अपकर्म नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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अपकर्म

शीर्षक - अपकर्म

भारत के महत्पूर्ण नगरी काशी वाराणसी बनारस कि सांस्कृतिक शैक्षिक प्रवृति से विधिवत परिचित हूं अपने पंद्रह वर्षों के प्रवास में बहुत से मित्र एवं शत्रुओं को बनाया सिर्फ वाराणसी ही नहीं वाराणसी के आस पास जनपद जौनपुर ,संत रविदास नगर, सोनभद्र ,मिर्ज़ापुर आदि जनपदों में भी मित्रो का अच्छा खासा स्नेह सम्मान मिलता रहता है ।

अपने पंद्रह वर्षों के प्रवास के दौरान अनेक सूख दुःख के अवसरों पर उपस्थिति रहने एवं भागीदारी का अवसर प्राप्त हुआ है ।

वाराणसी वर्ष 2008 में मेरे एक मित्र के पिता जी कि मृत्यु हो गई जिनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित होने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ मै हरिश्चंद घाट पर पहुंचा जहां मेरे मित्र अपने पिता जी के अंतिम संस्कार के लिए लेकर गए थे ।

श्मसान घाटों में मर्णकर्निका का ही धार्मिक महत्व है लेकिन साथ ही साथ यह भी कहावत मशहूर है कि मोक्ष के लिए लोग काशी आते है और शायद विश्व में काशी वाराणसी बनारस इकलौता शहर है जहा मोमुक्षु भवन जीवित लोगों जो मृत्यु कि प्रतीक्षा कर रहे होते है उनके लिए बना है।

यह कुछ अजीब नहीं लगता विश्व में चिल्ड्रेन हाऊस ,ओल्डेन हाऊस मिलेंगे लेकिन डेथ होम नहीं मिलेगा ।

मान्यता है कि अंतिम समय में काशी में शरीर त्याग करने वाले को मोक्ष मिलता है यह बात दीगर है कि काशी में जन्मे महान सूफी संत कबीर दास जी जान बुझ कर अपने जीवन के अंतिम समय में काशी त्याग दिया इस मिथक को तोड़ने के लिए कि काशी में ही मरने वालो को मोक्ष मिलता है और उन्होंने मगहर में आकर शरीर का त्याग किया कहावत यह भी प्रचलित है कि मगहर में शरीर त्यागने वाले को भूनकर नरक कि यतना से गुजरना पड़ता है और आत्मा जन्मों तक मोक्ष के लिए भटकती रहती है ।

खैर बात काशी के श्मसान हरिश्चन्द्र घाट कि कर रहा हूं जहा मेरे मित्र अपने स्वर्गीय पिता के शव को लेकर अंतिम संस्कार के लिए आए थे मेरे मित्र पिता के अंतिम संस्कार कि तैयारी ही कर रहे थे कि चार पांच या अधिक से अधिक दस लोग एक सौ को लेकर आए आए हुए लोगों में चार मरने वाले के पुत्र थे चारों को देखने से लगता है कि भारत के किसी रजवाड़े या किसी बड़े आद्योगिक घराने से है और मृतक उनका बाप हैं ।

हरिश्चंद घाट का अजीब नज़ारा था मै अपने मित्र के पिता के अंतिम संस्कार में ही व्यस्त था लेकिन नज़ारा कुछ ऐसा था की ध्यान खींचना स्वाभाविक था मृतक के चारो बेटों प्रत्येक के शरीर पर इतने महंगे आभूषण थे जितना किसी आम भारतीय कि कुल जीवन कि कमाई या सम्पत्ति नहीं होती चारो में मृत पिता के अंतिम संस्कार के लिए तू तू मै मै चल रही थी ।

