हंसी के महा ठहाके - 3 - मामा जा पहुंचे मेला Dr Yogendra Kumar Pandey द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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हंसी के महा ठहाके - 3 - मामा जा पहुंचे मेला

मामा जा पहुंचे मेला खंड 1मौजीराम का शहर नदी तट पर है।यहां हर साल मेले का आयोजन होता है।यूं तो मौजीराम जी को भीड़भाड़ और शोर-शराबा पसंद नहीं है, लेकिन त्यौहारों और मेलों के अवसर पर वे लोकदर्शन के उद्देश्य से वहां अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराते हैं।इस बार श्रीमतीजी जाने के पक्ष में नहीं थीं।
उन्होंने मौजी राम से कहा,"क्या करेंगे भीड़ भाड़ में जाकर?आपकी दुपहिया रखने की भी तो जगह नहीं मिलती।"
"आप चिंता क्यों करती हो भगवान?गाड़ी को ऐसी जगह रखूंगा,जहां वापसी के समय सीधे गाड़ी उठाएंगे और निकल पड़ेंगे घर की तरफ। मतलब कोई असुविधा नहीं।"मौजी मामा ने मामी को समझाते हुए कहा।
मामा की बात से असहमति जताते हुए मामी ने तंज कसा,"मैं जानती हूं,आप बड़े सिद्धांतवादी व्यक्ति हो।मास्टर जो ठहरे।मेला स्थल से एक डेढ़ किलोमीटर पहले ही गाड़ी खड़ी कर दोगे और हमें वहां से पैदल यात्रा ही कराओगे।"
"अरे यह अच्छा ही तो है।इसी बहाने आपका थोड़ा पैदल चलना भी हो जाएगा।फिटनेस फ्रीक बन जाओगी।क्या पता एक-दो किलो वजन ही कम हो जाए,"मामा ने छेड़ते हुए कहा।
इससे पहले कि मामा अपनी जुबान फिसलने से तीर की तरह निकले व्यंग्य वचनों को वापस ले पाते,मामी ने इसकी संभावना समाप्त करते हुए कहा-"तब सोच लीजिए जी अगर वजन घटाने की बात चल पड़ी है,तो सबसे पहले आप ही के भोजन में कटौती से शुरुआत होगी।"
मौजी मामा तुरंत शरणागत की मुद्रा में आ गए।कहने लगे,"मैं तो मजाक कर रहा था भागवान,अब तुम जैसा कहो।अब तुमसे ज्यादा फिट और कोई हो सकता है?"
पासा उल्टा पड़ गया था,इसलिए आपदा प्रबंधन के तहत मामा ने मनुहार करते हुए कहा, मैं जानता हूं भागवान!तुम्हारी जाने की इच्छा नहीं है,अन्यथा नगर निगम ने धूल रोकने के लिए कई बार वाटर स्प्रे भी कराया है।अब दूसरा तर्क तुम धूल धक्कड़ का ही देने वाली हो।
मामी ने मामा को आश्चर्यचकित करते हुए कहा,"सुनिए जी!मैं भी आपकी ही तरह मजाक ही कर रही थी।अब इस धूल धक्के की परवाह कौन करे?साल में एक बार आता है मेला।इतने लोग मिलते हैं।लोगों के चेहरों पर दिखाई देने वाली उस हंसी और मुस्कुराहट से कितनी ऊर्जा मिल जाती है,क्या यह मैं नहीं जानती हूं?फिर नदी के तट पर मेला है।नदी के दर्शन होंगे।इससे लगे हुए मंदिर में देव विग्रहों के भी दर्शन होंगे।
थोड़ी ही देर बाद मामा अपनी दुपहिया में मामी और चुन्नू-मुनिया को लेकर मेले की ओर निकल पड़े।स्कूटी में सामने खड़े मुन्नू और बीच में बैठी मुनिया के बीच दुकानों,खिलौनों और झूलों को लेकर लगातार नोक-झोंक होती रही। मामा और मामी इसका आनंद लेते रहे।शहर के बाहरी भाग में स्थित मेला स्थल से लगभग डेढ़ किलोमीटर पहले ही थोड़ी भीड़भाड़ शुरू हो गई थी।कुछ ही दूरी पर बैरिकेड लगे थे।यातायात पुलिस के एक सिपाही ने मामा को हाथ से रुकने का इशारा करते हुए कहा- "वेहिकल्स आर नॉट अलाउड।"
इससे पहले कि मामा उनकी बात मानकर गाड़ी से उतरते।दूसरे सिपाही ने पता नहीं कैसे,मामा को पहचान लिया और पहले सिपाही से कहा-ये अखबार में लिखने वाले मास्टर जी हैं।मंच की ओर जा रहे होंगे।
पहले सिपाही ने कहा- आप जा सकते हैं गुरुजी।
मामा ने मामी की ओर देखा।उन्होंने मामी की इच्छा भांपते हुए अधिक ईमानदारी का परिचय नहीं दिया और बैरिकेड पार करते हुए नदी तट की ओर अपनी स्कूटी बढ़ा दी........

अगले अंक में पढ़िए कि और कौन सी रोचक घटनाएं घटती हैं....... (जारी)

डॉ.योगेंद्र कुमार पांडेय