वो निगाहे.....!! - 2 Madhu द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो निगाहे.....!! - 2

बोल ना काहे नहीं बोल रही हो मैडम....श्री अरे मेरी माँ कुछ नहीं मै तो बस युही देख रही थी तू पता नहीं क्या क्या सोचने लगती है.....धानी अच्छा चल छोड.....दोनों अपना खाना खाती है पैसे देकर वापस घर कि ओर चल देती है धानी अपनी स्कूटी से दोनों चली जाती है धानी और श्री का कुछ दुरी पर होता है श्री को उसके घर दरवाजे पर छोड वही श्री के माँ धानी से रुक जा चाय पि के चली जाना मै बस बनाने जा रही थी वैसे तुम लोग आ गई.... धानी अरे माँ (धानी श्री कि मम्मी को माँ कहती श्री कि तरह श्री भी धानी कि मम्मी को मम्मी कहती है आन्टी कहना दोनों को कम पसंद है) फिर कभी पी लुगी अभी घर जाती हूँ मम्मी इन्तजार कर रही होगी देर भी हो गई है थोड़ी पापा भी आ गये होगे जादे देर हुई तो डान्ट पड जायेगी....धानी माँ को गले लगागर चली जाती है..... श्री घर जाकर माँ से पूछती है माँ पापा आ गये कि नहीं....
माँ.... हा गये फ़्रेश हो रहे चल तू बैठ मै चाय बनाकर लाती हूँ.... श्री माँ आप रहने दो मै बना देती हूँ... माँ अरे मै बना रही हूँ ना अब चुपचाप बैठ नहीं तो झापड पड़ेगा... श्री माँ के गले लग जाती प्यारी माँ..........!!
श्री अपनी यादो से बाहर आती है क्योंकि उस दिन का दृश्य हर वक़्त आता रहता था जब वो फ़्री होती वो उन्ही यादो मे चली जाती.... श्री देखती है सब लोग नाश्ता कर रहे और वो लडका श्री को नाम नहीं पता होता है वो उसी को चुप चुप कर मुस्कुराहट से देख रहा है..... श्री भी देखकर तुरंत नजरे नीची कर लेती है उसे बडा अजीब लग रहा था.... श्री मन में देख तो ऐसे रहा है जैसे पता नहीं कबसे जानता हो और मुस्कुराहट तो ऐसी लग रही है जैसे कोई प्यारी वस्तु मिल गई हो......!!

धानी के आवाज से श्री वापस मन से बाहर आती है धानी धीरे आवाज मे श्री से श्री देख ना ये वही तो लडका है ना उस दिन जो ढाबे पर मिला था किसी स्त्री को खाना अपने हाथों से खिला रहा था..... श्री अपनी आखे मीच कर चुप कर धानी सब हम लोगों को हि देख रहे हैं वैसे भी मुझे क्या पता.....धानी एक नजर सबको देखकर सब अपने में व्यस्त है धानी फिर से चल झूठी मुझे सब पता है ये वही जनाब है ढाबे वाले मुझसे तेरी कोई बात छिपी नहीं है समझी जानेमन बता ना ये वही है ना.... श्री उसको आन्खे दिखाती हुई जब पता है तो काहे पूछ रही हो... धानी ओहो मैडम अब तो तेरी नैय्या पार लग गई रे म्हारा मन घणो बवालो हो जायो रहो (जब खुश होती थी दोनो जो भी भाषा आती हो वो कहने लगती थी ).....अरे यार कोई डीजे बजा दो नाच लू जी भर म्हारी श्री को वो मिलने जा रहा जिसके बारे सिर्फ़ सोच सकती है अब हक़िक़त मे होने जा रहा है .धानी बेहद खुश होती है श्री के लिये.....








वही तेज बार बार श्री को देखे जा रहा था जिससे वो बेचारी सबके बीच असहज हो रही थी... तेज का पास बैठी उसकी बहन वामा भाई बस करो कितना भाभी को लफ़गो जैसे ताड रहे हो.....भाभी शब्द सुनकर तेज वामा को देखता इस शब्द को सुनकर कितना सुकून महसूस किया तेज वामा से तुझे क्या मै लफ़गा दिखता हूँ झूठा गुस्सा करते हुये....वामा तो फिर काहे ऐसे देख रहे हो तुुसी
तेज वो तो मै वो तो मै युही बस देख रहा हूँ.... अब चुपचाप बैठ मेरा दिमाग मत खा ....वामा दिमाग कोई खाने वाली चीज है खुद तो लफ़गो जैसी हरकते कर रहे है और ऊपर मुझे सुना रहे आने दो भाभी को अपनी टीम में कर लुगी फिर आपको खूब परेशान करुगी कितना मजा आयेगा....खिलखिला कर हसती है उसको ऐसे करते हि सब उसे देखने लगते वामा सबकि अपनी तरफ़ देखते हुये अरे मुझे कुछ याद आ गया इसलिए हस पड़ी दान्त दिखाते हुये फिर से खी खी कर हसने लगती....
श्री कि माँ अरे बेटा कोई बात नहीं अपना हि घर चाहे जैसे हसो वामा के सिर पर हाथ धरते हुये.....!!

तेज के पापा एक बार लडका और लडकी भी बाते कर लेते आपस में रिश्ते सहजने में आसानी रहेगी एक दुसरे को थोडा बहुत जान भी लेगे......!!





जारी है..........
स्वस्थ रहिये खुश रहिये 🙏🙏