चारो बेटे पहले मृतक पिता को लेकर मर्णकर्णीका ही गए थे लेकिन वहां डोम राजा द्वारा मृतक के पुत्रों के नक्शे एवं पहनावे को देखकर लखो रुपए कि मांग की गई जिसके कारण चारो बेटे मरहूम पिता कि अर्थी लेकर हरिश्न्द्र घाट चले आए यहां आलम और भी वीभत्स था चारो आपस में भिड़ गए कि पिता के अंतिम संस्कार में होने वाला व्यय कौन करेगा चारो एक दूसरे से कहते तुम्हारे लिए पिता जी ने बहुत कुछ किया मेरे लिए कुछ नहीं किया मृतक पिता अर्थी पर भयंकर धूप में अपने भौतिक शरीर कि मुक्ति का तमाशा देख रहे थे।

भीड़ लग गई और भी अर्थियो के साथ आए लोगों ने अपने अपने दुखो को भुलाकर मृतक के चारो बेटों को समझने कि भरपूर कोशिश किया मगर मजाल क्या कोई किसी कि बात सुन तक ले मानना तो बहुत बड़ी बात है।

खैर मामले को बहुत बिगड़ता देख छोटे छोटे बच्चे डोम परिवारों के जिनका एक मात्र कार्य शवों को जलाना ही है और बची लकड़ी कफन आदि बाज़ार मे इकठ्ठा कर बेचना है डोम परिवार के बच्चों के साथ मल्लाहों के बच्चे भी शव जलाने का कार्य करते है एवं आर्थियो कि बची सामग्रियों को बाज़ार में बेचते है यह अच्छा खासा कारोबार है जो जाने कितने परिवारों को दो वक़्त कि रोटी देता है और सरकार पर बोझ कुछ कम करता है एक बात का विशेष ख्याल रखिए वाराणसी में यदि भुट्टे या मूंगफली खाने का सौक रखते है तो कोशिश करे वाराणसी प्रवास के दौरान ये सौक़ त्याग दे क्योंकि भुट्टा एवं मूंगफली या अन्य कोई भी भूजी जाने वाली सामग्री श्मसान के बचे कोयले से भूनी जाती है यदि यदि आप सनातन धर्म के वाम मार्गिय है तो कोई बात नहीं।

खैर बच्चो ने एकत्र होकर पिता के अंतिम संस्कार के लिए लड़ते भाईयों को कहा बाबूजी आप लोग आपस में क्यो लड़ते हैं जो भी खर्च करना हो लकड़ी आदि मंगा दीजिए हम लोग मुफ्त में इनका अंतिम संस्कार कर देंगे किसी तरह चारो भाइयों ने आपस में मिलकर कुछ मन लकड़ियां एवं बेमन से अंतिम संस्कार का सामान खरीदा सामान इतना ही था कि मृतक का सिर्फ एक पैर ही जल सकता था जल्दी जल्दी बच्चो ने चिता सजाए चारो में से एक ने मुखाग्नि दी और अपनी अपनी गाड़ियों में बैठे और चल दिए ।

जाते जाते मरहूम पिता कि अर्थी जलाने के लिए पांच लीटर मिट्टी के तेल का डिब्बा दे गए ।

बच्चो ने आर्थी को वैसे ही निष्ठा से जलाया जैसे वे किसी भी अर्थी को जलाते आस पास के चिताओ कि बची लकड़ी एवं अन्य सामान मांग कर उस बदनसीब बाप के शव को उन बच्चो ने सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जिनका उससे दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था।

मेरे साथ आए मित्र के पिता के अंतिम संस्कार में लोग अंतिम संस्कार के बाद घरो को लौटने लगे मेरे दिमाग में एक यक्ष प्रश्न बार बार उठता परेशान कर रहा था कि आखिर इस व्यक्ति ने ऐसा क्या कर दिया हैं ?

बेटे बाप कि अर्थी को लावारिस कि तरह छोड़ कर चले गए मै शाम को लगभग छःबजे घर लौटा मगर हरिश्चंद घाट का वह दृश्य बार बार मुझे परेशान कर रहा था सोने कि कोशिश करता रहा मगर नीद जैसे कहीं खो गई हो।

शमशान कि खास बात यह है कि वहां जाने के बाद भले कुछ न करना पड़े थकान बहुत लगती है मुझे सिर्फ यही चिंता सता रही थी कि क्यो बेटों द्वारा मृत्यु के बाद भी अपमानित होता रहा बाप?

