युद्ध कला - (The Art of War) भाग 14 Praveen kumrawat द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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युद्ध कला - (The Art of War) भाग 14

12. आग से हमला

सुन त्सू के अनुसार आग से हमला करने के पाँच तरीके हैंं।—
शत्रु के सैनिकों को उनके शिविरों में जिंदा जला देना, उनका सामान अथवा भण्डार गृह जला देना, सामान ढोने वाले साधनों को जला देना, उनके अस्त्र-शस्त्र एवं गोला-बारूद नष्ट कर देना तथा दुश्मन पर आग के गोले बरसाना।

पेंचाओ (जिसे शन-शन के राजा के पास कूटनीतिक उद्देश्य से भेजा गया था) ने स्वयं को उस वक्त मुसीबतों से घिरे हुए पाया जब सियुंगनू अपने लोगों के साथ अप्रत्याशित रूप से वहां जा पहुंचा। सियुंगनू चीनियों का जानी दुश्मन था। पेंचाओ ने अपने अधिकारियों को समझाया, "शेर के बच्चे को पकड़ने के लिए शेर की मांद में तो हाथ डालना ही पड़ेगा, अतः खतरा मोल लिए बिना जीत हासिल करना नामुमकिन है। हमारे सामने एक ही विकल्प है कि हम रात के समय उन पर आग से हमला करें ताकि उन्हें हमारी संख्या का अंदाजा न लग पाए। हम उन पर इस तरीके से प्रहार करेंगे कि वे भयभीत हो जाएं। उनके सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाएगी तब हम उनकी दुर्दशा का लाभ उठाते हुए उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देंगे जिसके चलते हमारा मान-सम्मान तो बढ़ेगा ही साथ ही हमारा यहाँ आने का उद्देश्य भी सफल हो जाएगा।" इस पर उसके अधिकारियों ने कहा, "क्यों न इस बारे में वज़ीर 'कुओ सुन' से भी बात कर ली जाए?" यह सुनकर चाओ को गुस्सा आ गया, वह चिल्लाकर बोला, "हमारे भाग्य का फैसला आज ही हो जाना चाहिए। प्रधानमंत्री एक साधारण व्यक्ति है, वह हमाारी योजना के बारे में सुनेगा तो डर जाएगा और इस योजना के बारे में अगर सभी को पता चल गया तो हम सभी लोग मारे जाएंगे।" रात होने पर योजनानुसार उनकी एक टुकड़ी ने सियुंगनू के शिविर की ओर कूच किया। उस समय तेज हवा चल रही थी। पेन चाओ ने अपने दस सैनिकों को ढोल दे कर दुश्मन के ठिकानों के पीछे छुपा दिया और आदेश दिया कि जैसे ही वे आग की लपटों को उठता हुआ देखें तो चीखते-चिल्लाते हुए ढोल बजाएं। बाकी सभी लोग तीर कमान लेकर शिविर के सामने घात लगा कर बैठ गए। इशारा मिलते ही सैनिकों ने हवा की दिशा में उनके डेरे में आग लगा दी। आग लगते ही पीछे छुपे हुए सैनिकों ने शोर मचाते हुए ढोल पीटने आरंभ कर दिए। सियुंगनू डर के मारे बाहर की ओर भागा। अकेले पेन चाओ ने ही तीन लोगों के सिर धड़ से अलग कर दिए, उसके साथियों ने तीस से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया तथा बाकी बचे हुए लोग आग में जलकर स्वाहा हो गए। अगले दिन लौटकर पेन चाओ ने वज़ीर कुओ सुन को सारी घटना बताई, जिसे सुनकर वह बहुत चिंतित हुआ, उसके चेहरे का रंग उड़ गया जिसे भांपकर पेन चाओ ने कहा, "यद्यपि कल रात आप हमारे साथ नहीं थे, परंतु फिर भी मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि इस जीत का श्रेय अकेले मैं लूंगा।" इस बात को सुनकर कुओ सुन प्रसन्न हो गया और पेन चाओ वहां से वापस लौट गया।

आग से हमला करने के लिए जरूरी है कि आग जलाने वाला सामान हमारे पास तैयार हालत में होना चाहिए।
आग से हमला करने के लिए सूखा मौसम तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अमावस्या सर्वाधिक अनुकूल होते हैं क्योंकि तब हवा तेजी से चल रही होती है।
आग से हमला करते समय एक सेनापति को निम्न पांच संभावित परिस्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए—
1. जैसे ही शत्रु के शिविर में आग भड़क उठे, बाहर से तुरंत हमला करें।
2. आग लगने पर भी दुश्मन शांत रहे तो आक्रमण न करें, प्रतीक्षा करें।

आग द्वारा आक्रमण किए जाने का प्रमुख उद्देश्य है। दुश्मन को अव्यवस्थित करना परंतु अगर ऐसा नहीं होता है तो इसका अर्थ है कि दुश्मन हमसे अधिक मजबूत है और हमारा सामना करने के लिए तैयार है, अत: सावधान रहें।

