आखिरी ख़त... Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आखिरी ख़त...

विलासी कई दिनों से बीमार होकर बिस्तर पर लेटी है,शायद अपने जीवन की आखिरी घड़ियाँ गिन रही है,उसकी सेवा में उसके बेटे और बहु ने कोई कसर नहीं छोड़ी है,सच्चे मन से दोनों ही विलासी की सेवा में जुटें हैं....
आज विलासी का जी कुछ ज्यादा ही अनमना है,उसके मन ने कहा कि आज वो अपने बेटे और बहु को उस कोठरी की कहानी सुना ही देगी,ये सोचकर उसने अपनी बहु रमिया को पुकारा....
रमिया...ओ..रमिया! आ तो जरा,मेरे पास आ ।।
हाँ! अम्मा !का हुआ,का बात है कुछ चाहिए,रमिया ने पूछा।।
आज मन को ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरी अन्तिम घड़ी आने वाली है,इसलिए मेरा मन तुझसे कुछ कहना था,विलासी बोली।।
ये का कहती हो अम्मा! अभी तो तुम सौ साल जिओगी,परपोतों के साथ खेले बिना कैसे चली जाओगी?रमिया बोली।।
ना बेटी! अब और जीने की आस ना बची है,ये ले उस कोठरी की चाबी,तू हरदम पूछती थी ना कि उसमें कौन सा खजाना छुपा रखा है,आज तुझे उसकी सच्चाई बता दूँ तो तब मरूँगीं,विलासी बोली।।
तब तक विलासी का बेटा हीरा भी बाहर से आ गया तो रमिया उससे बोली....
देखो तो जी! अम्मा ना जाने कैसीं कैसीं बातें करती है?
का हुआ? अम्मा का जी तो ठीक है ना! हीरा ने पूछा।।
ना जाने का हुआ इनको,कहती हैं कि जीने की आस ना बची है,रमिया बोली।।
फिर हीरा अपनी माँ के पास जाकर बोला....
का हुआ अम्मा? आज जी कुछ जादा खराब है का?
हाँ! बेटा! लगता है भगवान का बुलावा आ गया है,विलासी बोली।।
ऐसा ना कहो अम्मा! तुम्हारे बिना हम सब अकेले हो जाऐगें,हीरा बोला।।
अब मेरा इस संसार में समय पूरा हो गया है,जाना तो पड़ेगा ही लेकिन जाने से पहले अपने भार से मुक्त होना चाहती थी,इसलिए तुम सबको उस कोठरी का राज बता ही देती हूँ,जो सालों से मेरे सीने में दफन है,ये है उस छोटी सी कोठरी की चाबी ,मेरे जाने के बाद इसे खोल कर देख लेना,संग में वहीं पर एक पुराना सा सन्दूक होगा जिसमें मेरी लिखी हुई एक चिट्ठी पड़ी होगी,जिसे तुम पढ़ लेना और इतना कहते कहते विलासी ने एक हिचकी लेकर अपने प्राण त्याग दिए।।
विलासी के अन्तिम संस्कार के बाद हीरा और रमिया ने उस कोठरी को खोलकर देखा,उस कोठरी में एक पुराना सा हारमोनियम,एक तबला,कुछ रंगबिरंगी पोशाकें,कुछ और भी वाद्ययंत्र थे,संग में एक सन्दूक भी रखा था,हीरा ने उसे खोलकर देखा तो उसमें उसे दो जोड़ी पैरों में बाँधने वाले घुँघरू भी मिले उनके साथ एक चिट्ठी भी थी जो हीरा ने कोठरी से बाहर आकर खोली और पढ़ने लगा.....
वो विलासी की लिखी चिट्ठी थी और उसमें लिखा था......

प्यारे बेटे हीरा...