लेकिन मेरे प्रश्न या जिज्ञासा का कोई अंत नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि मै या कोई भी मरने वाले एवं उसके बेटों के बारे में नहीं जानता था कि कहां से आए हैं कौन है ?

मेरे मन में बार बार यही सवाल उठ रहे थे जो हमें परेशान कर रहे थे जिसका कोई उत्तर मिलने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे।
तभी हमारे बहुत पुराने मित्र कमल नयन जी आए रात लगभग बारह बजे अवतरित हुए जबकि प्रति दिन वह मेरे सोने के साथ आते है और दो घंटे साथ रहते हुए देश विदेश कि तमाम घटनाओं बातो पर अपने अनुभवों विचारों को बता कर चले जाते है और मै पुनः घोर निद्रा में सो जाता हूं ।

मैंने एक बार कमल नयन जी से सवाल किया महोदय मैं ही आपको भरत भारत कि एक सौ तीस करोड़ कि आबादी में सबसे बड़ा सियाप मिला आपका भरा पूरा परिवार है जो आपके अवतरण एवं परिनिर्माण को संवेदन शीलता के साथ मनाते हैं कमल नयन बोले मिस्टर त्रिपाठी रिश्ते नाते स्थूल शरीर के होते है स्थूल शरीर कि जीवन परछाई ही उसके सगे संबंधियों के लिए महत्वपूर्ण होता है मै परछाई नहीं हूं मै सत्य हू मैंने कहा मिस्टर आपके कारण लोग मुझे पागल कहते थे मुझे विशेषज्ञ चिकित्सको से परामर्श लेना पड़ा कभी कभी मुझे खुद लगता कि वास्तव में मै पागल तो नहीं हो गया हू मगर चिकित्सको द्वारा क्लीन चीट दिए जाने के बाद मुझे कुछ संतोष हुआ और ब्रेन मैपिंग एवं नार्को टेस्ट नहीं कराना पड़ा।

फिर भी मेरी जिंदगी का अनिवार्य हिस्सा कमल नयन जी का प्रतिदिन सानिध्य किसी आश्चर्य से कम नहीं है जबकि मै भूत प्रेत में विल्कुल विश्वास नहीं करता तब भी कमल नयन जी का सानिध्य मेरे लिए प्रेरणा उत्साह प्रदान करता है अब मेरे जीवन कि शैली में कमल नयन शामिल है और मै कुछ भी प्रयास कर लू अब यह साथ छूटना ना मुमकिन है।

जब कमल नयन आए बोले मिस्टर त्रिपाठी आप परेशान हो शमशान के घटना से क्यो ?
यह दुनिया है मतलब कि बाकी औपचारिकताओं कि बची खुची दौलत अभिमान अहंकार एवं दैहिक इन्द्रिय तृप्ति कि इसके अलावा कुछ नहीं।

कमल नयन ने बताना शुरू किया मेरा भाई बहुत उत्साही एवं आक्रामक स्वभाव का इंसान हवा में ही शरीर त्यागना उसकी विवशता बन गई मै अपने स्थूल शरीर से हवा में उड़ता था मां के मरने के साथ ही न चाहते हुए भी मुझे पारिवारिक विरासत संभालनी पड़ी ।

भरत भारत कि प्रतिष्ठा को चार चांद लगाने के लिए त्रेता कि स्वर्ण नगरी में अपनी शक्ति कि सेना भेजी माल द्वीप जैसे छोटे से राष्ट्र कि अक्षुण्ण सत्ता के लिए अपनी शक्ति भेजी बहुत ऐसे कार्य किए जिससे राष्ट्र समाज आज गौरवशाली और मजबूत हुआ मगर दखिए शांति का दूत बनकर त्रेता कि स्वर्ण नगरी गया था वहीं के उग्र संवेदनाओं के खतरनाक इरादों ने मुझे ही बारूद से उड़ा दिया मैंने ईश्वर अल्ला जीजुस गुरु कि सत्य ईश्वरीय सत्ता का सम्मान किया मुझे अपरिपक्व स्वीकार करने में कोताही हुई क्या कहूं षडयंत्र या प्रारब्ध तो मिस्टर त्रिपाठी जिस के लिए आप परेशान और जानना चाहते है तो सुने।

