हंसी के महा ठहाके - 12 - ऑनलाइन शॉपिंग के मजे Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 35

    "सर..."  राखी ने रॉनित को रोका। "ही इस माई ब्रदर।""ओह।" रॉनि...

  • सनातन - 3

    ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ...

  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

श्रेणी
शेयर करे

हंसी के महा ठहाके - 12 - ऑनलाइन शॉपिंग के मजे

ऑनलाइन शॉपिंग के मजे

आजकल तेज भागती दुनिया में हर चीज ऑनलाइन उपलब्ध है।अब वे दिन लद गए, जब चीजों को खरीदने के लिए लंबी लाइन लगती थी।चाहे बैंक हो, रेलवे स्टेशन का रिजर्वेशन काउंटर हो या ऐसी ही अन्य कोई सार्वजनिक सेवा, लोग कतार से थोड़ी देर के लिए भी हटते तो अपने बदले किसी और को खड़ा कर जाते।मौजीराम उन दिनों को याद कर और आज के दिनों की तुलना कर राहत की सांस लेते हैं।अब अनेक काम घर बैठे ही होने लगे हैं।

आज का अखबार पढ़ते हुए एक खबर पर उनका ध्यान अटका,

"ऑनलाइन बुकिंग में ठगी, पार्सल से निकला रद्दी का सामान"

मौजी मामा समाचार जोर-जोर से पढ़ते हैं,इसलिए बिना अखबार पढ़े ही मामी को सारी जानकारी हो जाती है।

उन्होंने कहा, "क्या उस व्यक्ति ने देखभाल कर बुकिंग नहीं की थी?"

मौजी मामा,"बुकिंग तो उस व्यक्ति ने देखभाल कर ही की थी और कार्ट में सही चीजों को सेलेक्ट कर बाय का बटन दबाया था।अब सामान भेजने वाले व्यक्ति ने धोखा दे दिया। ऐसी घटनाएं अपवाद ही हैं, क्योंकि यह ऑनलाइन ट्रेडिंग का काम आजकल जोरों से चल रहा है।"

मामी,"अच्छा यह बात है। मुझे तो खुद दुकान में जाकर शॉपिंग करना पसंद है।"

मामा सोचने लगे,अब श्रीमती जी के खुद दुकान पर जाकर खरीदारी करने का कितना भारी नुकसान मुझे उठाना पड़ता है,यह मैं ही जानता हूं। इस सोच के विपरीत सच्चा पति धर्म निभाते हुए उन्होंने कहा,"आप ठीक कहती हैं। इससे एक ही समय में अनेक दुकानों में जाकर खरीदारी करने पर विविध वस्तुओं को देखने परखने का अवसर प्राप्त हो जाता है।"

पत्नी की इस बात पर अब मौजी रामजी निश्चिंत हो गए कि चलो बिना उनकी जानकारी के ऑनलाइन सामान मंगाने की परंपरा बंद हो जाएगी, यही सोच कर उनके मुंह से निकला,"अच्छा है ऑनलाइन शॉपिंग मुझे भी अधिक पसंद नहीं है।"श्रीमती जी का सिद्धांत चित भी मेरी, पट भी मेरी, वाला है।

उन्होंने तपाक से कहा,"यह आप क्या सोच रहे हैं कुछ चीजें ऑनलाइन भी बहुत बढ़िया मिलती हैं।अब जो चीज अपने शहर में नहीं मिलेगी,उसे बाहर से तो मंगवाना पड़ेगा न?"

मामा ने आज्ञाकारी व्यक्ति की तरह कहा,"हां!यह भी सही कह रही हो। लेकिन बस एक बात मैं जरूर कहना चाहता हूं कि देख परखकर ही सामान मंगवाया करो और सामान मंगवाने से पहले कंपनी तथा सामान की डिलीवरी करने वाली एजेंसी की विश्वसनीयता की परख कर लिया करो।"

तभी अपने कमरे से मोबाइल फोन लेकर मुनिया बाहर निकली और स्क्रीन देखते हुए उसने कहा,"पापा डिलीवरी वाले अंकल को जरा घर की ठीक लोकेशन बताओ।"

मौजीराम जी बेटी से कहने ही जा रहे थे कि क्या अपने शहर में ये चीज नहीं मिलती है जो ऑनलाइन मंगा रही हो,तभी वे रुक गए। सोचा, मेरे एक तर्क के बदले में मुनिया दस तरह के तर्क देगी और उनका मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा।

उन्होंने कहा, ठीक है मुनिया, लाओ फोन मुझे दो।

मौजी राम जी ने फोन वाले को लाइव मार्गदर्शन दिया और वह कुछ ही मिनटों में एक बड़ा कार्टून लेकर घर तक आ पहुंचा।बिल देखकर मौजीराम जी के होश उड़ गए।शायद मुनिया ने एक के साथ एक फ्री के चक्कर में ईयर फोन के साथ एक बड़े साउंड सिस्टम को मंगवा लिया था। शायद असावधानीवश उसने कुल कीमत पर ध्यान नहीं दिया होगा।

मामा को इस तरह की शॉपिंग की बारीकियों का अधिक पता नहीं था, इसलिए वे पेमेंट करने से पूर्व सामान की डिलीवरी करने वाले व्यक्ति पर नाराज हो गए।मामा उसे भी एक लंबा भाषण सुना देते, लेकिन अंदर जा चुकी मुनिया अपने कमरे से बाहर निकली और पापा को झिड़कते हुए कहा,"आपने फिर गलती कर दी है पापा!यह तो पड़ोस के अंकल के घर का सामान है।वे अभी घर में नहीं हैं,इसलिए सामान यहां छोड़ा जा रहा है।हमारा सामान लाने वाला तो अभी भी थोड़ी दूरी पर है।"

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय