- 5 -
सलोनी घर लौटी तो नानी मोबाइल पर माँ से बातें कर रही थी। उसे देखते ही नानी ने कहा, ‘लो, सलोनी भी आ गई है, उसी से बातें कर ले,’ कहते हुए नानी ने फ़ोन सलोनी को सौंप दिया।
‘प्रणाम माँ।’
‘ख़ुश रहो बेटी सलोनी।’
‘कैसी हो माँ?’
‘कैसी हूँ, मैं क्या बताऊँ? कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या करूँ? बड़की की शादी हुए तीन माह बीत गए। तुम तो नानी के साथ चली गई। सारा दिन घर मैं अकेली …। दिन पहाड़-सा लगता है। ना कुछ खाने को मन करता है, ना कुछ बनाने को। सुबह का बनाया खाना शाम को खा लेती हूँ, शाम का बचा पराँठा चाय के साथ ले लेती हूँ। समझ नहीं आता, जीवन कैसे व्यवस्थित होगा?’
‘माँ, फिर लड्डू गोपाल के लिए ताज़ा भोजन नहीं बनाती हो?’
‘कभी-कभी उसमें भी नागा हो जाता है। क्या करूँ, कुछ समझ नहीं आ रहा?’
‘माँ, अपने लिए ना सही, परन्तु कान्हा के लिए तो प्रतिदिन ताज़ा भोजन अवश्य बनाया करो। वही आपको शक्ति प्रदान करेंगे। देखो माँ, हमारी तो पढ़ाई चल रही है, इसलिए हम आपके पास आकर नहीं रह सकते। नानी भी साथ नहीं चल सकती, क्योंकि प्रत्येक माह किराएदारों से पैसा लेना होता है। हाँ, आप चाहो तो हमारे पास कुछ दिनों के लिए आ सकती हो, नानी को भी अच्छा लगेगा।’
‘सोचती हूँ बेटे,’ एक गहरी आह के साथ माँ के मुँह से निकला, ‘काश! तुम में से एक लड़का होता तो दोनों घरों में उजाला हो जाता।’
सुनकर सलोनी के मन पर चोट लगी, ‘माँ, आप चिंता ना करो। यहाँ से कोर्स पूरा होते ही हम नानी को साथ लेकर आपके पास आ जाएँगे।’
‘तू भी कितने दिन साथ रहेगी! एक दिन भाग्या की तरह अपने नए घोंसले में उड़ जाएगी। फिर बच जाएँगे हम दोनों बरगद के पेड़ …. एक-दूसरे को बैठे ताकते रहा करेंगे…।’
‘नहीं माँ, हमारा वादा है। हम तुम दोनों को अकेली छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे। ज़िन्दगी-भर आपको अपने साथ रखेंगे।’
‘नहीं सलोनी, तुझे भी अपना घर बसाना है। हमारे सुख के लिए तुझे अपने संसार को थोड़े ना छोड़ना है … फिर माँ की ख़ुशी भी तो इसी में होती है कि उसकी बेटी हँसी-ख़ुशी अपने नए संसार में बस जाए।’
‘माँ, एक बात तो बताओ, वह मेरी सहेली सिमरन आती है कभी आपसे मिलने?’
‘वह तो आती रहती है, छोटे-छोटे सब काम भी कर देती है। संयोग से अभी भी मेरे पास बैठी है। कुछ समय पहले तुम्हारे बारे में ही पूछ रही थी। लो, उससे बात कर लो,’ कहते हुए माँ ने फ़ोन सिमरन को सौंप दिया।
‘नमस्ते दीदी।’
‘नमस्ते सिमरन। तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’
‘बहुत अच्छी चल रही है दीदी। आपने जो मुझे ड्राइंग बनाना सिखाया था, उसमें मुझे अपनी कक्षा में सबसे अधिक अंक मिले हैं। सच दीदी, मुझे आपकी बहुत याद आती है।’
‘सिमरन, तुम बहुत अच्छी लड़की हो। हमारी माँ का अच्छे से ख़्याल रखना। प्रतिदिन उनको सँभालते रहना।’
‘कुछ याद है दीदी, मैंने आपको कुछ काम बताया था?’
‘अरे हाँ, याद आया, तुम्हारे लिए एक बंगाली पर्स, साड़ी रखने के लिए कुछ कवर ख़रीदने थे या कुछ और भी ..?’
‘और तो कुछ नहीं दीदी।’
‘अरे सिमरन, हम तो भूल ही गए थे, तुमने अच्छा याद दिलाया। खैर, आज मार्केट से ले आऊँगी और कोरियर से भिजवा दूँगी …. तीन-चार दिनों में तुम्हारे हाथ में आ जाएँगे, ठीक है सिमरन?’
‘हाँ दीदी, अपना ख़्याल रखना।’
‘ज़रा माँ को फ़ोन देना तो!’
सिमरन ने फ़ोन माँ को सौंप दिया। सलोनी फ़ोन पर अधिक चर्चा नहीं करना चाहती थी। वह बातों को संक्षिप्त करना चाहती थी। इसलिए पुनः उसने अपने सुझाव को दोहराया, ‘माँ, अन्य कोई विकल्प नहीं है। आप दिल्ली वाले घर को व्यवस्थित करके कुछ दिनों के लिए यहीं आ जाओ। सब साथ रहेंगे तो एक-दूसरे की चिंता दूर हो जाएगी।’
‘ठीक है सलोनी, सब सोच-विचार कर योजना बनाते हैं,’ कहते-कहते माँ ने भारी मन से फ़ोन बंद कर दिया।
सुकांत के घर से लौटी तो सलोनी का मन कैसा उमंग और उल्लास से प्रफुल्लित था, परन्तु माँ के अकेलेपन की पीड़ा को सुनकर वह व्यथित हो उठी।
लड़कियों का मन भी कितना चंचल होता है … कितना स्वार्थी होता है …. कितने कष्टों को सहकर जन्म देने वाली माँ बेटियों को अपने सीने से चिपकाए रहती है। बेटियाँ एक अजनबी के साथ कुछ मुलाक़ातों के बाद माँ को उपेक्षित कर देती हैं। वह अजनबी मित्र अपना लगने लगता है और माँ बेगानी …. परन्तु हम ऐसा नहीं करेंगे …. माँ ने हमें अपने सीने से लगाकर पाला-पोसा है … तो हम भी अंतिम दिनों में माँ का सहारा बनेंगे। अभी तो हमें पढ़ाई पूरी करके अपने पाँव पर खड़ा होना है, परन्तु बाद में भी कभी विवाह की योजना बनी तो उसमें हमारी पहली शर्त यही होगी कि हम अपनी माँ से दूर नहीं रह सकते। हाँ, सुकांत बाबू से बात आगे बढ़ी तो सबसे पहले यही शर्त रखेंगे। दृढ़ निश्चय करके सलोनी अपनी दिनचर्या में लग गई।
माँ के अकेलेपन को बाँटने के लिए सलोनी लगभग प्रतिदिन बात कर लेती। दोनों नानी-नातिन एक साथ बैठकर वीडियो कॉल करतीं तो लगता जैसे आमने-सामने बैठी हैं। अपने रिश्तेदारों तथा पड़ोसियों के समाचार भी मिल जाते।
माँ ने एक दिन नानी को बताया, ‘माई, बड़की पेट से है। भगवान करे, इस बार उसको लड़का हो जाए तो परिवार में उजाला फैल जाए।’
नानी ने कहा, ‘इस बार तुम कुछ चिंता ना करना। छुछक की सब तैयारियाँ मैं यहीं से कर दूँगी। यहाँ कपड़ा-लत्ता सब अच्छा मिलता है। सलोनी के साथ मिलकर मैं सब तैयारी कर लूँगी।’
‘ठीक है माई, जब छुछक भेजना होगा तो दस दिन पहले मैं आपके पास आ जाऊँगी।’
‘ना-ना, एक महीने पहले आना और फिर दो महीने बाद तक यहाँ ठहरना। मैं, तुम और हमारी सलोनी तीन महीने तक साथ रहेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा।’
‘ठीक है माई, तुम जैसा कहोगी, वैसा ही कर लूँगी,’ कहते हुए माँ ने फ़ोन रख दिया।
उसी दिन से नानी ने तैयारियाँ करनी आरम्भ कर दीं। सलोनी के साथ मिलकर उन्होंने सामान की लिस्ट बनाई। चाँदी के खिलौने, प्लास्टिक के खिलौने, सास-ससुर के कपड़े, भाग्या के लिए पीलिया, साड़ियाँ, नन्हे बालक के कपड़े, चद्दर-तकिए, इसके अतिरिक्त लिस्ट में सामान जोड़ने के लिए कुछ स्थान रिक्त भी छोड़ दिया।
भाग्या की तबीयत ख़राब रहने लगी तो माँ उसे फ़ोन से समझाती, ‘घबरा मत भाग्या। ऐसा सबके साथ होता है। माँ बनना क्या आसान काम है! एक नया जीवन सृजित होता है। प्रकृति में भी जब नवजीवन का अंकुरण होता है तो धरती को अपना सीना चीरना पड़ता है। नवजीवन के कारण ही औरत को माँ का दर्जा दिया जाता है। भाग्या, वैसे तो तेरी सास बहुत समझदार है, परन्तु तेरा मन यहाँ आकर डिलीवरी कराने का हो तो तेरी सास से बात करूँ?’ ज्योत्सना ने बेटी का मन टटोला।
‘नहीं माँ, यहाँ सब लोग मेरा बहुत ध्यान रखते हैं। कई वर्षों बाद परिवार में नया बच्चा आना है, इसलिए सबको बहुत चाव है। सब लोग आने वाले के स्वागत की तैयारी के लिए अपनी योजना बना रहे हैं।’
‘तुम्हारी नानी और सलोनी भी मिलकर छुछक की तैयारी कर रही हैं। वैसे तो बेटी, तुम सब बहुत समझदार हो, परन्तु पहली डिलीवरी है तो कुछ अधिक ही ध्यान रखा जाता है,’ कहते हुए माँ बेटी को अपना अनुभव बताने लगी, ‘भाग्या, एक तो यह है कि अपने डॉक्टर से नियमित जाँच कराती रहना, पानी पर्याप्त मात्रा में पीना, अपने सामने वाले पार्क में आधा घंटा सैर अवश्य करना, फ़ाइबर युक्त फल खाते रहना, गुनगुना पानी पीना, सुबह-सुबह अपनी पसन्द का भरपेट नाश्ता करना, टीवी में हँसी-मज़ाक़ वाले और धार्मिक चैनल ही देखना, और सबसे बड़ी बात कान खोलकर सुन ले, किसी बात का तनाव न लेना। जब भी कभी मन उदास हो तो सलोनी से या मुझसे बातें कर लेना। यदि बेटा हो गया तो दोनों परिवारों में उजाला हो जाएगा …।’
‘और माँ, बेटी हो गई तो …?’ भाग्या ने बीच में टोक दिया।
‘बेटी हो जाए तो वह भी ठीक है। मेरे पास तो दो-दो बेटियाँ थीं। मुझे तो सदैव दोनों लड़कों से अच्छी लगीं …।’ ज्योत्सना ने सांत्वना के स्वर में कहा।
‘माँ, कभी-कभी मुझे तुम्हारी चिंता होती है। मेरी शादी के बाद तुम बिल्कुल अकेली हो गई हो,’ भाग्या का स्वर उदास था।
‘अकेली हूँ तो मेरे सबसे अधिक मज़े हैं, न कोई रोकने वाला, न कोई टोकने वाला …,’ भाग्या को खुश करने के लिए माँ ने हँसते हुए कहा, ‘अपनी मनपसन्द का पहनो, … मनपसन्द का खाओ … सुबह दो घंटे पूजा-पाठ में … दोपहर दो घंटे धार्मिक चैनल देखना … सायं को दो घंटे मन्दिर में कथा सुनना … सच कहूँ भाग्या, पता ही नहीं लगता, समय कैसे बीत जाता है … कुछ समझी! … मेरी चिंता मत किया कर … अब तो बस अपना ध्यान रख और ख़ुश रह।’
‘ठीक है माँ।’ दोनों का फ़ोन बंद हो गया। ज्योत्सना इस बात से निश्चिंत हो गई कि ससुराल में भी भाग्या का ठीक से ख़्याल रखा जा रहा है।
*****