चारो बेटे मरने वाले के ना तो प्रारब्ध थे ना ही समय काल परिस्थितियों कि देंन सिर्फ क्षुद्र मानसिकता के स्वार्थ तुष्टि के पुतलों जो मृतक के पुत्र थे उनका स्वाभाविक जीवन मूल्य आचरण था।

परेशान होने की कोई बात नहीं मै जब स्थूल शरीर से दुनिया में था तब इतनी व्यस्तताएं थी कि कुछ भी जानने सुनने का समय नहीं मिलता था स्थूल शरीर के छुटने के बाद ब्रह्माण्ड में विचरण करता हूं अतः मरने वाले एवं उसके पुत्रो को भली भांति जानता हू ।

बड़ी विनम्रता पूर्वक कमल नयन जी से अनुरोध किया कि आप मृतक एवं उसके परिवार एवं श्मसान पर उसके पुत्रो के आचरण बताने कि कृपा करे।

बहुत अनुनय विनय करने के बाद कमल नयन जी ने बताना स्वीकार किया और बताना शुरू किया।

कमल नयन ने बताया कि जिस मृतक के विषय में चितित हूं वह बिहार का रहने वाला है एवं उसके पिता धीरेन्द्र सिंह बहुत गरीब थे और अपने जमाने में किसी तरह परिवार के गुजारे के लिए छोटे मोटे कार्य किया करते थे।

उन दिनों देश अंग्रेजो का गुलाम था और स्वतंत्रता आंदोलन का जोर गांव गांव तक फैला था बड़ा बुजुर्ग नौजवान हर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कि लड़ाई लड़ रहा था उस दौर में धीरेंद्र सिंह ( कलपनिक नाम)ब्रिटिश हुकूमत कि मुखबिरी करता था जिसके कारण उसे कुछ पैसा मिल जाता था मगर स्वतंत्रता आंदोलन के आंदोलन कारियो को धीरेन्द्र सिंह ने अपनी मुखबिरी से पकड़वाया जिससे आंदोलनकारियों को बहुत प्रताड़ना झेलनी पड़ी देश जब आजाद हुआ जाते जाते अंग्रेजो ने धीरेन्द्र सिंह को बहुत बड़ा फार्म हाउस मुफ्त में दे दिया ।

धीरेन्द्र सिंह ने अंग्रेजो के जाने के बाद मीले फार्म हाउस के बदौलत इलाके का बड़ा रसूखदार व्यक्ति बन गया और उसने अपने परिवार को समाज एवं क्षेत्र में प्रतिष्ठा दिलाने हेतु कुछ नेक कार्य भी किए गए लेकिन उसकी पीढ़ी के लोग उसे देश द्रोही के रूप में ही देखते थे धीरेन्द्र का परिवार बहुत फला फुला लेकिन उसके वर्तमान एवं समाज ने उसे कभी स्वीकार नहीं किया उसका एक ही बेटा था हुकुम सिंह (काल्पनिक नाम) उसके चार बेटे हिम्मत सिंह ,हरमन सिंह ,हौसला सिंह एवं हिमांशु सिंह जो (काल्पनिक नाम)उसे लेकर श्मसान तक आए थे जीवन काल में हुकुम सिंह ने बेटों को उच्च शिक्षा दिया और सभी के भविष्य कि बेहतरी के लिए अलग अलग व्यवसाय कराए हुकुम सिंह का परिवार दो चार जिले में प्रतिष्ठत एवं रसूखदार परिवार मात्र दो पीढ़ी धीरेन्द्र सिंह एवं हुकुम सिंह तक बन गया कहते है धन दौलत तो मिल सकता है मगर संस्कार खून से ही मिलता है जो धीरेन्द्र सिंह के कुनबे के साथ सत्य प्रतीत हो रहा था।

