महाकाल के समीप विशाल पंडाल लगा हुआ था मंदिर न्यास को भयंकर गर्मी के तांडव एव लू के दौरान आम जन के विशेष सहयोग के लिए सम्मानित किया जाना था।
देव जोशी जी एव मंदिर न्यास से जुड़े सभी लोग कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटे थे त्रिलोचन महाराज को मात्र इतनी ही सूचना दी गयी थी कि वो आशीष को साथ लेकर आये क्योकि त्रिलोचन महाराज महाकाल के प्रशासनिक व्यवस्था में कोई स्थान नही रखते थे जैसे देश के बिभन्न भागो से संत महाकाल कि सेवा शिव भक्ति कि अलख जगाते उनमें त्रिलोचन महाराज भी थे।
सुबह भस्म आरती में देव जोशी जी ने भी आशीष को महाराज के साथ आने का अनुरोध कर रखा था ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वयं राज्य के राज्यपाल थे दिन के बारह बजे निर्धारित समय से कुछ बिलम्ब से कार्यक्रम शुरू हुआ सभी ने महाकाल की महिमा संत समाज की जिम्मदारियों पर अपने अपने विचार व्यक्त किया ।
मुख्य अतिथि द्वारा सम्मान दिया जाना था कार्यक्रम के संचालक महोदय ने सम्मान प्राप्त करने के लिए महाकाल के मुख्य न्यासी को बुलाया गया मुख्य न्यासी महोदय मंच पर ही विराजमान थे मुख्य न्यासी पुष्कर भाई जी खड़े हुए बहुत सम्मान के साथ मंच पर आसीन अतिथियों को अभिनानंदन सम्बोधन देने के उपरांत बोले आज बहुत पावन दिन है महाकाल की कृपा से आज इतने लोगों को उनका सानिध्य आशीर्वाद प्राप्त हुआ साथ ही साथ महाकाल न्यास को संम्मानित होने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ जो हम सभी के लिए गौरवशाली पल का साक्ष्य है महाकाल न्यास को वास्तव में जो सम्मान श्मशान में भयंकर गर्मी लू के संक्रमण काल मे मरने वालों के शवों के दाह के उचित व्यवस्था हेतु प्रदान किया जा रहा है।
वास्तव में इस वर्ष भयंकर गर्मी कहर बनकर जन जीवन पर टूट पड़ी जिसने ना जाने कितने लोंगो को काल का ग्रास बना दिया ना जाने कितने परिवारो पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा यह ईश्वरीय प्रकोप प्राकृतिक आपदा दोनों ही थी जिसने हमे यह अवश्य शिक्षा दिया कि प्रकृति प्राणि परब्रह्म के ब्रह्मांड के बहुत महत्वपूर्ण अंग है जिनमे किसी भी प्रकार का भेद असमानता या दूरी होने पर अनावश्यक परेशानियों का कहर टूट पड़ता है जिसे प्राणि को ही भुगतना पड़ता है कल्पना कीजिये भीषण गर्मी एव लू के कारण इतने मनुष्य काल कलवित हुये जबकि मनुष्य के पास बचने के साधन है और सक्षम भी है जीव जंतु सिर्फ ईश्वर द्वारा प्रदत्त गुणों एव प्रकृति पर ही निर्भर रहते है उनकी किंतनी हानि हुई होगी ब्रह्मांड एव विशाल परिवार है जिसमे ग्रह नक्षत्र तारे पेड़ पौधे लताये नदिया झील सरोवर करोङो जीव जंतु एव सक्षम सबल मनुष्य है ।
परिवार सौहार्द समरसता से निर्बाध चलता है परिवार के सदस्यों में दूरी विद्वेष पारिवारिक विखंडन का कारण बनती है जो भयंकर भयानक पीड़ादायक परिणाम की तरफ ले जाती है निश्चित तौर पर भयंकर गर्मी एव तापमान का असमान्य होना लू का चलना इतनी जन हानि ब्रह्मांड के पारिवारिक विद्वेष का ही परिणाम था ।
जहाँ तक बात महाकाल के न्यास को सम्मानित करने की है तो यह अभिमान की अनुभूति ही है
लेकिन इस सम्मान का वास्तविक उत्तराधिकारी है महाकाल परिवार में छ माह पूर्व आये आशीष जिसे हम महाकाल वासी स्नेह से बाल गोपाल कहते है मैं त्रिलोचन महाराज को निवेदन करता हूँ कि वो स्वयं बाल गोपाल को मंच पर लेकर आये और संम्मान ग्रहण की सार्थकता को उसकी वास्तविक ऊंचाई प्रदान करे।
त्रियोचन महाराज बाल गोपाल को लेकर मंच पर गए वहाँ उपस्थित सभी ने उनका करतल ध्वनि से अति उत्साह से स्वागत किया मुख्य अतिथि महोदय ने आशीष को सम्मान पत्र अंगवस्त्र एव इक्यावन हज़ार की धन राशि प्रदान किया आशीष ने सम्मान ग्रहण करने के बाद संचालक महोदय से अपने विचारों को व्यक्त करने की अनुमति मांगी तथा बोलना शुरू किया।
मैंने भी किसी माता की कोख से जन्म लिया है माँ के आँचल एव पिता के कंधों पर अभिमानित हुआ हूँ आदरणीय पुष्कर भाई जी ने सत्य ही कहा कि परब्रह्म परमात्मा कि सृष्टि के दो महत्वपूर्ण तत्व है प्रकृति एव प्राणि जिसके आचरण अचार व्यवहार है मौसम ऋतुएं दिन रात यदि पारिवारिक वैमनस्य इस स्तर तक बढ़ जाये कि पारिवारिक सदस्य निजी स्वार्थ भावना में इतने अंधे मदान्ध हो जाये कि एक दूसरे को हानि पहुंचते आहत करे तो परिवार वाद कि नींव हिल जाती है और परिवार समाप्त हो जाता है अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग शुरू हो जाता है जो दुखद पीड़ादायक परिणाम के अंत को जन्म देता है और जघन्य भयानक इतिहास का सृजन करता है यही सत्य है।
ब्रह्मांड के पारिवारिक सदस्यों में निजी स्वार्थ विद्वेष के कारण ही मौसम ऋतुओं की मूल संस्कृत संस्कार आचरण में नकारात्मक बदलाव हुआ है जिसके परिणाम जगत के चर चराचर को भुगतने पड़ रहे है अतः आवश्यकता है ब्रह्म के ब्रह्मांड के पारिवारिक सदस्यों के मध्य संतुलन सामंजस्य जिससे कि इतने भयंकर दुखद पल सृष्टि को न देखना पड़े की श्मशान भी लज्जित हो जाय ।
यह प्रथम एवं अंतिम जिम्मेदारी संत समाज की है आशीष ने अपना वक्तव्य समाप्त किया और अपना सम्मान महाकाल न्यास को सौंप दिया मुख्य अतिथि महोदय के सम्बोधन के बाद कार्यक्रम सममप्त हुआ ।
आशीष को छः महीनों में महाकाल परिवार में बहुत लोकप्रिय हो गया था बाल गोपाल के रूप में देव जोशी जी तो जैसे उंसे साक्षात शिव गण ही मानते हो त्रिलोचन महाराज के लिए तो बाल गोपाल उनके यश तेज का सूर्य बनकर ही आया हो दिन पर नियमित दिन चर्या महाकाल की भस्म आरती और महाकाल के गर्भ गृह की साफ सफाई एव शिव आराधना नियमित शिवपुराण की कथा भक्तों के रुद्राभिषेक आदि यही दिन प्रति दिन कि दिन चर्या बन गयी थी ।
महाकाल उज्जैन में महाकाल मंदिर के अलावा कालभैरव हरसिद्धि माता के भी मंदिर है और उनके दरबार के भक्त संत में भी त्रिलोचन महाराज की ख्याति बढ़ती जा रही थी जिससे महाकाल के अन्य संतो में एव उज्जैन के अन्य मंदिरों के संतों के मध्य त्रिलोचन महाराज से द्वेष कि प्रतिद्वंतिता भी शुरू हो गयी।
जिसके कारण अन्य संत त्रिलोचन महाराज को नीचा दिखाने के लिए नित नए खड्यत्र करते रहते बालगोपाल भविष्य को परख लिया और उसने उन संतो का संगठन गठित किया जो लोग सकारात्मक सोच के निरपेक्ष एव सच्चे अर्थों में सनातन परम्परा के शिव भक्ति के सार्थक प्रकाश थे संगठन का नाम रखा महादेव परिवार ।
बाल गोपाल महादेव परिवार में कोई पद नही ग्रहण किया संरक्षक बनाया देव जोशी जी को और परिवार मुखिया थे महाकाल के सच्चे सेवक त्रिभुवन महाराज युवा परिवार मुखिया थे सतानंद महाराज महाकाल में बालगोपाल जिसकी आयु मात्र पंद्रह सोलह वर्ष ही थी द्वारा मात्र छः सात माह कि अपनी उपस्थिति में महाकाल दरबार मे शिव भक्ति के सच्चे मुल्यों को स्थापित करने हेतु महादेव परिवार का शुभारंभ महाकाल के इतिहास ने एक अद्भुत घटना के साथ शुभारंभ था ।
महादेव परिवार के लोग नित्य प्रति दिन एक दूसरे से मिलते सप्ताह में सामूहिक बैठक एव एक साथ प्रसाद ग्रहण करते बालगोपाल के इस गम्भीर प्रायास से महादेव परिवार महाकाल के परिक्षेत्र में लोकप्रिय एव संम्मानित होने लगा महादेव परिवार ने महाकाल में रहने वाले संत भक्तों के लिए नियम बनाये थे जिसमें मुख्य था कि कोई भी महाकाल के दर्शन करने आने वाले भक्तों को रेलवे स्टेशन बस स्टेशन या सार्वजनिक स्थलों पर अपने समर्थकों को कमीशन का प्रलोभन देकर नियुक्त नहीं करेगा जिससे कि वे आने वाले भक्तों को वही से अपने शब्द सुविधा के भंवर में उलझा कर अपने द्वारा निर्धारित अतिथि गृहों में ठहरने से लेकर दर्शन पूजन तक उनका शोषण कर महाकाल के पवित्र स्थल के देव शक्ति परिसर के प्रति आस्था के प्रवाह को दूषित ना करे।
आने वाले भक्त जहाँ अपनी इच्छा से ठहरना चाहे ठहरे तथा जिस शिव भक्त के द्वारा महाकाल के दर्शन प्रक्रिया में अनुष्ठान आदि कराना चाहे करे महादेव परिवार ने अपने इस विशेष नियम के बड़े बड़े बोर्ड बनाकर सभी
सार्वजनिक स्थानों पर लगवा रखे थे ।
महाकाल आने वालों को तो सूविधा से सहूलियत मिलने लगीं किंतु जो लोग महाकाल की श्रद्धा आस्था के भक्तों के भाव को अपनी ठगी का धंधा बना रखा था उनके लिये महादेव परिवार एवं बाल गोपाल सर दर्द बन गया क्योकि उनकी श्रद्धा के व्यवसायीकरण की दुकान बंद होने लगी और महाकाल परिसर का वातावरण पारिवारिक बनने लगा ।
सभी महादेव परिवार का आभार व्यक्त करते और अपनी आस्था श्रद्धा के भाव शक्ति की सच्ची भक्ति महाकाल को समर्पित करते महादेव परिवार की सफलता की गाथा अन्य धार्मिक स्थलों पर भी एक सुखद एहसास अनुभूति कि तरह प्रसारित हुई सभी जगह महादेव परिवार के सफल प्रयोग होने लगे कहते है चिराग तले अंधेरा वही बात महाकाल के महादेव परिवार के साथ उज्जैन में सत्य होती प्रतीत हो रही थी।
जिनकी आस्था के ठगी की दुकानें बंद हो रही थी त्रिलोचन जी जिनके संरक्षण में आशीष था उनकी किरकिरी बन चुके थे और उन्होंने त्रिलोचन महाराज को ही ठिकाने लगाने की योजना बना रखी थी ।
अमूमन त्रिलोचन महाराज अपने निवास में ही स्नान करते मगर विशेष अवसरों पर उज्जैन
शिप्रा में स्नान करते जैसे पूर्णिमा मकर संक्रांति एव कार्तिक माह पूरे माह आदि यह बात महाकाल के सभी संतो को मालूम थी जैसे कार्तिक माह शुरू हो गया था त्रिलोचन महाराज प्रत्येक वर्ष की भांति नित्य ब्रह्म मुहूर्त की बेला में शिप्रा स्नान करने जाते बाल गोपाल नही जाता ।
नाराज महाकाल शिव भक्तों का एक समूह जो महादेव परिवार के पारिवारिक शक्ति प्रतिष्ठा का कारण कारक त्रिलोचन महाराज को ही मानता था उनका मानना था कि त्रिलोचन जी को अपने यहां से बाल गोपाल को बाहर निकाल देना चाहिये इस संदर्भ में अनेको संदेश त्रिलोचन महाराज को नाराज संतो के समूह दीना महाराज से मिल चुकी थी थमकी के रूप मे जिसे त्रिलोचन महाराज अनसुनी कर दिया था।
दीपावली का दिन था त्रिलोचन महाराज ब्रह्म मुहूर्त कि बेला में शिप्रा के तट पर स्नान करने गए उधर दीना महाराज के नेतृत्व में महादेव परिवार से असन्तुष्ट संत समाज ने खतारनाक योजन बना रखी थी ज्यो ही त्रिलोचन महाराज शिप्रा में स्नान के लिये टुबकी लगाने लगे ठीक उसी समय उन पर पानी के अंदर ही धारदार हथियारों से एक साथ चारो तरफ से आक्रमण हो गए जिसका अनुमान शायद त्रिलोचन महाराज को नही था गए भी थे वो शिप्रा के पावन जल में स्नान करने ना कि युद्ध लड़ने उनको तो कुछ भी अंदाज़ नही था।