मैं एक जमींदार की बेटी थी,मैं जब दस साल की थी तो मेरे परिवार को किसी ने दुश्मनी के चलते खतम कर दिया था और मुझे ले जाकर एक नौटंकी कम्पनी में बेच दिया,नौटंकी में मेरे अलावा और भी लड़कियांँ थीं,उनमें से एक से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई उसका नाम कजरी था,मेरा नाम तो मेरे मात पिता ने विलासिनी रखा था,बाद में वो विलासी हो गया,पिता जी ने मुझे पढ़ाने के लिए घर पर मास्टर लगा रखा था इसलिए पढ़ना लिखना भी आता था,तभी तो ये चिट्ठी लिख पाई...
कम्पनी में हम लोगों को नाच गाना सिखाया जाता था,जो कि मैं भी सीखने लगी मेरे पास और कोई ठिकाना भी तो नहीं था,एकाध बार वहाँ से भागने की कोशिश भी लेकिन कामयाब ना हो सकी,फिर मजबूर होकर नौटंकी कम्पनी को अपना घर और नौटंकी वालों को अपना परिवार समझने लगी...
चौदह-पन्द्रह की होते होते मैं नाच गाने में निपुण हो चुकी थी,इसलिए अब मुझे नौटंकी में उतार दिया गया और वहाँ पर मेरा साथ कजरी दिया करती थी,हम दोनों की जोड़ी नाच गाने के लिए मशहूर थी,लेकिन इससे हमें उतने पैसें नहीं मिलते थे जितने कि मिलने चाहिए थे,इसलिए मैनें और कजरी ने अपना काम अकेले करने का फैसला किया और हम सफल भी हुए,कम्पनी से कुछ और लोंग भी हमारी पार्टी में शामिल हो गए और हमारी पार्टी चल पड़ी....
कामयाबी देखकर और लोंग हमसे जलने लगें,फिर हमारी खुशियाँ ज्यादा दिनों तक टिक ना सकीं और इसी बीच एक रात कजरी का अपहरण कर लिया गया,मैं उसे कई दिनों तक पागलों की तरह ढूढ़ती रही,लेकिन वो कहीं ना मिली,मेरा किसी काम में भी मन ना लगता था,नाचना गाना भी बंद हो गया तो साथ वालें भी मुझे मेरा सारा सामान वापस करके दूसरी जगहों पर लग गए......
ऐसे ही कई महीने बीत गए लेकिन कजरी ना मिली,फिर एक रात मेरे कोठरी के दरवाजों पर दस्तक हुई ,मैनें दरवाजा खोला तो सामने कजरी खड़ी थी,वो किसी का खून करके भागकर मेरे पास आई थी,उसने बताया कि किसी ने उसका अपहरण करके उसके साथ कुकृत्य किया था,आज इतने महीनों बाद वो उसे मारकर यहाँ भाग आई है और जिस घर में उसने खून किया था,उसने उस में आग लगा दी है लेकिन उसके पेट में उसका ही बच्चा है जो सात महीने का हो चुका है।।
फिर मैनें कजरी को अपने घर में शरण दी और आठवें महीने में ही उसने बच्चे को जन्म दिया,उसने जब बच्चे को जन्म दिया तो वो केवल सोलह साल की थी,बच्चा भी एक महीने पहले ही इस दुनिया में आ गया, इसलिए वो प्रसवपीड़ा को सह ना सकी और बच्चे को जन्म देते ही भगवान के घर चली गई,फिर उस बच्चे को मैनें पालपोसकर बड़ा किया,मैं नहीं चाहती थी कि मेरे जीते जी ये राज किसी को पता चले कि वो बच्चा तुम ही हो और तुम्हारी माँ कजरी थी,इसलिए आज तक इस राज को मैंने खुद तक सीमित रखा और मैंने अपने मन का हाल इस चिट्ठी में लिख दिया ताकि तुम मेरे मरने के बाद इसे पढ़ सकों,तुम्हारे लिए ये मेरा आखिरी खत है......

तुम्हारी जशोदा माँ
विलासी...

खत पढ़ते ही हीरा की आँखों में आँसू आ गए और फिर उसने उस खत को पढ़कर वैसा ही उसी सन्दूक में रख दिया जैसी कि वो पहले से रखी थी और उस कोठरी के पीछे की कहानी जानकर उसका मन भर आया,उस दिन के बाद उसने फिर कभी भी वो कोठरी नहीं खोली ,जहाँ उसकी माँ का वो आखिरी खत रखा था...

समाप्त......
सरोज वर्मा......