शिक्षित बेटों ने अपने अपने व्यवसायों में बहुत प्रगति कि धीरेन्द्र सिंह के पोतो ने उनके जीवन कि दरिद्रता के नामो निशान मिटा दिया लेकिन दौलत का यह महल धीरेन्द्र सिंह कि देशद्रोह एवं देश भक्तो कि आह कि बुनियाद पर खड़ी थी तो बाप हुकुम सिंह के क्रूर एवं अमानवीय अहंकार के अरमानों पर बनी थी।

धीरेन्द्र सिंह अंग्रेजो कि दलाली करता देश भक्तो को प्रताड़ित करवाता तो हुकुम सिंह स्वतंत्र देश के विकसित हो रहे समाज पर जुल्म कि सारे हदे तोड़ देता देश कि आजादी के बाद एवं अंग्रेजो से मिले फार्म हाउस एवं दौलत कि बुनियाद पर हुकुम सिंह को जन्म के साथ ही दौलत का दरबार मिला हुआ था जिसके सिंघासन पर बैठकर वह अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देता रहता जब हुकुम सिंह जवान हुआ और उसका बाप धीरेन्द्र सिंह जीवित था तब हुकुम का व्यवहार समाज लोगों के प्रति बेहद बहसियाना हुआ करता किसी भी नवयौवना पर उसकी नज़र पड़ने भर कि देर थी वह ऐंन
केन प्रकारेन हासिल करता धीरेन्द्र सिंह के पास शिकायत आने पर कुछ मामलों में ले दे कर समझौता कर लेता तो कुछ मामलों में दबंगई से दबा देता।

धीरेन्द्र सिंह के मरने के बाद हुकुम सिंह का जब जमाना कायम हुआ तब उसने लगभग दस कोस के आस पास के सभी गांवों में लौड़ी या यूं कहे कि बिना काम के दासी पाल रखा था जिसका काम था गांव में जवान कुंवारी कन्याओं के बारे में जानकारी देना एवं हुकुम सिंह के लिए उसे प्रस्तुत करना अपने इस विशेष शौख के लिए हुकुम सिंह ने घर से अलग कुछ दूरी पर एक डेरा गोठा बनवा रखा था जहां वह अपने शौख को अंजाम देता उसके इस शौक के कारण कितनी ही लड़कियों ने दम तोड दिया जिनके शवों को हुकुम सिंह के बेटे ठिकाने लगाते थे पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती क्योंकि हुकुम सिंह का कद बहुत ऊंचा था मरने वाली लड़कियों के मां बाप को हुकुम सिंह कुछ नगद दे देता कुछ दिन कि वेदना के बाद मां बाप को सब भूलना पड़ता।

मैंने कमल नयन जी से यह पूछना उचित नहीं समझा कि क्या स्वतंत्र राष्ट्र में भी ऐसी क्रूरता के का तांडव संभव हैं क्योंकि मैंने स्वयं अपने गांव में हुकुम सिंह के हज़ारांश व्यक्ति का आचरण भी हुकुम सिंह कि ही तरह था वह भी ईश्वर द्वारा दिए समय काल कि शक्ति का अपने शौख के लिए सदुपयोग करता था तब भी पूरा गांव जनता था लेकिन कुछ नहीं बोलता इसीलिए कमल नयन कि किसी भी बात पर मुझे कत्तई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि भारत में जीवित नर भक्षी इंसानों के एक बड़े समाज कि वास्तविकता के सत्यार्थ से परिचित करवाया।

