Pahalwan ka bhog - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

पहलवान का भोग - 2


पहले तो लोगों को शक हुआ की कहीं लाल जी नाम के आदमी ने ही तो नहीं भेजा है इसे तंत्र मंत्र करके। लेकिन इस बात की पुष्टि के लिए समस्या के समाधान के लिए सबने लाल जी से मिलने की ठान ली। कुछ व्यक्ति उस आदमी के घर के सदस्यों के साथ मिलकर जो गाँव उसने बताया था उस तरफ चल पड़े लाल जी से मिलने। जब वो लोग लाल जी के पास पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले ये आज़माया की कहीं इसी आदमी ने तो कोई तंत्र मंत्र नहीं किया। इस बात की पुष्टि के लिए उन्होंने आस पास के लोगो से पूछताछ की सबने बताया की वो तो जल्दी पूजा भी नहीं करता तंत्र मंत्र की तो बात ही दूर है।


इस बात ने सबको सकते में डाल दिया और अब वो लोग लाल जी के पास पहुंचे। और उन्हें सारी घटना से अवगत करवाया। लाल जी पहले से ही भूत प्रेतों के नाम से भागा करते थे, जब उन्हें पता चला की कोई भूत प्रेत उन्हें बुला रहा है तो उन्हें पाँव के नीचे से जमीन सरक गयी। और उन्होंने जाने से साफ़ मना कर दिया। इस बात से वहां मौजूद लोगों को इस बात की तो तसल्ली हो गयी थी की ऐसा आदमी कोई तंत्र मंत्र नहीं कर सकता। फिर उन्होंने लाल जी से साथ चलने और उससे बात करने के लिए कहा। लाल जी किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रहे थे। आखिरकार जब उनके बड़े भाई और आस पास के कुछ बुजुर्गो ने उन्हें समझाया तो वो जाने के लिए राज़ी हुए मगर अकेले नहीं, साथ में ४ लोगो को साथ ले गए।

वहां पहुँचने पर लाल जी के पसीने छूटने लगे थे। आखिरकर लाल जी और उसका सामना हो गया।

"कौन हो भाई और क्यों मेरे नाम का शोर करके कर रहे हो ?" लाल जी ने उससे पूछा।

"मुझे बस अपने हाथ हमेशा की तरह दारू पिला दो में चला जाऊंगा।" उस आदमी ने लाल जी के सामने हाथ जोड़ कर कहा। वहां मौजूद ऐसे द्रश्य को सब आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे। एक प्रेत कैसे बिना सिद्धि वाले आम आदमी के सामने हाथ जोड़ कर बात कर रहा है।

"हमेशा की तरह? अबे मैंने कब तुझे इससे पहले दारू पिलाया है?" लाल जी अब उससे बिना डरे बात करने लगे थे।

"लाल जी, मजाक न करो। हर हफ्ते मुझे दारू का भोग देते हो उससे मेरी प्यास मिट जाती है। थोड़ी सी दारू देदो चला जाऊंगा।" वो फिर से विनती करने लगा।

अब लाल जी को झल्लाहट होने लगी और वो थोडा तेज़ आवाज़ में बोलने लगे। "अबे क्यों झूठ बोलता है, मैं तो जनता भी नहीं तू कौन है मैं तुझे क्यों दारू देने लगा?"

"हर हफ्ते तो मुझे दारू देते हो, अपने घर के पीछे आकर। और पूछते हो की कब दारू दी?" वो हस्ते हुए बोला। वो लाल जी हर बात ध्यान से सुनता और जवाब देता। और उनके झल्लाने पर हँसता। जेसे की कोई आम आदमी अपने किसी प्रियजन के साथ व्यव्हार करता है।

ये बात सुनकर लाल जी के माथे पर चिंता की लकीरे उभर आयी। ये भोग तो पहलवान बाबा को देते थे, ये भोग इसे कैसे मिलने लगा?
"वो भोग तो ये अर्थान वाले पहलवान बाबा को देता था तू बीच में कहाँ से आ गया?" उन्होंने अपनी परेशानी का हल ढूंढते हुए ये प्रश्न किया।

