इश्क़ ए बिस्मिल - 71 Tasneem Kauser द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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इश्क़ ए बिस्मिल - 71

ऑफिस से घर आते ही जैसी ही ज़मान खान को उमैर के लौट आने का पता चला वह तुरंत उस से मिलने के लिए उसके कमरे में चले गए थे।
उमैर अभी भी लैपटॉप मे अपना सर खपा रहा था। ज़मान खान को देखते ही उसने अपना लैपटॉप बंद कर दिया था और खड़ा हो गया था।
“अस्सलामो अलैकुम बाबा” उमैर काफी संजीदा दिख रहा था।
“वालेकुम अस्सलाम.... जीते रहो...” उन्होंने उसके सर पे हाथ रखा था... उमैर ने अपना सर थोड़ा झुकाया हुआ था। उसे थोड़ा अजीब सा लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था की उनसे आगे क्या कहे।
“कैसा चल रहा है तुम्हारा नया कारोबार?” ज़मान खान सोफे पर बैठते हुए उस से पूछ रहे थे। उमैर को उनकी बात से हैरानी हुई थी की उन्हें किसने ये सब बताया।
“हैरान ना हो मेरी जान... एक बाप अपने बच्चे से कभी इतना ग़ाफ़िल नहीं होता की उसको पता ही ना हो की उसका बच्चा कहाँ है और कैसा है।“ उन्होंने हँसते हुए कहा था मगर उनकी बात सुनकर उमैर मुस्कुरा तक ना सका था।
अचानक से ज़मान खान किसी सोच में पड़ गए और फिर मायूस होकर कहने लगे थे।
“हाँ.. मगर औलाद अपने ज़िद, गुस्से और अना में इतने ग़ाफ़िल ज़रूर हो जाते है की उन्हें पता ही नहीं होता के उसके माँ बाप ज़िंदा भी है या मर गए।“ वह उमैर को नहीं देख रहे थे बल्कि किसी सोच में गुम सामने देख रहे थे मगर उमैर उन्हें ही देख रहा था। ज़मान ख़ान की बातों ने उसे अंदर से झिंझोड़ दिया था। वह सच ही तो कह रहे थे।
“पता है उमैर?... तुम्हे एक बार अपने सामने देखने के लिए मैं तो खुशी ख़ुशी मरने को भी तय्यार था... की शायद तुम कहीं से आ जाओ। तुम्हारे सामने अपने हाथ जोड़ कर माफ़ी माँग लूंगा फिर सुकून से मर सकूँगा।“ ज़मान खान दुख और तकलीफ़ की मिली जुली कैफ़ियत में बोल रहे थे।
“क्या हुआ था आपको?” उमैर की जैसे जान निकल गई थी ये सुनते ही। वह आगे बढ़ कर उकने सामने सोफे के नीचे घुटनों के बल बैठ गया था।
“दिल का दौरा।“ ज़मान खान ने मुस्कुरा कर कहा था। उमैर ने उन्हे देखा था मगर कुछ कहने के बजाए उनके घुटनों पर अपना सर रख दिया था। उसने ज़मान खान की टांगों के गिर्द अपनी बाहें डाल दी थी। वह उन्हें गले लगाने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था शायद इसलिए उसने उनके टांगों को अपने सीने से लगा लिया था। कुछ क़तरे आँसुओं के उमैर की आँखों से गिर कर ज़मान खान की पैंट में जज़्ब हो गए थे। वह कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था।
ज़मान खान जानते थे की वह रो रहा है मग़र उन्होंने उसे चुप कराने की कोशिश नहीं की थी... वह चाहते थे आज उसके दिल के सारे मैल इन आँसुओं से धुल जाएं।
“उमैर...ज़िंदगी अगर हक़ीक़त है तो मौत उस से भी बड़ा सच है। ज़िंदगी की खुराक अगर साँसें है तो मौत की खुराक खुद ज़िंदगी। ज़िंदगी आगे आगे है तो मौत उसके पीछे पीछे।... ये सारी हक़ीक़त सब को पता होता है मगर फिर भी हम इंसान ऐसे जीते है जैसे की कभी मरना ही नही है।...अपनी झूठी शान, अना, घमंड हमारे लिए बस यही सब ज़रूरी होता है। जब मुझे दिल का दौरा पड़ा तब मुझे एहसास हुआ की अगर तुमसे सुलाह किए बग़ैर मर गया तब हमारा केस अल्लाह की बारगाह में चला जाएगा फिर तो ना कोई सफाई काम आएगी ना कोई दलील... सारे कच्चे चिट्ठे खुल जाएंगे... क्या मूंह दुखाऊंगा अपने परवरदिगार को।“ ज़मान खान अभी भी खोए खोए से मुस्कुरा कर कह रहे थे। उनकी बात पर उमैर तड़प गया था।
