कैक्टस के जंगल - भाग 19 Sureshbabu Mishra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैक्टस के जंगल - भाग 19

19

जीत का सेहरा

चौधरी धारा सिंह बेचैनी से कोठी में चहल-कदमी कर रहे थे। उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ साफ झलक रही थीं। अभी थोड़ी देर पहले ही वह क्षेत्र से चुनावी दौरा करके लौटे थे।

चौधरी धारा सिंह तीन बार इस क्षेत्र से एम.पी. रह चुके थे। वह इस चुनाव में चौथी बार एम.पी. के लिए खड़े हुए थे। इस बार चैधरी धारा सिंह को हवा अपने खिलाफ बहती दिखाई दे रही थी। इस बार दूसरी पार्टी ने देवादीन पांडेय को धारा सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा था। देवादीन पांडेय बेहद ईमानदार और कर्मठ आदमी थे। उनका चरित्र बेदाग था। वह एक जुझारू किस्म के नेता थे और क्षेत्र की जनता से काफी नज़दीकी से जुड़े हुए थे।

देवादीन पांडेय चुनावी राजनीति से हमेशा अपने को दूर रखते थे, परन्तु पार्टी ने इस बार जबरदस्ती उन्हें चुनावी-समर में उतारा था। देवादीन की साफ-सुथरी छवि, जुझारू व्यक्तित्व तथा आम आदमी से जुड़े होने की प्रवृत्ति के कारण दिनों-दिन माहौल उनके पक्ष में बनता जा रहा था। अपनी जाति के वोटों के अलावा छोटी जातियाँ भी उनके पीछे लामबंद होने लगी थीं।

उनकी पहली चुनावी सभा में ही पचास-साठ हजार लोगों की भीड़ जुटी थी। यह क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी चुनावी सभा थी। इस सभा की सफलता से जहाँ दूसरी पार्टी के लोगों के हौंसले पस्त हुए थे, वहीं देवादीन की पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह चौगुना हो गया था। सब जगह यह चर्चा जोरों पर थी कि इस बार जीत का सेहरा देवादीन के सिर पर ही बंधेगा।

दिन-प्रतिदिन बदलते माहौल से चौधरी धारा सिंह बहुत चिन्तित थे। उनके समर्थक अब भी उन्हें उम्मीद बंधा रहे थे कि जीत आपकी ही होगी। धारा सिंह भी उन लोगों के सामने यही दिखाने की कोशिश करते थे कि देवादीन और उसकी पार्टी के लोग चाहे कुछ भी कर लें, मगर आखिर जीत हमारी ही होगी। वह अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल किसी भी कीमत पर कम नहीं होने देना चाहते थे, मगर वे अच्छी तरह समझ चुके थे कि हवा का रुख इस बार उनके पक्ष में नहीं है। वोट पड़ने में केवल चार-पाँच दिन शेष रह गए थे। इन बचे हुए दिनों में कैसे माहौल को अपने पक्ष मंे मोड़ा जाए, वह इसी बात से चिंतित थे।

अचानक किसी को आता देखकर धारा सिंह चहल-कदमी करते-करते रुक गए।

आने वाला ठीक धारा सिंह के पास आकर रुका। उसने धारा सिंह को अभिवादन किया, मगर धारा सिंह ने उसके अभिवादन का जवाब न देकर उससे उतावलेपन से पूछा-“कहो, काम बना रामफल ?“

“जी हाँ मालिक, काम बन तो गया है मगर चेतराम बड़ा घाघ है। वह इस काम के लिए पूरे पचास हजार रुपये माँग रहा है।“

“तुम रुपये की चिन्ता मत करो। पैसा चाहे पानी की तरह बह जाए मगर काम होना चाहिए; मैं किसी भी कीमत पर यह चुनाव हारना नहीं चाहता।“

“तो फिर समझो काम बन ही गया मालिक।“ रामफल बोला।

इसके बाद दोनों काफी देर तक खुसर-पुसर करते रहे थे। फिर रामफल धारा सिंह से इजाज़त लेकर चला गया था।

धारा सिंह के चेहरे पर चमक आ गई थी। उन्होंने अलमारी में से शराब की बोतल निकाली थी। शराब के दो-तीन पैग पीने के बाद वे अपने को तरोताजा महसूस करने लगे थे।

