इश्क़ ए बिस्मिल - 70 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 70

ये क्या किया है तुमने मेरे कमरे का हाल?” उमैर ने काफी गुस्से में चीखते हुए कहा था।
अरीज ने पूरा कमरा अपनी नज़रों से छान लिया था मगर उसे ऐसा कुछ नज़र नहीं आ रहा था जिसकी वजह से उमैर का इतना गुस्सा होना जाइज़ था।
अरीज समझ गई थी की बात कमरे की नहीं थी... बात उमैर की फ्रस्ट्रेशन की थी जो वो अरीज पार निकालना चाहता था... कोई भी बहाना कर के... ये सब समझने के बाद भी अरीज चुप रही। उसने कोई सफाई नही दी और ना ही ये कहा की उसका कमरा सिर्फ़ सफाई के लिए खुलता था मगर उसकी किसी भी चीज़ों को बिना कोई छेड़ छाड़ किए।
अरीज नज़रें झुका कर फ़र्श को देख रही थी... वह तय्यार खड़ी थी उमैर की झिड़कियाँ सुनने के लिए मगर उसे इस तरह चुप चाप खड़े देख कर उमैर बिना आगे कुछ कहे अपना सर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया था।
वह खुद को जैसे हारा हुआ महसूस कर रहा था। पहले सनम के सामने और अभी अरीज के सामने।
एक के पास कहने के लिए वज़ाहत् का ढेर होता था तो दूसरी के पास कहने के लिए एक शब्द भी नही। ऐसे दोनों किस्म के इंसानो के आगे अगला बंदा हार ही जाता है जैसे अभी उमैर हार गया था।
उसे सोफे पर सर पकड़े देख कर अरीज को अच्छा नहीं लगा था।
“आप बताएं मुझे आप को क्या चेंजस अच्छी नहीं लगी मैं उसे ठीक कर देती हूँ... आप परेशान मत हों।“ अरीज ने आगे बढ़ कर दीवार पर बने खूबसूरत शेल्वेस पर नज़रें दौड़ते हुए कहा था मगर हक़ीक़त वो जानती थी के उसकी चीज़ों के साथ कोई छेड़खानी हुई ही नहीं थी।
“तुम क्यों ऐसा कर रही हो?... आखिर क्या साबित करना चाहती हो?...” उमैर उठ कर उसके पास गया था।
“मैं पहले ही बता चुकी हूँ.... मै नहीं चाहती मेरी वजह से आप अपना घर छोड़ें... अपने घर वालों से दूर हो जाएं....” अरीज ने धीमे से कहा था।
“नहीं... तुम ये साबित करना चाहती हो की तुम कितनी महान हो और मैं तुम्हारे रहमो करम का मोहताज हूँ.... तुम मुझे जो चाहे दे सकती हो... मैं खुद से कुछ हासिल करने के काबिल नहीं हूँ... “ वो गुस्से में बोले जा रहा था और ना जाने आगे क्या क्या बोलता की अरीज ने उसे बीच में रोक दिया।
“अल्लाह ना करे की आप किसी के रहमो करम के मोहताज हों... सिवाए उस एक रब के.... और रही देने की बात तो मैं आपको क्या दूँगी?... सब कुछ आप का है... “ अरीज को उसकी बातों ने तकलीफ़ पहुंचाई थी। दो साल हो गए थे मगर अरीज के लिए उमैर की सोच आज भी वैसे ही थी।
“मेरा कुछ नहीं है... बोहत मुश्किल से मैंने खुद को संभाला था और आगे बढ़ा था...मगर आज तुमने मुझे फिर से वहीं पे लाकर खड़ा कर दिया है। तुम्हे लगता है सब कुछ बोहत आसान है?... लेकिन शायद तुम्हें पता नहीं है इस वाह वाही के चक्कर में तुम अपने लिए मुश्किल बढ़ा रही हो।“ उमैर ने अफ़सोस से कहा था। अरीज चुप चाप उसे देख रही थी।
ये बातें जितनी भी की जाती ये बढ़ती ही जाती कभी खत्म ना होती इसलिए अरीज ने वहाँ से चले जाना ही अकलमंदी समझी थी... वह जा रही थी तभी चलते हुए कुछ सोच कर रुकी थी और बिना उमैर की तरफ़ मुड़े हुए कहा था।
“ठीक है... आप अपनी मर्ज़ी के मालिक है... यहाँ से जाना चाहते है तो चले जाएगा मगर एक दफ़ा बाबा से ज़रूर मिल लीजिएगा और उनकी बातें कानों से नहीं बल्कि दिल से सुन लीजिएगा।“ इतना कह कर वह आगे बढ़ गई थी मगर रूम के दरवाज़े तक आते आते वहाँ सनम भी चली आ रही थी। सनम उसे उमैर के कमरे में देख कर परेशान सी हो गई थी। अरीज उसे देख कर रुकी नहीं थी और कमरे से बाहर चली गई थी। उमैर वहीं पे खड़ा रह गया था।