“प्लिज़ बाबा ऐसा मत बोलिए... मुझे माफ़ कर दीजिए... मैं आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा।“ उमैर उनके घुटनों पर सर रख कर वैसे ही रो पड़ा था।
ज़मान खान ने उसे उठा कर अपने सीने से लगा लिया था।
“मुझे माफ कर दो मेरे बच्चे.... मुझे तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था...हमारे अल्लाह और उसके रसूल ने भी कहा है की अपनी औलाद की शादी उसकी मर्ज़ी के बग़ैर मत करो... खैर जो भी हुआ उसको भूल जाओ...अब तुम आ गए हो देखना मैं कितनी धूम धाम से तुम्हारी शादी तुम्हारी मर्ज़ी से करवाउंगा।“ ज़मान खान ने हँसते हुए कहा था मगर उनकी आँखें आँसुओं से भर गई थी, उनकी आवाज़ बोलते हुए काँप रही थी। यह ज़मान खान ही जानते थे की ये बात कहते हुए उनके दिल पर क्या गुज़री थी।
उमैर ने कुछ नहीं कहा था बस उनके सीने से लगा हुआ था जैसे के कोई छोटा सा बच्चा हो। ज़मान खान भी उसकी पीठ सेहला रहे थे।
“चलो साथ मिलकर dinner करते है।“ थोड़ी देर के बाद ज़मान खान ने उसे खुद से अलग करते हुए कहा था।
“आप वेट करें... मैं फ्रेश हो कर आता हूँ।“ ये कह कर उमैर बाथरुम चला गया था और फिर पांच मिनट के बाद मूंह हाथ धोकर बाहर आया था।
Dining room में अरीज और एक मैड के अलावा और कोई नही था। अरीज मैड के साथ मिलकर टेबल लगा रही थी।
ज़मान खान और उमैर को एक साथ आता देख कर वह टेबल लगाते लगाते रुक गई थी। ज़मान खान के होठों पे बड़ी हसीन सी मुस्कुराहट थी जैसे उन्होंने कोई जंग जीत ली हो। उन्हें खुश देख कर अरीज का दिल भी बाग बाग हो गया था... वह भी बदले मे मुस्कुरा रही थी। मगर उमैर का चेहरा बिल्कुल सपाट था... कोई हाव भाव नज़र नहीं आ रहे थे। हाँ इतना ज़रूर हुआ था की अरीज को मुस्कुराता देख कर उसने नज़रें फेर ली थी।
अरीज ने मैड को भेजा था ताकि बाकी लोग भी dinner के लिए आ जाएँ। उसने लगभग टेबल रेडी कर दिया था।
उमैर जा कर चेयर पे बैठ गया था और ज़मान खान अरीज के पास जाकर उसकी पेशानी को बोसा दिए थे और उसका सर अपने सीने से लगाकर उसके सर पर हाथ रखे थे।
ये सब उमैर के लिए ना कबीले बर्दाश्त था उसने अपना फोन जेब से निकाल कर उस पे busy होने का नाटक कर रहा था।
ज़मान खान अपनी कुर्सी पर बैठ गए थे फिर पांच मिनट के अंदर अंदर आसिफ़ा बेगम, सोनिया, हदीद अज़ीन और सनम भी वहाँ पहुंच गई थी।
सनम ने आते ही ज़मान खान को सलाम किया था। ज़मान खान ने उसे जवाब देकर उसके सर पर हाथ रखा था। मगर उनके अंदर इतनी हिम्मत नहीं हुई थी की वह उसका चेहरा देखते। वह उसे देखने से जाने क्यों परहेज़ कर रहे थे...शायद उनका दिल नहीं चाह रहा था उसे देखने का।
सनम जाकर उमैर के बगल वाले चेयर पर बैठ गई थी। मगर हदीद अपनी चेयर पे बैठने के बजाय उमैर से जाकर लिपट गया था।
“आप हमें क्यों छोड़ कर चले गए थे?... अगर मुझे पता होता की आप चले जायेंगे तो मैं कभी भी आपकी हेल्प नहीं करता।“ हदीद उमैर से कहते कहते रो पड़ा था।
उमैर ने उसका सर उठा कर उसके आँसूं साफ किये थे और कहा था “I’m sorry… ग़लती हो गई... अब दुबारा नही करूँगा।“
दूसरी तरफ़ अज़ीन उसे चुप चाप खामोशी से देख रही थी। उमैर ने उसे अपनी तरफ़ देखता पा कर मुस्कुराया था मगर अज़ीन बदले में मुस्कुराई नहीं थी उसे वैसे ही देखती रही थी। उमैर को उसकी नज़रों से उलझन होने लगी थी इसलिए उसने अपनी नज़रें फेर ली थी।
सब बैठ चुके थे मगर अरीज अभी भी खड़ी होकर सबको खाना सर्व कर रही थी।