शराब पीने के बाद धारा सिंह फिर चहल-कदमी करने लगे। इस समय उनका चेहरा बड़ा भयानक लग रहा था। शायद वे किसी खतरनाक योजना का ताना-बाना बुन रहे थे।

देवादीन पांडेय जितने नेक और सरल स्वभाव के थे उनका लड़का उतना ही रसिक और चंचल स्वभाव का था। अपने गाँव की कई लड़कियों से उसका मिलना-जुलना था। गाँव के चेतराम जाटव की लड़की की सुंदरता की चर्चा पूरे गाँव में थी। कई लड़के उसके दीवाने थे। देवादीन का लड़का भी उस पर बुरी तरह फिदा था। चेतराम रामफल का रिश्तेदार था। जब रामफल ने धारा सिंह को यह सारी बात बताई थी तो इसी को लेकर देवादीन पांडेय को क्षेत्र में बदनाम करने की खतरनाक योजना धारा सिंह के फितरती दिमाग ने आनन-फानन में बना डाली थी।

अगले दिन रात के ग्यारह बजे का समय था। कृष्ण पक्ष की रात की अंधियारी चारों ओर फैली हुई थी। हाथ को हाथ दिखाई नहीं दे रहा था। प्रचार के भोंपू बजने भी बंद हो गए थे, इसलिए चारों ओर गहरा सन्नाटा था। उसी समय योजना के मुताबिक एक जीप चेतराम के घर के सामने आकर रुकी। जीप में दस-पन्द्रह लोग सवार थे। जीप पर देवादीन पांडेय की पार्टी के बैनर और झंडे लगे हुए थे।

जीप पर सवार लोगों ने गाँव में घुसते ही फायरिंग शुरू कर दी और फिर चेतराम के घर में घुसकर एक घंटे तक उसकी लड़की की इज्जत लूटने का नाटक करते रहे। चेतराम के पास रामफल के जरिए पचास हजार रुपये के कड़क नोट पहुँच चुके थे, इसलिए वह बार-बार देवादीन पांडेय का नाम ले-लेकर चीख रहा था और गाँव वालों को बचाव के लिए पुकार रहा था। गाँव वाले जाग तो गए थे मगर मदद के लिए बाहर आने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे।

एक-डेढ़ घंटे बाद जीप में आए लोग गालियाँ देते और फायरिंग करते हुए वापस चले गए थे। तब तक गाँव के काफी लोग इकट्ठे हो गए थे। दो-चार नौजवानों ने आगे बढ़कर जीप में लटके बैनर और झंडे फाड़ लिए थे। अपने घर के बाहर इकट्ठी भीड़ को चेतराम रो-रो कर बता रहा था कि किस तरह देवादीन पांडेय के लड़के और उसके साथियों ने उसकी लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की। वह कह रहा था कि आज तो उसकी लड़की ने किसी तरह कमरे के किबाड़ बंद करके अपनी अस्मत बचा ली है, मगर ये गुंडे उसे नहीं छोड़ेंगे। वह दहाड़ें मार-मार कर रो रहा था।

गाँव वालों ने देवादीन पांडेय के लड़के को एक दो बार चेतराम के घर के आस-पास मंडराते देखा था, इसलिए उन्हें चेतराम की बात पर सहज ही विश्वास हो गया था। दूसरे जीप से उतारे बैनर और झंडे भी इस बात की गवाही दे रहे थे कि यह घिनौनी हरकत देवादीन के लड़के और उनकी पार्टी के लोगों द्वारा ही की गई है, इसलिए पूरे गाँव में देवादीन पांडेय के खिलाफ रोष फैल गया था।

सुबह चेतराम के साथ गाँव वालों की भारी भीड़ थाने पहुँची। चेतराम ने देवादीन के लड़के के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए अर्जी दी। उधर थाना इंचार्ज पर देवादीन की पार्टी के लोगों का लगातार दबाव पड़ रहा था कि देवादीन के लड़के के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज न की जाए। थाना इंचार्ज बड़े असमंजस में थे कि क्या किया जाए।

थाने के बाहर भीड़ बढ़ती जा रही थी। धारा सिंह भी अपने सैंकड़ों समर्थकों के साथ थाने के बाहर आ डटे थे और थाना इंचार्ज पर रिपोर्ट लिखने के लिए दबाव डाल रहे थे। उधर देवादीन की पार्टी के आला नेताओं के फोन पर फोन आ रहे थे कि रिपोर्ट न लिखी जाए और मामले को रफा-दफा कर दिया जाए।

जैसे-जैसे रिपोर्ट लिखने में देर हो रही थी, वैसे-वैसे भीड़ बढ़ती जा रही थी। दस बजते-बजते भीड़ में शामिल लोगों की संख्या पाँच-छः हजार तक आ पहुँची थी। भीड़ का नेतृत्व अब धारा सिंह ने स्वयं संभाल लिया था। लोग पुलिस वालों पर गुंडों को संरक्षण देने का आरोप लगा रहे थे और पुलिस तथा देवादीन पांडेय के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर रहे थे। भीड़ के भारी दबाव के कारण ग्यारह बजे के करीब थाना इंचार्ज को देवादीन के लड़के के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के लिए विवश होना पड़ा था।

इसी बीच धारा सिंह ने घोषणा की कि जब तक इस कांड के अभियुक्त देवादीन के लड़के और उसके साथियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे। इस घोषणा के साथ ही वे अपने समर्थकों के साथ वहीं थाने के सामने भूख-हड़ताल पर बैठ गए थे। उनकी देखा-देखी भीड़ में से और भी लोग भूख-हड़ताल में शामिल हो गए थे।

धारा सिंह के समर्थकों ने इस घटना को खूब तूल दिया था। वे क्षेत्र में जा-जा कर लोगों से इस अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने का आवाह्न कर रहे थे। धारा सिंह ने सारा चुनाव प्रचार बन्द करके अपने वाहन इसी काम के लिए लगा दिए थे। वे लोगों को ढो-ढो कर थाने तक ला रहे थे।

जंगल की आग की तरह पूरे चुनाव क्षेत्र में इस कांड की खबर फैल चुकी थी। लोग देवादीन पांडेय और उसके लड़के के नाम पर थू-थू कर रहे थे।

उधर भीड़ में उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। लोग अभियुक्त को पकड़ने के लिए नारे लगा रहे थे। स्थानीय पुलिस और प्रशासन के उच्च अधिकारी भी मौके पर जा पहुँचे थे। पत्रकार और फोटोग्राफर भी भनक लगते ही वहाँ पहुँच गए थे।

सबकी जुबान पर इसी घटना की चर्चा थी। देवादीन और उनके समर्थक लाख दलीलें दे रहे थे मगर उनकी बातों पर कोई यकीन नहीं कर रहा था। उधर चेतराम गला फाड़-फाड़ कर रो रहा था और न्याय की भीख माँग रहा था। इससे भीड़ की उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर जा पहुँची थी।

स्थिति बेकाबू होते देख एस.पी. और डी.एम. ने धारा सिंह से बातचीत की थी। जब एम.पी. और डी.एम. साहब ने सबके सामने देवादीन के लड़के को गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया तो धारा सिंह और उसके समर्थकों ने अपनी भूख-हड़ताल समाप्त कर दी थी। धारा सिंह के समर्थक जलूस के रूप में धारा सिंह की जय-जय कार करते हुए उन्हें उनके घर तक ले गए थे।

रात को देवादीन पांडेय के लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया था। देवादीन पांडेय और उनके समर्थकों के पास अपना बचाव करने के अलावा और कोई चारा नहीं रहा था। जबकि धारा सिंह और उनके समर्थकों के तेवर अब आक्रामक हो गए थे।

इस कांड से चुनाव का नक्शा ही बदल गया था। कल तक जो हवा देवादीन पांडेय के पक्ष में वह रही थी, वह अब धारा सिंह के पक्ष में बहने लगी थी। हजारों वोटर देवादीन पांडेय के पक्ष में पल्ला झाड़ कर धारा सिंह के खेमे में आ खड़े हुए थे। धारा सिंह ने जो तुरुप चाल चली थी उससे उनकी हारी बाजी फिर जीत में बदलती जा रही थी।

मतदान के दिन धारा सिंह के पक्ष में पूरे चुनाव क्षेत्र में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला था और जीत का सेहरा एक बार फिर धारा सिंह के सिर पर ही बंधा था।

उधर सरल हृदय देवादीन पांडेय को यह बात अभी तक समझ में नहीं आ रही थी कि यह सब कैसे हो गया, जबकि घटना के समय उनका लड़का उनके साथ था।

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