिंदी भी अच्छा जानने लगी थी डॉ तांन्या और यामा एक दूसरे से परिचित हुई और बहुत जल्दी ही घुल मिल गयी दोनों में अच्छी दोस्ती हो गयी ।

याशिका जब भी समय मिलता हीरो के पास बैठती और अपने पिछली भारत यात्रा एव भारतीयों के प्रति अपने विचारों को प्रस्तुत करती ।

विराज ने आदिवासी सम्मेलन के पूर्व भारत समूर्ण भारत को सात वर्गों में आदिवासी संस्कृति के अनुसार विभक्त कर उनके लिए एक ठोस कार्य योजना बनाई धीरे धीरे आदिवासी महा सम्मेलन की तिथि निकट आ गयी।

उधर सनातन दीक्षित जी ने प्रथम आदिवासी महा सम्मेलन हेतु ॐ ओंकारेश्वर आदिवासी अभियान संत समाज के माध्यम से चला रखा था द्वादश ज्योतिर्लिंग के संत समाज को जोड़ा इस बृहद मानवीय विकास की शृंखला से संत समाज की सक्रियता ने महा सम्मेलन की गंभीरता गरिमा बढ़ने लगी।

चारो तरफ हितों के मुख्य आतिथ्य में एव सनातन दीक्षित की अध्यक्षता में तथा महाकाल एव ओंकारेश्वर के संयुक्त तत्वावधान में एक सकारात्मक मानवीय विकास की क्रांति आंदोलन ने जन्म ले लिया।

सम्म्मेलन महाशिव रात्रि के बाद शुरू हुआ और आदि वासी संस्कृति को अक़्क्षुण रखते हुए उनमें निहित उपयोगी परम्परगत गुणों के विकास पर बृहद चर्चाओं का दौर प्रारम्भ हुआ ।

सम्मेलन पूरे एक सप्ताह भर चलना था एव सिर्फ शाब्दिक नही बल्कि धरातलीय परिणाम के परिलक्षित संकल्पों के शुभारंभ होने थे।

महाशिवरात्रि के बाद अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन की शुरूआत हुई मुख्य अतिथि स्वय देव जोशी जी अध्यक्ष हितों की उपस्थिति सनातन दिक्षित जी के निर्देशन तथा विराज के संयोजन में शुरू हुआ।
विराज उद्देश्य आदिवासियों को शासन प्रशासन द्वारा चलाये जा रहे कल्याणार्थ कार्यक्रम एव योजनाओं में से लाभान्वित हो यह भी सम्मेलन उद्देश्यों में सम्मिलत था जिसके लिये उज्जैन के जिलाधिकारी स्वयं उपस्थित थे।

आदिवासी समाज को जागरूक करते हुए उनमें निहित गुणों एव कलाओं को आदिवासियों के हितार्थ विकसित करते हुए रोजगार परक बनाना।

तीसरा उद्देश था आदिवासियों से सम्बंधित कुटीर उद्योगों को विकसित करना एव एकलव्य एव बन देवी योजनाओं को लागू करते हुए आदिवासी महिलाओं एव बच्चों को बेहतर स्वास्थ्य एव मूलभूत सुविधाओं को विकसित करते हुए उनसे जोड़ना ।

सप्ताह के मैराथन विचार विमर्श के बाद निष्कर्ष यही निकला कि आदिवासी विकास के लिए आवश्यक है आदिवासी समाज को राष्ट्रीय स्तर पर एक दूसरे से जोड़ना एवं एक दूसरे की परम्पराओ को अक़्क्षुण रखते हुये बृहद जागरूक आदिवासी समाज का राष्ट्रीय हितार्थ निर्माण करना।

जिससे कि भारत का आदिवासी समाज राष्ट्रीय विकास की धारा में अपने महत्वपूर्ण योगदान के साथ प्रवाहित हो सके ।

आदिवासी नवयुवको के लिए एकलव्य युवा वाहिनी एव समग्र विकास के लिए विरसा मुंडा आदिवासी कल्याण सहकारी समिति की स्थापना की गई जिसके माध्यम से आदिवासियों के द्वारा उत्पादित उत्पादों को बाज़ार एव उचित मूल्य उपलब्ध कराना महिलाओं के लिए वनदेवी भरत योजना यह आदिवासी महिलाओं एव बच्चों के संयुक्त विकास पोषण से सम्बंधित था ।