“पता है उमैर...आज दो साल के बाद में इस टेबल पर बैठी हूँ... तुम्हारे जाने के बाद मेरा दिल नहीं चाहता था यहाँ पर बैठने का।“ आसिफ़ा बेगम जज़्बाती होकर उसे बता रही थी।
“Sorry mom for that.” बदले में उमैर बस इतना ही कह पाया था।
“मगर आप के जाने के बाद भी इस टेबल की रौनक बाबा और अरीज ने कायम रखी हुई थी।“ सोनिया ने बैठे बैठे अरीज पर तंज़ किया था। मगर अरीज ने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे उसने कुछ सुना ही नही है।
“खैर छोड़ो इन सब बातों को... ज़मान मैं सोच रही थी... उमैर और सनम की इंटेजमेंट अगर इस सन्डे पर हो तो कैसा रहेगा?” आसिफ़ा बेगम ने चहक कर कहा था। उनकी बात सुनकर ज़मान खान खाते खाते रुके थे। उन्होंने सब से पहले अरीज को देखा था जो अज़ीन के बगल में बैठ कर उसे निवाले बना बना कर खिला रही थी। उसका सारा ध्यान अज़ीन को खिलाने पर ही था।
पता नही उसने सुना था की नहीं या फिर वह आज से बेहरी हो गई थी... इसलिए के आज के बाद से उसे यही सब सुनने को मिलेंगे। उमैर भी चोर नज़रों से उसे ही देख रहा था।
“जैसा तुम सब बेहतर समझों...” उन्होंने बस इतना ही कहा था।
“सनम... उमैर तुम दोनों क्या कहते हो?” आसिफ़ा बेगम अब उन दोनों की राय ले रही थी।
“मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।“ उमैर ने बोहत धीमे से कहा था जैसे उसने ये बोलने पर खुद पर बोहत जब्र किया हो।
“I think संडे ही ठीक रहेगा आंटी।“ सनम तो जैसे खिल सी गई थी। आज ये होने वाली बारिश ही शायद उसके नसीब की थी जब ही उसकी झोली में एक साथ इतनी सारी खुशियाँ आन गिरी थी।
आसिफ़ा बेगम मुस्कुरा कर उसे प्यार भरी नज़रों से देख रही थी... वह तो जब से सनम से मिली थी उसके वारी सद्क़े जा रही थी।
उसके बाद उन्होंने अरीज को देखा था। उसे इन सब बातों से ला ताल्लुक देख कर उनके मन में शैतान ने खलबली मचाई थी।
“और अरीज तुम क्या कहती हो?” हंस कर किसी को मारा कैसे जाता है ये कोई आसिफ़ा बेगम से सीखता।
“आंटी मेरे ख्याल से सन्डे ठीक नहीं रहेगा।“ अरीज ने अभी इतना ही कहा था के सारे के सारे उसे अपना खाना छोड़ कर देखने लगे थे। “देखिए ना... सन्डे इंटेजमेंट पार्टी रहेगी बच्चे थक जायेंगे फिर नेक्स्ट डे यानी Monday इन्हे स्कूल जाना होगा... मेरे ख्याल से इंटेजमेंट सेरेमनी वीकेंड पे रखते है ताकि बच्छों को एक दिन आराम के लिए मिल सके।“ अरीज ने अपनी इंकार की वजह सब को साफ साफ़ बताई थी। उसे इतना रिलेक्स देख कर आसिफ़ा बेगम चिढ़ गई थी। ज़मान खान उसकी हिम्मत पर कलप गए थे और उमैर?.... उसे लग रहा था वह ये टेबल ही छोड़ कर चला जाए। मगर वह ऐसा कर नहीं पाया था।
उसके बाद सब ने बड़े आराम से dinner किया था। Dinner करने के बाद सब उठ कर चले गए थे और अरीज सब को समेटने के लिए ठेहर गई थी।
मैड बर्तन धो रही थी तो वो सब बर्तनो को खाली कर रही थी सब अरेंज करके किचन साफ़ किया था। मैड चली गई थी और वह खुद के लिए चाय बना कर स्टडी रूम में आ गई थी। दिल अताह गेहरियों में डूबा हुआ महसूस हो रहा था, नींद तो क्या ख़ाक आती। स्टडी रूम में शेल्वस् पे रखे किताबों पर नज़रें दौड़ा कर उसकी नज़र एक किताब पर जा रुकी थी। किताब की binding और कवर पेज के उपर udru लफ़्ज़ों में “तलखियाँ” लिखी हुई थी। वह उस किताब को लेकर अपने रूम आये थी। अज़ीन सुबह स्कूल के लिए जल्दी उठती थी इसलिए उसे खुद ही जल्दी नींद आ जाती थी।
अरीज ने चाय का एक सिप लेकर कप साइड टेबल पर रखा था और वह ग़ज़ल पढ़ने बैठ गई थी।