"तुम्ही तो भोग देते हुए कहते थे पहलवान बाबा भोग स्वीकार करो। अब उनके अर्थान से पहले वहां रेल की पटरी में मैं ही तो रहता हूँ और मैं भी पहलवान ही हूँ। मुझे आदत है तुमसे भोग लेने की।" उसने लाल जी ये सारी बात कही और फिर रोने लगा। और रोते रोते कहने लगा "जबसे वहां हूँ, कभी किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं दिया था, बस लाल जी तुमने ही मुझे दारू दिया और मेरी प्यास बुझाई। मैं तो बस तुम्हे ही जनता हूँ।"

ये बात सुनते ही लाल जी और वहां खड़े उनके बड़े भाई की पैरो से जैसे जमीं सरक गयी हो, उनका पहलवान बाबा को दिया जाने वाला भोग कोई पहलवान नाम का प्रेत ले रहा था।

"क्या! तू वो भोग ले रहा था। अर्थान वाले पहलवान बाबा ने तुझे कुछ नहीं कहा?" असमंजस में फंसे लाल जी अपने सरे प्रश्नों के उत्तर जानने में लग गए। उधर उस आदमी का परिवार चाह रहा था की जल्दी से जल्दी ये प्रेत उसका शरीर छोड़ दे और वो ठीक हो जाए।
"बाबा क्या कहेंगे? तुम भोग दे रहे थे मेरा नाम लेकर। और मैं ले रहा था। इसमें न मेरी गलती न तुम्हारी गलती तो बाबा क्यों कुछ कहेंगे? अब तुम जो कुछ भी दोगे वो सबसे आगे वाला ही लेगा न, ७ समंदर पार वाला तो नहीं।" उसने लाल जी के असमंजस के इस प्रश्न का उत्तर दे दिया था वो भी सटीक।

मतलब वो दुसरे गाँव वाले व्यक्ति से भोग अर्थान वाले पहलवान बाबा इसलिए लेते थे क्योकि उनके बीच कोई और पहलवान नहीं था।

लाल जी का दिमाग एक दम से घूम गया, आखिर क्या करो और क्या हो जाता है।

"बाबा कहाँ हैं इस वक़्त इस अर्थान के?" लाल जी ने पूछा।

"यहीं तो हैं, उन्होंने ने मुझे पकड़ रखा है। वहां यहाँ किसकी मजाल के मुझे हरा दे। मुझे बस दारू देदो चला जाऊंगा।" उसने आस पास के लोगो को देखते हुए कहा।

तभी उन व्यक्तियों में से एक व्यक्ति आगे आये और लाल जी कहा की "बेटा, इसको दारु देदो और जाने दो वरना इस आदमी के शरीर को इसकी सवारी तोडती रहेगी और फिर ये महीने भर तक खड़ा भी नहीं हो पायेगा।" बात सत्य थी, किसी पहलवान और बलशाली आत्मा की आमद जब किसी के शरीर पर होती है तो उसके शरीर की शक्ति कम होती चली जाती है।

लाल जी ने अपने प्रश्नों पर विराम लगाया और फिर वहीँ पर पास पड़ी बोतल उठाई और एक ढक्कन दारू लेकर उसके मुंह में डाल दी। और वो व्यक्ति पीते ही नीचे गिरा और बेहोश हो गया। उसके जब होश आया था तो वो ठीक हो चुका था, पहलवान बाबा के अर्थान पर उसने दंडवत प्रणाम किया और धीरे धीरे सब वहां से चले गए और लाल जी भी अपने घर आ गए।

घर पहुँचते ही उनके बड़े भाई ने पहले पूरी घटना और जो कुछ वो करते थे लाल जी से पूछा। उसके बाद अच्छे से उनकी खबर ली, उनके आलस्य के कारण कितने ही वक़्त से पहलवान बाबा को भोग नहीं पहुंचा था और प्रेत तो रीझ गया सो और। अगली बार से लाल जी की जगह उनके बड़े भाई ने अर्थान पर जाकर भोग देने की जिम्मेदारी ली और उसका निर्वाह करने लगे।

करीब एक महीने तक सब कुछ ठीक ठाक चला मगर एक महीने के बाद फिर से एक अजीब सी घटना घटि ।

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