कंतारा – फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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कंतारा – फिल्म रिव्यू

कंतारा फिल्म मूल रूप से कन्नड़ भाषा की फिल्म है जिसे सिनेमा जगत में बहुत सराहा गया है। अब सराहा जाना किस हद तक सही है इस की पुष्टि करना मेरे लिए एक प्रोजेक्ट था। मेरे लिए दक्षिण की फिल्मों को पसंद करना सहज नहीं होता। दक्षिण की फिल्मों में हर बात की इंतिहा देखने को मिलती है। OTT पर इस फिल्म के आने का इंतजार किया और पाया की Netflix पर ही इसका हिंदी वर्जन है, एमेजॉन प्राइम पर अन्य भाषाएं हैं। मुझे हिंदी पसंद है पर मेरे पास नेटफ्लिक्स नहीं। पर इंटरनेट पर आखिरकार जुगाड कर लिया, और देख ली फिल्म।

शुरुआत एक राजा की कहानी से हुई, उसके पास सब कुछ है पर मन की शांति नहीं। मन की शांति की तलाश में राजा एक जंगल में जा पहुंचता है। एक जगह उसे शांति प्राप्त होती है। उस जगह क्या है उसे पता नहीं। एक पत्थर की मूर्ति पर उसकी नजर जाती है। उसे राजा प्रणाम करके और सुकून महसूस करता है। तब वहां जंगल के लोग उसे मिलते हैं, राजा उस मूर्ति को अपने राज्य ले जाने के लिए उन लोगो से प्रार्थना करता है पर वे लोग इनकार करते हैं। तभी अचानक एक व्यक्ति के शरीर में जैसे कोई अन्य आत्मा आई हो इस तरह से वह जुलता है और बात करता है। उसने राजा से पूछा की अगर मूर्ति मिली तो वह राजा इन लोगों के लिए क्या करेगा। राजा ने कहा की में अपनी ज़मीन इन जंगल वाले लोगों को दे दूंगा।

इस देवता को जिसकी आत्मा एक व्यक्ति में प्रवेश करके राजा से संवाद करती है उसे पंजुरली कहा गया है। पंजुरली दक्षिण भारत में पूजनीय देव हैं। आखिरकार राजा पंजुरली देव की मूर्ति लेकर राज्य में जाते हैं और सुख शांति से जीते हैं और जंगल वाले लोगों को ज़मीन मिल जाती है।

इसके बाद जिस किसीने वह ज़मीन हथ्याने की कोशिश की उसे पंजुरली ने मार दिया।

अब आगे की कथा वर्तमान युग की है जिसमें हीरो का नाता पंजुरली से है जिसे फिल्म के अंत तक संभाला गया है। यहां पूरी कहानी एक गांव से जुड़ी है जिसे राजा ने मुफ्त में पंजुरली के कहने पर ज़मीन दी है। एक जंगल में रहने वाले लोग जिनकी अन्य समाज उपेक्षा कर रहा है पर ये लोग जंगल में काम करके अपना गुजर बसर चला रहे हैं। लोगो पर अत्याचार और शोषण हो रहा है और वे अपने हक के लिए अमीर लोगों से लड़ झगड़ रहे हैं।

इस प्रकार कहानी में देखने जाओ तो नयापन देखने को नहीं मिला। वही पुरानी कहानी जिसमें कुछ गरीब लोगो कुछ अमीरों से अपना हक छीन कर ले रहे हैं। दक्षिण की फिल्मों में मार दाड़ और शोर शराबा आम बात है, वह सब भरपूर मिलेगा पर कहानी मुझे फीकी लगी। हीरो को शराब पीता, सिगरेट सिगार पिता दिखाओ तो एंट्री अच्छी पड़ती है पर क्या हीरो को इसी तरह दिखाना आवश्यक है?