शिप्रा का जल रक्त से लाल हो गया वहाँ कुछ लोग और संत स्नान कर रहे थे हृदय विदारक दृश्य को देख भयाक्रांत बाहर निकले और चिल्लाने लगे शिप्रा के पावन नदी में किसी की जघन्य तरीके से हत्या हो गयी ।
इधर आशीष त्रिलोचन महाराज के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था कुछ ही देर में खबर आग की तरह फैल गयी कि शिप्रा में किसी कि हत्या हो गयी आशीष को जब इसकि सूचना मिली तो वह किसी अनहोनी की आशंका से घबड़ा गया क्योकि एक तो त्रिलोचन महराज को गए बहुत विलम्ब हो चुका था लौटने में कभी इतना बिलम्ब नही होता आज विलम्ब हो रहा था दूसरा महादेव परिवार की एकता की सफलता से असंतुष्ट समूह की नित्य प्रतिक्रिया।
वह शिप्रा की तरफ भागता हुआ बोलता जा रहा था त्रिलोचन महाराज मैं आ रहा हूँ जैसे उंसे मालूम हो कि हो ना हो यह अनहोनी त्रिलोचन महाराज जी के साथ ही हुई है ।
जब वह शिप्रा तट पर पहुंचा उसी समय पुलिस भी पहुंच चुकी थी।
आशीष ने वहां जाकर देखा कि त्रिलोचन महाराज की पड़खर(सन्तो द्वारा धारण किये जाने वाला वह वस्त्र जो धोती कि तरह धारण किया जाता है) एव आंटी (चादर) शिप्रा के तट पर पड़े है आशीष चिल्ला पड़ा त्रिलोचन महाराज पुलिस ने चिल्लाते विलखते आशीष से पूछा क्यों चिल्ला रहे है बाल गोपाल आशीष बोला हमारे त्रिलोचन महाराज के साथ ही कोई अनहोनी हुई है पुलिस को एक बात निश्चित हो गयी कि जो भी घटना घटित हुई है वह त्रिलोचन महाराज के साथ ही घटित हुई है ।
अतः उसने जल पुलिस को शिप्रा नदी में त्रिलोचन महाराज की खोज करने के लिए उतारा सुबह के आठ बजे चुके थे मगर त्रिलोचन महाराज का कही सुराग नही मिला गोता घोरो की मदद ली गयी मगर त्रिलोचन महाराज का कही पता नही चला सुबह से शाम हो गयी मगर त्रिलोचन महाराज का कही पता नही चला इधर महादेव परिवार में बेचैनी और उदासी छा गयी आशंका नही स्प्ष्ट हो चुका था कि अनहोनो घटना त्रिलोचन महाराज के साथ ही घटित है संम्भवः वह जीवित न हो महादेव परिवार में ही विघटन के स्वर उठने लगे कोई कहता सबका कारण बाल गोपाल ही है क्या आवश्यकता थी महाकाल में आदर्श व्यवस्था की पहल करने की जैसे चल रहा था क्या हर्ज था अब बाल गोपाल के पास कोई जबाब नही था संत समाज मे अफरा तफरी शंकाओं का दौर शुरू हो गया दो दिन बीत चुके थे और चारो तरफ से एक ही आवाज उठाने लगी कि बाल गोपाल को उज्जैन की सीमा से बाहर कर दिया जाय और महादेव परिवार को भंग कर पूर्ववत व्यवस्था को बहाल कर दिया जाय नही तो इस वैमसस्व द्वेष के ना जांने और कितने शिव भक्त शिकार होंगे ।
आशीष तो दुखी था ही उसे कुछ नही सूझ रहा था इधर चारो तरफ से बाल गोपाल को उज्जैन की सीमा से बाहर करने की मांग जोरो पर थी कोई भी उससे बात नही करता सबने उसका बहिष्कार कर दिया आशीष को समझ मे नही आ रहा था की ऐसी स्थिति में वह जाए भी तो कहां अगर जाता है तो उसके मन पर त्रियोचन महाराज के साथ घटित घटना की जिम्म्मेदारी को अप्रत्यक्ष स्वीकार करने का बोझ होगा वह सीधे देव जोशी जी के पास गया और बोला महाराज आप ही बताये एव निर्णय करे मुझे क्या करना है ?
आप जो भी सजा मेरे लिये निर्धारित करेंगे उंसे मैं महाकाल का आशीर्वाद समझकर स्वीकार करूँगा देव जोशी जी बोले तुम कही नही जाओगे बाल गोपाल महाराज त्रिलोचन महाराज के साथ घटित घटना का तीसरा दिन है मैं महादेव परिवार के सभी सदस्यों को बुलाता हूँ ।
अपरान्ह चार बजे महादेव परिवार के सभी सदस्य एकत्र हुए एक स्वर से बोल उठे जोशी जी बाल गोपाल को उज्जैन की सीमा से बाहर निकाला जाए देव जोशी जी ने महादेव परिवार के सदस्यों से कहा त्रिलोचन महाराज के साथ घटित घटना में बाल गोपाल का क्या दोष है ?
आप लोग बताये क्या इसका दोष यही है कि इसने भगवान महाकाल की सत्य सनातन भक्ति की निःस्वार्थ परम्परा को आगे बढाने में महाकाल भक्तों के परिवार का गठन किया।
क्या धर्म के मार्ग पर चलना दोष है ?यदि है तो निश्चित ही बाल गोपाल दोषी है यदि आस्था के नाम पर आम भक्तों का शोषण हो तो क्या महाकाल प्रसन्न होंगे ?आप सब बताये आशीष त्रिलोचन महाराज कि निःस्वार्थ सेवा भाव से समर्पित महाकाल भक्त है और महाकाल अपने भक्तों की परीक्षा लेते है परीक्षा भी उसी की लेते है जो परीक्षा के लायक महाकाल की कसौटी पर खरा होता है ।
भयंकर गर्मी में जब लू के कारण ना जाने कितने लोग काल कलवित हुये तब श्मशान घाट पर बाल गोपाल की निःस्वार्थ सेवा कि शिप्रा गवाह है जिसके कारण महाकाल न्यास सम्माननित हुआ और महादेव परिवार गौरवान्वित बाल गोपाल कायस्त कुल गौरव एव सत्य सनातन कि मिशाल के साथ मशाल है जो स्वयं जलते हुए भी धर्म मानवता को सकारात्मक दिशा दृष्टि से मर्यादित करता मान बढ़ा रहा है।
निश्चय ही कुछ निहित स्वार्थी तत्वों को सकारात्मक सत्य सनातन की क्रांति से हानि हो रही है और उन्ही के कुकृत्य से महाकाल के पावन एव करुणामय सत्य कलंकित हुआ है फांसी की सजा से पूर्व भी सभी पक्षो एव तथ्यों पर गम्भीरता से विचार किया जाता है क्योंकि यही धर्म एव न्याय का मौलिक सिंद्धान्त है सौ अपराधी भले ही बच जाए मगर एक सच्चे को दंड नही मिलनी चाहिए मैं महादेव परिवार से निवेदन करता हूँ कि सिर्फ एक सप्ताह का अवसर मेरे बाल गोपाल को दिया जाय और यदि इस अवधि में त्रिलोचन महाराज के साथ घटित घटना की सत्यता स्प्ष्ट नहीं होती है तो बाल गोपाल स्वतः उज्जैन छोड़कर चला जायेगा ।
परिवार के सभी सदस्यों की सम्मिलित जिम्म्मेदारी है कि जहां से कोई घटना के सम्बंध में कोई सूत्र मिले परिवार एव पुलिस को सूचित करें देव जोशी जी से महादेव परिवार पूर्णतः सहमत था उधर दीना महाराज का संत समूह भीतर ही भीतर प्रसन्न था कि कंटक अपने आप दूर हो जाएगा और किसी को कानो कान खबर नही होगी ।
घटना का चौथा दिन महाकाल शिप्रा तट से पंद्रह किलोमीटर दूर गांव वाले सुबह सुबह शिप्रा के तट पर नित्य कि भांति पहुंचे देखा कि एक व्यक्ति का शव शिप्रा के किनारे पतवार (नदीयो के किनारे उगने वाली घास)में फंसी है इधर उज्जैन पुलिस ने त्रिलोचन महाराज के साथ घटी घटनाओं के सम्बंध में खोज बिन कर ही रही थी गाँव वालों ने बड़ी मुश्किल से उस शव को निकला जो चार दिन बाद भी जल से फूली नही थी और शव का तापमान शून्य नही था नजदीक के थाने को सूचित कर दिया पुलिस आयी बहुत जल्दी ही शिनाख्त त्रिलोचन महराज के रूप में हो गयी उज्जैन पुलिस को सूचना देने पर आनन फानन उज्जैन पुलिस भी पहुंच गई तुरंत इंस्पेक्टर जमील