हुकुम सिंह के चारो बेटे अपने पिता कि कार गुजारियों से परिचित थे बल्कि सहयोगी थे अतः हुकुम सिंह के जीवित रहते ही बेटों का आचरण बिल्कुल बेटों कि तरह न होकर पट्टीदार भाईयों कि तरह हो गया जो बूढ़े होने पर हुकुम सिंह को बहुत अंखरता लेकिन उसके कर्मों के परिणाम का दर्पण उसकी खुद कि संताने ही थी जब हुकुम सिंह शरीर से कमजोर एवं हो गया एवं पारिवारिक मामलों में उसकी पकड़ कमजोर हो गई तब बच्चे ही उसे प्रताड़ित करते पीटते वह यह सब बर्दास्त करने को विवश था क्योंकि उसने अपने जीवन काल में यही बोया था जो विष वाण कि फसल बन उसके जीवन में ही उसके कर्मों को धीरे धीरे लौटा रही थी ।

कमल नयन जी ने बताया कि हुकुम सिंह के चारो बेटे इसे गांव के गड़ही के किनारे ही जलाने वाले थे वो तो हुकुम के पुरोहित पण्डित चतुअरानान मिश्र(काल्पनिक नाम) ने समझाया कि यदि बाप कि अर्थी को लेकर चारो बेटे काशी के पावन परिक्षेत्र में लेकर चले गए और वहा दाह हुआ तो पिता के कुकर्मों कि छाया बेटों पर नहीं पड़ेगी या कम हो जाएगी पण्डित चतुरान एक तो अपने यजमान हुकुम सिंह के प्रति अपने पुरोहित धर्म के दायित्व को निभाने के लिए एवं हुकुम कि सद्गति के लिए उसके चारो बेटों को हुकुम कि अर्थी को काशी ले जाने का सुझाव दिया साथ ही साथ उनको यह तथ्य भी मालूम था कि हुकुम सिंह कि जो संताने उसे जीवित रहते पिटती थी प्रताड़ित करती थी वह उसके शव को काशी तक लेकर एक साथ पहुंच पाएंगी संदेह है यदि एक साथ पहुंच भी गई तो शव दाह तक एक साथ नहीं रह पाएंगी और आपस में लड़ झगड़ कर हुकुम के अंतिम संस्कार को ही उसके पापों के प्रश्चित का प्रमाण बना कर दुनियां के सामने प्रस्तुत कर देंगे।

वैसा ही हुआ हुकुम सिंह के चारो बेटे हुकुम कि अर्थी लेकर पहले मर्ण कर्णिका लेकर गए वहा डोम राजा के यहां बवाल काटा फिर हरिश्चन्द्र घाट पर भयंकर धूप में हुकुम सिंह के शव को भूनने के लिए रख आपस मै लड़ते रहे दुनियां तमाशा देखती यही अंदाज़ा लगाती रही कि इतने बड़े आदमी कि मृत्यु के बाद इतनी दुर्गति क्यो अपने बेटे ही उसके साथ पल भर नहीं ठहरना चाहते
कहावत है कि जीवन के कुकृत्यो एवं पापो का हिसाब व्याज के साथ बढ़ता रहता है यदि कोई ईश्वर को मानता है या नहीं मानता है दोनों ही स्थिति में कर्मो का हिसाब तो किसी ना किसी रूप में चुकाना होता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पठान का कर्ज़ा यदि किसी ने पठान से सूध पर कर्ज ले लिया और जीवित रहते वापस नहीं कर सका तो मरने के बाद पठान आता है और घर वालो से मृतक द्वारा लिए कर्जे कि मांग करता है कर्ज़ा अदा हो जाने पर चला जाता है कर्ज़ा अदा न हो होने कि स्थिति में मृतक कर्जदार के परिजनों के सामने मृतक के मुंह में पेशाब कर यह कहते हुए चला जाता है कि कर्ज अदा हो गया यही इसी सत्य का साक्षी था मृतक हुकुम सिंह का शव एवं दाह चिंतित मत हो मिस्टर त्रिपाठी यह दुनिया हैं ।

कमल नयन का खूबसूरत अंदाज मुस्कुराता चेहरा जिंदा दिल अंदाज बोले टूमारो अगैन मिस्टर त्रिपाठी और प्रतिदिन कि तरह स्नेह नेह कि बारिश कि घोर निद्रा का चादर ओढ़ा गए।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश