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संस्कारों की जीत

तो तुमने क्या सोचा? मुंबई में सागर तट पर डूबते सूरज को देखते हुए दीप ने प्रीत से पूछा !
प्रीत सोचते हुए बोली, दीप क्या ये गलत नहीं होगा,दिल kऔर दिमाग़ में लड़ाई चल रही है दिल कहता है ये सही नहीं,पर दिमाग़ कहता है कुछ भी गलत नही
कैसी बातें कर रही हो,अब भी?गुस्से में दीप बोला
तुम समझते क्यों नहीं? ये इतना आसान नहीं है, मेरे संस्कार ऐसे नहीं है कि -------I meen try to understand.विवश आवाज में प्रीत बोली
मतलब तुम अब भी मुझ पर विश्वास नहीं करती हो, क्या यहीं तुम्हारा प्यार है, यहीं कसमें है, यहीं वादे है??गुस्से से झललाते हुए दीप बोला
नहीं दीप,तुम मुझे गलत समझ रहे हो lप्रीत बोली
मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, पर शादी से पहले इस तरह साथ "लिव इन "मै रहना मेरा दिल नहीं मान रहा l मै अपने माता पिता से दग़ा नहीं कर सकती
और प्रीत मेरा कुछ नहीं, तुम वहीं प्रीत हो ना जिसने मुझे टूट कर प्यार किया था शायद ---वह धोखा था l दीप चिल्ला कर बोला और पैर पटकते हुए नाराज हो कर चला गया प्रीत घर जा कर भी गहरी सोच मै डूबी रही l
उसे याद आ रहा था ज़ब उसने आगे की पढ़ाई के लिए मुंबई जाने की बात माता पिता के सामने रखी, तो वे गहरी सोच में पड़ गए, हो भी क्यों न?

छोटे से गांव में रहने वाले उसके मध्यम श्रेणी के परिवार के लिए बहुत बड़ी बात थीं l ऊपर से उसकी दादी जिनके लिए बेटी को पढ़ानाभी जरूरी नहीं था पर माता पिता ने उसे पढ़ाया और उसकी अच्छी पढ़ाई को देख कर दादी के रोकने के बावजूद नहीं रोका l उसके हर कदम में सदा साथ दिया l
और ज़ब पढ़ाई के लिए मुंबई जाने की बारी आई तो दादी के विरोध के बावजूद कैसे ही उन्हें समझा बुझा कर मुंबई भेजनें के लिए राजी किया l
दादी ने भी आते आते बहुत समझाया कि बेटा घर के संस्कारों को मत भूलना l माता ने भी समझाया कि अब तक तो तू पास थीं अब तुझे स्वयं अपने आप को संभालना है
पिता से बड़ी गहरी बात समझाई कि "बेटा जीवन में हमेशा दो राहे मिलेगी तुम्हें सही को चुनना सीखना है गलत राह तुम्हें ललचाएगी पर तुम्हें सदा अपने संस्कारों यानि दिल की सुनते हुए दिमाग़ से भी सही और समझदारी भरी राह को चुननी है पर यदि दोनों में कश्मकश हो तो पहले दिल की सुनना "
प्रीत को फिर मुंबई आने के बाद का चलचित्र सा एक एक दृश्य उसकी आँखों के सामने आने लगा, कैसे,दीप की दोस्ती के बाद न जाने कैसे वह उससे प्यार करने लगी पर वह क़भी अपनी मर्यादा नहीं भूली l पर अब ज़ब शिक्षा पूरी होने में कुछ दिन बाकि थे तो दीप ने कुछ दिन साथ रहने की बात कही, वह कदम बढ़ा ही रही थीं कि उसके मन में दादी माँ और पिताजी की बातें और ढेर सारा प्यार और विश्वाश याद आगया तो उसके बढ़ते कदम खुद ब खुद रुक गए l
और फिर उसने मन ही मन सही राह चुनने का दृढ निश्चय किया और ------l
फिर दीप को फ़ोन पर प्रीत बोली कि "मेरा प्यार सच्चा है पर मेरे संस्कारों और मेरे मातापिता से बड़ा नहीं हैl मै "लिव इन" में नहीं माता पिता के आशीर्वाद से ही शादी करके तुम्हारे साथ रह सकती हूँ, कह कर प्रीत ने अपनी बात खत्म की l
आज से तुम्हारा रिश्ता खत्म,दीप ने गुस्से में फोन पटक दिया l
प्रीत खुश थी, क्योंकि उसने अपने संस्कारों की बदौलत एक छलावे से मुक्ति पा ली ll

"मनमीत"अलका मनीष चौपड़ा ll

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