सम्मेलन में कार्यक्रम के संयोजक विराज ने सबसे पहले अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा -,

-मेरा उद्देश्य अखिल भारतीय आदिवासी महा अभियान आयोजित करने का उद्देश्य यह नही है कि आप उपेक्षित है और आपको ज़माज एव शासन द्वारा उचित सम्मान सहयोग नही प्राप्त हो रहा है ।

इस सम्मेलन का मूल उद्देश्य मात्र इतना है कि आदिवासी समाज स्वंय के महत्व को जाने समझे और अपने को सार्थक एव योग्य बनाये ।

जिससे कि उपलब्ध अवसरों से उपलब्धि हासिल करने में सफल सक्षम हो सके ।

आवश्यक है कि आदिवासी समाज शिक्षित सजग एवं जागरूक हो सके विराज ने उपलब्ध आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि आदिवासी समाज को दिये जाने वाले आरक्षण की रिक्त जगहें खाली रह जाती कारण आदिवासी या तो योग्यता नही रखते है या तो उन्हें
जानकारी नही होती यह एक सच्चाई है जिसे आदिवासी समाज को स्वयं समझना होगा तभी जाकर ब्रह्म के ब्रह्मांड प्रकृति प्राणि आदि मानव मानवता के आदि की सार्थकता को प्रमाणित करते हुए राष्ट्र एव समाज में अपनी सार्थकता को प्रमाणिकता को प्रमाणित कर सकने में सक्षम हो हो सकता है।

विराज की अभिव्यक्ति के बाद देव जोशी जी ने अपने सम्बोधन में -
आदिवासी समाज के महत्व एव महत्वाकांक्षाओ को निरूपित किया आदिवासी परिवारो को किसी बैसाखी की आवश्यकता नही है यह समाज सदियों से भारतीय परम्परा का अति महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है एकलव्य से लेकर विरसा मुंडा तक सभी ने भरत के भारत के स्वर्णिम ऐतिहासिक उपलब्धियों में महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन किया है ।

अतः आदिवासी समाज को किसी मामले में कमतर आंकना भरत भारत के बैभव विरासत के अभिमान को उपेक्षित करना होगा जिसे कोई सच्चा भारतीय स्वीकार नही कर सकता है।

आदिवासी समाज भारतीय समाज का गौरव एवं गौरवशाली परम्परा कि विरासत का धन्य धरोहर है जिसे हम भारतीयों को समझने की आवश्यकता है एव उंसे संजोकर पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है जिसके लिए हम स्कल्प लेते है।

सनातन जी ने अपने विचारों को कुछ यूं व्यक्त किया -

बड़े सौभाग्य से यह शुभ अवसर आया है जब आदिवासी समाज अपने लिए विचार करने के लिए एकत्र हाआ है ।

वास्तव मे देखा जाय तो शिव शंकर किसी भी भविष्य के सुंदर निर्माण की आधार शिला बहुत पहले रखते है एक बच्चे को जन्म लेने में नौ माह लगते है और सामाजिक विकास एव परिवर्तन के लिए सदियां लग जाती है आदिवासियों के विषय में अभियान की शुभरम्भ उसी दिन हो चुका था जब बाल गोपाल ओंकारेश्वर आये थे और विराज की मुलाकात ओंकारेश्वर में बालगोपाल एव ओंकारेश्वर के संत समाज से हुई विराज के बेटे को कोबरे ने डसा नही होता और ओंकारेश्वर के भस्म जादू का चमत्कारी प्रयोग बालगोपाल द्वारा नही किया गया होता तो आज के शुभ अवसर की कल्पना भी नही की जा सकती थी क्योकि विराज के अंतरात्मा में मानवीय संवेदनाओं ने इसी घटना ने झकझोर कर रख दिया जिसके कारण उन्होंने अपने आदि वासी समाज को लक्ष्य मानकर जन्म जीवन कि सार्थकता के लिए प्रेरित किया ।

विराज सेना के उच्च अधिकारी थे एव उनकी पत्नी तांन्या एक मशहूर डॉक्टर इनके जीवन मे ना तो धन दौलत की कमी थी ना सुख सुविधाओं की ओंकारेश्वर ने विराज की आत्मा में ॐ के जागरण के लिए चुना और उन्हें जीवन के लिए उद्देश्य प्रदान किया ।

जिसके कारण जागरण एव क्रांति आदिवासी समाज मे क्रांतिकारी परिवर्तन के लिये प्रारम्भ हो चुकी है ।

ॐ ओंकारेश्वर की कृपा का प्रत्यक्ष महाकाल से चला बाल गोपाल थे तो विराज उसके आशीर्वाद के अस्तित्व ।


त्रिलोचन महाराज,सतानंद ,दीना महाराज एव महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह के आये बहुत से वक्ताओं ने अपने संकल्प व्यक्त किये।

अंत में -महा सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे जापान से आए हितो ने सम्बोधन अंग्रेजी में दिया-

जिसका सार था प्यारे भारत वासियों मैं विश्व के सबसे पूर्व देश जापान का रहने वाला हूँ जहां सूरज सबसे पहले निकलता है भारत मे जन्मे महात्मा बुद्ध जापान में भगवान बुद्ध को ही बहुसंख्यक लोग अपने आध्यात्मिक जीवन के मौलिक मुल्यों का आधार मानते है ।

भारत की पावन मिट्टी में जन्मे एक इंसान ने दुनियां में अहिंशा परमो धर्म का संदेश दिया जिससे मानवता गर्वान्वित हुआ ।

साथ ही साथ आपका भारत देश जहां कंकण कंकण में शंकर है और हर इंसान में परमात्मा भला यहां कोई समाज अपेक्षित उपेक्षित कैसे रह सकता है ।

हितों ने आदिवासी कल्याण समिति के लिए जापान से हर सम्भव सहयोग देने का आश्वासन दिया ।

हितों स्वंय बहुत बड़े व्यवसायी थे उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिष्टित व्यवसायी के रूप में ख्याति प्राप्त थी ।

आदिवासी समाज ने बनवासी कल्याण सहकारी समिति की स्थापना किया और आदिवासी समाज के उत्पादों को समय और मांग के अनुसार बनाने के आधुनिक प्रशिक्षण की व्यवस्था धरातलपर विकसित किया।

आदिवासी महिला शक्ति
वनदेवियों द्वारा बनाये जाने वाले उत्पाद भी गुणवत्तापूर्ण समय एव मांग के अनुसार बाजार में आकर्षण का केंद्र बनने लगे शहद,लोहे के छोटे छोटे कृषि उपयोगी उत्पाद एव घरेलू उपयोग के उत्पाद,आयुर्वेद जड़ी बूटिया ,लकड़ी के बने आकर्षक खिलौने एव घरेलू सजावटी सामान आदिवासी समाज के उत्पाद के रूप में जाने पहचाने जाने लगे जिससे आदिवासी परिवारो कि आय होने लगी पैसे पैसे के आने के कारण उनके सामाजिक स्तर में बुनियादी परिवर्तन आने लगे।

विकास के प्रवाह में एक बात विशेष थी कि आदिवासी संस्कृतयों से कोई समझौता नही हुई थी हितों ने विराज की योजनाओं की सफलता के लिए जापान एव भारत सरकार के मध्य सेतु का कार्य करते हुए पैसे की इतनी व्यवस्था करा दिया कि विराज के सपने मूर्त रूप लेने लगे आदिवासी समाज हर स्तर पर जागरूक होने लगा।

स्वतंत्रत भारत मे आदिवासी समाज देश के विकास में कदम से कदम मिलाकर अपने सम्मान के साथ महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते जा रहे थे।

बड़ी मुश्किल से सृष्टि में कभी कभी विराज एव बाल गोपाल जैसे परिवर्तन के धुरियो के मिलन होते है जो देव
जोशी,त्रिलोचन,सतानंद ,दीना आदि को महत्वपूर्ण बनाते हुए उद्देश्य पथ को मानवता मात्र के लिए आलोकित कर नए इतिहास का सृजन करते जाते है जिसमे याशिका हितों वैश्विक मानवीय विरासत के मिशाल मशाल के रूप में ख्याति प्राप्त करते है समाज मे लक्ष्मी की वर्षा होती है पैसा ही पैसा समरस समाज के लिये उसकी आकांक्षाओ की अवनि आकाश ख्याति प्राप्त करता है।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।