दक्षिण में हीरो बॉलीवुड की तरह स्लिम और मसल वाले नहीं हैं। रिश्ब शेट्टी को देखकर लड़कियां पागल तो नहीं होंगी जैसे ऋतिक या टाइगर को देखकर होतीं हैं। फिर इन फिल्मों को क्यों लोकप्रियता मिलती है? एक कारण जो मुझे दिख रहा है वो है हीरो की लार्जर देन लाइफ इमेज। एक हीरो को सुपर हीरो नहीं पर मसीहा दिखाया जाना, उसके आगे पीछे के किस्से बुनना की जिससे उसकी इमेज दर्शकों के मस्तिष्क में इतनी बढ़ी बन जाए की उस हीरो की महानता के आगे दर्शक कुछ और सोच न पाएं। यही कारण है की साउथ में ज़्यादातर राजनीति में प्रवेश करने वाले लोग हीरो हिरोइन होते हैं। मतलब जिंदगी एक फैंटसी है , बाकी सच्चाई में दुख बहुत हैं।

80 और 90 के दशक में साउथ के हीरो हिरोइन हिंदी फिल्में करने आते थे, रजनीकांत, चिरंजीवी, नागार्जुन जैसे हीरो हिंदी फिल्में करके फिर वापस अपनी प्रादेशिक फिल्मों में लौट गए। क्योंकि हिंदी फिल्मों के हीरो को असली जिंदगी में भगवान मानने के किस्से नहीं बुने गए हैं, पर साउथ में यह बड़ी साधारण बात है। तो भगवान बनना किसे अच्छा नहीं लगेगा।

वापस आते हैं फिल्म की कहानी पर जिसमें हीरो को एक देव के सपने आते हैं और उस देव के सपनों में वह परेशान होता है । और फिल्म के अंत में वह उसके शरीर में आता है और और देव उसके शरीर में आकर उसके अंदर एक बहुत बड़ी शक्ति बन जाता है ।और फिर हीरो उस शक्ति का प्रयोग करके नकारात्मक शक्तियों को मतलब के विलेन को मार देता है।

फिल्म में एक पुलिस इंस्पेक्टर या फिर फॉरेस्ट इंस्पेक्टर दिखाया गया है जिसे जंगल को बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अब उस के रोल में कन्फ्यूजन यह है के जंगल को बचाते हुए जंगल वालों को सुरक्षित रखना है या उनको जंगल से हटाना है? इस बात पर मैं भी कंफ्यूज हूं कि आखिर उसका इस फिल्म में रोल किया था। शुरू में उसने जंगल वालों से दुश्मनी की और आखिर में जंगल वालों से दोस्ती और मैं कंफ्यूज हूं कि भाई करना क्या चाहते थे।

हमने गांव में जंगलों में बहुत सारे ऐसे किस्से सुने हैं जिसमें एक व्यक्ति के शरीर में एक आत्मा एक शक्ति आ जाती है और उस शक्ति के प्रवेश से वह व्यक्ति एक बहुत बड़ी ताकत बन जाता है और वह व्यक्ति भविष्यवाणी करता है ।और उन भविष्यवाणियों में किसी की अच्छाई किसी की बुराई छुपी होती है। जिससे लोग उस शक्ति को पूजते हैं और कई बार अपनी समस्याओं के प्रश्न पूछने भी उस शक्ति के पास आते हैं।

इन बातों पर गांव देहात में बहुत विश्वास किया जाता है, लेकिन शहरों में इसे अंधविश्वास माना जाता है। इस फिल्म के माध्यम से क्या अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है? या यह गांव देहात की संस्कृति की झलक है? वह दर्शक खुद तय कर सकते हैं ।

व्यक्तिगत तौर पर इस बात पर मैं बिल्कुल सहमत नहीं हूं कि इस कहानी में बहुत दम है या यहां पर एक कल्चर दिखाया गया है । कल्चर के नाम पर फिल्म में वही पुरानी तकनीक है जिसमें एक पिछड़े गांव के लोग, उनपर पर किया जाने वाला अत्याचार ,साहूकारों अमीरों द्वारा उनका शोषण और फिर एक सुपर नेचुरल पावर को लेकर न्याय को दिलाना। जो करीब 60 सालों से वही फार्मूला का प्रयोग किया जा रहा है पर आज भी यह फार्मूला चल रहे हैं और फिल्में हिट जा रहीं हैं।

अगर आपको साउथ की फिल्में पसंद है तो कंतारा आपके लिए बंपर इनाम जैसी फिल्म है ।और अगर आप मेरी तरह विचारक और एनालिसिस वाले हैं तो इस फिल्म से दूर रहें।

– महेंद्र शर्मा 25.01.2023