हंसी के महा ठहाके - 11 - मोबाइल से होता संवाद Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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हंसी के महा ठहाके - 11 - मोबाइल से होता संवाद


मोबाइल से होता संवाद

सोशल मीडिया अब इस तरह हमारे जीवन में हावी हो गया है,जिसकी दखल चौक बाजार से लेकर घर के अंतः कक्षों तक है।अब घर में जितने सदस्य हैं,उतने की अपनी अलग-अलग दुनिया है।पहले एक छत के नीचे लोग रहते थे, अब एक छत के नीचे अलग-अलग कमरों में लोग रहते हैं।पहले संवाद का माध्यम नियमित तौर पर लगातार होते रहने वाली बातचीत के साथ- साथ भोजन पर लोगों का इकट्ठा होना रहता था।चाहे दिन भर अलग-अलग हों, लेकिन भोजन पर एक बार अवश्य साथ बैठकर दिन भर की चर्चा कर लेते थे।आजकल लोग या तो अलग-अलग भोजन करते हैं या घर के भीतर भी उन्हें सोशल मीडिया के संदेशों के जरिए इकट्ठा किया जाता है।

मौजी मामा के घर में भी यही हाल है। जैसे ही भोजन बन जाता है,मामी बच्चों को एक बार आवाज देती है।जब वे नहीं सुनते हैं तो सोशल मीडिया पर संदेश जारी कर देती हैं।

चुन्नू-मुनिया हैं कि अपने कमरे में लैपटॉप और मोबाइल पर बैठे हैं।अब सारा संसार कुछ इंचों के मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन में कैद हो गया है।बच्चों की परीक्षाएं हो गई हैं,इसलिए अब वे अपनी पसंद का म्यूजिक सुन और देख रहे हैं।अभी थोड़ी देर पहले मौजी मामा बच्चों को समझा गए हैं कि लगाकर कंप्यूटर स्क्रीन और मोबाइल मत देखो।इससे आंखों की रोशनी पर बुरा असर पड़ता है। मामा के इतना कहने पर बच्चों ने पहले ही समाधान बता दिया। मुनिया ब्लू लाइट रेज से बचाव के लिए स्पेशल चश्मा खरीदने की जिद करने लगी।

मौजी मामा ने मुनिया से कहा,"ये क्या मुनिया! अब तो परीक्षा हो गई है।अब कौन सा तुम्हें कोई वीडियो लेक्चर देखना- सुनना है जो कंप्यूटर स्क्रीन पर आंख गड़ाए हुए हो?"

मुनिया: पापा!आप नहीं समझोगे।ये अगले सेशन की तैयारी है जो कुछ ही दिनों में शुरू होने वाली है।

मौजी मामा: लेकिन अब तो सब कुछ ऑफलाइन हो गया है,तब इस ऑनलाइन पढ़ाई का क्या मतलब है?

इस पर चुन्नू ने समझाते हुए कहा,"पापा! परीक्षा देने के लिए।"

मौजी मामा:परीक्षा देने के लिए?वह तो प्रश्न पत्र और उत्तर पुस्तिकाओं का खेल है।इसमें ऑनलाइन कहां से आ गया?

मुनिया ने समझाया,"ओहो पापा! आप इतना भी नहीं समझते।आजकल कुछ परीक्षाएं भी ऑनलाइन हो गई हैं और अनेक प्रतियोगी परीक्षाएं ऑनलाइन मोड में हो रही हैं।"

मामा इस ऑनलाइन और ऑफलाइन के चक्कर में देर तक उलझे रहे।फिर सोचा,बदलते जमाने के साथ शायद उन्हें भी चीजों को स्वीकार करना होगा लेकिन वह इस बात को लेकर चिंतित हो उठे कि इससे बच्चों की आंखों की रोशनी का क्या होगा और फिर उनकी कल्पनाशीलता,सृजनात्मकता इन शब्दों का क्या मोल रह जाएगा, जब सारे प्रश्न और उसके उत्तर कंप्यूटर के एक क्लिक पर उपलब्ध हैं और बच्चा वहीं से कॉपी पेस्ट करके ज्ञान प्राप्त कर रहा है।मामा सोचने लगे कि इसका उपाय क्या है? क्या कोई वैकल्पिक व्यवस्था होगी जब लोग आभासी दुनिया से अलग होकर फिर से वास्तविक दुनिया में लौटेंगे।

अपने कमरे में कविता लिखते- लिखते मामा शब्दों के हेरफेर में उलझ गए,तभी मोबाइल पर घर के सोशल मीडिया ग्रुप में मामी का मैसेज आया:-

भोजन बन गया है,जल्दी आएं।

चुन्नू ने लिखा:टू मिनट्स मम्मा।

श्रीमती जी ने लिखा-जल्दी आ।

मुनिया ने लिखा-लेक्चर पूरा करके आती हूं।

श्रीमती जी ने लिखा -ओके।

मामा को भूख लगी थी।उन्होंने इससे पहले कि रिक्वेस्ट असेप्ट के बदले रिजेक्ट हो जाए, तत्काल लिखा- आई एम कमिंग….।

डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय