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छोटी जो बड़ी वो

छोटी जो बड़ी वो रिनछिन के पेंसिल बॉक्स में रबर, शार्पनर और पेंसिल थींं। रिनछिन ने दो और नई पेंसिलें खरीदीं। नई पेंसिलों को भी उसने बॉक्स में रख दिया। एक नई पेंसिल बोली, “मैं लाली हूं। यह हरियन है। आज से हम भी इस बॉक्स में रहेंगे।” रबर ने जवाब दिया, “स्वागत है। यह शार्पनर है।” बॉक्स की पेंसिल बोली, “मैं नीलू हूं। कभी मैं भी तुम्हारी तरह नई थी। इतनी ही लंबी थी। आज देखो, मैं रबर की तरह छोटी हो गई हूं।” यह कहकर नीलू सुबकने लगी। तभी रिनछिन ने लाली और हरियन को बॉक्स से बाहर निकाला। शार्पनर की मदद से उन्हें छीला और बॉक्स में रख दिया। वे सब अभी बातें कर ही रहे थे कि रिनछिन ने बॉक्स खोला। लाली को बाहर निकाला। लाली से अपना होमवर्क पूरा किया। फिर उसने हरियन की मदद से ड्राइंग बनाई। होमवर्क करने के बाद उसने लाली और हरियन को पेंसिल बॉक्स में रख दिया। नीलू सिसकने लगी। फिर ठंडी आह भरकर कहने लगी, “मैं अब यहां नहीं रहूंगी। रिनछिन मुझे अपने हाथ में नहीं लेगी, तो मेरा यहां क्या काम? इस बार जैसे ही बॉक्स खुलेगा, मैं छिटककर बाहर आ जाऊंगी।” शार्पनर और रबर ने नीलू को समझाया, लेकिन वह नहीं मानीं। सुबह नीलू को मौका मिल ही गया। अचानक रिनछिन के हाथ से बैग क्या छूटा, पेंसिल बॉक्स खुल गया। नीलू छिटककर किसी कॉपी के बीच में जा छिपी। रिनछिन ने स्कूल मंे नई पेंसिल से काम किया। अगला पीरियड ड्राइंग का था। आसमां और सुहानी ने रिनछिन से ड्राइंग करने के लिए पेंसिलें मांगी। रिनछिन ने उसे लाली और हरियन दे दीं। संयोग से ड्राइंग के पीरियड के बाद पढ़ाई नहीं हुई। बच्चे मस्ती करते रहे। छुट्टी होने पर रिनछिन आसमां और सुहानी से अपनी पेंसिलें लेना भूल गई। घर लौटकर रिनछिन को देर रात याद आया कि सुबह अंग्रेजी, गणित के साथ-साथ हिंदी का होमवर्क मिला है। उसने बैग खोला और होमवर्क करने बैठ गई। यह क्या! बॉक्स में पेंसिलें नहीं थीं। रिनछिन ने स्कूल बैग उलट दिया। कॉपी-किताबों के साथ नीलू भी बाहर आ गई। रिनछिन ने नीलू को प्यार से कहा, “थैंक्यू, आज दोनों नई पेंसिलें तो स्कूल में ही छूट गईं। तुम न होतीं, तो मैं होमवर्क ही ना कर पाती। कल स्कूल में डांट भी पड़ती।” नीलू रोने लगी, “अब मेरी जरूरत ही कहां है। अब मैं किसी काम की जो नहीं रही।” रिनछिन चौंकी। फिर नीलू को सहलाते हुए बोली, “तुम आकार में जितनी घटोगी, तुम्हारी उम्र उतनी ही बड़ी मानी जाएगी।” नीलू ने चौंकते हुए पूछा, “वह कैसे?” रिनछिन ने हंसते हुए जवाब दिया, “सीधी सी बात है। तुमसे जितना काम लिया जाएगा, तुम उतनी घिसोगी। जब घिसोगी, तो छीली जाओगी। छीली जाओगी, तो आकार छोटा होगा ही।” नीलू सोचने लगी। रिनछिन ने बताया, “नई पेंसिल तो लगभग पचास किलोमीटर लंबी लाइन खींचेगी। वहीं तुमने तो यह सफर तय कर लिया है। इसीलिए तुम उनसे बड़ी हो।” नीलू चुपचाप सुनती रही। रिनछिन ने कहा, “नई पेंसिल को पहली बार सारे अक्षर और संख्याओं को बनाना सीखना होता है। वहीं तुमने हजार-हजार बार उन अक्षरों को और संख्याओं को बनाया है। क्या नहीं बनाया?” नीलू क्या जवाब देती। वह चुप ही रही। रिनछिन ने हंसते हुए कहा, “याद करो, कई बार तुम्हारी वजह से किए गए स्कूल और होमवर्क में मुझे शाबाशी मिली है। ऐसे कई मौके आए हैं, जब तुम्हारी बनाई ड्राइंग में मुझे इनाम मिलेे हैं। मेरी कई कॉपियों पर तुम्हारा लिखा हुआ काम है। तुम मेरी दोस्त हो। सहयोगी हो।” यह सुनकर नीलू गर्व से भर गई। अब वह खुशी से होमवर्क करने के लिए तैयार थी।

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