3. जब आग की लपटें आकाश की ऊंचाइयों को छूने लगें तो हमला करें, अन्यथा जहाँ हैं वहीं पर बने रहें ।

यदि आपको युद्ध करके सफलता मिलती नजर आ रही हो तो आगे बढ़ें, नहीं तो रुके रहें।

4. यदि बाहर रह कर हमला करना संभव हो तो अंदर जाकर आक्रमण करने की प्रतीक्षा न करें बल्कि सही समय पर आक्रमण करें।

यदि दुश्मन का शिविर वीरान जगह पर स्थित है जहाँ चारों ओर घास फूस फैली हुई हो अथवा यदि उसने किसी ऐसी जगह पड़ाव डाल रखा हो जिसे आसानी से जलाया जा सके तो मौसम की अनुकूलता अथवा दुश्मन के खेमे में हलचल मचने की प्रतीक्षा न करें।

5. आग लगाते समय हवा के रुख का ध्यान रखें। स्वयं को सदैव हवा की दिशा में ही रखें।

जब आप आग से हमला करते हैं तो दुश्मन उससे दूर भागेगा। आप यदि उसे भागने से सेकते हैं तो वह जी-जान लगा कर आपका विरोध करेगा, जिसके चलते आपको सफलता प्राप्त नहीं होगी। यदि हवा का रुख पूर्व दिशा की ओर है तो आप भी पूर्व दिशा में ही आगे बढ़ते हुए दुश्मन पर पीछे से धावा बोलें, ऐसा न करने पर मनचाहे परिणाम न मिलने से निराशा होगी।

दिन की हवा देर तक चलती है जबकि रात वाली हवाएं जल्दी ही रुक जाती हैं। तेज गति से चलने वाली हवाएं ज्यादा देर तक नहीं टिकतीं।
तारों (नक्षत्रों) के इशारों (गणना) के द्वारा यह पता लगाना चाहिए। कि हवाओं की दिशा हमारे हमले के अनुकूल कब होगी।
हमले के लिए आग का प्रयोग बुद्धि तथा पानी का प्रयोग शक्ति का परिचायक है। पानी की मदद से शत्रु को मात्र रोका जा सकता है। परंतु उसे उसके सारे सामान से वंचित तो केवल आग द्वारा ही किया जा सकता है।

युद्ध में पानी एक लाभकारी सेवा प्रदान करता है परंतु उसमें आग जैसी विनाशकारी शक्ति नहीं है। अतः यही वजह है कि अग्नि द्वारा आक्रमण विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है।

जो बिना योजना, साहस, लक्ष्य एवं उद्देश्य के युद्ध लड़ना एवं उसे जीतना चाहते हैं वे समय को नष्ट करने वाले निष्क्रिय एवं दुर्भाग्यशाली होते हैं।

युद्ध में जीत हासिल करने के इच्छुक योद्धाओं को अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा होते ही उनका लाभ प्राप्त करने तथा साहसिक कदम उठाने से चूकना नहीं चाहिए— अर्थात् युद्ध जीतने के लिए उन्हें जल, अग्नि तथा अन्य साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना चाहिए, तथा जो ऐसा नहीं करता उसकी किस्मत में पछतावे के सिवा कुछ भी लिखा नहीं होता।

अतः बुद्धिमान शासक पहले ही से भविष्य की योजनाएं तैयार करके रखता है तथा एक अच्छा सेनापति अपने संसाधनों को विकसित करता है।

युद्ध कौशल में निपुण सेनापति सैनिकों को अपने प्रभाव से नियंत्रित करता है, सच्ची निष्ठा के साथ उनमें आपसी विश्वास पैदा करके उन्हें आपस में जोड़ता है, पुरस्कृत करके उन्हें सेवा के योग्य बनाए रखता है। परंतु निष्ठा के अभाव में विघटन हो जाएगा तथा पुरस्कार न मिलें तो आदेशों का पालन नहीं होगा।

आगे तभी बढ़े जब आगे बढ़ने में लाभ नज़र आए अन्यथा स्थिर रहें, अपने सिपाहियों का उपयोग व्यर्थ के कामों के लिए न करें, जब तक स्थिति गंभीर न हो युद्ध न करें।

किसी भी राजा को अपने क्रोध की शांति हेतु अपनी सेेना युद्ध के मैदान में नहीं झोंकनी चाहिए, सेनानायक को भी निजी द्वेष के चलते अथवा अपमान का बदला लेने के लिए युद्ध नहीं करना चाहिए क्योंकि समय के साथ क्रोध शांत हो सकता है, बैर को मित्रता में बदला जा सकता है, खीज को संतोष से दबाया जा सकता है, परंतु युद्ध में नष्ट हुए राज्य को पुनः अस्तित्व में लाना तथा मारे गए योद्धाओं को पुनर्जीवित करना असंभव है।
अतः बुद्धिमान शासक उपरोक्त सभी बातों का ध्यान रखता है, तथा एक अच्छा सेनानायक पूर्णत: सावधान रहता है। देश में एकता एवं शांति बनाए रखने का यही सर्वोत्तम उपाय है।