सनम आसिफ़ा बेगम से उमैर के कमरे का पूछ कर उसका कमरा देखने आई थी मगर उसे अरीज के यहाँ होने का बिल्कुल भी इम्कान नहीं था।
“ये तुम्हारे कमरे में क्या करने आई थी?” उसने आइब्रो चढ़ा कर नागवारी से उमैर से सवाल किया था।
“वही, जो तुम करने आई हो।“ उमैर को उसकी पूछताछ अच्छी नहीं लगी थी। वह पहले से ही जानता था यहाँ रहने से यही सब होने वाला है... सनम के बेतुके सवाल और हर वक़्त उसके शक के घेरे में रहने वाला है।
“मेरी बात अलग है... तुम मेरा comparison उस से नहीं कर सकते...” उमैर की बात से उसे गुस्सा आ गया था।
“हाँ तुम सही कह रही हो... तुम्हारा उसका कोई comparison नहीं है...बस बात ये है की, ये उसका घर है...यहाँ रहती है... उसे यहाँ का सब कुछ पता है... मुझे कुछ चाहिए होगा या ज़रूरत पड़ेगी तो उसी से पूछूँगा तुमसे नहीं।“ उमैर दबे लफ़्ज़ों में जाने उसे क्या जता गया था। सनम उसकी बात को अपने ज़हन में दोहरा कर समझने की कोशिश कर रही थी लेकिन जितना थोड़ा बोहत भी उसे समझ आया था उसे बुरा ज़रूर लगा था।
थोड़ी देर दोनों के दरमियाँ ख़ामोशी रही थी। उमैर उसे नज़रंदाज़ करते हुए अपना लैपटॉप खोल कर बैठ गया था। उसे busy देख कर सनम उसके कमरे का जाइज़ा ले रही थी। उसके कमरे की एक एक चीज़ को उठा उठा कर मुआईना कर रही थी और कभी हैरतज़दा तो कभी इंप्रेस भी नज़र आ रही थी।
उमैर काम करते करते एक दो बार उसकी तरफ़ देख ले रहा था। वह ड्रेसिंग रूम घुसी थी और लगभग बीस मिनटों के बाद बाहर आई थी। उमैर का कमरा देख कर थोड़ी देर पहले होने वाली टेंशन उसके सर से बिल्कुल गायब हो गई थी।
वह मुस्कुराती हुई उमैर के बगल में बैठ गई थी और बड़े प्यार से उसे अपने हाथों के हिसार में लेकर उसके कंधे पर अपना सर टिका दी थी। वह उमैर की अटेंशन चाहती थी मगर उमैर अपने काम में पूरा मग्न दिखाई दे रहा था (शायद वह जान बुझ कर ज़ाहिर कर रहा था)
उमैर की तवज्जोह हासिल नहीं होने पर वह थोड़ी देर बाद सीधी होकर बैठ गई थी फिर कुछ सोचते हुए उसने कहा था
“तुम जानते हो? ये वही लिफ़्ट वाली लड़की है...” उसने बड़ी राज़दारी से कहा था। उसकी बात पर उमैर ने अपनी नज़र लैपटॉप से हटा कर उसे ना समझी से देखा था। दरासल ऐसा वह ज़ाहिर कर रहा था की जैसे उसे समझ नहीं आई सनम की बात
उसे हैरानी हुई थी.. इस वाक़िये को गुज़रे दो साल हो गए थे मगर सनम के ज़हन मे अरीज चिमट सी गई थी।
“कौन लड़की?” उमैर अंजान बना था
“अरे! वही लिफ़्ट वाली... जो मॉल में दिखी थी... मैंने तुम्हें बताया था ना?” वह उसे याद करा रही थी।
“कौन... अरीज?” उमैर ने अच्छी लाइलम होने की एक्टिंग की थी।
“हाँ... यही तुम्हारी cousin… “ उसने थोड़ा चिढ़ कर कहा था।
“Ohh! What a coincidence…. मगर तुम तो बता रही थी की वह बिल्कुल भी खूबसूरत नही थी जितना वह बन रही थी.... मगर अरीज तो बोहत खूबसूरत है।“ उमैर ने याद कर के हैरानी का मुज़ाहिरा करते हुए कहा था।
सनम बिल्कुल चुप सी हो गई थी। उमैर ने उसकी बोलती जो बंद कर दी थी। उसकी बात से सनम झेंप सी गई थी। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था की उसे क्या ज़रूरत थी इस बारे में उमैर से कुछ कहने की। अपनी awkwardness को मिटाने के लिए सनम ने वहाँ से हट जाना ही समझदारी लगी।
उसे जाता देख उमैर के होंठों पे हँसी मचल गई थी अब वह सुकून से अपना काम कर सकता था।