कैक्टस के जंगल - भाग 11 Sureshbabu Mishra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कैक्टस के जंगल - भाग 11

11

वतन की खातिर

पूरे गाँव में यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई थी कि गाँव की पहाड़ी के पास किसी की लाश पड़ी हुई है। कश्मीर के बारामूला सेक्टर में ऊँची पहाड़ी के पास बसा हुआ यह एक छोटा सा गाँव था जहाँ पचास-साठ परिवार रहते थे।

आनन-फानन में गाँव के सारे लोग पहाड़ी के पास जमा हो गए। लाश पहाड़ी के नीचे एक झाड़ी में पड़ी हुई थी। दो नवयुवकों ने लाश को झाड़ी से बाहर निकाला।

सब लोग यह देखकर हैरान रह गये कि वह एक सैनिक की लाश थी। उसके सीने में गोली लगी थी जिससे उसकी पूरी वर्दी खून से लथपथ हो गई थी।

मोहम्मद गौस खाँ ने उसके शरीर को छूकर देखा उन्हें उसका शरीर कुछ गर्म लगा। फिर उन्होंने उसकी नब्ज देखी। “अरे यह तो जिन्दा है। वे सबकी ओर देखते हुए बोले।

“क्या ?“ सबके मुँह से एक साथ निकला। “हाँ मैं सही कह रहा हूँ।“ शायद यह किसी आतंकवादी की गोली से घायल होकर पहाड़ी से नीचे गिर गया है।“ मोहम्मद गौस खाँ ने सबको बताया।

दो नौजवानों ने उसके पीठ पर टंगे बैग को खोलकर देखा। उसमें से उसका आइडेन्टिटी कार्ड मिला।

“अरे यह तो हमारी सेना का लांस नायक है और इसका नाम रणवीर सिंह है।“ एक नौजवान ने सबको बताया।

तब तक डॉ. फिरदौस वहां आ गए थे। श्रीनगर मेडिकल कॉलेज से तीन साल पहले एम.बी.बी.एस. करने के बाद उन्होंने इस छोटे से गाँव में ही अपना क्लीनिक खोला था। उनकी क्लीनिक पर आस-पास के गाँवों के लोग भी इलाज के लिए आते थे। सब उनका बड़ा सम्मान करते थे।

डॉ. फिरदौस ने घायल का परीक्षण किया। फिर वे बोले-“खुदा का शुक्र है कि गोली इसके कंधे के पास लगी है। खून बहुत बह चुका है, मगर मुझे पूरा यकीन है कि यह बच जायेगा।

“तो जल्दी इसे गाँव ले चलो।“ मोहम्मद गौस खान बोले।

“मगर यह तो हिन्दू है और हमारा पूरा गाँव मुसलमान। फिर कौन इसे अपने घर पनाह देगा।“ रहमत मियां ने प्रश्नवाचक निगाहों से सबकी ओर देखते हुए पूछा।

सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। “कैसी बातें करते हो रहमत ? यह हमारे देश का सैनिक है। जब सैनिक देश की सीमा पर खड़ा शत्रु की गोलियों का सामना कर रहा होता है तो वह यह नहीं सोचता कि जिनकी वह रक्षा कर रहा है वह हिन्दू है या मुसलमान, सिख है या ईसाई।“ मोहम्मद गौस खान ने सबको समझाते हुए कहा।

“खान काका बिल्कुल सही कह रहे हैं। इसकी जान बचाना हमारा फर्ज है। डॉ. फिरदौस ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा।

मोहम्मद गौस खान गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति थे। लोग उनकी बहुत इज्जत करते थे। उनकी  कही बात सबके लिए कानून थी। इसलिए सबने उनकी बात को सिर झुकाकर स्वीकार कर लिया और घायल सैनिक को उठाकर गाँव की ओर चल दिए।

घायल सैनिक को गाँव में आए आज दो दिन हो गए थे। डॉक्टर फिरदौस खुद रात-दिन एक कर उसके इलाज में लगे हुए थे। सैनिक के शरीर से बहुत खून बह चुका था, इसलिए गाँव के कई नौजवानों ने उसकी जान बचाने के लिए अपना खून दिया था। उसका इलाज गौस खान के घर पर ही चल रहा था। सबकी दुआओं का ही असर था कि वह अब खतरे से बाहर था मगर अभी उसे होश नहीं आया था।

शाम का समय था। डॉ. फिरदौस और गाँव के कई अन्य लोग गौस खान के घर में बनी बैठक में बैठे थे। सब लोग आपस में बातचीत करने में मशगूल थे। तभी एकाएक गोलियां चलने की आवाज आई। इससे पहले कि बैठक में बैठे लोग कुछ समझ पाते गाँव के कुछ लोग दौड़ते हुए वहां आए और उन्होंने गौस खान को बताया कि कुछ हथियारबन्द दहशतगर्द गाँव में घुस आए हैं। वे सबसे घायल सैनिक के बारे में पूछ रहे हैं और आपके घर की ओर आ रहे हैं।

यह सुनकर सबके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। गौस खान ने सबको धीरज बंधाया और कहा-“घबराओ नहीं इन्शा अल्लाह सब ठीक ही होगा।“

फिर सबने सलाह करने के उपरान्त आनन-फानन में घायल सैनिक को गौस खान की बैठक से उनके घर के नीचे बने तहखाने में ले जाकर चारपाई पर लिटा दिया।

दहशतगर्द गाँव में घुसने के बाद सबसे पहले डॉक्टर फिरदौस के क्लीनिक पर पहुँचे। उन्होेंने वहाँ का चप्पा-चप्पा छान मारा, मगर उन्हें घायल सैनिक कहीं नहीं मिला। उन्होंने क्लीनिक पर मौजूद लोगों से भी घायल सैनिक के बारे में पूछा मगर सबने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही उन्होंने यहां किसी घायल सैनिक को देखा है।

दहशतगर्द सोच में पड़ गए और आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे। फिर उनमें से एक ने क्लीनिक पर काम करने वाले कम्पाउडर से पूछा-डाक्टर फिरदौस इस समय कहाँ हैं ?“

कम्पाउडर ने बताया कि डाक्टर साहब गौस खान चाचा के यहाँ गये हैं। फिर दहशतगर्द कम्पाउडर को लेकर गौस खान के यहाँ पहुँचे।

आठ-दस असलहाधारी दहशतगर्दों को देखकर वहां मौजूद सभी लोगों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।

“घायल सैनिक गाँव में किसके यहां छिपा है जल्दी बताओ नहीं तो हम लोग पूरे गाँव को नेस्तानाबूद कर देंगे।“

उनमें से एक दहशतगर्द कड़क कर बोला। वह शायद उनका कमाण्डर मालूम पड़ता था।

इससे पहले कि कोई गाँव बाला कुछ कहे डाक्टर फिरदौस खड़े हो गए और उन्होंने बड़ी शालीनता से कहा-“गाँव में कोई घायल सैनिक नहीं है जनाब, हाँ तीन दिन पहले गाँव की पहाड़ी के निकट एक घायल सैनिक हम लोगों को मिला जरूर था। हम लोग उसे गाँव लेकर भी आए थे परन्तु इसके दो घन्टे बाद ही आर्मी वाले आ गये थे और वे उसे आर्मी हास्पिटल ले गये।“

दहशतगर्द फिर आपस में खुसर-पुसुर करने लगे। फिर उसी कमांडर ने पूछा-“तुममें गौस खान कौन है ?“ मैं हूँ जनाब। गौस खान ने उठकर बड़े अदब से कहा।

कमाण्डर गौस खान को घूरते हुए बोला-“मैंने सुना है तुम सच्चे मुसलमान हो और कभी झूठ नहीं बोलते हो। तुम बताओ घायल सैनिक को तुम लोगों ने कहाँ छिपा रखा है ?“

पूरा गाँव जानता था कि गौस खान कभी झूठ नहीं बोलते हैं इसलिए सबको यकीन हो गया था कि अब गौस खान घायल सैनिक के बारे में दहशतगर्दों को सब कुछ सच-सच बता देंगे। डॉ. फिरदौस भी पशोपेश में पड़ गए थे उन्हें भी अब घायल सैनिक को बचाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। सबकी निगाहें गौस खान के चेहरे पर टिकी हुई थीं। उनके चेहरे पर एक रंग आ रहा था, तो दूसरा रंग जा रहा था वह शायद गहरे पशोपेश में थे। फिर वे बोले-“डाक्टर फिरदौस ने बिल्कुल सही कहा है जनाब। मैं खुदा का वास्ता देकर कहता हूँ कि इस गाँव में कोई घायल सैनिक नहीं छिपा है। अगर मैं झूठ बोल रहा हूँ तो मुझे दोजख मिले।“ यह कहकर गौस खान चुप हो गए थे। कुछ देर के लिए वहां सन्नाटा छा गया था।

दहशतगर्दों ने आपस में बातचीत की। वे गौस खान की बात से पूरी तरह मुतमईन हो गए थे कि वहां कोई घायल सैनिक नहीं है इसलिए वे वहां से चल दिए मगर जाते-जाते उन्होंने सबको यह चेतावनी जरूर दी कि उनके आने के बारे में कोई पुलिस या सेना को कोई नहीं बतायेगा।

सबने सहमति में सिर हिला दिया। दहशतगर्द चले गये थे मगर गाँव वालों के मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा था कि चाचा गौस खान ने झूठ क्यों बोला। जब उनसे नहीं रहा गया तो सबने गौस खान से पूछा-“चाचा आपने दहशतगर्दों से झूठ क्यों बोला ?“

गौस खान बोले-“मैंने यह झूठ अपने वतन की खातिर बोला। मैं दोजख में तो जा सकता हूँ, मगर अपने वतन की सुरक्षा से खिलबाड़ नहीं कर सकता।

यह सुनकर नौजवानों ने गौस खान को कन्धों पर उठा लिया और गौस खान जिन्दाबाद तथा जय हिन्द के नारे लगाने लगे।

0000000000000000000