अहमद ने त्रिलोचन महाराज को मृत्यु मानकर उनके शव को लेकर उज्जैन पहुँच गए और कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत उनकी शिनाख्त बाल गोपाल से करवाई बाल गोपाल बोला इंस्पेक्टर साहब महाराज मर नही सकते क्योंकि मैं जीवित हूँ आप पोस्टमार्टम से पहले एक बार किसी भी चिकित्सक से इनकी जाँच अवश्य करा लें इंस्पेक्टर जमील को लगा कि इसी तरह यह भावनाओ के बसीभूत ढोंग कर रहा है बाल गोपाल वहाँ महादेव परिवार का एक एक सदस्य मौजूद था बाल गोपाल रोते हुए अंदाज़ में बोला महादेव परिवार से गिड़गिड़ाते हुये बोला आप लोग इंस्पेक्टर जमील से निवेदन करे कि महाराज त्रिलोचन जी की विशेषज्ञ चिकित्सको से गंभीरता से जाँच कराई जाए महादेव परिवार के सदस्यों ने बड़ी विनम्रता से इन्स्पेक्टर जमील से महाराज त्रिलोचन कि विधिवत जांच कराने का निवेदन किया महादेव परिवार के सदस्यों की जिद को देखकर देव जोशी जी ने भी इंस्पेक्टर जमील त्रिलोचन महाराज के चिकित्सीय जांच का अनुरोध किया इंस्पेक्टर जमील ने पुलिस कप्तान से पूरे प्रकरण की जानकारी दिया और निर्देश प्राप्त किया और त्रिलोचन महाराज के चिकित्सीय जांच के लिये चिकित्सिको का पैनल नियुक्त कराया ।
चिकित्सको द्वारा त्रिलोचन महाराज के स्वास्थ की गम्भीर जांच करने के उपरांत बताया कि महाराज के शरीर का तापमान इतने दिनों ठंठे पानी मे पड़े रहने के वावजूद नही गिरा है और वह कोमा में है चिकित्सको ने त्रिलोचन महाराज का इलाज शुरू किया सबसे पहले उनके पेट से पानी निकाला पेट मे पानी बहुत अधिक नही था क्योंकि घायल होने के तुरंत बाद महाराज के कोमा में चले जाने के कारण केवल सांसों के रास्ते जितना पानी जा सका गया और ब्रेन डेड होने के कारण उनका शरीर पानी की सतह पर आ गया जिसके कारण पानी की अधिक मात्रा शरीर मे नही जा सकी इस प्रकार की मृत्यु अक्सर स्नेक बाइटिंग में होती है चिकित्सको को उम्मीद की एक किरण दिखी और उनके इलाज में कोई कोर कसर नही छोड़ रखा ।
सर्व प्रथम त्रिलोचन जी को घावों का इलाज शुरू किया घाव भरने लगे तब चिकित्सको को विश्वासः हो गया कि त्रिलोचन जी का शरीर रेस्पॉन्स कर रहा है त्रिलोचन जी को जीतने भी घाव लगे थे सभी भर गए लेकिन उन्हें कोमा से बाहर निकालने के सारे प्रयास व्यर्थ होते जा रहे थे चिकित्सको में भी निराशा का सांचार होने लगा धीरे धीरे आठ माह बीत गए।
एका एक दिन त्रिलोचन म्हराराज ने आंखे खोली चिकित्सको ने उनकी जांच किया और पाया कि त्रिलोचन महाराज की बॉडी ठीक रेस्पॉन्स कर रही है अब उनको विश्वासः हो गया कि देर से ही सही त्रिलोचन जी को दी जाने वाली दवाएं एव चिकित्सा कामगर साबित हुई लगभग नौ माह के बाद त्रिलोचन महाराज जी वापस लौट अपनी पुरानी दिनचर्या शुरू कर चुके थे आशीष ने उनकी बहुत सेवा किया जिसे देखकर लांगो को आश्चर्य था आशीष का दूर दूर तक त्रिलोचन महाराज से कोई संबंध नही था फिर भी उसने अपनी सगी संतान से अधिक सेवा त्रियोचन जी की किया ।
इधर इन्स्पेक्टर जमील बहुत मेहनत से त्रिलोचन महाराज के केश की विवेचना में जुटे थे मगर उन्हें कोई सफलता नही मिल रही थी तभी एक दिन आगरा के रनेश सिकरवार महाकाल दर्शन करने उज्जैन पहुंचे और दर्शन करने से पूर्व शिप्रा गए स्नान करने ज्यो ही उन्होंने शिप्रा मे डुबकी लगाई उनके हाथ एक चॉपर लगी जिसे उन्होनें उठाया और स्नान करने के उपरांत चॉपर को अपने बैग में रखा एवं महाकाल के दर्शन के लिये निकल पड़े ।
