Unkahe रिश्ते - 3 Vivek Patel द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Unkahe रिश्ते - 3

मेंने वो टिकटे संभाल रखी है।

हम रोज मिलते थे, वही रोज जहा से अक्सर ट्रेने गुजरती रहती है,जहा बहुत सारे लोग अपने सफर की शुरुवात करते है। जहा हररोज कोई बिछड़ता है, कोई मिलता है, तो कोई अत्यधिक भीड़ में खुदको संभालता है कोई जल्दी जल्दी में फिसलता है। हर एक मुसाफिर के ज्यादातर रास्ते यही से जाते है ~ रेलवे स्टेशन

आप सोच रहे होंगे येह तो कोई जगह हुए मिलने की, मुलाकाते तो ज्यादातर वहाँ होती है जहा एकांत हो, जहा एक दूजे को परेशान करने को कोई नही हो। लेकिन हमें कोई फर्क नही पड़ता था। हम दोनों एक दुझे मे ऐसे घूम होते थे जैसे बारिश मैं जुमता हुआ मोर, जैसे खिलोने से खेलता छोटा सा बालक, हम अपने मे मगन रेहते। स्टेशन का सोर ज़्यादातर कानो पर पड़ता नही था। लॉगो की भीड़ हमे परेशान नही करती बल्कि लोगो की भीड़ हमे एक दुजे से बांधे रखती थी।

वैसे भी मुलाकात किसी जगह की मोहताज नही होती,मुलाकात तो बेताबी से होती है , मुलाकात तो तड़पन से होती है, मुलाकात किसी के चाह से होती है। मुलाक़ात वो है जिसकी उम्मीद से रिश्तों में बेक़रारी बनी रहती है और दूरियों के दर्द को राहत मिलती है। शायर अपने मुलाकात लिखते है कि,"मुलाक़ात को तरशे रहे है हम, कहा कहा आपको नही पाया हमने, कही अपनो में, कही गैरों में और कही लोग की छाया में। वो जगह , समय और मर्यादा को मायने नही रखती।

वहाँ बहुत सी ट्रेने हररोज गुजरती है।वहा से गुजरती हर एक ट्रेन हमे लम्हो मैं बसाती थी, वे लम्हे !!! वे लम्हे, हमने हमारे नाम किए थे, अपने खवाबो की पक्की ईटो से हमने लम्हो को मजबूत किया था। वे लम्हे जैसे वक्त को थामे रखती, हमारे लिए। वो पल, वो क्षण जैसे हररोज हमारे लिए कोई बार बार दोहराये जा रहा था। उस लम्हो को महसूस करना, उसे हररोज सोपान करना जैसे हमारी आदत सी हो गयी थी।

उसी बीच रेल की पटरियो की आवाज हमें रोज टकोर देती थी की बस अब बहुत वक्त साथ गुज़ार लिया, अभी हमे लौटना भी तो है, एक पल तो दोनों सोचते है कि चलो थोड़ी और देर रुक जाए। लम्हो को दिल भरकर मनाया जाए। लेकिन दूसरी ओर वास्तविकता का अहसास होता की कल फिरसे मिलने के लिए आज हमारा जुदा होना जरूरी है, आखिरकार हमे घर भी तो जाना है।वैसे भी हमारे रुक जाने भरसे ट्रेने कहाँ रुकने वाली है। ट्रेने कहाँ रुकती है, वो तो सिर्फ सफर बदलती है..!

में ना, ये छोटी सी होती रोज की मुलाकातों पर न कहानी लिखना चाहता हु, जो ना हमारे बेहतरीन लम्हो से भरी होगी। हमारी बातें, वो ख्वाब,वो सारी हरकतों जो हम आम तौर पे किया करते, ये सबसे कहानी जाम से भरनी है। वो कहानी मेने होती सबसे बेहतरीन उत्पाद से लिखनी है। ऐसा मान लो कि वो कहानी मेने कलम से नही मेने दिल अल्फाज़ो से लिखनी है। मेने कहानी में सही ,बस उस रिश्ते को नाम देना है।

खैर फिर वो वक्त भी जल्दी आता, जब हमें जुदा होना पड़ता था, लेकिन वहाँ की भीड़ को देखकर उसे छोड़ने का मन नहीं करता था, सिर्फ उस वजह से मैं जब तक उसकी ट्रेन न जाती तब तक उसके साथ खड़ा रहता था ये बात अलग थी कि मुझे उससे जुदा नहीं होना था, भीड़ तो एक बहाना था,जो मुझे ओर दो पल उसके साथ रहने का मौका देती थी। और जैसे ही ट्रेन चलने लगती मैं सोच ने लगता कि उसे रोक लू, ट्रेन से खींच की उतार दु, सारे पल मैं साथ गुज़ार दु...!लेकिन कर नही पाता था।

ट्रेन की रफ्तार जैसे जैसे बढ़ती जाती वैसे वैसे बेचेनी ओर चढ़ती जाती, उससे जुड़ाई रूह में कंपन सी उठा देती।अब वो समय था जब मैं बस उसे जातां हुआ देख सकता था, उसे छू ने की कोशिश भी बेकार थी, रफ्तार ज़्यादा थी न,बढ़ता फासला हमे हकीकत से रूबरू करवाता था। थोड़ी देर में फिर वो दिखाई देना भी बंध हो जाती, हमारे बीच का फासला हमे जैसे अंधा बना देता, जो मुझे वास्तविकता से दूर रखता, में आवारा दूर हो कर भी आँखें उस और टिकाये रखता, मैं वहाँ खड़ा रहता। मेरा पागलपन तो देखो अभी भी उसी आस मैं वहाँ खड़ा रहता हूं, की शायद एक और ट्रेन आएगी, और हमारी जुदाई को मिटाने वो फिर उसमें बेठकर चली आएगी। हकीकत का स्वीकार करना शायद मंज़ूर नही था।

ऐसा हररोज होता था। मेरा वहाँ जाना, घण्टो तक राह देखना और फिर वक्त तो दोष देना, ये जैसे एक अपने आप मैं लम्हा बन गया था, जिसपे सिर्फ हमारा हक था, शायद मैं सही था। वो ट्रेन आज भी मुझे नए लम्हे देती है।थोड़ी दीनो बाद वो वक्त भी आया जब कॉलेज का आखरी दिन था। उस दिन रेलवे स्टेशन पर मिलना शायद से आखरी था।

"उस दिन हुई हमारी हर बात आखिरी थी,
उसके साथ गुजारी वो यादें आखिरी थी,
मेने सोचा बिताएंगे जिंदगी तुम्हारे साथ,
पर क्या पता था वो मुलाकात आखिरी थी।"

कितना अनोखा अहसास होता हेना जब हमे पता रहता कि अगला अब कभी नही मिलेगा, लेकिन साथ बिताया वो थोड़ा सा वक्त भुलाये नही भुला जाता। उसे उसकी खुशी के लिए हमे जुदा करना पड़ता है ओर हम उसे रोक भी नही पाते। मुझे तब पता चला कि जीवन मे अच्छी चीज़े थोड़े दिन को लिए ही होती है। येह थोड़े से वक्त को हम जितना चाहे उतना रसपान कर लेना चाहिए क्योंकि वो बस पल भर का मेहमान है। आज सब तुम्हारे पास हो वो कल तुम्हारा न होगा। अगर आप थोड़ा सा भी उस अहसास से जुड़ गए तो पूरी ज़िंदगी आपको उसी यादों में जीते रहना पड़ता है।

उस दिन के बाद हम कभी नही मिले। आज भी में उसे मिलने वहा बैठा हुआ हूं जहा कही से हररोज ट्रेने गुजरती है, गुजरती हर ट्रेन उसकी याद दिलाती है पटरियाँ आज भी टकोर करती है कि बस तुम अब अकेले हो। तूम अकेले हो।

समय तो आज भी हुआ था लेकिन एक नए सफर के साथ,

वो बात सच तो थी ट्रेने कहा बदलती है गुजरते वक्त के साथ वो तो सिर्फ सफर बदलती है, भीड़ आज भी थी लेकिन अब भीड़ हमे जुड़ा करने नही हमे याद दिलाने आती थी की अब तुम साथ नही हो। अब एक दूसरे को कहा बचाना है, अब जो नए सफर में जो दोनों चल पड़े थे वहाँ में न उसे उतार सकता हु, न उसे खीच सकता हु, न रोक सकता हु। रफ्तार तो आज भी ज़्यादा थी,

रफ्तार थी उसकी चाहतो की, ख्वाहिशों की!!
बहुत अच्छा चल रहा था यह रिश्ता हमारा,
बिछड़े इस रफ़्तार से मानो, मैं आसमान और वो टूट ता तारा.

हमारा बिछड़ना तय था, लेकिन पता नही जुदा होना मुझे सताये जाता था, कही न कहीं वो मुझे मंजूर नही था। इस वाक्यं ने जो गहरा घाव दिया थी कि मन मे बस येह उठे जा रहा था कि,
कहा था कि मुझे तन्हा छोर दो,
तक ऐसा नही था कि सारे रिश्ते तो दो,
अकेला कर गए तुम सब कुछ छोड़कर,
अब ये रूह जा रही बदन छोड़कर। "

ये रूह जुदाई मानने से मुकरती रहती है। पेहले सोच रहा था कि थोड़ा समय लगेगा इसे समझ ने मे। लेकिन अब तो येह तो मेरी ज़िंदगी से जुड़ गया है। ऐसा हादसा हुआ पड़ा है की में चाह कर भी नही भूला पा रहा।

खैर लेकिन समा तो ये है कि हम दोनो बैठे है इन्तेजार मैं, मैं यहाँ वो वहाँ...आखरी मुलाकात को मै उसे ट्रेने से उतारना चाहता था। मैं उतार तो नहीं सका उसे लेकिन एक बार उसे बताना था कि येह रिश्ता क्या मायने रखता है। मेरा इरादा उसे हटाना नहीं था, बस ये जताना था कि तड़पता है ये दिल आपकी यादो मैं, धड़कता है ये दिल अभी भी तेरी चाहतो मैं...

मैं यहाँ उसे मिलने आता हूं, वो जिस ट्रेने में सफर करती थी उसके सारो डब्बो में मेरी निगाहे रहती है। पेहले जब वो दिखाई देनी बंध होती थी तब बेचेनी चढ़ती थी,अभी तो सायद वो मुझे देखने उतर जाए उसी आस मैं उसकी ट्रेन देखता रहता हु.. लेकिन वो कहा वापस आने वाली ठहरी। लोगो का कहना सच होता दिख रहा था कि ट्रेने कहा रुकती है?? वो तो बस सफर बदलती है पर मैने रत्ती भर नही सोच था कि उसके साथ लोग भी मंजिले बदलते रेहते है।

हमारे पास समय नहीं था, जब समय आया तो साथ नही था, जब साथ हुए तो वक्त ने साथ नही दिया। सच कहु तो विधि में हमारा मिलना नही था। लेकिन एक चीज थी जो हमसे कोई नही छीन सकता था ,हमारे वो लम्हे..!
उसे याद करके बस आज अपने आपको मना लिया करता हु। उसके साथ सिर्फ वक्त बिता देने से , सब कुछ सही हो जाता। तभी तो आज भी वही खड़ा हूँ, जहाँ से अक्सर ट्रेने गुजरती है।

यह सब बातों में एक चीज रह गई, यार मेरी वो कहानी अधूरी रह गयी, वो बातें, ख्वाब नही लिखा पाया मे। वो रिश्ते को में कोई नाम नही दे पाया। वो किताब मेने अपने पास रखी है। कुछ लिखा नही उसमे बस किताबो के पन्नो के बीच मेंने वो टिकटे संभाल रखी है, जिससे कही रोज हम सफर किया करते थे। वो टिकटे मेरी खिताब को पूर्ण करती है कुछ न होने के बावजूद वो किताब सबकुछ अहसास करवाती है। हां अगर किसी रोज वोह कहानी लिखने का मन हुआ तो लिखना ऐसे शुरू करूँगा की,
"बिखरा नही हु में हमेशा निखरा हु,
जब भी किसी से बिछड़ा हु।"

हाँ, तो सब रिश्ते संभाल ने चल पड़ा हु, अपने आप को, आपके साथ मिलाना चाहता हू। कुछ खास शोर नहीं है लेकिन जोश के साथ निकल पड़ा हू। जिंदगी में मिलने वाली सभी खुशियों को आपके साथ बाटना चाहता हू, दुखो में अपना का साथ चाहता हू। रिश्तों की यादों को दोहरा रहा हू, इसी चाह में कि जो छूट आऐ हैं रिश्ते सारे उसे अपने साथ ले चलू। वेसे बोले जाने वाले कई रिश्ते है मेरे पास लेकिन कुछ अनकहे रिश्ते बताने आया हू।


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