जब वे महाकाल मंदिर के निकट पहुंचे तभी वो एक फूल प्रसाद आदि बेचने वाले कि दुकान पर रुके और प्रसाद एव पुष्प महाकाल को समर्पित करने हेतु खरीदा और जब पैसे देना हुआ तो उनको याद आया कि पर्स तो उन्होंने बैग में रखा है ज्यो ही उन्होंने पर्स निकलने के लिए अपना बैग खोला दुकानदार को बैग में रखा चॉपर नज़र आया दुकानदार ने ड्यूटी पर तैनात सिपाही सोमेश को इशारे से बुलाया और रमेश के बैग की तरफ इशारा किया सोमेश ने रमेश से बड़े आदर पूर्वक कहा कि आप मेरे साथ थाने चलिये ।
रमेश सोमेश के साथ थाने पहुंचा जहाँ इंस्पेक्टर जमील बैठे थे सोमेश ने इंस्पेक्टर जमील से रमेश के पास मंदिर के आस पास चॉपर लेकर जाने की बात बताई चूंकि रमेश एक जिम्मेदार नागरिक था अत उसने सच्चाई इन्स्पेक्टर जमील को बता दिया इन्स्पेक्टर जमील ने रमेश का बयान दर्ज कर सोमेश के साथ दर्शन के लिए भेज दिया सोमेश ने रमेश को वी आई पी ट्रीटमेंट देते हुए महाकाल का गर्भ गृह के अंदर से दर्शन कराया ।
इंस्पेक्टर जमील को मालूम था कि रमेश को चॉपर ठीक उसी जगह मिला है जहाँ त्रिलोचन महाराज पर हमला हुआ था उन्होंने चॉपर कि सच्चाई का पता किया पता चला कि चॉपर इंदौर में मिलता है और बेचने वाले चार पांच ही दुकानदार है ।
इंस्पेक्टर जमील ने पुलिस की एक टीम गठित करके इंदौर चॉपर की सच्चाई खंगाले के लिए भेजा पुलिस टीम एक सप्ताह हर तरह से पुलिसिया हथकंडे अपनाते हुए चॉपर की सच्चाई जानने की कोशिश करने में जुट गई मगर कुछ भी पता न चल पाने के कारण उन्होंने इंदौर के चॉपर बेचने वालों को ही अपने साथ बैठाया और उज्जैन के लिए चल दिये ज्यो ही इंदौर की सीमा में प्रवेश किया पुलिस दल के साथ चॉपर बेचने वालों में से एक ने सड़क पर घूम रहे दो नौजवानों को तरफ इशारा कतरे हुये बोला कि यही दोनों दुकान पर चॉपर खरीदने गए थे पुलिस सड़क के किनारे चहलकदमी करते नौजवानों को चॉपर वालो के साथ लेकर थाने आये ।
इन्स्पेक्टर जमील ने दोनों युवकों पर इनता जबरजस्त दबाव बनाया की दोनों टूट कर बिखर गए और चॉपर की सच्चाई और त्रिलोचन महाराज के हत्या की साजिश को स्वीकार किया और अपना नाम अविचल सैनी एव रघो सिंह बताया एव साजिश का सरगना दीन महाराज को बताया इन्स्पेक्टर जमील ने चॉपर बेचने वाले का बयान दर्ज कर उनके इंदौर वापस भेजने की व्यवस्था कर दिया अब इंस्पेक्टर जमील के सामने पूरा मामला आईने की तरह साफ था ।
उन्होमे अविचल दिना महाराज एव रघो सिंह को आरोपित करते हुए फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दिया न्यायलय में मुकदमा शुरू हुआ त्रिलोचन जी की गवाही चिकित्सिको का बयान एवं चॉपर बेचने वालों के बयान एव शिनाख्त साथ ही साथ रमेश शिकरवार का बयान सभी अविचल रघो एव दीना महाराज को अपराधी प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त थे तीन वर्ष के ट्रायल के बाद सजा की तिथि निर्धारित हुई ।
पुनः बाल गोपाल ने त्रिलोचन महाराज से दीना महाराज को क्षमा देने की अपील करने लगा पहले तो त्रिलोचन महाराज ने आशीष कि बातों पर बहुत गम्भीरता नही दिखाई लेकिन नित्य के बाल गोपाल के अनुरोध को बहुत दिनों तक अनसुनी भी नही कर सके क्योकि बाल गोपाल जैसा उनके लिए कोई और नही था उनके लिये ।
त्रिलोचन महाराज देव जोशी के पास गए और बाल गोपाल के क्षमा देने की बात बताई देव जोशी ने कहा महाराज त्रिलोचन यह निर्णय तो महादेव परिवार सर्वसम्मत से ही करेगा महादेव परिवार एकत्र हुआ और बाल गोपाल ने अपना निवेदन रखना प्रारम्भ किया -उसने कहा महाकाल जो सनातन के आदि देव देवो के देव महादेव है उनका न्याय सर्वोपरि होता है महाकाल देव स्थान है यहां लाखो लोंगो की आस्था जुड़ी है यहॉ लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति एव मोक्ष के लिए महाकाल के दर्शन के लिए एक दिन के लिए आते है और आश्वस्त हो जाते है कि उनकी इच्छा पूरी होगी ।
हम लोग तो महाकाल के सानिध्य में पल प्रति पल रहते है हम लोंगो का आचरण सनातन के लिए आदर्श है अतः हम लोंगो कि नैतिक जिम्म्मेदारी है कि महाकाल के सृष्टि गत मौलिक सिद्धांतो का अनुपालन करे यदि त्रिलोचन महाराज दीना महाराज एव अविचल रघो को क्षमा दान दे तो महाकाल के जयकारे से अवनि अम्बर गूंज उठेगा ।
बाल गोपाल की बात सुनकर महादेव परिवार के लोंगो ने अपनी मूक सहमति त्रिलोचन महाराज को माफी के लिए दे दी देव जोशी जी ने भी अपनी सहमति जताई ।
न्यायालय में पूरा महादेव परिवार एकत्र था त्रिलोचन महादेव ने जस्टिस विद्याभूषण से अनुमति लिया था न्यायालय में अपनी बात रखने के लिए विद्वान न्यायाधीश महोदय ने अनुमति भी दे रखी थी।
न्यायालय में दीना महाराज एव अविचल रघो अपनी सजा सुनने को हथकड़ी में हाजिर हुये थे तभी त्रिलोचन महाराज महादेव परिवार के संरक्षक देव जोशी एव अन्य लोंगो के साथ न्ययालय में दाखिल हुए और न्यायाधीश की अनुमति से बोलना शुरू किया त्रिलोचन महाराज ने कहा हुजूर हम लोग सनातन धर्म की दिशा दृष्टि है लोगों का हम लोंगो पर विश्वासः रहता है कि हम लोग जो भी आचरण करते है कहते है सत्य है और वही धर्म है अगर हम लोंगो में ही विकृति आ जाये तो हम महाकाल के देवत्व को कैसे प्रमाणित कर पाएंगे अतः हमने दीना महाराज को क्षमा दान देने का निर्णय लिया है और आपसे विनम्र निवेदन करता हूँ कि दीना महाराज एव अविचल रघो को कोई सजा ना देते हुए मुक्त कर दिया जाय ।
जस्टिस विद्याभूषण ने पूरे प्रकरण पर विचार करते हुए दीना और अविचल रघो को मुक्त करने का आदेश जारी कर दिया एव रिहा करने की तारीख मुकर्रर कर दिया।
जिस दिन दीना महाराज को रिहा होना था उस दिन पूरा परिवार प्रातः से ही जेल के दरवाजे पर हर हर महाकाल जै श्री महाकाल के जय घोष कर रहा था दीना अविचल एव रघो की रिहाई का समय आ गया तीन वर्ष कारागार के बाद दीना अविचल रघो बाहर निकले दीना महाराज की आंखों से पश्चाताप कि अश्रुधारा बह रही थी तभी आगे बढ़ते हुए त्रिलोचन महाराज बोले भाई भरत की तरह है आप देखिये सारा शिव भक्त महादेव परिवार आपके स्वागत के लिए खड़ा है दीना महाराज ने देव जोशी जी का आशीर्वाद लिया और बाल गोपाल के समक्ष उंसे गले लगाते बोले यह है बाल गोपाल बाल शंकराचार्य जिसने सही की सच्चाई भोलेपन और औघड़ स्वरूपों के महादेव परिवार को उंसे उसकी जिम्मेदारीयो कर्तव्यों के प्रति जगाया जय जय महाकाल महाकाल मंदिर के आस पास का वातावरण निष्कपट और निरपेक्ष शिव मय बन गया अब वहां जाने वालों को शिव महत्व महिमा का यथार्थ दर्शन होता।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।